Eps Class 12 Chapter 12 Subjective in Hindi

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लेखांकन अनुपात

1. स्टॉक आवर्त अनुपात से क्या पता चलता है? इसकी जानकारी से संस्था किस स्थिति से बच सकती है? 

उत्तर-स्टॉक आवर्त अनुपात निकालने से यह पता चल जाता है कि संस्था ने वर्ष भर में कितनी बार क्रय किया है एवं स्टॉक किस गति से बिक रहा है। इस अनुपात की जानकारी से बहुत अधिक स्टॉक अथवा स्टॉक की कमी से बचा जा सकता है। 

 2. ऋण समता अनुपात का किसी संस्था की दीर्घकालीन वित्तीय स्थिति जानने में क्या महत्व होता है? 

उत्तर- ऋण समता अनुपात का किसी संस्था की दीर्घकालीन वित्तीय स्थिति जानने में उतना ही महत्व होता है जितना कि संस्था की अल्पकालीन वित्तीय स्थिति जानने के लिए चालू अनुपात का होता है। साधारणतया ॠण समता अनुपात 1:1 आदर्श माना जाता है। 

3. ‘स्कन्ध को तरल सम्पत्ति नहीं माना जाता, बल्कि यह एक पूर्वभुगतान खर्चा है’ क्यों? कारण बताइए। 

उत्तर- स्कन्ध को तरल सम्पत्ति इसलिए नहीं माना जाता क्योंकि इसको रोकड़ में परिवर्तित करने में काफी समय लग सकता है। पूर्व भुगतान खर्चे प्रायः रोकड़ में परिवर्तित नहीं होते। परन्तु फर्म को इनकी सेवायें प्राप्त होती हैं। 

4. शोधन क्षमता अनुपात क्या होते हैं? इनमें प्रमुख अनुपात कौन से हैं? 

उत्तर- शोधन क्षमता अनुपात हमें इस बात का ज्ञान कराते हैं कि संस्था में कुल वित्त कहाँ-कहाँ से प्राप्त किया गया अर्थात् व्यवसाय के स्वामियों एवं बाह्य साधनों से प्राप्त किया गया धन कितना-कितना है? इनमें प्रमुख अनुपात- (i) ऋण समता अनुपात; (ii) ऋण सेवा अनुपात; (iii) ऋण एवं कुल कोष अनुपात; तथा (iv) स्वामित्व अनुपात हैं। 

5. बेचे गये माल की लागत की गणना कैसे की जाती है?

उत्तर – बेचे गये माल की लागत की गणना दो प्रकार से की जाती है-

(i) बेचे गये माल की लागत = प्रारम्भिक रहतिया + क्रय प्रत्यक्ष व्यय – अन्तिम रहतिया ।

(ii) बेचे गये माल की लागत = शुद्ध बिक्री – सकल लाभ

6. अनुपात – विश्लेषण से आप क्या समझते हैं? इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन करें। 

उत्तर- मायर्स के अनुसार, “अनुपात – विश्लेषण वित्तीय विवरणों में दी गयी विभिन्न मदों अथवा मदों के समूहों के आपसी सम्बन्धों का अध्ययन है।”
अनुपात – विश्लेषण के कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य निम्नांकित हैं-
(i) वित्तीय विवरणों के विश्लेषण में सहायक,
(ii) तुलनात्मक अध्ययन में सहायक, एवं (iii) व्यवसाय के कमजोर स्थानों का पता लगाने में सहायक ।

7. शोधन क्षमता अनुपात क्या होते हैं? इनमें प्रमुख अनुपात कौन से हैं? अथवा (Or) शोधन क्षमता अनुपात क्या व्यक्त करता है? 

उत्तर- शोधन क्षमता अनुपात हमें इस बात का ज्ञान कराते हैं कि संस्था में कुल वित्त कहाँ-कहाँ से प्राप्त किया गया अर्थात् व्यवसाय के स्वामियों एवं बाह्य साधनों से प्राप्त किया गया धन कितना-कितना है ? इनमें प्रमुख अनुपात- (i) ऋण समता अनुपात; (ii) ऋण सेवा अनुपात; (iii) ऋण एवं कुल कोष अनुपात; तथा (iv) स्वामित्व अनुपात हैं। 

8. तरलता अनुपात किसे कहते हैं? तरलता अनुपातों में प्रमुख अनुपात कौन-से हैं? 

उत्तर- ये अनुपात किसी भी संस्था की शोधन क्षमता का पता लगाने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। ये व्यवसाय की तरलता का मापदण्ड होते हैं। इन अनुपातों में प्रमुख अनुपात हैं – (1) चालू अनुपात अथवा कार्यशील पूँजी अनुपात; एवं (ii) शीघ्र अनुपात । 

9. चालू अनुपात एवं शीघ्र अनुपात में अन्तर बताइये । 

उत्तर- चालू अनुपात और शीघ्र अनुपात में अन्तर 

चालू अनुपात (Current Ratio):-

1. यह अनुपात चालू सम्पत्तियों और चालू दायित्वों में सम्बन्ध स्थापित करता है।

2. यह अनुपात यह ज्ञात करने के लिए निकाला जाता है कि संस्था अपने चालू दायित्वों का एक वर्ष में भुगतान कर सकती है।

3. इसमें स्टॉक पूर्वदत्त व्यय चालू सम्पत्तियों में लिए जाते हैं।

4. चालू अनुपात 2 1 आदर्श माना जाता है।

शीघ्र अनुपात (Quick Ratio):-

1. यह अनुपात तरल सम्पत्तियों और चालू दायित्वों में सम्बन्ध स्थापित करता है ।

2. यह अनुपात यह ज्ञात करने के लिए निकाला जाता है कि क्या संस्था अपने चालू दायित्वों का भुगतान शीघ्र अर्थात् एक मास के अन्दर कर सकती है।

3. इसमें केवल तरल सम्पत्तियों को ही लिया जाता है, स्टॉक और पूर्वदत्त व्ययों को छोड़ दिया जाता है।

4. शीघ्र अनुपात 11 आदर्श माना जाता है। 

10. अनुपात को परिभाषित कीजिए। 

उत्तर- आर. एन. एन्थोनी के शब्दों में, “अनुपात साधारणतया एक संख्या को दूसरी संख्या के सन्दर्भ में प्रकट करना है। यह एक संख्या को दूसरी संख्या से भाग देकर ज्ञात किया जाता है। ” 

11. अनुपात क्या है? 

उत्तर- अनुपात का आशय किसी एक अंक को किसी दूसरे अंक के सन्दर्भ में व्यक्त करना है। अन्य शब्दों में, दो या दो से अधिक मदों के बीच एक तर्कयुक्त एवं नियमबद्ध विधि के आधार पर सम्बन्ध की स्थापना के परिणाम को ही ‘अनुपात’ कहते हैं। 

13. चालू अनुपात क्या है? 

उत्तर – चालू अनुपात से व्यवसाय की चालू सम्पत्तियों का चालू देयताओं से मिलान किया जाता है। यह अनुपात व्यवसाय के चालू ऋणों के भुगतान करने की क्षमता का ज्ञान कराता है। अल्पकालीन ऋणदाता इसमें विशेष रुचि रखते हैं। 

14. लेखांकन अनुपातों को वर्गीकृत कीजिए। 

उत्तर- लेखांकन अनुपातों का वर्गीकरण  व्यवसाय से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न पक्षकार जैसे- अंशधारी, लेनदार, ऋणदाता, प्रबन्धक आदि संस्था के वित्तीय विवरणों से अपने उद्देश्यों से सम्बन्धित ज्ञान प्राप्त करने के लिए भिन्न-भिन्न अनुपातों की गणना करते हैं। विभिन्न अनुपातों का वर्गीकरण निम्नलिखित चार भागों में किया जा सकता है- 

(1) तरलता अनुपात (Liquidity Ratios ) – ये अनुपात किसी भी संस्था की अल्पकालीन शोधन क्षमता का पता लगाने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। अतः इन्हें अल्पकालीन शोधन क्षमता अनुपात भी कहते हैं। यह अनुपात व्यवसाय – के अल्पकालीन ऋणों के भुगतान करने की क्षमता का ज्ञान कराता है। अतः ये व्यवसाय अथवा संस्था की तरलता का मापदण्ड है। सालोमन के शब्दों में, “तरलता से तात्पर्य संस्था के चालू दायित्वों के देय होने पर उनके भुगतान की योग्यता से है।” तरलता अनुपातों में प्रमुख अनुपात निम्नलिखित हैं-
(i) चालू अनुपात अथवा कार्यशील पूँजी अनुपात 

(ii) शीघ्र अनुपात 

(2) शोधन-क्षमता अनुपात – इन अनुपातों से पता लगाया जाता है कि संस्था दीर्घकालीन ऋणों का भुगतान करने में सक्षम है या नहीं? ये हमें इस बात का भी ज्ञान करवाते हैं कि संस्था में कुल वित्त कहाँ-कहाँ से प्राप्त किया गया है अर्थात् व्यवसाय के स्वामियों और बाह्य साधनों से प्राप्त किया गया धन कितना-कितना है? इनमें प्रमुख अनुपात निम्नवत् हैं-
(i) ऋण समता अनुपात

(ii) ऋण सेवा अनुपात

(iii) ऋण एवं कुल कोष अनुपात

(iv) स्वामित्व अनुपात 

(3) क्रियाशीलता अनुपात – संस्था द्वारा उपलब्ध साधनों का कुशलतापूर्वक ढंग से प्रयोग किया जा रहा है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए क्रियाशीलता अनुपातों की गणना की जाती है। ये अनुपात विक्रय के आधार पर निकाले जाते हैं। इसलिए इन अनुपातों को ‘आवर्त अनुपात’ (Turnover Ratios) के नाम से भी जाना जाता है। संस्था की पूँजी, स्टॉक, सम्पत्तियों आदि का बिक्री से सम्बन्ध ज्ञात करके यह पता लगाया जाता है कि संस्था इनका लाभप्रद एवं कुशलतापूर्वक ढंग से प्रयोग कर रही है या नहीं। इनमें प्रमुख अनुपात निम्नलिखित हैं- 

(i) स्टॉक आवर्त अनुपात

(ii) देनदार बिक्री अनुपात या औसत संग्रह अवधि

(iii) पूँजी आवर्त अनुपात

(iv) स्थायी सम्पत्ति आवर्त अनुपात

(v) शुद्ध कार्यशील पूँजी आवर्त अनुपात 

(4) लाभदायकता अनुपात या आय अनुपात  – लाभदायकता अनुपातों की गणना व्यवसाय की वर्तमान गतिविधियों तथा कार्य कुशलता पर प्रकाश डालने के लिए की जाती है। इनके अन्तर्गत बिक्री पर सकल लाभ कर दर, पूँजी पर और बिक्री पर शुद्ध लाभ दर ज्ञात करके विश्लेषण किया जाता है। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत निम्न प्रमुख अनुपातों को शामिल किया जाता है- 

(i) सकल लाभ अनुपा

(ii) शुद्ध लाभ अनुपात

(iii) संचालन लाभ अनुपात

(iv) संचालन अनुपात

(v) व्यय अनुपात

(vi) विनियोग पर लाभ दर या विनियोजित पूँजी पर लाभ दर

(vii) अंशधारी कोषों पर प्रत्याय

(viii) समता पर लाभ / प्रत्याय तथा प्रति अंश आय 

15. लेखांकन अनुपात से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य क्या हैं? 

उत्तर- अनुपात का अर्थ एवं उद्देश्य (Meaning and Objectives of Ratio) – अनुपात का आशय किसी एक अंक को किसी दूसरे अंक के सन्दर्भ में व्यक्त करना है। अन्य शब्दों में, दो या दो से अधिक मदों के बीच एक तर्क – युक्त एवं नियमबद्ध विधि के आधार पर सम्बन्ध की स्थापना के परिणाम को ही ‘ अनुपात’ कहते हैं। दो मदों के अनुपात को, एक संख्या को दूसरी संख्या से भाग देकर मालूम किया जाता है। जिस संख्या से भाग दिया जाता है, उसे आधार संख्या कहते हैं। दूसरी संख्या को इस आधार संख्या में प्रकट किया जाता है। इस प्रकार दो संख्याओं में पारस्परिक सम्बन्ध को गणितीय रूप में प्रकट करना अनुपात कहलाता है; जैसे-स्टॉक बिक्री का अनुपात, चालू सम्पत्तियों और चालू दायित्वों का अनुपात तथा लाभ और बिक्री का अनुपात आदि ।
(i). आर. एन. एन्थोनी के शब्दों में, “अनुपात साधारणतया एक संख्या को दूसरी संख्या के सन्दर्भ में प्रकट करना है। यह एक संख्या को दूसरी संख्या से भाग देकर ज्ञात किया जाता है। “
(ii). हन्ट, विलियम तथा डोनाल्डसन के अनुसार, “अनुपात सामान्यतः वित्तीय विवरणों से निकाले गए आँकड़ों के गणितीय सम्बन्ध को दर्शाता है।”
(iii). जे. बैटी के अनुसार, “लेखांकन अनुपात आर्थिक चिट्ठे, लाभ-हानि खाते, बजटीय नियन्त्रक या लेखांकन संगठन के किसी दूसरे भाग में दिखाए गए आँकड़ों के महत्वपूर्ण सम्बन्ध की व्याख्या करते हैं।”

निष्कर्ष – इन लेखांकन सूचनाओं के ऐसे सम्बन्ध को वित्तीय अनुपात (Financial ratios), लेखांकन अनुपात ( Accounting ratios) और संरचना अनुपात (Structural ratios) के नाम से भी जाना जाता है। दो विभिन्न संख्याओं के परस्पर सम्बन्ध को निम्न प्रकार से अभिव्यक्त किया जा सकता है-

1. शुद्ध अनुपात  – इसके अन्तर्गत दो मदों के बीच स्थित सम्बन्ध को सीधे आनुपातिक रूप में प्रकट किया जाता है। जैसे- यदि किसी संस्था की चालू सम्पत्तियाँ 50,000 की हों और चालू दायित्व – 20,000 के हों तो चालू सम्पत्तियों और चालू दायित्वों में अनुपात 50,000 : 20,000 अर्थात् 52 होगा। 

2. इतने गुण – दर के अन्तर्गत दो संख्यात्मक तथ्यों के बीच निश्चित अवधि के अन्दर सम्बन्ध को प्रकट किया जाता है। जैसे-यदि किसी संस्था की चालू सम्पत्तियाँ 1,00,000 की और चालू दायित्व * 25,000 के हों तब यह कहा जाएगा कि चालू सम्पत्तियाँ चालू दायित्वों की चार गुना हैं।

3. प्रतिशत  – इसमें अनुपात को प्रतिशत के रूप में दिखाया जाता है अर्थात् एक संख्या दूसरी संख्या की कितनी प्रतिशत है। इसके अन्तर्गत दो मदों के सम्बन्ध को प्रति 100 के आधार पर व्यक्त किया जाता है। जैसे – यदि किसी संख्या की चालू सम्पत्तियाँ 75,000 की हों और चालू दायित्व 15,000 के हों, तब उसे प्रतिशत के रूप में कहा जाएगा कि चालू दायित्व चालू सम्पत्तियों का 20% है।

16. अनुपात विश्लेषण की क्या सीमाएँ हैं? 

उत्तर- अनुपात विश्लेषण की सीमाएँ  

1. गलत परिणाम – अनुपात वित्तीय विवरणों पर आधारित होते हैं। यदि वित्तीय विवरणों के आँकड़े शुद्ध नहीं हैं तो उन पर आधारित अनुपात भी गलत होंगे जिससे निष्कर्ष के रूप में निकाले गये परिणाम भी गलत होंगे। लेखांकन पद्धति में भी अनेक कमियाँ व्याप्त हैं, अतः उन पर आधारित अनुपात भी विश्वसनीय नहीं हो सकते।

2. गुणात्मक पहलुओं की अवहेलना  – अनुपात विश्लेषण व्यवसाय के निष्पादन की परिमाणात्मक माप है। यह फर्म के गुणात्मक पहलू की अवहेलना करता है जो कि स्पष्ट करता है कि अनुपात व्यवसाय की कार्यक्षमता को मापने की एकपक्षीय अवधारणा है।

3. एकल अनुपात का सीमित प्रयोग   – एकल अनुपात अर्थपूर्ण सूचना देने में सक्षम नहीं होता है। अतः एक निश्चित स्थिति को समझने के लिए बहुत-से अनुपातों की गणना की आवश्यकता होती है। विविध अनुपातों की गणना से भी दिमाग भ्रमित हो सकता है। 

4. सीमित तुलनीयता –दो फर्मों के परिणामों की तुलना की जा सकती है किन्तु यह तभी सम्भव है जब दोनों फर्मों में प्रयुक्त लेखांकन विधियाँ एक हों। यदि वे अलग-अलग लेखांकन विधियों का प्रयोग करती हैं तो उनका तुलनात्मक अध्ययन सम्भव नहीं हो सकता। इसी प्रकार, सुविधाओं का प्रयोग, सुविधाओं की उपलब्धता एवं संचालन स्तर भी विभिन्न फर्मों के वित्तीय विवरणों को प्रभावित करते हैं। ऐसी फर्मों के अनुपातों की तुलना भ्रामक होगी । 

5. खिड़की प्रदर्शन – कुछ कम्पनियाँ अपने वित्तीय विवरणों को विन्डो ड्रेसिंग कर प्रदर्शित करती हैं ताकि बाह्य पक्षों के समक्ष वित्तीय स्थिति एवं लाभदायकता का बेहतर प्रदर्शन कर सकें। अतः ऐसे वित्तीय विवरणों के आधार पर गणना किये गये अनुपातों के सम्बन्ध में सावधान रहने की आवश्यकता होती है क्योंकि इसके आधार पर सही निर्णय नहीं लिये जा सकते किन्तु बाह्य पक्षों के लिए यह जानना अत्यन्त कठिन है कि फर्म में विन्डो ड्रेसिंग किया गया है। 

6. व्यक्तिगत पक्षपात – अनुपात वास्तव में साधन मात्र है, साध्य नहीं। इसमें विश्लेषक द्वारा पक्षपात भी किया जा सकता है।

7. मूल्य स्तर में परिवर्तन – चूँकि अनुपातों की गणना ऐतिहासिक आँकड़ों के आधार पर होती है। इसकी गणना में आँकड़ों के वर्तमान मूल्यों पर ध्यान नहीं दिया जाता है परिणामतः अनुपातों की गणना बेकार हो जाती है।

17. अनुपात का क्या महत्व है? समझाइये। 

उत्तर- अनुपात का महत्व / लाभ,  अनुपातों का विभिन्न पक्षकारों के लिए महत्व इस प्रकार है-

(i) निर्णयन में सहायक – हालाँकि, वित्तीय विवरण निर्णयन हेतु आवश्यक आँकड़े प्रदान करते हैं किन्तु केवल उन्हीं आँकड़ों के आधार पर सही निर्णयन सम्भव नहीं हो पाता है। वित्तीय विवरणों से प्राप्त आँकड़ों का अनुपात विश्लेषण के द्वारा अर्थपूर्ण विश्लेषण एवं निर्वचन किया जाता है और तब वित्तीय प्रबन्धक सही निर्णय लेने की स्थिति में होते हैं।

(ii) सम्प्रेषण में सहायक – अनुपात के प्रयोग से संस्था की वित्तीय सशक्तता एवं कमजोरियाँ सरल एवं बोधगम्य ढंग से सम्प्रेषित होती हैं अर्थात् वित्तीय विवरणों की सूचनाएँ अर्थपूर्ण ढंग से सम्बन्धित पक्षों को सम्प्रेषित हो जाती हैं।

(iii) लेखांकन आँकड़ों को सरल बनाने में सहायक  – लेखांकन अनुपात आँकड़ों को सरल एवं बोधगम्य बनाता है। यह जटिल समंकों को सरल, संक्षिप्त एवं क्रमबद्ध बनाता है। जो लेखांकन की जानकारी नहीं रखते हैं, वे भी अनुपात के माध्यम से जटिल आँकड़ों को समझ सकते हैं। अनुपात को इसलिए भी महत्वपूर्ण समझा जाता है कि यह विभिन्न आँकड़ों के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। 

(iv) कार्य निष्पादन का तुलनात्मक विश्लेषण सम्भव बनाना – प्रत्येक कम्पनी के वर्तमान कार्य निष्पादन की तुलना पूर्व के कार्य निष्पादन के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने में अनुपात महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर अच्छाइयों व बुराइयों को ढूँढ़ा जा सकता है एवं उनमें आवश्यकतानुसार सुधार लाकर कार्य निष्पादन के स्तर को सुधारा जा सकता है। इसके आधार पर एक फर्म की तुलना दूसरे के साथ भी की जा सकती है।

(v) प्रबन्ध की संचालन क्षमता का मूल्यांकन  – प्रबन्ध की संचालन क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए संचालन अनुपात एवं स्कन्ध आवर्त अनुपात की गणना की जा सकती है। संचालन अनुपात की गणना करते समय गैर-संचालन व्ययों एवं आगमों को ध्यान में नहीं रखा जाता है।

(vi) समन्वय में सहायक – व्यवसाय प्रबन्ध में समन्वय एक महत्वपूर्ण कारक होता है जिसमें अनुपात आधारशिला होता है। समुचित सम्प्रेषण की व्यवस्था से समन्वय की स्थिति को मजबूत किया जा सकता है।

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