Eps Class 12 Chapter 7 Subjective in Hindi

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परियोजना की अवधारणा एवं नियोजन

1. स्वोट की विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर – स्वोट की विशेषताएँ  – स्वोट की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) स्वोट का उपयोग नई परियोजनाओं की पहचान करने के लिए किया जाता है।

(ii) इससे उद्यमी को उद्यम की शक्तियों एवं दुर्बलताओं का विश्लेषण करने की प्रेरणा मिलती है।

(iii) स्वोट के अन्तर्गत विद्यमान अवसरों एवं चुनौतियों का विश्लेषण किया जाता है।

2. परियोजना पहचान में स्वोट का क्या उपयोग है?

उत्तर – परियोजना पहचान में स्वोट का उपयोग – परियोजना की पहचान करने में स्वोट (SWOT) का उपयोग करना बड़ा लाभप्रद सिद्ध हुआ है। उद्यमी द्वारा किसी नवीन परियोजना में विनियोजन के अवसरों का अभिज्ञान करने के लिए अपनी शक्तियों, दुर्बलताओं, विद्यमान अवसरों तथा चुनौतियों का विश्लेषण करना ही स्वोट (SWOT) है।

3. परियोजना चक्र किसे कहते हैं?

उत्तर – परियोजना चक्र एक प्रक्रिया होती है जिसके अन्तर्गत परियोजना की पहचान, परियोजना की तैयारी, परियोजना का आकलन, परियोजना का कार्यान्वयन एवं परियोजना का मूल्यांकन करना शामिल होता है।

4. उत्तम परियोजना नियोजन के कोई दो आवश्यक बिन्दुओं को बताओ।

उत्तर- उत्तम परियोजना के दो आवश्यक बिन्दु निम्नलिखित हैं-

(i) परियोजना का निर्माण वस्तुपरक एवं यथार्थपूर्ण मान्यताओं पर आधारित होना चाहिए।

(ii) लाभप्रद विनियोग के अवसरों का पता लगाने के लिए व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं का अवलोकन करना।

5. परियोजना के चयन पर एक संक्षिप्त लेख लिखें।

उत्तर – किसी भी परियोजना का चयन उसके उपलब्ध साधनों एवं उद्देश्यों के अनुरूप किया जाता है तथा परियोजना के साध्यता अध्ययन करने के बाद पूँजी विनियोग का निर्णय लिया जाता है और परियोजना के चयन कर लेने एवं पूँजी विनियोग के निर्णय लेने के बाद एक विस्तृत प्रतिवेदन रिपोर्ट तैयार की जाती है जिससे परियोजना के विभिन्न तथ्यों का विश्लेषण एवं मूल्यांकन होता है। विनियोग एवं चयन का निर्णय लेते समय उद्यमी उत्पादन प्रक्रिया, उत्पादन एवं उपक्रम का आकार, वस्तु स्वामित्व का प्रारूप, कार्यशील पूँजी, श्रम की आवश्यकता, पूँजी संरचना, उत्पादन की लागत, संयन्त्र एवं मशीनों का अविन्यास, कच्चे माल की उपलब्धता, परियोजना का स्थानीयकरण एवं उत्पाद विभिन्नता इत्यादि बातों का निर्धारण करता है।

6. परियोजना निर्माण के विभिन्न चरण अथवा अवस्थाएँ क्या हैं?

उत्तर – परियोजना निर्माण के विभिन्न चरण अथवा अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-

(i) परियोजना की पहचान या परियोजना के उद्गम की अवस्थाएँ ।

(ii) परियोजना निरूपण की अवस्था ।

(iii) परियोजना मूल्यांकन ।

(iv) परियोजना का चयन।

(v) परियोजना क्रियान्वयन ।

(vi) परियोजना समारम्भ की अवस्था।

7. परियोजना नियोजन क्यों किया जाता है? “अथवा” परियोजना नियोजन क्यों जरूरी है?

उत्तर – परियोजना नियोजन इसलिए किया जाता है ताकि परियोजना के क्रियान्वयन के लिए अनुमानित लागत से सम्भावित आय की तुलना करके यह निर्णय लिया जा सके कि परियोजना को प्रारम्भ किया जाये या प्रारम्भ करने के विचार को त्याग दिया जाये। परियोजना नियोजन के अन्तर्गत परियोजना के विचार उत्पन्न होने से लेकर परियोजना के संचालन करने तक के सभी कार्यों को शामिल किया जाता है।

8. आर्थिक व्यवहार्यता क्या है?

उत्तर- आर्थिक व्यवहार्यता सामाजिक दृष्टिकोण के आधार पर मूल्यांकन से सम्बन्धित होती है। इसमें सामाजिक लागत एवं लाभ पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसे हम सामाजिक लागत लाभ विश्लेषण के नाम से भी जानते हैं। इसके अन्तर्गत हम कच्चे माल की आवश्यकता, अनुमानित बिक्री, अनुमानित लागत क्षमता (capacity) उपयोग का स्तर एवं सरकारी नीतियाँ इत्यादि को शामिल करते हैं।

9. परियोजना चक्र के तत्व क्या हैं?

उत्तर – परियोजना चक्र के तत्व निम्न हैं-

(i) परियोजना की पहचान करना,

(ii) परियोजना की तैयारी करना,

(iii) परियोजना का आकलन करना,

(iv) परियोजना को कार्यान्वित करना एवं,

(v) परियोजना का मूल्यांकन करना ।

10. परियोजना क्या है?

उत्तर – परियोजना जटिल, परस्पर सम्बन्धित एवं अनुक्रमिक कार्यों का – एक समूह है जिसे निश्चित समय सीमा एवं बजट तथा विशेष विवरणों के अनुसार पूरा किया जाता है।

11. उत्तम परियोजना नियोजन एवं निर्माण की अपेक्षाएँ क्या हैं?

उत्तर- उत्तम परियोजना की कुछ आवश्यक अपेक्षाएँ होती हैं जिनके अभाव में परियोजना को सफलतापूर्वक सम्पन्न नहीं कराया जा सकता। वे अपेक्षाएँ प्रमुख रूप से इस प्रकार हैं-

(1) परियोजना का निर्माण वस्तुपरक एवं यथार्थपूर्ण मान्यताओं पर आधारित होना चाहिए।

(2) लाभप्रद विनियोग के अवसरों का पता लगाने के लिए व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं का अवलोकन करना।

(3) परियोजना के निर्माण में परियोजना के समस्त पहलुओं एवं बिन्दुओं पर निष्पक्षतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए।

(4) परियोजना का अनुमान सूचनाओं, तथ्यों एवं वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित होना चाहिए।

(5) साध्यता प्रतिवेदन तैयार करने के लिए वित्तीय, तकनीकी एवं आर्थिक पहलुओं पर गहन अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाना चाहिए।

(6) परियोजना निर्माण में तकनीकी विशेषज्ञों, अर्थवेत्ताओं, उत्पादन विशेषज्ञों एवं औद्योगिक अभियन्ताओं का विशेष रूप से सहयोग होना चाहिए।

(7) परियोजना के संचालन के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्त होना चाहिए तथा वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्त के साधनों की व्यवस्था होनी चाहिए।

(8) परियोजना की समस्त वैधानिक औपचारिकताओं को पूरा किया जाना चाहिए।

12. परियोजना क्रियान्वयन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – परियोजना का क्रियान्वयन विस्तृत रूप से गहन छान-बीन करने के बाद ही किया जाता है। परियोजना के क्रियान्वयन के लिए एक विस्तृत कार्य योजना तैयार की जाती है जिसके अन्तर्गत उच्च स्तर के प्रबन्धकों द्वारा वित्तीय एवं अन्य साधनों का आबंटन कर दिया जाता है, आवश्यक उपकरण एवं साज-सामान की निरन्तर आपूर्ति के लिए सूचना एवं नियन्त्रण प्रणाली की स्थापना की जाती है जिससे उपलब्ध साधनों के अनुसार ही परियोजना को पूरा किया जा सके तथा परियोजना को इस निर्धारित अवधि में पूरा किया जा सके। इसके लिए प्रबन्धन की आधुनिक विधियों का उपयोग किया जा सकता है; जैसे- सी. पी.एम. एवं पर्ट। इसके उपयोग से उत्पादन प्रक्रियाओं को सरल बनाया जा सकता है। परियोजना क्रियान्वयन के अन्तर्गत परियोजना एवं इन्जीनियरिंग डिजाइन, संयन्त्र अविन्यास के नक्शे एवं मशीनों, उपकरणों का चयन, परियोजना, वित्त, भवनों का निर्माण, यन्त्रों, उपकरणों की पूर्ति, विपणन व्यवस्था आदि के बारे में अनुबन्धन एवं समझौते, निर्माण प्रक्रिया को प्रारम्भ करना जिसमें उत्पादन हेतु साज-सज्जा, आवश्यक सुविधाएँ एवं कार्य क्षेत्रों का निर्माण, कर्मचारियों, अधिकारियों, इन्जीनियरों, तकनीशियनों आदि उत्पादन सम्बन्धी प्रशिक्षण दिया जाता है।

13. परियोजना नियोजन किसे कहते हैं? इसको किन दो भागों में बाँटा जा सकता है?

उत्तर – परियोजना नियोजन से आशय किसी परियोजना के क्रियान्वयन के लिए अनुमानित लागत से सम्भावित आय की तुलना करके यह निर्णय लेने से है कि परियोजना को प्रारम्भ किया जाये या प्रारम्भ करने के विचार को त्याग दिया। जाये। इस प्रकार परियोजना नियोजन के अन्तर्गत परियोजना के विचार उत्पन्न होने से लेकर परियोजना के संचालन करने तक सभी कार्य सम्मिलित किये जाते हैं; जैसे- विचारों की खोज या छानबीन करना, प्रारम्भिक खोज या जाँच-पड़ताल करना, तथ्यों एवं सूचनाओं का संकलन एवं विश्लेषण करना, पंजीकरण, पूँजी के विनियोग सम्बन्धी निर्णय, परियोजना की व्यावहारिकता का पता लगाना, व्यावसायिक औपचारिकताओं को पूरा करना एवं उत्पादन करने के लिए सभी प्रकार के मूर्त एवं अमूर्त सम्बन्धी सम्पत्तियों की व्यवस्था करना इत्यादि । परियोजना नियोजन को प्रमुख रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) विद्यमान संस्था के लिए परियोजना नियोजन – विद्यमान संस्था या उद्योग के लिए परियोजना नियोजन में संस्था अपने व्यवसाय के विकास एवं विस्तार के लिए अपने उत्पाद मिश्रण में किसी नवीन उत्पाद को जोड़ना या विस्तार के दृष्टिकोण से अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए अपने संयन्त्रों में परिवर्तन करने से है तथा प्रतियोगिता को कम करने के लिए संस्था द्वारा किसी नवीन वस्तु के उत्पादन के लिए अपने संगठन और पूँजी ढाँचे में परिवर्तन करने से है। एक विद्यमान संस्था को परियोजना नियोजन करने में नवीन परियोजना नियोजन की तुलना में आसान होता है क्योंकि विद्यमान परियोजना के पास अपना पिछला रिकॉर्ड एवं लेखा-जोखा रहता है जिसे वह आवश्यक सूचनाओं, तथ्यों एवं आँकड़ों का अच्छी तरह से संकलन एवं विश्लेषण कर सकती है।

(2) नवीन संस्था की स्थापना के लिए परियोजना नियोजन – एक नवीन संस्था के लिए परियोजना नियोजन करना कठिन होता है क्योंकि परियोजना नियोजन से सम्बन्धित कोई भी सूचना या तथ्य एवं आँकड़े उपलब्ध नहीं रहते इसलिए नवीन संस्था की स्थापना के लिए परियोजना नियोजन नवीन आधारों एवं सम्भावनाओं के आधार पर किया जाता है या उसी क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के आधार पर नियोजन किया जाता है जिसमें परियोजना की भावी सफलता के लिए अच्छी प्रकार के अन्वेषण एवं जाँच-परख तथा छानबीन की जाती है और कभी-कभी नियोजन में विशेषज्ञों से परामर्श सम्बन्धी सेवाएँ ली जाती हैं जिससे संस्था के लाभ सम्बन्धी सम्भावनाओं पर गहनता से विचार-विमर्श करके परियोजना को कार्यान्वित करने के लिए अन्तिम रूप प्रदान किया जाये ।

14. परियोजना का अर्थ एवं अवधारणा पर एक विस्तृत लेख लिखें।

उत्तर—परियोजना अथवा प्रोजेक्ट से आशय पूँजी का विनियोग किसी ऐसे व्यावसायिक अवसरों में करने से है जिसमें लाभ की सम्भावनाएँ अधिक मात्रा में दिखती हैं। डेविल क्लिफटन एवं फिफे के अनुसार, “परियोजना से आशय किसी नये उद्योग की स्थापना करना या वर्तमान उत्पाद मिश्रण में किसी नवीन वस्तु को मिलाना होता है। एक परियोजना एक मशीन या प्लान्ट से सम्बन्धित हो सकती है। इस प्रकार किसी भी उद्योग में प्रतियोगिता और बाजार की दशाओं तथा व्यवसाय में होने वाले चक्रीय परिवर्तनों एवं माँगों तथा मौसमी परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए व्यवसाय या उद्योग में परिवर्तन करना आवश्यक होता है क्योंकि अगर होने वाले इन परिवर्तनों के आधार पर व्यवसाय में परिवर्तन नहीं किया जाता तो वह अपने होने वाले लाभों से वंचित हो जायेगा । इसलिए यह आवश्यक है कि वह समयानुसार होने वाले परिवर्तनों के आधार पर अपने उत्पादन एवं वितरण में समायोजन करे तथा उपभोक्ताओं की क्रय आदतों, रुचियों एवं फैशन में होने वाले परिवर्तनों के हिसाब से उत्पादित होने वाली वस्तुओं में परिवर्तन करके नवीन बनाने का प्रयास करे जिससे प्रतियोगी वस्तुओं से अलग एवं नयी दिखे, तभी माँग में वृद्धि होगी। नहीं तो वस्तु पुरानी दिखेगी और माँग में भी कमी हो जायेगी तथा व्यवसाय का जिन्दा रहना कठिन हो जायेगा।” इस प्रकार प्रत्येक व्यावसायिक संस्था को अपने को आधुनिक एवं समयानुकूल बनाये रखने के लिए सदैव नवीन परियोजनाओं के बारे में जाँच-पड़ताल एवं विचार-विमर्श करते रहना चाहिए। यह विचार किसी नयी वस्तु के उत्पादन करने या विद्यमान उत्पादनों में सुधार करने या उनमें नई वस्तुओं को जोड़ने से सम्बन्धित हो सकता है। इसी प्रकार व्यवसाय के विकास या विस्तार करने तथा उनका पुनर्गठन करने के उद्देश्य से नवीन परियोजनाओं को क्रियान्वित किया जा सकता है।

15. परियोजना पहचान में स्वोट के उपयोग की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – परियोजना पहचान का अर्थ परियोजना पहचान विनियोजन के सम्भावित अवसरों को ज्ञात करने के उद्देश्य से किया गया आर्थिक आँकड़ों का संग्रह, संकलन एवं विश्लेषण है। प्रबन्ध विशेषज्ञ पीटर, एफ. ड्रकर ने विनियोजन के निम्न तीन अवसरों का पता लगाया है-

(i) योगज अवसर – योगज अवसर निर्णय लेने वाले को विद्यमान संसाधनों का, व्यवसाय के चरित्र को बिना प्रभावित किये, प्रभावी उपयोग करने में सहायता प्रदान करते हैं।

(ii) पूरक अवसर – पूरक अवसरों से आशय नवीन विचारों के लागू करने से है जिनके कारण विद्यमान संरचना में परिवर्तन आता है।

(iii) भंग अवसर – भंग अवसरों में व्यवसाय के चरित्र एवं संरचना में मूलभूत परिवर्तन निहित होते हैं। इन तीनों के सहयोग से परियोजना का प्रवाह निरन्तर चलता रहता है। योगज अवसरों में जोखिम का तत्व सबसे कम होता है। इसका कारण यह है कि योगज अवसरों में व्यवसाय की विद्यमान दशा में सबसे कम बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। फिर भी यदि जोखिम का तत्व अधिक हो जाय तो परियोजना विचार के क्षेत्र एवं प्रकृति की पुनः व्याख्या की जानी चाहिए और परियोजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए वैकल्पिक समाधान विकसित किये जाने चाहिए।

परियोजना पहचान में स्वोट का उपयोग

परियोजना की पहचान करने में स्वोट (SWOT) का उपयोग करना बड़ा लाभप्रद सिद्ध हुआ है। उद्यमी द्वारा किसी नवीन परियोजना में विनियोजन के अवसरों का अभिज्ञान करने के लिए अपनी शक्तियों, दुर्बलताओं, विद्यमान अवसरों तथा चुनौतियों का विश्लेषण करना ही स्वोट (SWOT) है।

स्वोट की विशेषताएँ – स्वोट की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) यह एक प्रबन्धकीय तकनीक है।

(ii) स्वोट नवीन परियोजनाओं से सम्बन्धित है।

(iii) स्वोट का उपयोग नई परियोजनाओं की पहचान करने के लिए किया जाता है।

(iv) इससे उद्यमी को उद्यम की शक्तियों एवं दुर्बलताओं का विश्लेषण करने की प्रेरणा मिलती है।

(v) स्वोट के अन्तर्गत विद्यमान अवसरों एवं चुनौतियों का विश्लेषण किया जाता है। 

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