सविंधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत

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Class 12 History Chapter 15 Subjective Questions in Hindi

1.संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची का संक्षिप्त वर्णन करें।

उत्तर – संविधान के प्रथम अनुच्छेद में कहा गया है कि “भारत अर्थात् इण्डिया राज्यों का संघ होगा।” इन राज्यों के साथ केन्द्र के सम्बन्धों का स्वरूप क्या हो ? केन्द्र तथा राज्यों के मध्य शक्तियों के विभाजन के लिए तीन सूचियाँ बनाई गई थीं – संघ सूची या केन्द्रीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची । संघ सूची में वे विषय रखे गए जो राष्ट्रीय महत्व के हैं तथा जिनके बारे में देश भर में एकसमान नीति होना आवश्यक है। जैसे-प्रतिरक्षा, विदेश नीति, डाक, तार व टेलीफोन, रेल, मुद्रा, बीमा व विदेशी व्यापार इत्यादि । इस सूची में कुल 97 विषय हैं। राज्य सूची में प्रादेशिक महत्व के विषय सम्मिलित किये गये थे जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया। राज्य सूची के प्रमुख विषय हैं – कृषि, पुलिस, जेल, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सिंचाई व मालगुजारी इत्यादि । इन विषयों की संख्या 66 थी । समवर्ती सूची में 47 विषय थे। इस सूची के विषयों पर केन्द्र तथा राज्य दोनों कानून बना सकते हैं परन्तु किसी विषय पर यदि संसद और राज्य के विधानमण्डल द्वारा बनाए गए कानूनों में विरोध होता है तो संसद द्वारा बनाए गए कानून ही मान्य होंगे। इस सूची के प्रमुख विषय हैं – बिजली, विवाह कानून, मूल्य नियन्त्रण, समाचार पत्र, छापेखाने, दीवानी कानून, शिक्षा, वन, जनसंख्या नियन्त्रण और परिवार नियोजन आदि।

2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श क्या हैं?

उत्तर- भारतीय संविधान विश्व का अत्यन्त विशाल संविधान है। इस विशालता में सबसे महत्वपूर्ण अंश इस संविधान की प्रस्तावना का है। यह वे सब मौलिक सिद्धान्त दिये गये हैं जो कि सरकार का आधार होते हैं। यह संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है और संविधान की आत्मा है। संविधान की प्रस्तावना निम्नलिखित आदर्शों पर बल देती है-
1. न्याय – सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ।
2. स्वतन्त्रता- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास तथा पूजा अर्चना की।
3. समानता – प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता ।
4. भ्रातृत्व – व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता व अखण्डता सुनिश्चित
करना तथा आपसी बन्धुत्व बढ़ाना।

3. भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया?

उत्तर- 26 जनवरी, 1949 को भारत का संविधान पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो गया और उसे 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया क्योंकि पं. जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस के दिसम्बर 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग का प्रस्ताव पास किया था और 26 जनवरी, 1930 के दिन को आजादी से पहले ही ‘प्रथम स्वतन्त्रता दिवस’ के रूप में मनाया गया था। इसके पश्चात् कांग्रेस ने हर वर्ष 26 जनवरी का दिन इसी रूप में मनाया था। इसीलिए संविधान सभा ने 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू किया ताकि इस पवित्र दिवस की स्मृति सदैव ताजा रहे।

4.प्रारूप समिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर- प्रारूप समिति – संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए 29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा द्वारा प्रारूप समिति (Drafting Committee) का गठन किया गया। इस समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. भीमराव अम्बेडकर की नियुक्ति की गई। सर्वश्री एन. गोपालास्वामी आयंगर, अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, के. एम. मुंशी, टी. टी. कृष्णामाचारी, मोहम्मद सादुल्लाह, डी. पी. खेतान और एन. माधवराव प्रारूप समिति के अन्य सदस्य थे। प्रारूप समिति का काम था कि वह संविधान सभा की परामर्श शाखा द्वारा तैयार किए गए संविधान का परीक्षण करे और संविधान के प्रारूप को विचारार्थ संविधान सभा के सम्मुख प्रस्तुत करे। प्रारूप समिति ने भारत के संविधान का जो प्रारूप तैयार किया वह फरवरी, 1948 में संविधान सभा के अध्यक्ष को सौंपा गया।

 5. महात्मा गाँधी ऐसा क्यों सोचते थे कि हिन्दुस्तानी को राष्ट्रभाषा होना चाहिए।

उत्तर – स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी का मानना था कि प्रत्येक भारतीय को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे सभी आसानी से समझ सकें। “हिन्दुस्तानी भाषा” एक ऐसी ही भाषा थी जो हिन्दी तथा उर्दू के शब्दों से मिलकर बनी थी तथा भारतीय जनता का एक बड़ा वर्ग इस भाषा का प्रयोग करता था। महात्मा गाँधी को लगता था कि “यह बहुसांस्कृतिक भाषा विविध समुदायों के बीच संचार की आदर्श भाषा हो सकती है।” “यह हिन्दुओं और मुसलमानों को, उत्तर और दक्षिण के लोगों को एकजुट कर सकती है।” गाँधी जी साम्प्रदायिकता के विरोधी थे। उनका मानना था कि इस भाषा से दोनों सम्प्रदायों के लोगों में परस्पर मेल-मिलाप, प्रेम, सद्भावना, ज्ञान का आदान-प्रदान बढ़ेगा और यही भाषा देश की एकता को मजबूत करने में अधिक आसानी से महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इस प्रकार स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान काँग्रेस ने यह मान लिया था कि हिन्दुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जाये।

 6. संविधान निर्मात्री सभा का गठन कैसे हुआ ?

उत्तर- वस्तुतः संविधान सभा का गठन तीन चरणों में हुआ। सर्वप्रथम “कैबिनेट मिशन योजना” के अनुसार संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ एवं कुल 389 सदस्यों की संख्या निश्चित की गई। द्वितीय चरण का आरम्भ 3 जून, 1947 की “विभाजन योजना” से होता है जिसके अनुसार संविधान सभा का पुनर्गठन किया गया जिसमें 324 प्रतिनिधि होने थे ।
तृतीय चरण देशी रियासतों से सम्बन्धित था और उनके प्रतिनिधि संविधान सभा में अलग-अलग समय में सम्मिलित हुए।
‘हैदराबाद’ ही एक ऐसी रियासत थी जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित नहीं हुए।

7. संविधान सभा का गठन कैसे हुआ? संविधान सभा में उठाए गए महत्वपूर्ण मुद्दों का उल्लेख करें 
उत्तर – संविधान सभा का गठन- संविधान निर्मात्री सभा का गठन ‘कैबिनेट मिशन’ की योजना के आधार पर हुआ था। कैबिनेट मिशन योजना में निश्चित किया गया था कि भारतीय संविधान के निर्माण हेतु “परोक्ष निर्वाचनके आधार पर एक संविधान सभा की स्थापना की जाये जिसमें कुल 389 सदस्य हों जिसमें से 292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि और 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि हों। कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार जुलाई 1946 में संविधान सभा के कुल 389 सदस्यों में से प्रान्तों के लिए निर्धारित 292 सदस्यों के स्थान को मिलाकर कुल 296 सदस्यों के लिए ही चुनाव हुए जिसमें से काँग्रेस के 208, मुस्लिम लीग के 73 तथा 15 अन्य दलों के व स्वतन्त्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए। प्रारम्भिक बैठकों के पश्चात् मुस्लिम लीग ने अपनी निर्बल स्थिति देखकर संविधान सभा के बहिष्कार का निर्णय किया। वस्तुतः संविधान सभा का गठन तीन चरणों में पूरा हुआ। सर्वप्रथम “कैबिनेट मिशन योजना” के अनुसार संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ एवं कुल 1389 सदस्यों की संख्या निश्चित की गई। द्वितीय चरण का आरम्भ 3 जून, 1947 की “विभाजन योजना” से होता है जिसके अनुसार संविधान सभा का पुनर्गठन किया गया जिसमें 324 प्रतिनिधि होने थे। तृतीय चरण देशी रियासतों से सम्बन्धित था और उनके प्रतिनिधि संविधान सभा में अलग-अलग समय में सम्मिलित हुए। ‘हैदराबाद’ ही एक ऐसी रियासत थी जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित नहीं हुए। संविधान सभा में अनेक मुद्दों पर विचार-विमर्श तथा विस्तृत वाद-विवाद होता था। उन विषयों में से कुछ प्रमुख विषयों का वर्णन हम निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं- एक प्रमुख प्रश्न था नागरिकों के अधिकारों को निर्धारित करने का । साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का मुद्दा अत्यधिक संवेदनशील था । इसी साम्प्रदायिकता के जहर के कारण भारत को विभाजन की विभीषिका झेलनी पड़ी थी। संविधान सभा में भारतीय समाज के शोषित तथा दबे-कुचले तबके की समस्याओं पर भी व्यापक विचार-विमर्श हुआ। सामाजिक तथा आर्थिक रूप से कमजोर तबकों, आदिवासियों आदि की दशा सुधारने के लिए क्या उपाय किये जायें ? इन प्रश्नों पर भी गहन विचार मंथन किये गये। भारत भौगोलिक दृष्टि से एक विशाल देश है। देश में सांस्कृतिक दृष्टि से भी विभिन्नताएँ विद्यमान हैं। जब समस्त देश एकता के सूत्र में बँध रहा हो तो इसके लिए एक राष्ट्रभाषा का होना अनिवार्य है किन्तु भारत जैसे भाषायी विभिन्नता वाले देश में इस प्रश्न का समाधान आसानी से नहीं किया जा सकता था ।कुछ विषय ऐसे भी थे जिन पर संविधान सभा में लगभग आम सहमति थी। इन्हीं में से एक विषय प्रत्येक वयस्क भारतीय नागरिक को मताधिकार देने का था। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय संविधान का निर्माण एक विस्तृत तथा गम्भीर व गहन विचार-विमर्श की प्रक्रिया के पश्चात् हुआ।

8. आधुनिक भारत के निर्माण में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की देनों का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर- डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 1891 ई. में महाराष्ट्र की एक निम्न जाति में हुआ था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। बचपन से ही वह एक प्रतिभाशाली छात्र रहे थे। 1923 ई. में उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा पास की। निम्न जातियों को संगठित करने तथा उनमें राजनीतिक जागृति लाने का श्रेय डॉ. भीमराव अम्बेडकर को ही जाता है। 1924 ई. में उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की जिसका उद्देश्य अस्पृश्य जातियों के उत्थान के लिए कार्यकरना था। उन्होंने नागरिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए आन्दोलन करने की नीति अपनायी जिससे निम्न जातियाँ अपने अधिकारों से संघर्ष कर सकें। 1942 ई. में डॉ. अम्बेडकर ने अनुसूचित जाति परिसंघ बनाया। वह हिन्दू जाति की रूढ़िवादिता से निराश हो गये थे और उन्हें अछूतों के उद्धार के लिए कार्य किया । उन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया तथा अछूतों को समान अधिकार तथा संरक्षण देने की नीति आरम्भ की। अछूतों के उद्धार के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अनेक कार्य किये। डॉ. अम्बेडकर न केवल प्रबल देशभक्त थे। वरन् राष्ट्र की एकता को बनाए रखने के भी प्रबल समर्थक थे। अम्बेडकर अपूर्व वैधानिक के धनी थे तथा नेहरू और पटेल आदि कांग्रेसी नेताओं ने उनकी इस प्रतिभा को समझकर उन्हें संविधान सभा की महत्वपूर्ण समिति’ प्रारूप समिति’ के अध्यक्ष का पद सौंपा था। उनके नेतृत्व में देश के लिए एक ऐसे संविधान का निर्माण हुआ, जो शान्तिकाल और संकटकाल दोनों ही परिस्थितियों में देश की एकता को बनाए रखने में समर्थ है। अम्बेडकर ने भारतीय समाज की समस्त स्थिति को भली-भाँति समझा था। उन्होंने सामाजिक लोकतन्त्र को राजनीतिक लोकतन्त्र की पूर्ण शर्त के रूप में प्रतिपादित कर भारत में लोकतन्त्र की सार्थक व्याख्या एवं परिकल्पना प्रस्तुत की। संविधान की प्रस्तावना और अन्य भागों में ‘सामाजिक-आर्थिक न्याय का जो संकल्प व्यक्त किया गया है, उसमें अम्बेडकर के प्रयत्नों का महान् योगदान है।

9. भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं को लिखिए ।

उत्तर – भारतीय संविधान के निर्माण में कुल 2 वर्ष 11 माह एवं 18 दिन लगे। इसके निर्माण हेतु संविधान सभा के कुल 11 अधिवेशन एवं 165 बैठक हुई। संविधान में कुल 395 अनुच्छेद एवं 8 अनुसूचियों को शामिल किया गया। भारतीय संविधान की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (1) यह लिखित, निर्मित एवं विश्व का विशालतम संविधान है। (2) संविधान की प्रस्तावना में प्रभुत्व सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक, पन्थनिरपेक्ष एवं समाजवादी गणराज्य की स्थापना की बात कही गई है। (3) संविधान द्वारा भारत में संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई है। (4) राज्य के लिए नीति-निर्देशक तत्वों का समावेश किया है। (5) नागरिकों के मूल अधिकार एवं कर्त्तव्यों को दिया गया है। (6) भारतीय संविधान लचीलेपन एवं कठोरता का अद्भुत मिश्रण है। (7) वयस्क मताधिकार का प्रावधान किया गया है। (8) एकल नागरिकता का प्रावधान किया गया है।
(9) स्वतन्त्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है। (10) भारत के एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की बात की गई है। भारतीय संविधान में समय-समय पर आवश्यकतानुसार संशोधन करने का प्रावधान है। वर्तमान में भारतीय संविधान में 450 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ तथा 22 भाग हैं। भारत के संविधान का स्रोत भारतीय जनता है।

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