Hindi Class 12 Chapter 6 Subjective

12th Hindi Chapter 6 Subjective : Here you can find class 12th hindi 100 marks Subjective questions for board exam 2024. तुमुल कोलाहल कलह में subjective questions is very important for bihar board exam 2024. 

तुमुल कोलाहल कलह में

 1. ‘हृदय की बात’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- चारों ओर घनघोर कोलाहल व अशान्ति व्याप्त है, उस समय हृदय की बात मन मस्तिष्क को शान्ति पहुँचाती है। कोलाहल, अशान्तिपूर्ण स्थितियाँ मस्तिष्क को आच्छादित कर लेती हैं। उसकी सद्, असद्, विवेक की क्षमता को भी प्रभावित कर लेती है, उस समय हृदय की बात ही सांत्वना देती है, सत्पथ को समझाती है। यह कोमल भावनाओं का प्रतीक है ‘उषा की प्रातः कालीन’ आभा-सी दमकती है और समस्त कोलाहल से दूर रखती है।
2. कविता में उषा की किस भूमिका का उल्लेख है ?
उत्तर- जब मन चिर विषाद में डूबा हो, मैं उषा की ज्योति रेखा बन जाती हूँ। वह ऐसी होती है मानो प्रकाश की किरण हो, उषा की प्रात:कालीन ज्योति जो घुटन भरी जिन्दगी में आशा का नवसंचार करती है।
 3. चातकी किसके लिये तरसती है?
उत्तर- चातकी छोटी-सी बूँद को तरसती है। प्रायः यह माना जाता है कि चातक मात्र स्वांति बूँद का ही पान करता है, अतः वह उस बूँद हेतु तरसती रहती है।

4. बरसात को ‘सरस’ कहने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर – जल रस है, वह रस की ही सृष्टि करता है, यदि वर्षा न हो तो फल-फूल का रस भी शुष्क हो जाता है। जल बरसा- कर वृक्ष, पौधे, फूल, पत्ती, झाड़ी, फल सब में रस का संचार कर देती है। ग्रीष्म के भीषण ताप से धरती प्यासी हो उठती है और बूँदों के लिये तरसती रहती है। जल बरसा, सारी धरती आनन्द विभोर हो उठी, पुलकायमान हो उठी, नव-नव अंकुर फूट पड़े ये ही उसके पुलक के प्रतीक हैं, यही कारण है कि बरसात को रस भरी या सरस कहा जाता है। यह वर्षा नवजीवन का भी संचार करती है अतः यह भी सरसता दायक ही है।

5.काव्य सौन्दर्य स्पष्ट करें- पवन की प्राचीर में रुक, जला जीवन जा रहा झुक, इस झुलसते विश्व वन की, मैं कुसुम ऋतु रात रे मन ! 

उत्तर – प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ जयशंकर प्रसाद की कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ से उद्धृत हैं। यह ‘कामायनी’ महाकाव्य का अंश है। कवि की मान्यता है कि यह संसार उजाड़ है, तिमिरमय है, कोलाहल भरा है, अतः यहाँ व्यक्ति को हृदय की भावनाओं को पकड़ना चाहिए। काव्य सौन्दर्य- (1) भाषा तत्सम प्रधान परिष्कृत परिमार्जित है, जिसमें भावों के प्रकटीकरण की विलक्षण सामर्थ्य है। (2) प्रतीकात्मकता बड़ी साविशेष है। मनु मन का प्रतीक है, इड़ा बुद्धि का प्रतीक है तो श्रद्धा हृदय की कोमल वृत्तियों का प्रतीक है। साथ ही इस भीषण संसार में पुरुष मन का प्रतीक है तो नारी हृदय का प्रतीक है जहाँ कोमलता, भावना, सात्विकता, प्रेम, करुणा का निवास रहता है। इसी कारण उसकी कोमलता का महत्व है। (3) पवन की प्राचीर में रूपक की व्यंजना है। प्राचीर जीवन को बाँध देती है उसकी गति कुण्ठित कर देती है। (4) विश्व – वन में भी रूपक है। यह झुलसता हुआ है, यह लाक्षणिक प्रयोग है। (5) कुसुम ऋतु, बसन्त का प्रतीक हैं, जो सब प्रकार का उल्लास, आनन्ददायक रस बरसाती है। (6) ‘ पवन का प्राचीर’ में अनुप्रास; जल जीवन में अनुप्रास ।

6.’सजल जलजात’ का क्या अर्थ है?

उत्तर- सजल – जलसहित, जलजात – जल में उत्पन्न होने वाला अर्थात् जल में खिला सुन्दर कमल । यहाँ उसका प्रतीकार्थ भी ग्रहण किया जाता है – मार्मिक जीवन के मार्मिक क्षणों में सदा कमल सदृश्य खिलने वाला व्यक्ति (मैं मनु) ।

7. कविता का केन्द्रीय भाव क्या है? संक्षेप में लिखिये ।

उत्तर- संसार में कलह, प्रताड़ना, अमंगल, भाग-दौड़, छल-कपट आदि चारों ओर व्याप्त है। व्यक्ति उनमें फँसा छटपटा रहा है। मन बड़ा चंचल है वह माया-मोह में फँसकर उसको भ्रमित करता रहता है और उसके चारों और पीड़ाओं का संसार बुनता रहता है। यह स्थिति अत्यधिक दुखद है अतः कवि चाहता है कि मानव को इससे मुक्ति प्राप्त हो सके। इसका एक ही उपाय है, हृदय या आत्मा का सम्मान, उसकी बात मानना, उसके अनुसार चलना। वह श्रद्धा (हृदय) को महत्व देता है, जो एक आस्थापूर्ण, विश्वासमयी, आस्तिक बुद्धि का प्रतीक है, उसके आधार पर ही कल्याण सम्भव हो सकता है। 

8. कविता में ‘विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है। यह किस कारण से है? अपनी कल्पना से उत्तर दीजिये ।
उत्तर- विषाद और व्यथा व्यक्ति के जीवन में समाया हुआ है, जिसने उसका जीना दूभर बना दिया है। इसका कारण आज की जीवन शैली है जिसमें घोर स्वार्थ, संघर्ष, मूल्यहीनता, तिरस्कार, संघर्ष, हत्या, लूट, छल-कपट, बलात्कार जैसे भीषण तत्व पसरे हुए हैं, जिनके कारण आदमी का जीना दूभर हो गया है। यही कारण है कि यहाँ ‘विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख हुआ है। कवि की अन्तरात्मा को भी ये स्थितियाँ मथ रही हैं। अतः एक ही उपाय है, वह है अन्तरआत्मा अथवा हृदय की बात मानना यही कवि कहता है कि मन चंचल है वह व्यक्ति को हराता है, भगाता है, दौड़ाता है, मचलता है तभी तो हृदय (श्रद्धा) का सहारा लेना हितकर है, श्रेयस्कर है। यही एक माध्यम है सारे क्लेशों, कष्टों, पीड़ाओं के समापन का।

9.यह श्रद्धा का गीत है जो नारीमात्र का गीत कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में नारियों की जो भूमिकाहै, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कविता में कही गई बातें उस पर घटित होती हैं। विचार कीजिए और गृहस्थजीवन में नारी के अवदान पर एक छोटा निबन्ध लिखिए।
उत्तर ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘कामायनी काव्य खण्ड का एक सर्ग’ है। इस अंश में महाकाव्य की नायिका श्रद्धा है, जो वस्तुत: स्वयं कामायनी है। इसमें श्रद्धा आत्मगीत प्रस्तुत करती है जो कि नारीमात्र का गीत है। इस गीत में श्रद्धा विनम्र स्वाभिमान भरे स्वर में अपना परिचय देती है।इस गीत में कवि ने सामान्य जीवन में नारियों की जो भूमिका है उसे देखते हुए यह कहने का प्रयास किया है कि कविता में कही गई बातें उन पर घटित होती हैं। कवि की सोच सही है। नारी वस्तुतः विश्वासपूर्ण आस्तिक बुद्धि का प्रतीक है। गृहस्थ जीवन में नारी का योगदान अतुलनीयहै। जब पुरुष का मन कोलाहलपूर्ण वातावरण में चेतनाशून्य हो जाता है और जब वह शान्ति व नींद चाहता है तब नारी मलय पर्वत से चलने वाली सुगन्धित हवा बनकर पुरुष के चंचल मन को आनन्द प्रदान करती है।जब पुरुष जीवन के चिर-विषाद में विलीन होकर घुटन महसूस करने लगता है एवं व्यथा के अंधकार में भटकने लगता हैतब नारी सूर्य की ज्योतिपुंज के समान पथ-प्रदर्शक बनकर पुष्प के समान जीवन को आनन्दित कर देती है। जब पुरुष के मन में मरुभूमि की ज्वाला धधकती है तब नारी सरस बरसात बनकर पुरुष के जीवनमें रस की वर्षा करने लगती है। जब पुरुष सांसारिक जीवन में झुलसने लगता है तब नारी आशा रूपी वसंत की रात के समान सुख का आँचल बन जाती है। इतना ही नहीं, जब मानव, जीवन पुरातन निराशारूपी बादलों से घिर जाता है तब नारी चातकी सरोवर में श्रद्धारूपी एक ऐसा सजल कमल है जिस पर भरे मँडराते हैं। इस प्रकार गृहस्थ जीवन में नारी की भूमिका बहुआयामी है।

10. इस कविता में स्त्री को प्रेम और सौन्दर्य का स्रोत बताया गया है। आप अपने पारिवारिक जीवन के अनुभवों के आधार पर इस कथन की परीक्षा कीजिए। 

उत्तर – प्रसादजी के काव्यों में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में कवि ने स्त्री को प्रेम और सौन्दर्य का स्रोत बताया है। कवि का कथन सही है जब पुरुष सांसारिक उलझनों से ऊबकर घर आता है तो स्त्री शीतल पवन का रूप धारण कर जीवन को शीतलता प्रदान करती है। व्यथा एवं विषाद में स्त्री पुरुष की सहायता करती है।

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