Eps Class 12 Chapter 8 Subjective in Hindi

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परियोजना प्रतिवेदन का निर्माण एवं परियोजना मूल्यांकन

1. परियोजना मूल्यांकन क्या है?

उत्तर – परियोजना मूल्यांकन एक ऐसा औजार है, जिससे परियोजना की रूपरेखा, उपयोगिता, सफलता और कर्मचारियों की झलक मिलती है। यह ऐसी गहन जाँच है, जिससे व्यवसाय की प्रगति के प्रत्येक चरण की जानकारी मिलती.. है । वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्त प्रदान करने से पहले परियोजना का मूल्यांकन किया जाता है। परियोजना मूल्यांकन के अन्तर्गत परियोजना के आर्थिक, वित्तीय एवं तकनीकी दृष्टि से अनुकूल होने की जाँच-परख की जाती है तत्पश्चात उसमें पूँजी का विनियोग किया जाता है जिससे परियोजना में विनियोजित सभी संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सके एवं विनियोजित पूँजी पर उचित आय प्राप्त हो सके।

2. परियोजना मूल्यांकन के क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर – परियोजना आकलन निम्नलिखित उद्देश्यों से किया जाता है-

(i) परियोजना के विशेष एवं पूर्वानुमानित परिणाम पर पहुँचना,

(ii) परियोजना की सफलता को निर्धारित करने हेतु आवश्यक सूचना प्राप्त करना,

(iii) परियोजना की सफलता का प्रमाप निर्धारित करना,

(iv) परियोजना की अनुमानित लागत एवं लाभ को पहचानना ।

3. एक परियोजना प्रतिवेदन (रिपोर्ट) के लिए निम्नलिखित उपयोग बताइये- (1) एक उद्यमी (2) वित्तीय संस्थाएँ

उत्तर- (1) एक उद्यमी – एक उद्यमी वह है जो

(i)एक आर्थिक मनुष्य के रूप में कार्य करता है।

(ii) नवप्रवर्तन के द्वारा अपने लाभों को अधिकतम करता है।

(iii) नवप्रवर्तन हेतु समस्याओं को हल करता है।

(iv) अपनी क्षमताओं का प्रयोग करके सन्तुष्टि प्राप्त करता है।

(v) श्रम एवं पूँजी के मध्य मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है। उद्यमी को उपरोक्त के लिए परियोजना प्रतिवेदन के अध्ययन की आवश्यकता होती है।

(2) वित्तीय संस्थाएँ – जब कोई उद्यमी या प्रवर्तक किसी वित्तीय संस्था से ऋण प्राप्त करना चाहता है तो वह अपनी चुनी गई परियोजना को वित्तीय संस्थाओं के समक्ष रखता है जिससे वित्तीय संस्थाओं द्वारा उस परियोजना के बारे में गहन छानबीन एवं व्यापक विश्लेषण किया जाता है ताकि वित्तीय संस्थाओं को यह मालूम हो सके कि उद्यमी द्वारा चुनी गयी परियोजना सुदृढ़ एवं लाभदायक है और उद्यमी लिये गये ऋण निर्धारित अवधि में निरन्तर वित्तीय संस्था को भुगतान करता रहेगा। इस प्रकार जब वित्तीय संस्थाएँ पूर्ण रूप से सन्तुष्ट हो जाती हैं, तब उद्यमी को ऋण देने के लिए निर्णय लेती हैं।

4. परियोजना में समयबद्धता क्यों आवश्यक है?

उत्तर – परियोजना प्रतिवेदन में इसके प्रत्येक स्तर पर लगने वाले समय की तालिका संलग्न की जानी चाहिये तथा इसे समय पर पूरा किये जाने की कसम साहसी को लेनी चाहिये ताकि परियोजना समय पर पूरी हो सके अन्यथा इसे काफी नुकसान उठाना पड़ता है। विलम्ब होने से परियोजना की लागत बढ़ती जाती है और कुछ अप्रत्याशित बाधाएँ आने लगती हैं जिसके चलते इसका पूरा होना संदेहास्पद लगने लगता है।

5. परियोजना प्रतिवेदन में आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव क्यों दर्शाया जाता है?

उत्तर- आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव – परियोजना का असर समाज पर खट्टा-मीठा दोनों तरह से पड़ता है। अतः इस शीर्षक में परियोजना से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की चर्चा होनी ही चाहिये, साथ ही इसमें प्राप्त होने वाले सामाजिक एवं आर्थिक लाभ का भी विवरण होना चाहिए। जैसे- रोजगार कितना बढ़ेगा ? स्थानीय लोगों को क्या लाभ होगा ? उक्त क्षेत्र का क्या विकास हो सकेगा ? आदि।

6. सामान्य विवरण का क्या तात्पर्य है?

उत्तर- सामान्य विवरण – इस शीर्षक में साहसी का नाम, पता, योग्यता, अनुभव आदि का वर्णन दिया जाता है। यदि उपक्रम साझेदारी के रूप में हो तो सभी साझेदारों का विवरण और यदि कम्पनी प्रारूप में हो तो प्रवर्तकों का विवरण दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही परियोजना जिस उद्योग से सम्बन्धित हो, उसकी भी भूतकालीन और वर्तमान कालीन स्थिति, समस्या आदि का विश्लेषण दिया जाना चाहिए। परियोजना के उत्पाद की मात्रा, प्रकृति तथा अन्य उत्पाद की तुलना में इसकी विशिष्टता आदि का वर्णन भी होना चाहिए।

7. परियोजना प्रतिवेदन के कोई तीन उद्देश्य बतायें।

उत्तर – परियोजना प्रतिवेदन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) विपणन, तकनीक, वित्त, कर्मचारी, उत्पादन उपभोक्ता संतोष तथा सामाजिक वृतिदान के क्षेत्रों में अनुमानित प्रदर्शन पाने के लिए पूर्व में ही योजना तैयार करना ।

(ii) यह मूल्यांकन करना कि संगठन के उद्देश्यों को किस सीमा तक पूरा किया गया है ? इसके लिए उद्यमी से यह उम्मीद की जाती है कि वह निवेश सूचना को ध्यान में रखे, इन सूचनाओं का विश्लेषण करे, परिणामों का अनुमान लगाये, सबसे अच्छे विकल्पों का चुनाव करे, आवश्यक कदम उठाए, परिणामों की अनुमानों के साथ तुलना करे।

(iii) उद्देश्यों के निर्धारण के लिए प्रयास करना तथा उन्हें परिमेय, मूर्त, सत्यापनीय तथा प्राप्य बनाना।

8. परियोजना प्रतिवेदन की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर- विशेषताएँ 1. परियोजना प्रतिवेदन परियोजना में आने वाली प्रारम्भिक बाधाओं को पार करने के बाद किया जाता है।

2. यह परियोजना का एक विस्तृत प्रलेख होता है जिसमें परियोजना का सम्पूर्ण विवरण दिया गया होता है।

3. यह प्रतिवेदन परियोजना क्रियाओं का मार्गदर्शक होता है।

9. निम्न पर टिप्पणी कीजिए-

(i) लाभदायकता विश्लेषण (ii) पुनर्भुगतान अवधि विधि (iii) औसत प्रत्याय दर विधि (iv) शुद्ध वर्तमान मूल्य विधि

उत्तर- (i) लाभदायकता विश्लेषण – किसी उपक्रम की लाभदायकता निर्देशांक की गणना करने के लिए परियोजना विश्लेषण अत्यन्त आवश्यक होता है, जिसकी गणना निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है-

पुनर्भुगतान अवधि विधि – औसत प्रत्याय दर विधि – शुद्ध वर्तमान मूल्य विधि – लाभ लागत अनुपात विधि –  प्रत्याय की आन्तरिक दर विधि

(ii) पुनर्भुगतान अवधि विधि – पुनर्भुगतान अवधि विधि परियोजना की लाभदायकता को मापने की एक परम्परागत विधि है जिसका प्रयोग व्यापक स्तर पर किया जाता है। पुनर्भुगतान अवधि से हमारा तात्पर्य उस अवधि से होता है जिसके अन्तर्गत प्रारम्भिक विनियोग परियोजना से अर्जित आय से वसूल कर ली जाती है।

(iii) औसत प्रत्याय दर विधि — यह विधि पुनर्भुगतान विधि का सुधरा हुआ रूप है। इस विधि के अन्तर्गत परियोजना के सम्पूर्ण जीवन काल के अर्जन को ध्यान में रखा जाता है। इस विधि को विनियोग पर प्रत्याय विधि (ROI) भी कहते हैं। यह अनुपात अर्जन एवं विनियोग से सम्बन्धित होती है। इसकी गणना का निम्न सूत्र है-

ROI= Average Annual Earning after tax / Average Book Investment after Depreciation

(iv) शुद्ध वर्तमान मूल्य विधि — शुद्ध वर्तमान मूल्य विधि में समय मूल्य पर विचार किया जाता है जिसको पूर्व में समझाई विधि में ध्यान में नहीं रखा गया। जैसे- आज एक रुपये का मूल्य उस मूल्य से अधिक होगा जो एक वर्ष के बाद होगा क्योंकि वर्तमान एक रुपये के मूल्य से अगले एक वर्ष बाद का मूल्य एक वर्ष के ब्याज के बराबर कम होगा। दूसरे शब्दों में, समस्त भावी राशियों को सम्बन्धित ब्याज दर से बट्टा करना होगा ताकि उसके वर्तमान मूल्य का निर्धारण किया जा सके। निष्कर्ष रूप में, शुद्ध वर्तमान मूल्य, परियोजना के वर्तमान अन्तर्वाह का बाह्य प्रवाह के आधिक्य के रूप में हम परिभाषित कर सकते हैं। प्रायः उस परियोजना को चुना जाता है जिसका वर्तमान मूल्य सबसे अधिक हो। इसकी गणना का सूत्र निम्न है-

PV=1.1/(1+r)t

where, PV = Present value, S = Cash flow

r = Rate of interest ( discount rate), t = Years (time)

10. एक साहसी के लिए परियोजना प्रतिवेदन बनाना क्यों आवश्यक है?

उत्तर- एक साहसी के सम्मुख निम्न समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनके निवारण के लिए उसे परियोजना प्रतिवेदन का निर्माण करना पड़ता है।

(1) उपयुक्त तकनीक का चुनाव – उद्यमी के समक्ष एक महत्वपूर्ण कठिनाई, प्रस्तावित परियोजना के लिए तकनीक के चुनाव के रूप में आती है। विकसित देशों की आधुनिक तकनीक विकासशील देशों के लिए उपयुक्त नहीं भी हो सकती है, क्योंकि सभी देशों की परिस्थितियाँ या माहौल एक समान नहीं होते हैं। अधिक विकसित देशों में आधुनिक तकनीक विस्तृत बाजारों के लिए अधिक उपयोगी हो सकती है, क्योंकि वहाँ पूँजी, कुशल श्रमिकों तथा उपभोक्ताओं की कमी नहीं होती है परन्तु भारत जैसे विकासशील देशों में सीमित बाजार, पूँजी एवं कुशल श्रमिकों की कमी आदि की वजह से किसी भी नई परियोजना की सम्पूर्ण जाँच-पड़ताल आवश्यक हो जाती है।

(2) बाह्य मितव्ययिता की अनुपलब्धता – सभी नई परियोजनाओं को उन उद्योगों पर निर्भर रहना पड़ता है जो कच्ची सामग्री, मशीन, प्लांट, बिजली, औजार आदि की पूर्ति करते हैं। उन्हें सहायक सेवाओं, जैसे- तकनीक, वित्त, विपणन, संचार, यातायात प्रबंध आदि पर भी आश्रित रहना पड़ता है। इन संसाधनों तथा विशिष्ट सेवाओं को प्राप्त किये बिना नई परियोजना को अस्तित्व में नहीं लाया जा सकता है। अतः विकासशील देशों के उद्यमियों को न केवल परियोजना लागत अपितु सहायक लागतों को भी ध्यान में रखना पड़ता है। परन्तु विकसित देश सहायक लागतों की अनदेखी कर सकते हैं क्योंकि उन्हें वस्तुओं की बड़ी मात्रा में उत्पादन तथा विपणन से उत्पन्न मितव्ययिता का लाभ मिलता है।

(3) योग्य कर्मचारियों की अनुपलब्धता – नई परियोजनाओं को योग्य, कुशल एवं अनुभवी कर्मचारियों की कमी या अनुपलब्धता का भी सामना करना पड़ सकता है। आधुनिक तकनीकों को लागू करने में कर्मचारियों में न्यूनतम कुशलता की आवश्यकता पड़ती है जो विकासशील देशों में प्रायः कम ही देखने को मिलती है । परन्तु परियोजना निर्माण से कर्मचारियों की कुशलता का आकलन करने में मदद मिलती है तथा परियोजना की व्यवहार्यता का अध्ययन भी आसान हो जाता है।

(4) पूँजी को गतिशील बनाना – नई परियोजना की स्थापना में एक और महत्वपूर्ण कठिनाई संसाधनों को गतिशील बनाना है। वर्तमान के पूँजी बाजार को ध्यान में रखते हुए, परियोजना के लिए पूँजी को गतिशील बनाते समय एक उद्यमी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। परन्तु परियोजना निर्माण से, उद्यमी को वित्त के विभिन्न स्रोतों के विश्लेषण में मदद मिलती है। अत: वित्त एकत्र करने के क्षेत्रों एवं परियोजना क्रियान्वयन में उसके प्रभावशाली उपयोग को सुनिश्चित किया जा सकता है।

(5) सरकारी नियमों एवं कानूनों की जानकारी का अभाव – नई परियोजना की स्थापना के समय उद्यमी को सरकार द्वारा लागू नियमों, कानूनों तथा प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है। उद्यमियों को सरकार की निर्यात नीति, मूल्य नियंत्रण, आर्थिक सहायता, अनुदान आदि की पूरी जानकारी रखनी चाहिए तभी वे परियोजना को सफलतापूर्वक शुरू कर सकते हैं। सभी नियम-कानून एक साथ सम्मिलित रूप में उपलब्ध नहीं होते हैं, अतः उद्यमियों को विभिन्न विभागों एवं अफसरों से सम्पर्क बनाना पड़ता है ताकि परियोजना को हरी झण्डी मिल सके।

11. साध्यता प्रतिवेदन या परियोजना मूल्यांकन के क्षेत्र एवं मापदण्ड पर एक लेख लिखें।

उत्तर- साध्यता प्रतिवेदन परियोजना में आने वाली समस्याओं तथा उसके जोखिमों एवं अनिश्चितताओं को न्यूनतम करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अनुभवी एवं निपुण विशेषज्ञों द्वारा साध्यता प्रतिवेदन तैयार किया जाता है जिसे सम्भाव्यता या साध्यता प्रतिवेदन कहा जाता है। यह प्रतिवेदन परियोजना की समस्याओं के विभिन्न पहलुओं या क्षेत्रों की जाँच-पड़ताल करके तब तैयार किया जाता है जिससे प्रस्तावित परियोजना की आर्थिक साध्यता का सही तरीके से मूल्यांकन किया जा सके क्योंकि विशाल स्तर की परियोजनाओं में पूँजी अधिक मात्रा में विनियोजित होती है जिससे पूँजी के विनियोजन के साथ-साथ जोखिम की मात्रा भी बढ़ जाती है इसलिए पूँजी का विनियोग उन्हीं परियोजनाओं में किया जाये जिनमें लाभ की मात्रा की सम्भावना अधिक हो तथा जोखिम की मात्रा न्यूनतम हो । इसलिए परियोजना के सही मूल्यांकन के लिए परियोजना की साध्यता का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है।

परियोजना मूल्यांकन के लिए निम्नलिखित व्यवहार्यता या साध्यता का विश्लेषण किया जाता है

(i) आर्थिक साध्यता- आर्थिक साध्यता के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि परियोजना में जिस वस्तु के उत्पादन या सेवा कार्य के लिए जो प्रतिवेदन तैयार किया जा रहा है, क्या वह परियोजना के लिए तर्कसंगत है या नहीं। इसके लिए वस्तु के उत्पादन के बाद उसके वितरण एवं अन्तिम उपभोक्ता के विक्रय के लिए जाँच एवं मूल्यांकन किया जाता है जिसके अन्तर्गत यह पता लगाया जाता है कि तैयार होने वाले उत्पाद की बाजार में माँग कितनी है, यह माँग केवल स्थानीय बाजार में है या राष्ट्रीय स्तर पर है तथा इस उत्पाद की माँग इतनी अधिक मात्रा में है जो अन्य निर्माताओं द्वारा पूरी नहीं की जा रही है और वस्तु की पूर्ति का अभाव रहता है। इस प्रकार उत्पाद के केवल वर्तमान में माँग और पूर्ति की जाँच या विश्लेषण न करके बल्कि भविष्य में होने वाले दीर्घकाल तक की माँग और पूर्ति का विश्लेषण करके पता लगाना चाहिए।

(ii) प्रबन्धकीय साध्यता – किसी भी परियोजना की सफलता उसके प्रवर्तकों एवं प्रबन्धकों की योग्यता, कुशलता, दक्षता एवं अनुभव तथा संगठनात्मक योग्यता के ऊपर निर्भर करती है क्योंकि अगर परियोजना कमजोर है तो उसका सफलतापूर्वक संचालन किया जा सकता है और अगर परियोजना अच्छी एवं मजबूत है लेकिन उसके प्रवर्तक या प्रबन्धक के अन्दर योग्यता, कल्पनाशक्ति, दूरदर्शिता, दक्षता एवं अनुभव का अभाव है तो वह कभी भी सफल नहीं हो सकती, न ही उसका ठीक से संचालन ही किया जा सकता है इसलिए किसी भी उद्योग को वित्तीय सहायता की अनुमति देने के पहले उसके प्रवर्तकों की प्रबन्धकीय योग्यता एवं दक्षता, पृष्ठभूमि, उसका व्यावसायिक अनुभव, तकनीकी एवं संगठनात्मक योग्यता तथा कुशलता एवं साहसी विशेषताओं की जाँच-परख करके उसके उद्योग की प्रबन्धकीय कुशलता का मूल्यांकन एवं विश्लेषण किया जा सकता है। इस प्रकार प्रवर्तकों का मूल्यांकन करते समय उनके चरित्र एवं व्यवहार तथा कार्यक्षमता एवं उसकी विश्वसनीयता को अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए। बहुत-सी वित्तीय संस्थाएँ उद्योगों को ऋण देकर एवं उद्योगों के अंशों को खरीद कर उद्योगों के प्रबन्ध संचालन में अपना नियन्त्रण स्थापित कर लेती हैं और उद्योगों पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए वे अपने संचालकों की नियुक्ति करती हैं जिससे उद्योगों का संचालन ठीक ढंग से किया जा सके। दूसरी तरफ उद्योगों के कुप्रबन्ध को रोकने तथा उचित प्रबन्ध व्यवस्था के लिए कम्पनी अधिनियम तथा औद्योगिक विकास नियमन अधिनियम के द्वारा सरकार उन पर प्रबन्धकीय नियन्त्रण कर सकती है। इस प्रकार प्रबन्धकीय साध्यता के अन्तर्गत संचालक मण्डल एवं प्रबन्धकीय स्वरूप तथा पहले से स्थापित उद्योगों में श्रम एवं पूँजी में सम्बन्ध, औद्योगिक सम्बन्ध, प्रबन्ध सहभागिता, कर्मचारी कल्याण तथा विदेशी सहयोग के अन्तर्गत साहसियों का अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्द्धा इत्यादि बातों का भी मूल्यांकन एवं जाँच-परख की जानी चाहिए जिससे भविष्य में आने वाली समस्याओं पर नियन्त्रण किया जा सके।

(iii) तकनीकी साध्यता – किसी भी उत्पादन प्रक्रिया सम्बन्धी परियोजना को अपने तकनीकी साध्यता सम्बन्धी उपकरणों से परिपूर्ण होना चाहिए जिसके लिए उपक्रम का स्थान निर्धारण, भवन एवं अभिन्यास, उपक्रम का आकार, स्वचालित संयंत्रों एवं उपकरणों तथा तकनीकी ज्ञान एवं कुशलता की आवश्यकता होती है। परियोजना के तकनीकी पहलू की वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जाँच-परख एवं विश्लेषण करके परियोजना की तकनीकी साध्यता का मूल्यांकन करना चाहिए।

(iV) सामाजिक साध्यता – किसी भी परियोजना के सामाजिक साध्यता के अन्तर्गत समाज के हितों का ध्यान रखा जाता है जिससे राष्ट्र के संसाधनों का विदोहन समाज के हित में किया जाना चाहिए तथा समाज के उत्तरदायित्व का पालन किया जाना चाहिए। कोई भी परियोजना सामाजिक हितों की उपेक्षा करके लाभ नहीं कमा सकती और न ही अधिक दिन तक जिन्दा ही रह सकती है, इसलिए एक उद्यमी को परियोजना के साध्यता के अन्तर्गत निम्नलिखित तत्वों पर अवश्य विचार-विमर्श कर लेना चाहिए-

(1) असंतुलित तथा पिछड़े हुए क्षेत्रों का विकास करना ।

(2) लघु उद्योगों के विकास में सहयोग करना ।

(3) पूँजी का समान वितरण करना ।

(4) विदेशी मुद्रा का अधिक-से-अधिक मात्रा में अर्जन करना ।

(5) रोजगार की मात्रा में वृद्धि करना।

(6) समाज को सस्ती एवं उच्च किस्म की वस्तुओं को उपलब्ध कराना ।

(7) वस्तुओं की आपूर्ति सदैव बनाये रखना ।

(8) राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान देना ।

(V) वित्तीय साध्यता – वित्तीय साध्यता के अन्तर्गत प्रस्तावित परियोजना में वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्त की व्यवस्था है या नहीं क्योंकि परियोजना की सफलता पर्याप्त मात्रा में वित्त की मात्रा पर निर्भर करती है, परियोजना के वित्तीय साध्यता के अन्तर्गत यह भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए कि परियोजना के अल्पकालीन और दीर्घकालीन वित्त व्यवस्था में उचित मात्रा में उचित समय पर उचित ब्याज पर प्राप्त होती रहेगी। वित्तीय संस्थाएँ तथा बैंक उन्हीं परियोजनाओं को ऋण देने के लिए आकर्षित होती हैं जिनकी वित्तीय स्थिति काफी मजबूत होती है तथा जिनमें सम्भावित लाभ की मात्रा अधिक होती है तथा बाह्य दायित्वों जैसे बैंक या अन्य वित्तीय संस्थाओं के ऋण भुगतान करने में समर्थ हो तथा यह भी देखना चाहिए कि परियोजना में कुल पूँजी व्यय कितनी मात्रा में होगा जिसके लिए वित्त की कितनी मात्रा की आवश्यकता होगी जिसमें परियोजना के प्रारम्भिक प्रवर्तन एवं संगठनात्मक सम्बन्धी लागतों के साथ-साथ अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं का भी पूर्वानुमान लगा लेना चाहिए। इस प्रकार परियोजना की विभिन्न मदों में विनियोजित होने वाली पूँजी की आवश्यकताओं का अलग-अलग विचार-विमर्श करने के बाद ही पूँजी की आवश्यकताओं का अन्तिम रूप से निर्धारण किया जाना चाहिए। परियोजना का कार्य विभिन्न चरणों में पूरा होता है और अलग-अलग चरणों में वित्त की अलग-अलग मात्रा में आवश्यकता होती है इसलिए परियोजना के विभिन्न चरणों जैसे- संगठनात्मक चरण, वास्तविक निर्माण काल एवं व्यवसाय संचालन का प्रबन्ध इत्यादि के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस तरह से व्यवस्था की जानी चाहिए कि सही समय पर उचित मात्रा में वित्त की पूर्ति की जा सके इसलिए वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न संस्थाओं एवं बैंकों के बारे में विधिवत् विचार-विमर्श कर लेना चाहिए तथा यह भी विचार किया जाना चाहिए कि परियोजना विनियोजित होने वाली पूँजी की तुलना में परियोजना की लाभदायकता स्तर क्या है क्योंकि सभी परियोजनाओं का उद्देश्य उचित मात्रा में लाभ कमाना होता है।

12. निम्न का अर्थ एवं आवश्यकता को समझायें – (1) परियोजना निरूपण  (2) परियोजना मूल्यांकन

उत्तर- (1) परियोजना निरूपण – बहुत से उद्यमी ऐसे किसी उत्पाद का निर्माण करना चाहते हैं जिसके लिए निश्चित बाजार उपलब्ध हो। परन्तु न तो छोटे उद्यमी के लिए यह सम्भव है कि वह ऐसे उत्पाद का निर्माण करे जिसका बाजार सुनिश्चित है और न ही ऐसा कोई उत्पाद है जिसका बाजार निश्चित होता है। किसी उत्पाद के उत्पादन करने की इच्छा एक परियोजना कल्पना का रूप धारण कर लेती है जो फिर अनेक कारणों पर निर्भर करती है; जैसे- कच्ची सामग्री, मानव शक्ति, बिजली, वित्त आदि की उपलब्धता तथा संगठनात्मक संरचना । अतः एक परियोजना कल्पना को विकसित करते समय इन संसाधनों की उपलब्धता को ठीक से जाँच लेना चाहिए। परियोजना निर्माण का अर्थ- परियोजना निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक उद्यमी को, परियोजना के प्रस्तावित विनियोग के विभिन्न आयामों की विषयपरक मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य प्रस्तावित परियोजना के सम्पूर्ण प्रभाव का निर्धारण करना होता है। परियोजना निर्माण पूर्व-विनियोग अवस्था की महत्वपूर्ण व्यूह-रचना है जहाँ परियोजना कल्पना को प्राप्त को मूर्त रूप प्रदान किया जाता है। यह परियोजना के उद्देश्यों, जैसे- एक निश्चित समय सीमा में न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ अर्जित करना, करने में सहायता प्रदान करता है।

परियोजना निर्माण दल – परियोजना निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विशिष्टीकरण के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के दल का सामूहिक प्रयास सम्मिलित होता है। दल के सदस्यों से यह उम्मीद की जाती है कि उन्हें परियोजना के उद्देश्यों, रणनीति तथा अन्य तथ्यों की आवश्यक जानकारी हो। सामान्यतः एक बड़ी परियोजना में, परियोजना निर्माण दल में निम्नलिखित सदस्य होते हैं- (i) औद्योगिक अर्थशास्त्री, (ii) बाजार विश्लेषक, (iii) शिल्पवैज्ञानिक या उद्योग में विशिष्ट अभियंता, (iv) यांत्रिक या औद्योगिक अभियंता, (v) सिविल इंजीनियर, (vi) प्रबंध लेखपाल, (vii) सरकारी अफसर।

ये सभी सदस्य परियोजना के विभिन्न पहलुओं के विशेषज्ञ माने जाते हैं। निर्माण दल का सदस्य अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ होने के साथ, परियोजना कल्पना एवं निर्माण में अपनी भूमिका को अच्छी तरह से निभाने में सक्षम भी होना चाहिए। वह सरकारी अफसर जो परियोजना के अंतिम निबटारे को देखता है उसे परियोजना से सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। दल के द्वारा तैयार किया गया व्यवहार्यता प्रतिवेदन, वैज्ञानिक, सामाजिक तथा स्थितीय पूर्वाग्रहों को दूर करने एवं परियोजना के सफल क्रियान्वयन का अवसर प्रदान करता है।

(2) परियोजना मूल्यांकन – परियोजना आकलन, परियोजना की व्यवहार्यता का निर्धारण करने के लिए इसके विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करता है। उद्यमी विभिन्न वैकल्पिक परियोजनाओं में से किसी एक परियोजना का चुनाव करता है जिसका संचालन उसके लिए सरल एवं लाभप्रद हो । व्यवसाय के संचालन का आशय सीमित साधनों का उपयोग है। अतः परियोजना मूल्यांकन विभिन्न परियोजनाओं में से सर्वश्रेष्ठ परियोजना के चुनाव में सहायक होता है। परियोजना आकलन परियोजना की व्यवहार्यता जानने के उद्देश्य से प्रस्तावित परियोजना के विभिन्न पहलुओं की लागत एवं लाभ विश्लेषण है। परियोजना में सीमित साधनों का विनियोग शामिल होता है। सर्वश्रेष्ठ परियोजना में संसाधनों का विनियोग करने के पूर्व एक उद्यमी को विभिन्न वैकल्पिक परियोजनाओं का मूल्यांकन करना होता है। परियोजना का मूल्यांकन करने के लिए इसके वित्तीय, आर्थिक, तकनीकी, बाजार, प्रबन्धकीय एवं सामाजिक पहलुओं का विश्लेषण किया जात है ।

13. एक साहसी के लिए परियोजना प्रतिवेदन बनाने में किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? “अथवा” परियोजना प्रतिवेदन का निर्माण कैसे किया जाता है?

उत्तर – परियोजना प्रतिवेदन का निर्माण – साहसी के लिये परियोजना प्रतिवेदन का निर्माण करना अत्यन्त आवश्यक है किन्तु इसकी एक निश्चित रूपरेखा निर्धारित नहीं की जा सकती क्योंकि प्रत्येक उपक्रम की प्रकृति एवं आकार अलग-अलग होता है। फिर छोटे स्तर के उपक्रम या परियोजना के लिये यह प्रतिवेदन अनुपयुक्त होता है। सामान्य तौर पर प्रतिवेदन के निर्माण में निम्नलिखित मुख्य बातों पर ध्यान देना चाहिये-

1. सामान्य विवरण – इस शीर्षक में साहसी का नाम, पता, योग्यता, अनुभव आदि का वर्णन दिया जाता है। यदि उपक्रम साझेदारी के रूप में हो तो सभी साझेदारों का विवरण और यदि कम्पनी प्रारूप में हो तो प्रवर्तकों का विवरण दिया जाना चाहिये। इसके साथ ही परियोजना जिस उद्योग से सम्बन्धित हो, उसकी भी भूतकालीन और वर्तमान कालीन स्थिति, समस्या आदि का विश्लेषण दिया जाना चाहिये। परियोजना के उत्पाद की मात्रा, प्रकृति तथा अन्य उत्पाद की तुलना में इसकी विशिष्टता आदि का वर्णन भी होना चाहिये।

2. परियोजना का विवरण – इस शीर्षक में परियोजना से सम्बन्धित समस्त जानकारी दी जाती है। जैसे-यह कहाँ अवस्थित होगी? इसके लिये कच्चा माल व कुशल श्रमिक कहाँ से एवं कैसे उपलब्ध कराये जायेंगे ? इसके लिये आधारभूत संरचनायें, पानी, बिजली, ईंधन, यातायात आदि की क्या व्यवस्था होगी ? उत्पादन को किन प्रक्रियाओं से गुजरना होगा ? इसके लिये यन्त्र- संयन्त्र कहाँ से, कैसे, कितने में उपलब्ध होगा ? इसकी क्षमता क्या होगी ? भविष्य में इसके विकास की क्या सम्भावनायें होंगी ? आदि ।

3. बाजार की शक्ति – इस शीर्षक में परियोजना के उत्पाद (Product) की बाजार में क्या स्थिति रहने की सम्भावना है, का विवरण दिया जाता है। उक्त उत्पाद की वर्तमान स्थिति क्या है तथा भविष्य में इसकी माँग की स्थिति क्या हो सकती है? इस उत्पाद को किस मूल्य पर बेचा जा सकता है? विक्रय की क्या व्यवस्था होगी ? बिक्री के बाद सेवा (after sale service) कैसे दी जायेगी ? उत्पाद को बाहर भेजने की यातायात व्यवस्था क्या होगी ? आदि।

4. वित्तीय स्रोत – किसी भी परियोजना को संचालित करने एवं पूरा करने में वित्त की आवश्यकता पड़ती ही है। इसके लिये स्थायी पूँजी (Fixed Capital) और चालू पूँजी कार्यशील पूँजी (Working Capital) दोनों की व्यवस्था का विवरण अलग-अलग दिया जाना चाहिये। वित्त कहाँ से और कितना प्राप्त किया जायेगा? इसमें साहसी स्वयं कितनी व्यवस्था करेगा? बाकी किन स्रोतों से ली जायेगी ? आदि ।

5. अन्य वित्तीय पहलू – इस शीर्षक में परियोजना का प्रस्तावित (Projected) लाभ-हानि खाता तथा आर्थिक चिट्ठा (Balance Sheet) दिखाया जाना चाहिये। इससे सम्भावित लाभ तथा आर्थिक स्थिति की सम्भावना का पता चलता है। इसके अलावा परियोजना के उत्पाद का सम-बिन्दु विच्छेद (Break-even point) भी दिखाया जाना चाहिये जो यह बतायेगी कि उत्पादन या बिक्री को किस स्तर तक लाने में ‘न लाभ न हानि’ की स्थिति रहेगी?

6. आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव—परियोजना का असर समाज पर खट्टा-मीठा दोनों तरह से पड़ता है । अत: इस शीर्षक में परियोजना से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की चर्चा होनी ही चाहिये, साथ ही इसमें प्राप्त होने वाले सामाजिक एवं आर्थिक लाभ का भी विवरण होना चाहिये। जैसे- रोजगार कितना बढ़ेगा? स्थानीय लोगों को क्या लाभ होगा ? उक्त क्षेत्र का क्या विकास हो सकेगा ? आदि ।

7. समयबद्धता – परियोजना प्रतिवेदन में इसके प्रत्येक स्तर पर लगने वाले समय की तालिका संलग्न की जानी चाहिये तथा इसे समय पर पूरा किये जाने की कसम साहसी को लेनी चाहिये ताकि परियोजना समय पर पूरी हो सके अन्यथा इससे काफी नुकसान उठाना पड़ता है। विलम्ब होने से परियोजना की लागत बढ़ती जाती है और कुछ अप्रत्याशित बाधायें आने लगती हैं जिसके चलते इसका पूरा होना संदेहास्पद लगने लगता है।

14. एक परियोजना प्रतिवेदन से क्या अभिप्राय है? एक परियोजना प्रतिवेदन की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – परियोजना प्रतिवेदन प्रारम्भ की जाने वाली प्रस्तावित परियोजना के सम्बन्ध में विभिन्न तथ्यों, सूचनाओं एवं विश्लेषणों का सारांश है। यह किसी परियोजना के सम्बन्ध में विनियोग अवसरों के निर्धारण, मूल्यांकन एवं नियोजन के पश्चात् तैयार किया गया एक प्रलेख है जो प्रस्तावित योजना के बारे में विविध जानकारी; जैसे- परियोजना के उद्देश्य, संक्षिप्त विवरण, वित्तीय संरचना, संयन्त्र, उपकरण, कच्चे माल, तकनीकी श्रम, विभिन्न भौतिक संसाधन, प्रबन्धकीय व्यवस्था, बाजार, विपणन व्यवस्था, निर्यात, लागत, लाभदायकता, रोकड़ प्रवाह आदि प्रदान करता है। संक्षेप में “परियोजना प्रतिवेदन किसी फर्म अथवा उद्यमी के द्वारा प्रारम्भ की जाने वाली परियोजना की विभिन्न क्रियाओं तथा उनकी तकनीकी, वित्तीय, वाणिज्यिक एवं सामाजिक व्यवहार्यताओं (Feasibilities) का एक लिखित लेखा है। ” इसके अन्तर्गत वे सभी सूचनाएँ एवं आँकड़े दिये गये होते हैं जिनके आधार पर प्रस्तावित परियोजना का मूल्यांकन किया जाता है। परियोजना प्रतिवेदन उच्च प्रबन्धकों को विचारार्थ प्रेषित किया जाता है जो सन्तुष्ट होने पर परियोजना के चयन हेतु अपनी स्वीकृति प्रदान करतेहैं।

विशेषताएँ

  1. परियोजना प्रतिवेदन परियोजना में आने वाली प्रारम्भिक बाधाओं को पार करने के बाद किया जाता है।
  2. यह परियोजना का एक विस्तृत प्रलेख होता है जिसमें परियोजना का सम्पूर्ण विवरण दिया गया होता है।
  3. यह प्रतिवेदन परियोजना क्रियाओं का मार्गदर्शक होता है।
  4. यह परियोजना क्रियाओं के अनुक्रम को दर्शाता है।

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