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एक लेख और एक पत्र पाठ का लेखक परिचय

लेखक – भगत सिंह

भगत सिंह का जन्म – 28 सितम्बर 1907

भगत सिंह का निधन – 23 मार्च 1931

भगत सिंह का निवास स्थान – बंगा चक्क,न० 105, गुगैरा ब्रांच,वर्त्तमान लायलपुर(पाकिस्तान)

भगत सिंह के माता – विद्यावती देवी

भगत सिंह के पिता – सरदार किशन सिंह

भगत सिंह आधुनिक भरतीय इतिहास की एक पवित्र स्मृति हैं|

एक लेख और एक पत्र निबंध का सारांश लिखें

इस बात का बड़ा भारी शोर सुना जा रहा है कि पढ़ने वाले नौजवान (विद्यार्थी) राजनीतिक या पॉलिटिकल कामों में हिस्सा न लें। पंजाब सरकार की राय बिलकुल ही न्यारी है। विद्यार्थियों से कॉलेज में दाखिल होने से पहले इस आशय की शर्त पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं कि वे पॉलिटिकल कामों में हिस्सा नहीं लेंगे। आगे हमारा दुर्भाग्य कि लोगों की ओर से चुना हुआ मनोहर, जो अब शिक्षा मंत्री है, स्कूलों-कॉलेजों के नाम एक सर्कुलर या परिपत्र भेजता है कि कोई पढ़ने या पढ़ाने वाला पॉलिटिक्स में हिस्सा न ले । कुछ दिन हुए जब लाहौर में स्टूडेंट्स यूनियन या विद्यार्थी सभा की ओर से विद्यार्थी सप्ताह मनाया जा रहा था । वहाँ भी सर अब्दुल कादर और प्रोफेसर ईश्वरचंद्र नंदा ने इस बात पर जोर दिया कि विद्यार्थियों को पॉलिटिक्स में हिस्सा नहीं लेना चाहिए ।

सभी मानते हैं कि हिंदुस्तान को इस समय ऐसे देशसेवकों की जरूरत है, जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दें । लेकिन क्या बूढ़ों में ऐसे आदमी मिल सकेंगे ? क्या परिवार और दुनियादारी के झंझटों में फँसे सयाने लोगों में से ऐसे लोग निकल सकेंगे ? यह तो वही नौजवान निकल सकते हैं जो किन्हीं जंजालों में न फँसे हों और जंजालों में पड़ने से पहले विद्यार्थी या नौजवान तभी सोच सकते हैं यदि उन्होंने कुछ व्यावहारिक ज्ञान भी हासिल किया हो । सिर्फ गणित और ज्योग्राफी का ही परीक्षा के पर्चों के लिए घोंटा न लगाया हो ।

क्या इंग्लैंड के सभी विद्यार्थियों का कॉलेज छोड़कर जर्मनी के खिलाफ लड़ने के लिए निकल पड़ना पॉलिटिक्स नहीं थी ? तब हमारे उपदेशक कहाँ थे जो उनसे कहते जाओ, जाकर शिक्षा हासिल करो । आज नेशनल कॉलेज, अहमदाबाद के जो लड़के सत्याग्रह में बारदोली वालों की सहायता कर रहे हैं, क्या वे ऐसे ही मूर्ख रह जाएँगे ? सभी देशों को आजाद करवाने वाले वहाँ के विद्यार्थी और नौजवान ही हुआ करते हैं। क्या हिंदुस्तान के नौजवान अलग-अलग रहकर अपना और अपने देश का अस्तित्व बचा पाएँगे ? नौजवान 1919 में विद्यार्थियों पर किए अत्याचार भूल नहीं सकते । वे यह भी समझते हैं कि उन्हें एक भारी क्रांति की जरूरत है । वे पढ़ें। जरूर पढ़ें। साथ ही पॉलिटिक्स का भी ज्ञान हासिल करें और जब जरूरत हो तो मैदान में कूद पड़ें और अपना जीवन इसी काम में लगा दें। अपने प्राणों का इसी में उत्सर्ग कर दें। वरन् बचने का कोई उपाय नजर नहीं आता ।

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