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रोज पाठ का लेखक परिचय

लेखक – अज्ञेय

अज्ञेय का जन्म – 07 मार्च 1911

अज्ञेय का निधन – 04 अप्रैल 1987

अज्ञेय का निवास स्थान – कर्तारपुर,पंजाब

अज्ञेय के माता – व्यंती देवी 

अज्ञेय के पिता – डॉ.हीरानंद शास्त्री (प्रख्यात पुरातत्ववेता)

अज्ञेय हिंदी के आधुनिक साहित्य में  प्रमुख प्रतिभा थे ।

रोज कहानी का सारांश लिखें

कहानी आत्मकथ्य शैली में है जिसका प्रारम्भ सहसा हो जाता है। दोपहर को उस आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही है, उनकी आहट सुनकर मालती बाहर आई। अन्दर पहुँचकर लेखक ने पूछा- “वे यहाँ नहीं हैं ?” उत्तर मिला अभी दफ्तर से नहीं आये हैं। मालती पंखा उठा लायी और ऊपर झूलाने लगी। यह कहानी विचित्र ढंग से प्रारम्भ होती है, मालती अतिथि से कुशलक्षेम भी नहीं पूछती । उसके व्यवहार में कर्त्तव्यपालन का भाव कुछ अधिक ही है। बचपन की बाबली, चंचल लड़की शादी के बाद इतनी बदल जाती है कि चुप्पी उसके चेहरे पर छा जाती है। उसका व्यक्तित्व भी बुझ-सा गया है। अतिथि का आगमन वहाँ कोई उल्लास का कारण नहीं है और अतिथि को भी वहाँ कोई छाया मँडराती-सी दिखायी देती है।

मौन छाये वातावरण को मालती का बच्चा भंग करता है। मालती उसको सँभालने चली जाती है। मालती लेखक की दूर के रिश्ते की बहिन थी। वह उसके साथ सखी रूप में रही थी उनका सम्बन्ध ही ऐसा था। साथ खेलती, लड़ती, पिटते और पढ़ते भी साथ ही थे। लेखक चार वर्ष बाद उससे मिलने आया था। बच्चे का नाम लेखक ने पूछा तो पता चला नाम कोई रखा नहीं, पर हम टिटी कहते हैं । लेखक को यह भी अखरता है कि मालती ने कोई बात नहीं की। कैसा हूँ यह भी नहीं पूछा ? लेखक ने एक बार प्रश्न किया जान पड़ता है तुम्हें मेरे आने से विशेष प्रसन्नता नहीं हुई। वह मात्र चौंक कर हूँ कहकर शान्त हो गयी।

मालती का अन्तर्द्वन्द्व, मानसिक स्थिति, बीते बचपन की स्मृतियाँ भटक गर्मी और संज्ञाहीनता की स्थिति मौजूद थी। यह वहाँ व्यंजित था। थकान, जड़ता का भी अंश है पति का यान्त्रिक जीवन, सब्जी का अभाव, पानी समय पर नहीं आता यह भी परेशानी है, उसका भी चित्रण है, नौकर भी नहीं मिलता। मालती के पति दोपहर के तीन बजे और रात्रि के दस बजे भोजन करते हैं। मालती का जीवन रोज एक-सा ही है। पति का अधिकांश समय डिस्पेन्सरी में बीतता है या सोने में। यहाँ मालती की आन्तरिकता को भली प्रकार उभारा गया है, जिसमें लेखक को सफलता भी मिली है।

उसके पति का आगमन होता है। लेखक ने उनको पहली बार देखा था। दोनों का परिचय हुआ उनका नाम था महेश्वर। वे एक सरकारी अस्पताल में चिकित्सक थे। उनकी अस्पताल की जिन्दगी की भी चर्चा है। उनकी रूटीन पर ही दोनों में वार्तालाप होता रहा। खाना आ गया। लेखक ने मालती से पूछा तुम नहीं खाओगी, उत्तर महेश्वर ने दिया, वह पीछे खाया करती है। महेश्वर और अतिथि बाहर पलंग पर बैठकर अनौपचारिक वार्तालाप करते रहे। मालती बर्तन माँजती है, बच्चा बार-बार पलंग से गिर जाता है। मालती तीखी प्रतिक्रिया दिखाती है, यह आभास होता है कि वह यह बताना चाहती है कि वह बर्तन माँजे या बच्चा सँभाले, यह कहानी नारी की विषम स्थिति पर गहरी छाया डालती है। कहानी का अन्त भी करुण है ग्यारह का घण्टा बजता है, मालती कहती है ग्यारह बज गए। यह उसकी गहरी निराशा का भाव है, रोज ही यह होता है।

एक घटना और भी महत्वपूर्ण है। महेश्वर कुछ आम लाये थे जो अखबार में लिपटे थे। महेश्वर उन्हें धोने की कहते हैं। मालती उस अखबार के टुकड़े को पढ़ती है, यह बताता है कि मालती की जिन्दगी एक दायरे में सिमट गयी है वह अखबार भी नहीं पढ़ सकती यहाँ यह भी तड़प व्यंजित है कि वह बाहरी दुनियादारी से मिलना चाहती हैं।

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