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पुत्र वियोग पाठ का लेखक परिचय

लेखक – सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म – 16 अगस्त 1904

सुभद्रा कुमारी चौहान का निधन – 15 फरवरी 1948

सुभद्रा कुमारी चौहान का निवास स्थान – निहालपुर, इलहाबाद, उत्तर प्रदेश

सुभद्रा कुमारी चौहान के पिता – ठाकुर रामनाथ सिंह

सुभद्रा कुमारी चौहान के माता – श्रीमती धिराज कुँवर

सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी की छायावादी काव्यधारा के समानांतर स्वतंत्र रूप से काव्यरचना करने वाली राष्ट्रीय भाव धारा की प्रमुख और विशिष्ट कवयित्री थीं |

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सुभद्रा जी मूलतः राष्ट्रीय चेतना की गायिका हैं पर समाज में भी तो नाना प्रकार के करुण चित्र बिखरे पड़े रहते हैं। यहाँ ऐसा ही एक चित्र उतारा गया है। पुत्र की मृत्यु के उपरान्त एक माता की क्या स्थिति हो जाती है, वही यहाँ व्यंजित है ।

आज समस्त दिशाएँ हँस रही हैं, चारों ओर आनन्द और उल्लास का वातावरण छाया हुआ है, पर यहाँ मात्र एक मैं ही हूँ जिसका खिलौना (पुत्र) खो गया है, जो अब तक मेरे पास नहीं आ सका है। ( बच्चा खिलौना चाहता है उसमें मग्न रहता है, वह उसके लिये परमप्रिय होता है, उसके खो जाने पर या दूर जाने पर उसका हृदय भी भग्न हो जाता है) यही स्थिति पुत्र वियोग में माता की होती है, वह पुत्र के साथ बिताये पिछले दिनों को याद करती है। मैंने उसको गोद से नहीं उतारा कि कहीं उसको शीत न लग जाय, जब भी उसने ‘माँ’ कहकर पुकारा, मैं सारे काम-काज छोड़कर उसके पास दौड़ती चली आयी। मैं उसको थपकियाँ देकर सुलाया करती थी, उसके सुलाने हेतु ही मैं लोरियाँ भी गाया करती थी, उसको जरा-सा भी कोई कष्ट हो जाता था उसके मुख पर मलिनता उभर आती थी, मैं सारी सारी रात जागती रहती थी, उसको गोद में समेटे रहती थी ।

माँ कहती है, मैंने इसके लिये क्या नहीं किया । अमूर्त की भी देव-तुल्य पूजा की जड़ पत्थर को भी देवता बना लिया। अपना अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। उस देवता पर कभी पुत्र की सलामती हेतु दूध-बताशा चढ़ाया, नारियल चढ़ाया, कहीं उसके सामने अपना शीश नवाया पर इस सबका कोई फल प्राप्त नहीं हो सका, साथ ही मेरा खिलौना मुझसे छिन गया। अब तो मैं परम असहाय हूँ, विवश हूँ, यहाँ उदास दुःखी बैठी हूँ, पर मेरा छोना छिन ही गया ।

मेरे व्यथित प्राण तड़प रहे हैं, एक पल को भी शान्ति नहीं है, शान्ति की रेखा भी नहीं है। चारों ओर अशान्ति ही अशान्ति है। यह मुझे पता है कि मेरा जो पुत्र रूपी धन खो गया, उसको पाना सर्वथा असम्भव है। इसमें कोई भी सन्देह नहीं है पर मैं क्या करूँ, यह मेरा मन हरदम रोता ही रहता है। मैं उसको समझाने का काफी प्रयास करती हूँ पर वह मानता ही नहीं है। उसके अभाव में मेरा सरल जीवन बड़ा जटिल बन गया है और चारों ओर सूनापन छा गया है।

अब कभी-कभी यह लगता है कि किसी प्रकार भी पल भर को उसको पा जाती, उसको हृदय से लगाकर बड़े प्यार से उसका सर सहला-सहला कर उसको यह समझाती मेरे भैया, मेरे बेटे अब माँ को इस प्रकार छोड़कर मत जाना, तुम नहीं जानते बेटा खोकर माता को अपना मन समझाना बड़ा कठिन हुआ करता है। यह हो सकता है कि तुम्हारे भाई-बहन तुम्हें भूल जायें, तुम्हारे पिता भी तुम्हें भुला दें, पर माँ तो रात-दिन की साथिन होती है, वह कैसे तुम्हें भुलाकर अपना मन समझा सकती है।

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