जूठन पाठ का लेखक परिचय
लेखक – ओमप्रकाश वाल्मीकि
ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्म – 30 जून 1950
ओमप्रकाश वाल्मीकि का निधन – 17 नवम्बर 2013
ओमप्रकाश वाल्मीकि का निवास स्थान – बरला, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश
ओमप्रकाश वाल्मीकि के माता – मकुंदी देवी
ओमप्रकाश वाल्मीकि के पिता – छोटनलाल
जूठन आत्मकथा का सारांश लिखें
बालक ओमप्रकाश विद्यालय आये, उनके प्रधानाध्यापक ने उनसे झाड़ू लगवायी, लगातार तीन रोज यह बड़ा दुष्कर कार्य था। विद्यालय का प्रांगण विशाल था और बालक की सामर्थ्य से काफी भारी था। तीसरे दिन अचानक उनके पिता उधर आ निकले तब पास जाकर उन्हें इस कार्य से त्राण मिल सका। उनका परिवार तगाओं के यहाँ काम करता था, गोबर उठाना और साफ-सफाई करना। उसमें उनका बड़ा भाई सुखवीर तगाओं के यहाँ वार्षिक नौकरी करता था पर उनकी माता जी सफाई कार्य करती थीं और उनकी बड़ी भाभी, बहन तथा जसवीर और जनेसर माँ का हाथ इस सफाई कार्य में बँटाते थे। इसका पारिश्रमिक था, फसल पर दो जानवर पीछे पाँच सेर अनाज, दोपहर के समय एक रोटी जो विशेष रूप से इनके लिये ही भूसी मिलाकर बनायी जाती थी। कभी-कभी जूठन भी टोकरी में डाल दी जाती थी। ओमप्रकाश महसूस करते हैं दिन-रात, मर-खपकर भी हमारे पसीने की कीमत मात्र जूठन फिर भी किसी को कोई शिकायत नहीं, कोई शर्मिन्दगी नहीं, कोई पश्चाताप नहीं। यह कितना क्रूर समाज है जिसमें श्रम का मोल नहीं बल्कि निर्धनता को बरकरार रखने का एक षड्यन्त्र ही था। लेखक की आर्थिक स्थिति शोचनीय थी। एक-एक पैसे हेतु परिवार के प्रत्येक सदस्य को खटना पड़ता था । यहाँ तक कि उनके परिवार में मृत पशुओं की खाल उतारी जाती थी और लेखक भी इससे बच नहीं सका था। शादी-ब्याह में जूठन मिल जाती थी। पूरियों के टुकड़े सुखाये जाते थे और बरसात में उनका उपयोग होता था। कहानी का शीर्षक भी उसी आधार पर निर्मित है। एक दिन एक बैल मर गया, उसकी खाल उतारनी थी। पिता जी व बड़ा भाई बाहर गये थे। यदि खाल उतारने में देर हो जाती तो गिद्ध खाल को खराब कर सकते थे। चाचा को तैयार किया गया। उनके साथ ओमप्रकाश भी गया। खाल उतारकर चाचा ने एक चादर में बाँध दी और थोड़ी दूर ले जाकर छोड़ दी। बड़ी कठिनाई से वह गठरी ओमप्रकाश को घर ले जानी पड़ी। जब वह घर पहुँचा तो सिर से लेकर पाँव तक गन्दगी से सना था। हालत भयानक थी। पैर लड़खड़ा रहे थे। उसका यह रूप देखकर माँ रो पड़ी थी और बड़ी भाभी ने कहा था- इनसे ये न कराओ…. भूखे रह लेंगे। इन्हें इस गन्दगी में न घसीटो। शायद ये ही शब्द लेखक के जीवन पथ पर प्रकाश फैला गये।
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