Eps Class 12 Chapter 1 Subjective in Hindi

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उद्यमितीय / साहसिक अवसरों की अनुभूति एवं पहचान

1. साहसिक कार्य का प्रवर्तन क्या होता है?

उत्तर- प्रवर्तन एक विशेष व्यावसायिक उपक्रम के निर्माण की प्रक्रिया
होती है। वास्तव में जो व्यक्ति उपक्रम या साहसिक कार्य के निर्माण में भाग लेते हैं, उनकी क्रियाओं का योग ही प्रवर्तन कहलाता है।

2. उद्यमी एवं उद्यमिता में अन्तर बताइये।

उत्तर- उद्यमिता एक कौशल (Skill), दृष्टिकोण ( View-point), चिन्त (Thinking), तकनीक (Technique) एवं कार्यपद्धति (Working procedure) है। आर्थिक क्षेत्र में परम्परागत रूप में उद्यमिता का अर्थ व्यवसाय एवं उद्योग में निहित विभिन्न अनिश्चतताओं एवं जोखिम उठाने की योग्यता एवं प्रवृत्ति से होता है। जो व्यक्ति जोखिम सहन करते हैं, उनको साहसी अथवा उद्यमीकहते हैं

3. अवसर कितने प्रकार के होते हैं|

उत्तर- सामान्य तौर पर अवसर दो प्रकार के होते हैं- (BSEB, 2020)
(1) पर्यावरण में विद्यमान अवसर – कुछ अवसर ऐसे होते हैं जो पहले से ही मौजूद होते हैं; जैसे- कागज, कपड़ा, जूता आदि का कारखाना स्थापित करके इसी पुरातनता में कुछ नवीनता लाना। (ii) निर्मित अवसर  – ऐसे अवसर पहले से मौजूद नहीं होते बल्कि ये उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन, तकनीकी परिवर्तन, परिस्थिति के अनुसार नित्य नये-नये रूप में जन्म लेते रहते हैं। जैसे- सूचना तकनीक में विकास के चलते टेलीविजन, कम्प्यूटर, सॉफ्टवेयर आदि के क्षेत्र में नये नये उपकरणों का कारोबार ।

4. व्यावसायिक अवसरों की पहचान के उद्देश्य बताइये।

उत्तर- व्यावसायिक अवसरों की पहचान के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं- (1) देश एवं क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए लघु, मध्यम एवं वृहत पैमाने के उद्योगों की सम्भावनाओं का अध्ययन एवं परीक्षण करना । (ii) एक निश्चित क्षेत्र में तकनीकी एवं आर्थिक दृष्टिकोण से भौतिक संसाधनों के उपयोग एवं विकास की सम्भावनाओं का मूल्यांकन करना । (iii) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन विकास सम्भावनाओं को ज्ञात करना । (iv) अन्य क्षेत्रों के लिए सम्भावित उद्योगों के सन्दर्भ में अवसरों को पहचानना

5. अवसर एवं उद्यमी के मध्य क्या सम्बन्ध हैं?

उत्तर- अवसर एवं उद्यमी का सम्बन्ध- अवसर तथा उद्यमी के बीच वही सम्बन्ध है जो पानी और मछली के बीच होता है। पानी के बिना मछली का कोई जीवन नहीं होता। वह पानी से ही अपना भोजन तलाशती है और उसी में जिन्दा रहती है। उद्यमी रूपी मछली का पानी ‘ अवसर’ ही तो है। अतः इन दोनों के बीच जीवन-मृत्यु का सम्बन्ध है। उद्यमी सबसे पहले अवसर को पहचानकर उसे चि ित करता है, विभिन्न सम्बन्धित जानकारी हासिल करके उसकी वास्तविकता का आकलन करके। इसके लिये संसाधन आदि जुटाकर उद्यम / प्रोजेक्ट की स्थापना सुनिश्चित करता है।

6. किस प्रकार व्यावसायिक अवसर पहचाने जाते हैं ? अथवा उद्यमितीय अवसरों की पहचान के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए ?

उत्तर – व्यावसायिक अवसरों को निम्न प्रकार पहचाना जा सकता है- (1) अनुकूल बाजार माँग अथवा बाजार में उपलब्ध आपूर्ति पर माँग का आधिक्य, एवं (ii) विनियोग पर्याप्त प्रत्याय जो कि सामान्यतया सामान्य प्रत्याय दर एवं जोखिम प्रीमियम की दर के योग के बराबर होता है। उपर्युक्त दोनों कसौटियाँ तकनीकी, उत्पादन, वाणिज्यिक एवं प्रबन्धकीय प्रारूप में सम्भव होनी चाहिए अन्यथा उस प्रत्याय दर की कोई उपयोगिता नहीं रह जायेगी।

7. कर्मचारी और साहसी कैसे भिन्न होते हैं ?

 उत्तर- कर्मचारी और साहसी में निम्नलिखित अन्तर हैं-

कर्मचारी 

1. कर्मचारी वह व्यक्ति होता है जिसे साहसी वह व्यक्ति है जो किसी साहसी अपने कार्य में सहायता के लिए रखता है।

2. कर्मचारी साहसी द्वारा दिये गये दिशा-निर्देश के अन्तर्गत कार्य सम्पादन करता है।

3. कर्मचारी को लाभ या हानि का कोई भी जोखिम नहीं उठाना पड़ता है।

साहसी

1. व्यवसाय या उपक्रम को लगाने का जोखिम लेता है।

2.साहसी स्वतन्त्र रूप से अपने कार्य सम्पादित करता है।

3. साहसी को पग-पग पर लाभ अथवा हानि का जोखिम उठाना पड़ता है

8. उद्यमिता को सृजनशील क्रियाकलाप क्यों समझा जाता है

उत्तर- उद्यमिता की प्रकृति रचनात्मक होती है। व्यवसाय प्रवर्तन संगठन एवं प्रबन्ध में सदैव रचनात्मक चिन्तन द्वारा कार्य संस्कृति एवं गुणवत्ता वृद्धि का सतत् सार्थक प्रयास किया जाता है। इसलिए शुम्पीटर ने कहा है, “उद्यमिता वस्तुतः एक सृजनात्मक क्रिया है।” रचनात्मक चिन्तन सदैव सकारात्मक, मौलिक एवं व्यावहारिक विचारों को क्रियान्वयन करने की प्रेरणा प्रदान करता है।

9. व्यावसायिक अवसर से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर – व्यावसायिक अवसर- उद्यमी वह व्यक्ति होता है जो व्यावसायिक अवसरों को खोजता है, उनका विश्लेषण एवं विदोहन करता है तथा एक सक्षम साहसिक कार्य या व्यवसाय का चयन करता है। व्यावसायिक अवसर को पर्याप्त प्रत्याय दर के सन्दर्भ में ऐसी आकर्षकपरियोजना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो उद्यमी को उस परियोजना विशेष को साकार करने तथा विनियोग निर्णय हेतु अभिप्रेरित करती है। प्रायः उद्यमी अनेक सम्भावनाओं का मूल्यांकन करता है तथा क्रियान्वयन हेतु उसी परियोजना का चयन करता है जिसमें अधिकतम प्रत्याय की सम्भावना होती है। इस प्रकार, किसी उद्यमशील कार्य में व्यावसायिक अवसर की सम्भावना तभी बन पाती है जब उसमें उसकी वाणिज्यिक साध्यता  की सम्भावना होती है। इस प्रकार कोई साहसिक कार्य व्यावसायिक अवसर के रूप में है या नहीं, यह निम्न दो घटकों द्वारा ज्ञात किया जा सकता है- (i) अनुकूल बाजार माँग या बाजार में उपलब्ध विद्यमान पूर्ति की तुलना में अत्यधिक माँग एवं (ii) उचित प्रत्याय की दर, जो विशेष व्यावसायिक अवसर के सन्दर्भ में सामान्य प्रत्याय दर तथा जोखिम प्रीमियम के बराबर होती है।

10. साहसिक कार्य की कल्पना क्या है?

उत्तर- उद्यमी का सर्वप्रथम कार्य अपने साहसिक कार्य का प्रवर्तन करना होता है, जो उस कार्य की कल्पना या विचार के साथ प्रारम्भ होता है। उद्यमी पर्याप्त कल्पना शक्ति तथा विचारशीलता के द्वारा किसी सृजनात्मक विचार की खोज करता है। वह अपने मौलिक विचार तथा चिन्तन-मनन से किसी साहसिक कार्य की कल्पना करता है। प्रत्येक समाज में व्यक्तियों के विकास के लिए अनेक अवसर होते हैं। उद्यमी आर्थिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र में किसी ‘लाभप्रद विचार’ की खोज करता है। इस हेतु उद्यमी व्यावसायिक अवसरों की पहचान करता है तथा लाभप्रद विचार को मूर्त रूप देने का प्रयास करता है

11. अवसर लागत क्या है?

उत्तर – अवसर लागत ऐसी लागत है जो किसी अन्य स्थान पर व्यय करने से भी प्राप्त हो सकती है। उदाहरण के लिए, अपनी इमारत को अगर व्यवसाय में प्रयोग किया जाये तो उस इमारत से जो किराया प्राप्त हो सकता था वह उसका अवसर लागत है। इस प्रकार के लागत को तभी ध्यान में रखा जाता है जब किसी परियोजना की लाभदायकता निकाली जाती है

12. आन्तरिक संसाधनों की उपलब्धता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- आन्तरिक संसाधनों की उपलब्धता – आन्तरिक संसाधनों की उपलब्धि भी एक महत्वपूर्ण घटक है, जो व्यावसायिक अवसरों की पहचान में भूमिका निभाता है । प्रायः व्यावसायिक अवसर के तीन चरण होते हैं- प्रवर्तन, विस्तार एवं विविधीकरण (promotion, expansion and diversification) | उपयुक्त अवसर (viable opportunity) तथा पर्याप्त प्रत्याय दर उद्यमी को उद्यमशील क्रिया हेतु प्रेरित करती है लेकिन इसके लिए उसके पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन (seed capital or venture capital) का होना आवश्यक होता है। पर्याप्त आन्तरिक संसाधन होने की दशा में साहसी विस्तार एवं विविधीकरण हेतु उपयुक्त व्यावसायिक अवसर का लाभ उठाने का भरसक प्रयास कर सकता है तथा उपयुक्त कार्यक्रम बना सकता है

13. अवसर बोध के तत्व बताइये।

उत्तर- अवसर बोध के विभिन्न गुण निम्नलिखित हैं- 1. समझ की शक्ति, 2. परिवर्तन पर नजर, 3. प्रतियोगियों की जानकारी, 4. जानकारी का संग्रह एवं विश्लेषण, 5. नवप्रवर्तनीय गुण

14. उद्यमी कौन है ?साहसी / उद्यमी कौन है ?

उत्तर- साहसी वे होते हैं जो जोखिम उठाने वाले होते हैं। साहसी (या उद्यमी) लाभ की आशा से किसी कार्य को शुरू करते हैं, साथ ही उस कार्य में कोई नुकसान होता है तो उसे सहने को भी तैयार रहते हैं। साहसी वह व्यक्ति होता है जो किसी उपक्रम आरम्भ करने का दायित्व अपने ऊपर लेता है तथा ठेकेदार के रूप में पूँजी तथा श्रम के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है। ई. ई. हेगेन ने साहसी को एक आर्थिक मनुष्य कहा, जो अपने लाभ को अधिकतम करने का प्रयत्न करता है, या खोज करता है। खोज में समस्याओं को हल करने में साहसी को आत्म सन्तुष्टि मिलती है, जिससे वह समस्याओं का अपनी योग्यता से निदान करता है।

15. व्यावसायिक अवसरों की पहचान के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?

उत्तर- उद्यमी सतत् व्यावसायिक अवसरों की तलाश करता है तथा लाभप्रद विचार को सुविचारित जोखिम के साथ तुरन्त मूर्त रूप प्रदान करने का प्रयास करता है। कल्पनाशील तथा सृजनात्मक व्यवहार जैसी विशेषताओं के कारण वह व्यावसायिक अवसरों के पहचान कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करता है। व्यावसायिक अवसरों की पहचान के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं- (i) देश एवं क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए लघु, मध्यम एवं वृहत् पैमाने के उद्योगों की सम्भावनाओं का अध्ययन एवं परीक्षण करना। ये सम्भावनाएँ तकनीकी तथा आर्थिक दृष्टि से व्यवहार- साध्य होनी चाहिए।(ii) एक निश्चित क्षेत्र में तकनीकी एवं आर्थिक दृष्टिकोण से भौतिक संसाधनों के उपयोग एवं विकास की सम्भावनाओं का मूल्यांकन करना। (iii) उन उद्योगों को पहचानना जो स्थानीय संसाधनों पर आधारित नहीं हैं लेकिन भावी आवश्यकताओं के मद्देनजर ऐसे उद्योग पर आर्थिक रूप से विचार किया जा सकता है। (iv) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन विकास सम्भावनाओं को ज्ञात करना । (v) अन्य क्षेत्रों के लिए सम्भावित उद्योगों के सन्दर्भ में अवसरों को पहचानना । (vi) औद्यागिक विकास प्रक्रिया के सन्दर्भ में उपलब्ध वित्तीय संसाधनों के प्रभाव का मूल्यांकन करना। (vii) व्यवहारसाध्य उद्योगों के लिए श्रम, पूँजी, सामग्री आदि का अनुमान तथा मूल्यांकन करना । (viii) उस क्षेत्र के लिए सम्भावित उद्योग की उपयोगिता प्रमाणित करते हुए किसी उद्यम / उपक्रम की सिफारिश करना ।

16. उद्यमितीय अवसरों की पहचान के लिये किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?

उत्तर- उद्यमितीय अवसरों की पहचान के लिए अग्र बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है- (i) लाभ – एक व्यावसायिक परियोजना में निवेश किया गया हुआ रहता है। अतः निवेशित पूँजी पर पर्याप्त आय का होना आवश्यक है। (ii) संवृद्धि – फर्म को जीवित ही नहीं रहना है बल्कि भविष्य में इसका विकास भी होना चाहिए। (iii) बाजार – बाजार का निर्धारण भी आवश्यक है। आपूर्तिकर्ताओं के मध्य होने वाली प्रतिस्पर्द्धा, उपभोक्ताओं की बदलती पसन्दों का असर बाजार के आधार पर निर्भर करता है। (iv) श्रमशक्ति – श्रमिकों की सन्तुष्टि एवं श्रम कल्याण । (v) सहभागिता – सामाजिक दायित्वों तथा आर्थिक विकास में सहभागिता- भूमिका । (vi) विश्वास – चयन में सन्तुष्टि उपक्रम की सफलता में विश्वास, सृजन की भावना चुनौतियों का सामना करने में आनन्द तथा सफलता प्राप्त करने की क्षमता ।

17. उद्यमिता की परिभाषा दें एवं इसकी दो विशेषताएँ बताइये ।

उत्तर – उद्यमिता की परिभाषाएँ – उद्यमिता की परिभाषा को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- (1) प्राचीन मत की परिभाषा – इस श्रेणी की परिभाषा के विचारकों के अनुसार उद्यमिता व्यवसाय एवं उद्योग के प्रवर्तन, संगठन तथा जोखिम वहन करने की क्षमता से सम्बन्धित है।(i) ए. एच. क्रोल के अनुसार, “उद्यमिता एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह की एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है जिसमें निर्णयों की एक एकीकृत श्रृंखला सम्मिलित होती है। यह आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन अथवा वितरण के लिये एक लाभप्रद व्यावसायिक इकाई का निर्माण, संचालन एवं विकास करता है। “(ii) पीटर किलबाई के अनुसार, “उद्यमी व्यापक क्रियाओं का सम्मिश्रण है। इसमें विभिन्न क्रियाओं के साथ-साथ बाजार अवसरों का ज्ञान प्राप्त करना, उत्पादन के साधनों का संयोजन एवं प्रबन्ध करना तथा उत्पादन तकनीक एवं वस्तुओं को अपनाना सम्मिलित है। ” (2) नव-प्राचीन मत की परिभाषा इस वर्ग के विचारकों ने उद्यमिता को प्रबन्धकीय कौशल एवं नवप्रवर्तन के सन्दर्भ में परिभाषित किया है- (i) पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार, “व्यवसाय में अवसरों को अधिकाधिक करना अर्थपूर्ण है, वास्तव में उद्यमिता की यही सही परिभाषा है। ” (ii) जोसेफ शुम्पीटर के अनुसार, “उद्यमिता एक नवप्रवर्तनकारी कार्य है। यह स्वामित्व की अपेक्षा एक नेतृत्व का कार्य है। ” (3) आधुनिक मत की परिभाषा – आधुनिक मत के विचारकों ने उद्यमिता को सामाजिक नवप्रवर्तन एवं गतिशील नेतृत्व से सम्बन्धित किया है। उनके अनुसार उद्यमिता व्यवसाय, समाज तथा वातावरण को जोड़ने का कार्य करती है। वस्तुत: इस वर्ग में उद्यमिता का व्यावहारिक दृष्टिकोण परिभाषित किया गया है। (i) लाक्स के अनुसार, “उद्यमिता जोखिम उठाने की इच्छा, आय एवं प्रतिष्ठा की चाह तथा स्व-अभिव्यक्ति, सृजनात्मक एवं स्वतन्त्रता की अभिलाषा का मिश्रण है। यह दाँव लगाने की भावना का उत्साह तथा सम्भवतः सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक तत्व है। ” (ii) रॉबर्ट लैम्ब के अनुसार, “उद्यमिता सामाजिक निर्णयन का वह स्वरूप हैं जो आर्थिक नवप्रवर्तकों द्वारा सम्पादित किया जाता है।” (2) रॉबर्ट लैम्ब के अनुसार, “उद्यमिता सामाजिक निर्णयन का वह स्वरूप है जो आर्थिक नवप्रवर्तकों द्वारा सम्पादित किया जाता है।” उद्यमिता की विशेषताएँ – उद्यमिता की दो विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं- (1) नवप्रवर्तन – नवप्रवर्तनकारी कार्य उद्यमिता है। नवीन संसाधनों, नवीन उत्पादन, नवीन तकनीक, नवीन उपयोगिताओं का सृजन, नवीन प्रबन्धकीय कौशल आदि नवप्रवर्तन के अन्तर्गत आते हैं। उद्यमिता की मूल प्रकृति नवप्रवर्तन है। पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “नवप्रवर्तन उद्यमिता का विशेष उपकरण है।” नवप्रवर्तन अथवा नवकरण सुनियोजित, सुव्यवस्थित एवं सकारात्मक ढंग से किया जाता है। इसलिए जोसेफ शुम्पीटर ने कहा है, “उद्यमिता उद्देश्यपूर्ण एवं व्यवस्थित नवप्रवर्तन है। ” (2) जोखिम वहन करना उद्यमिता का मूल तत्व अनिश्चितताओं एवं जोखिमों को वहन करने की भावना एवं क्षमता है। उद्यमी जोखिम उठाने वाला होता है, न कि जोखिम से बचाने वाला। आर्थिक एवं व्यावसायिक क्रियाओं की जोखिम एवं सफलता के सन्दर्भ में जापानी मुहावरा, “सात बार गिरे, आठ बार उठे” ही उद्यमिता की जोखिम वहन विशेषता दर्शाता है।

18. अवसर का बोध क्यों आवश्यक है? उद्यमी में अवसर बोध कैसे कराया जा सकता है?

उत्तर- व्यापक अर्थ में समाज का हर आदमी विक्रेता होता ही है, भले ही कोई वस्तु बेचता है तो कोई अपनी सेवाएँ बेचता है। वस्तु बेचने वाला व्यक्ति दुकानदार, व्यापारी कहलाता है तथा सेवा बेचने वाला व्यक्ति पेशेवर कहलाता है। इन दोनों की सफलता ‘अवसर की उचित’ तलाश पर ही निर्भर करती है, जैसे- किसी सुदूर गाँव में एक व्यक्ति द्वारा मोटर पार्ट्स की दुकान खोलना या किसी मोटर मैकेनिक द्वारा यहाँ मोटर मरम्मत का कारोबार करना उसकी अवसर के प्रति अज्ञानता का परिचायक है। अतः साहसी को हर हालत में अवसर का बोध और ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। अवसर का अर्थ वर्तमान परिस्थिति के संयोग से लाभ उठा लेना है। अवसर का यह संयोग हमेशा और प्रत्येक के जीवन में आता ही है। कुछ लोग इसे पहचानकर इससे लाभ उठा लेते हैं और बाकी लोग चुपचाप बैठे रह जाते हैं। अवसर में स्थायित्व नहीं होता। यह कुछ दिनों के लिये आता है फिर चला जाता है। इस आगमन को पहचानकर कुछ लोग तुरन्त इसका लाभ उठा लेते हैं। इन्हीं कुछ लोगों को उद्यमी अथवा साहसी कहा जाता है जो अवसर की नाजुकता को तुरन्त समझकर उसकी सम्भावनाओं पर विचार करके नवीन उद्योग-व्यापार को मूर्त रूप देते हैं। अवसर परिस्थितिजन्य होता है। इसकी उत्पत्ति मानवीय आवश्यकता और उनकी समस्याओं के चलते होती है। जहाँ मानवीय आवश्यकता उत्पन्न होती है, वहीं अवसर छिपा होता है। फिर, समस्यायें या बाधायें जहाँ कहीं भी आती हैं, समझिये, उसके आवरण में अवसर छिपा है-सिर्फ इसे समझने और पहचानने की आवश्यकता है। यहाँ साहसी की तुलना एक सपेरे से की जा सकती है। हम सामान्य लोग किसी खेत खलिहान में मिट्टी का छेद देखकर इसे सामान्य बात मानकर बैठ जाते हैं जबकि सपेरा विभिन्न छेदों को देखकर समझ लेता है कि किसमें साँप का निवास होगा और इसी तरह छेद पहचानकर वह साँप निकाल लेता है। यही स्थिति सामान्य व्यक्ति और साहसी व्यक्ति की होती है।

19. अवसर बोध के विभिन्न तत्वों की संक्षिप्त व्याख्या करें एवं साहसिक बोध प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों के नाम बताओ।

उत्तर- अवसर बोध के तत्व- अवसर बोध सभी के वश की बात नहीं होती। यह उद्यमी / साहसी की योग्यता, क्षमता, विवेक, अनुभव पर निर्भर करता है । एक स्थिति को कुछ लोग अनुकूल, कुछ प्रतिकूल और कुछ लोग सामान्य समझते हैं। साहसी इसी में से अपने लिये लाभदायक अवसर ढूँढ़ निकालता है। साहसी अथवा उद्यमी के अवसर बोध में निम्नांकित तत्व कार्यशील होते हैं- (1) समझ की शक्ति – ऐसे तो समझ की शक्ति थोड़ा बहुत सभी में होती है किन्तु साहसी में अवसर के प्रति अधिक संवेदनशीलता पायी जाती है। वह समस्याओं को पहले बारीकी से समझता है फिर इसके निदान के लिए जो उपाय ढूँढ़ता है, वही उपाय उसका अवसर कहलाता है। जैसे- आदमी की व्यस्तता बढ़ने, समय की कमी के चलते यह सम्भव नहीं था कि नाई की दुकान पर हमेशा जाकर दाढ़ी बनाई जा सके। फिर लम्बी यात्रा के दौरान भी दाढ़ी बनवाना एक समस्या थी। इसे दूर करने के लिए साहसी ने ‘सेफ्टीरेजर’ बनाकर पेश किया। उसकी समझ शक्ति ने इस कठिनाई को दूर करने की राह दिखाई। (2) परिवर्तन पर नजर – परिवर्तन जीवन चक्र है। यह निरन्तर चलता रहता है। इस परिवर्तन पर साहसी अपनी गिद्ध दृष्टि टिकाये हुए अवसर को ढूँढ़ता रहता है। परिवर्तन पर नजर रखकर ही फिलिप्स रेडियो ने अपना रूपान्तर फिलिप्स टेलीविजन में कर लिया। अतः साहसी हर परिवर्तन में अवसर की तलाश करता है। (3) प्रतियोगियों की जानकारी- बाजार में उपलब्ध प्रतियोगिता भी अवसरों को जन्म देती है। हर प्रतियोगी एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में एक-दूसरे के कार्य-कलाप पर नजर रखता है और एक की कमी पहचान कर इसमें सुधार का विचार लाकर नये अवसर ढूँढ़ निकालना एक सफल साहसी का कार्य है। (4) जानकारी का संग्रह एवं विश्लेषण – पर्याप्त जानकारी का संग्रह अवसर की खोज में टार्च (रोशनी) का कार्य करता है। साहसी में जानकारी का भंडार जितना अधिक होगा, वह उतना ही जल्द और सटीक अवसर ढूँढ़ सकेगा। विभिन्न जानकारियों को विश्लेषित करके वह अवसर को रेखांकित कर लेता है। (5) नवप्रवर्तनीय गुण – साहसी में नवप्रवर्तनीयता का गुण अवसर बोध में सहायक होता है। एक सफल साहसी हमेशा नयापन की तलाश में व्यग्र, बेचैन, तल्लीन, लगनशील बना रहता है जिसके चलते वह प्रतिकूल परिस्थिति से भी अनुकूल अवसर ढूँढ़ निकालता है। इस तरह हम देखते हैं कि एक साहसी में सबसे पहले अवसर बोध का ज्ञान होना आवश्यक है। इसके बाद ही वह अपने आगे की कार्यवाही कर सकता है।

20. एक सफल उद्यमी की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। अथवा एक उद्यमी की किन्हीं चार अद्वितीय विशेषताओं का उल्लेख कीजिए अथवा एक सफल उपक्रम की आवश्यक शर्तों की विवेचना कीजिए|

उत्तर- एक सफल उद्यमी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- ) जोखिम वहनकर्ता उद्यमी व्यक्ति सदैव जोखिमों में ही जीना पसन्द (1) करते हैं, परन्तु इनके द्वारा लिए गए जोखिम सदैव सुविचारित होते हैं। इस सम्बन्ध में लारेन्स लेमण्ट ने लिखा है कि “जोखिम वहन के प्रति झुकाव ही उद्यमी व्यक्तित्व का वास्तविक लक्षण है।” व्यवसाय में निहित विभिन्न जोखिमों का उपयुक्त पूर्वानुमान लगाना कठिन होता है। इसलिए उद्यमी सदैव अपनी विवेकपूर्ण योजनाओं एवं ठोस निर्णयों से जोखिम का सामना करते हैं, परन्तु उद्यमी सदैव सामान्य जोखिम को ही प्राथमिकता देते हैं। (2) अवसरों का विदोहन- उद्यमी के अन्दर सदैव एक ‘सृजनात्मक असन्तोष’ (Creative dissatisfaction) छिपा रहता है जिसके द्वारा वह नए-नए व्यावसायिक अवसरों की खोज करता है तथा उनका विदोहन करके लाभ अर्जित करता है। उद्यमी चुनौतियों को अवसरों की भाँति स्वीकार करता है। (3) नव-प्रवर्तनकर्त्ता – उद्यमी अपने उपक्रमों में सदैव परिवर्तनों एवं सुधारों को जन्म देते हैं। उद्यमी नई वस्तु, नई उत्पादन विधि, नए यन्त्र, नए कच्चे माल तथा नए बाजारों की खोज करते हैं। (4) आशावादी दृष्टिकोण-उद्यमी व्यक्तियों का दृष्टिकोण सदैव आशावादी होता है। यह अपने कार्य को भाग्य पर छोड़ने के बजाय अपने श्रम व नीति से सफलता प्राप्त करने में विश्वास करता है और न ही हानियों की दशा में निराश होता है। यह अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं से विचलित नहीं होता है और सब कुछ गँवाने के बाद भी आशा नहीं छोड़ता है। यही आशावादी दृष्टिकोण उसके व्यावसायिक उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक होता है। (5) स्वतन्त्रता प्रेमी – उद्यमी व्यक्तियों का स्वभाव स्वतन्त्र प्रकृति का होता है। वे प्रत्येक कार्य को अपने ढंग से करने में ज्यादा विश्वास रखते हैं तथा साहसिक कार्यों को करने में ज्यादा तत्परता दिखाते हैं एवं उनमें पहल करने का गुण सदैव विद्यमान रहता है। इसलिए उनको स्वतन्त्रता प्रेमी कहा जाता है।(6) गतिशील प्रतिनिधि- किसी भी राष्ट्र के विकास का मापन वहाँ के उद्यमियों की सफलता पर निर्भर करता है क्योंकि उद्यमी ही वह व्यक्ति होता है जो अपने ज्ञान एवं नीतियों के द्वारा व्यवसाय में सफल परिवर्तन करके सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को गतिशील बना देता है, क्योंकि उद्यमियों के अभाव में उत्पादन के साधन केवल साधन ही बने रहते हैं उनसे उपयोग की वस्तुओं का सृजन नहीं हो पाता है। शुम्पीटर ने कहा है, “उद्यमी का कार्य सृजनात्मक विनाश करना है (his task is creative destruction)।” क्योंकि वह पुरानी वस्तुओं (उत्पादक वस्तुओं) का विनाश करके नई वस्तुओं (उपयोगिता की वस्तुओं) की रचना करता है। (7) पेशेवर प्रकृति – प्राचीन समय की यह मान्यता है कि ‘उद्यमी बनाए नहीं जाते हैं, बल्कि जन्म लेते हैं’ वर्तमान में गलत सिद्ध हो चुकी है, क्योंकि अब यह सिद्ध हो चुका है कि उद्यमी पैदा नहीं होते हैं बल्कि व्यावसायिक ज्ञान, प्रशिक्षण सुविधाओं के द्वारा उन्हें पेशेवर बनाया जाता है। वर्तमान में कई संस्थाएँ इस कार्य को कर रही हैं। ‘पेशेवर बनाए जाते हैं’ के सम्बन्ध में अमेरिकन सोसायटी ऑफ मैनेजमेन्ट के चेयरमैन ने कहा है, “हम कोई वस्तु नहीं बनाते हैं। हम पेशेवर बनाते हैं और पेशेवर वस्तु बनाते हैं

21. व्यावसायिक अवसरों की पहचान को प्रभावित करने वाले घटक कौन-कौन से हैं?

उत्तर- व्यावसायिक अवसरों की पहचान को प्रभावित करने वाले घटक निम्नलिखित हैं- (1) बाह्य सहायता का स्वरूप- व्यावसायिक अवसरों की पहचान में आन्तरिक संसाधनों के साथ बाह्य सहायता स्वरूप की भी विशिष्ट भूमिका होती है। बाह्य सहायता एवं समर्थन अवसरों की पहचान में प्रत्यक्षतः सहायता करता है। प्रायः सरकार अनुदान एवं प्रेरणाओं के रूप में सहायता प्रदान करती है जिससे उद्यमी प्रवर्तन निर्णय सरलता से ले सकता है। (2) निर्यात की सम्भावना- व्यावसायिक अवसरों की पहचान में निर्यात की सम्भावना भी एक महत्वपूर्ण घटक है। जिस उद्योग विशेष में निर्यात की व्यापक सम्भावनाएँ होती हैं, उद्यमी ऐसे उद्योग की स्थापना या प्रवर्तन के सम्बन्ध में योजना बना सकता है तथा वांछित कार्यवाही कर सकता है। इतना ही नहीं, सरकार भी निर्यात प्रधान इकाइयों को अनेक प्रेरणाएँ एवं अनुदान प्रदान करती हैं। अतः इनके कारण भी उद्यमी नये साहसिक कार्य के प्रवर्तन का निर्णय ले सकता है। (3) प्रस्तावित औद्योगिक विकास के सम्बन्ध में सूचनाएँ एकत्रित करना – व्यावसायिक उपक्रमों की पहचान प्रक्रिया के बाद उद्यमी किसी साहसिक कार्य के बारे में निर्णय लेता है। उद्यमी प्रस्तावित औद्योगिक विकास के सम्बन्ध में समग्र एवं विस्तृत सूचनाएँ एकत्रित करके यह जान सकता है कि किस उद्योग विशेष में विकास की व्यापक सम्भावनाएँ विद्यमान हैं तथा किस प्रकार का उद्योग स्थापित किया जाना लाभप्रद हो सकता है। (4) आन्तरिक संसाधनों की उपलब्धता – आन्तरिक संसाधनों की उपलब्धि भी एक महत्वपूर्ण घटक है जो व्यावसायिक अवसरों की पहचान में भूमिका निभाता है। प्रायः व्यावसायिक अवसर के तीन चरण होते हैं-प्रवर्तन, विस्तार एवं विविधीकरण। उपयुक्त अवसर तथा पर्याप्त प्रत्याय दर उद्यमी को उद्यमशील क्रिया हेतु प्रेरित करती है लेकिन इसके लिए उसके पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन का होना आवश्यक होता है। पर्याप्त आन्तरिक संसाधन होने की दशा में साहसी विस्तार एवं विविधीकरण हेतु उपयुक्त व्यावसायिक अवसर का लाभ उठाने का भरसक प्रयास कर सकता है तथा उपयुक्त कार्यक्रम बना सकता है। (5) औद्योगिक कच्चे माल की उपलब्धि- कच्चे माल की उपलब्धि भी व्यावसायिक अवसरों को काफी सीमा तक निर्धारित करती है क्योंकि इसी के द्वारा भावी उत्पादन का स्तर तय होता है। यदि कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो सकता है या होने की सम्भावना है तो उद्यमी ऐसी इकाई की स्थापना के लिए सकारात्मक कदम उठा सकता है। (6) जोखिम की मात्रा – एक व्यवसाय विशेष में अनेक प्रकार की जोखिमें सम्मिलित रहती हैं जिसमें आर्थिक जोखिम, सामाजिक जोखिम, वातावरणीय जोखिम, तकनीकी जोखिम आदि प्रमुख हैं। वातावरण में परिवर्तन के साथ जोखिम की मात्रा एवं प्रकृति भी बदलती रहती है। उद्यमशील जोखिम वह जोखिम है जो परिवर्तनों एवं नयी क्रियाओं के साथ नये व्यावसायिक अवसरों का सृजन करती है तथा उद्यमी को प्रवर्तन कार्य हेतु प्रेरित करती है। उद्यमी को यह निर्णय करना होता है कि व्यावसायिक अवसरों की पहचान में कब तथा कितनी जोखिम विद्यमान हो सकती है तथा साहसिक कार्य का प्रवर्तन करने पर किस सीमा तक जोखिम को स्वीकार करना लाभप्रद हो सकता है

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