महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन

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Class 12 History Chapter 13 Subjective Questions in Hindi

1.चम्पारण आन्दोलन के क्या कारण थे ? ‘अथवा ‘ चम्पारण सत्याग्रह का संक्षिप्त विवरण दीजिए। 
उत्तर – चम्पारण का मामला महात्मा गाँधी के सामने आया। 19वीं सदी के प्रारम्भ में गोरे बागान मालिकों ने किसानों से एक अनुबन्ध किया जिसके अनुसार किसानों को अपनी जमीन के 3/ 20वें हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे ‘तिकठिया’ पद्धति कहा जाता था। किसान इस अनुबन्ध से मुक्त होना चाहते थे। 1917 में चम्पारण के राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधीजी चम्पारण पहुँचे। चम्पारण पहुँचकर गाँधीजी ने समस्याओं को सुना व सही पाया। गाँधीजी से चम्पारण छोड़ने की बात कही गयी लेकिन सत्याग्रही के समान उन्होंने इसे मानने से इन्कार कर दिया। गाँधीजी के प्रयासों से सरकार ने चम्पारण के किसानों की जाँच हेतु एक आयोग नियुक्त किया। अन्त में गाँधीजी की विजय हुई। आयोग ने तिनकठिया पद्धति को समाप्त कर दिया और अंग्रेजों को अवैध वसूली का 25% वापस करना पड़ा। यह गाँधी का सफल सविनय अवज्ञा आन्दोलन था |

2. रॉलेट ऐक्ट पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – रौलट एक्ट- महात्मा गाँधी को पहला तीव्र आघात रौलट एक्ट के माध्यम से लगा। ब्रिटिश न्यास से उनका विश्वास हिल गया। उन्हीं के शब्दों में, “न्याय की ब्रिटिश परम्परा को स्वेच्छाचारी शक्ति के प्रेम ने विजित कर लिया। युद्ध काल में उन्होंने भारतीय जनता से हमेशा यह कहा कि वे ब्रिटिश साम्राज्य की सहायता करें। अंग्रेजों ने जो वायदे किये उनपर उन्होंने सरल भाव से विश्वास कर लिया। किन्तु रौलट एक्ट ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि ब्रिटिश शासन भारतवर्ष पर शक्ति प्रयोग द्वारा शासन करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है।” रौलट एक्ट के तहत किसी भी व्यक्ति को मात्र सन्देह के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था तथा गुप्त रूप से मुकदमा चलाकर उसे सजा दी जा सकती थी। अंग्रेज आतंकवादी गतिविधियों को दबाने के नाम पर भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन करना चाहते थे। रौलट कीअध्यक्षता में एक कमेटी ने दो विधेयक तैयार किये जिसे ‘रौलट एक्ट’ का नाम दिया गया। इसे भारतीयों ने ‘काला कानून’ कहा। इस एक्ट के द्वारा अपील, वकील व दलील की नीति को समाप्त कर दिया। महात्मा गाँधी ने इस ‘काले ‘कानून’ को समाप्त करने की अपील की और इन्हें यदि वापिस नहीं लिया तो सत्याग्रह करने की बात कही। 30 मार्च, 1919 को सारे देश में हड़ताल रखी गयी। गाँधीजी पर कई स्थानों पर जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया परन्तु उन्होंने इसकी कोई चिन्ता किये बिना जनता से अपील की कि वे सत्य व अहिंसा का साथ न छोड़ें। महात्मा गाँधी को बन्दी बना लिया गया।

3. कम्प्यूनल अवार्ड क्या है?

उत्तर- कम्यूनल अवार्ड – द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की थी कि साम्प्रदायिक समस्या को हल करने में भारतीय असफल रहे। इसलिए सरकार इस समस्या का समाधान करेगी। इस घोषणा में मुसलमानों, सिखों, भारतीय ईसाई आदि को पृथक् प्रतिनिधित्व दिया गया। इसकी घोषणा 16 अगस्त, 1932 ई. को प्रधानमन्त्री रेम्जे मेकडोनाल्ड ने की जिसे कम्यूनल अवार्ड या साम्प्रदायिक पंचाट कहा जाता है। हिन्दू समाज से हरिजनों को अलग कर दिया गया। मूल रूप से यह घोषणा ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर काम करने वाली थी। गाँधीजी ने कहा कि अगर सरकार इस साम्प्रदायिक निर्णय की घोषण करती है तो वे आमरण अनशन करेंगे। सरकार ने इस ओर कोई भी ध्यान नहीं दिया। अतः गाँधीजी ने 28 सितम्बर, 1932 ई. से आमरण अनशन आरम्भ करने की चेतावनी दी।

4. महात्मा गाँधी के प्रारम्भिक जीवन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर- भारतीय आसमान के चमकते सितारे, मोहनदास करमचन्द गाँधी, जिन्हें भारतीय श्रद्धा से महात्मा गाँधी कहते हैं, का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई. को काठियावाड़ के पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ। गाँधीजी को राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। स्नेह से लोग उन्हें बापू भी कहते थे। महात्मा गाँधी के बचपन का नाम ‘मनु’ था। इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी था। वे राजकोट में दीवान के पद पर कार्य करते थे। करमचन्द गाँधी सत्यवादी, निर्भीक और दयावान थे। इनकी माता का नाम पुतलीबाई था और वे धार्मिक विचारों से प्रेरित सीधी-सादी महिला थीं। वे सूर्य को अर्घ्य दिये बिना अन्न ग्रहण नहीं करती थीं। 13 वर्ष की अल्पायु में गाँधीजी का विवाह कस्तूरबा नामक कन्या से सम्पन्न हो गया। गाँधीजी ने बाल विवाह के कड़वे अनुभवों का सामना भी किया। महात्मा गाँधी की प्रारम्भिक शिक्षा राजकोट के अल्फ्रेड हाईस्कूल में हुई। बचपन में गाँधीजी शर्मीले स्वभाव के थे। वकालत की शिक्षा प्राप्त करने वे इंग्लैण्ड गये। 4 सितम्बर, 1888 को बम्बई से इंग्लैण्ड रवाना हुए। लगभग 24 वर्ष की उम्र में वे दक्षिण अफ्रीका भी गये

 5. जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर- रौलट एक्ट का विरोध महात्मा गाँधी सहित देश के विभिन्न नेताओं के द्वारा किया गया। गाँधीजी तथा कुछ अन्य नेताओं के पंजाब प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगे होने के कारण वहाँ की जनता में बड़ा आक्रोश व्याप्त था। पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉ. सतपाल एवं डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध में जनता ने शन्तिपूर्वक जुलूस निकाला। 10 अप्रैल, 1919 को शहर का प्रशासन सैन्य अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल ओ. डायर को सौंप दिया। 13 अप्रैल, 1919 को वैशाली के दिन अमृतसर में लगभग शाम 4 बजे जलियाँवाला बाग में एक सभा का आयोजन हुआ और सभा हुई जिसमें करीब 20,000 व्यक्ति एकत्रित हुये। बिना चेतावनी दिये डायर ने गोलियाँ चलाने का आदेश दिया। इस बाग में केवल एक ही सँकरा दरवाजा था। इससे जनता मेंअफरा-तफरी फैल गयी। जनरल डायर को इतने पर भी सन्तोष नहीं हुआ। सरकारी आँकड़ों के हिसाब से 379 लोग मारे गये पर संख्या इससे कहीं अधिक थी। डायर के दमन चक्र से सारा देश स्तब्ध था । महात्मा गाँधी इस कार्रवाई से बहुत दु:खी हुए। इस काण्ड से पूरा देश स्तब्ध रह गया।

6. साइमन कमीशन कब और क्यों भारत आया?

उत्तर- 1919 के ‘भारत सरकार अधिनियम’ में यह व्यवस्था की गयी थी कि 10 वर्ष के बाद एक आयोग नियुक्त किया जायेगा जो इस बात की पड़ताल करेगा कि इस अधिनियम में क्या-क्या सुधार या परिवर्तन किया जा सकता है ? अत: सरकार ने समय से पूर्व ही एक कमीशन की नियुक्ति कर दी। भारतीयों में इसको लेकर असहमति थी कि इस कमीशन के सभी 6 सदस्य अंग्रेज थे। इस बात पर कड़ी आपत्ति की गई। इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे अतः ये ‘साइमन कमीशन’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे अतः यह ‘गोरे कमीशन’ के नाम से भी जाना जाता है। 3 फरवरी, 1928 के दिन कमीशन बम्बई आया। कांग्रेस ने इसका बहिष्कार किया। साइमन कमीशन जहाँ भी गया उसका काले झण्डे तथा साइमन वापस जाओ के नारों से स्वागत किया गया।

7.. गोलमेज सम्मेलन क्यों आयोजित किए गए ? इनके कार्यों की विवेचना कीजिए।

उत्तर- ब्रिटिश सरकार ने लन्दन में “गोलमेज सम्मेलनों” का आयोजन शुरू किया। 12 नवम्बर, 1930 ई. को प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन की अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रेम्जे मैकडोनाल्ड ने की। इस सम्मेलन में 89 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें ब्रिटिश के तीनों दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले 16 ब्रिटिश संसद सदस्य, ब्रिटिश भारत के 57 प्रतिनिधि जिन्हें वायसराय ने मनोनीत किया था तथा देशी रियासतों के 16 सदस्य सम्मिलित थे । काँग्रेस ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया था। गाँधी-इरविन समझौता – प्रथम गोलमेज सम्मेलन असफल रहा। 19 जनवरी, 1931 ई. को बिना किसी निर्णय के यह समाप्त कर दिया। यह स्पष्ट हो गया कि काँग्रेस के बिना कोई संवैधानिक निर्णय नहीं लिया जा सकता है। देश में उचित वातावरण बनाने के लिए इरविन ने काँग्रेस से प्रतिबन्ध हटा दिया तथा गाँधीजी तथा अन्य सारे कैदियों को जेल से रिहा कर दिया। अंतत: 5 मार्च, 1931 को गाँधी व इरविन में समझौता हो गया। इस समझौते की शर्तों में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना, तटीय क्षेत्रों में नमक उत्पादन की अनुमति देना शामिल था। दूसरा गोलमेज सम्मेलन – गाँधी-इरविन समझौते के तहत दूसरे गोलमेज सम्मेलन में काँग्रेस को भाग लेना था। कांग्रेस की ओर से एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में महात्मा गाँधी ने भाग लिया। मुस्लिम लीग से मुहम्मद अली जिन्ना ने भाग लिया। 7 सितम्बर, 1931 ई. को दूसरा गोलमेज सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। गाँधीजी 12 सितम्बर को लन्दन पहुँचे। विभिन्न दल व वर्ग अपना-अपना हित देख रहे थे। गाँधीजी ने कहा, “अन्य सभी दल साम्प्रदायिक हैं। काँग्रेस ही केवल सारे भारत और सब हितों के प्रतिनिधित्व का दावा कर सकती है।” इस दावे को तीन पार्टियों ने खुली चुनौती दे दी-
(i) मुस्लिम लीग का कहना था कि वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम करती है।(ii) राजे-रजवाड़ों का दावा था कि काँग्रेस का उनके नियन्त्रण वाले भू-भाग पर कोई अधिकार नहीं है। (iii) तीसरी चुनौती तेज-तर्रार वकील और विचारक बी. आर. अम्बेडकर की तरफ से थी जिनका कहना था कि गाँधीजी और कॉंग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। लन्दन में हुआ यह सम्मेलन भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सका। तीसरा गोलमेज सम्मेलन- भारत में जिन दिनों गाँधी जी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया जा रहा था, ब्रिटिश सरकार ने लन्दन में तीसरी सम्मेलन कान्फ्रेंस बुलाई। इंग्लैण्ड की लेबर पार्टी ने इसमें भाग नहीं लिया। काँग्रेस पार्टी ने भी इस कान्फ्रेंस का बहिष्कार किया। कुछ भारतीय प्रतिनिधि, जो सरकार की हाँ में हाँ मिलाने वाले थे उन्होंने इस सम्मेलन में भाग लिया। सम्मेलन में लिये गये निर्णयों को श्वेत पत्र के रूप में प्रकाशित किया गया और फिर इसके आधार पर 1935 का एक्ट पास किया गया।

8. महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला ?

उत्तर- गाँधी जी द्वारा राष्ट्रीय आन्दोलन को निम्नलिखित विचार, तरीकों, विचारधारा, कार्यप्रणाली, आन्दोलनों आदि की सहायता से बदला गया- (1) गाँधी जी के प्रमुख सिद्धान्त-गाँधी जी के कुछ मुख्य सिद्धान्त थे जिनके आधार पर उन्होंने विभिन्न आन्दोलनों में सफलता प्राप्त की। वे प्रमुख सिद्धान्त – (i) सत्याग्रह, (ii) अहिंसा, (iii) शांति, (iv) समाज के प्रत्येक वर्ग को सम्मान, (v) साम्प्रदायिक सद्भाव, (vi) छुआछूत एवं अस्पृश्यता का विरोध, (vii) लक्ष्य और माध्यम दोनों की श्रेष्ठता पर बल देना थे। गाँधीजी के प्रमुख हथियार सत्य एवं अहिंसा थे। सन् 1915 में भारत आने से पहले ही उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद की नीति के विरुद्ध आवाज उठायी। उन्होंने मानववाद एवं समानता को विशेष महत्व दिया। (2)गाँधी जी का जनकल्याणवादी दृष्टिकोण- गाँधीजी सन् 1915 में भारत लौट आये एवं तब से 1948 तक अपने दर्शन और विचारधारा से लोगों को विभिन्न माध्यमों से अवगत कराते रहे। उन्होंने विभिन्न जनकल्याणकारी विचार धाराओं के माध्यम से जनकल्याणकारी कार्य किये जैसे- (i) दरिद्रनारायण के प्रति हमदर्दी (उन्होंने उन्हें हरिजन कहकर पुकारा), (ii) महिलाओं का सशक्तिकरण, (iii) भारत में विभिन्न गरीब एवं मजदूर वर्ग के हित के विषय में सोचना (उन्होंने चम्पारण, अहमदाबाद एवं खेड़ा में इन वर्गों के लिए आन्दोलन चलाये), (iv) अस्पृश्यता का विरोध करना लेकिन हिन्दू समाज की एकता को बनाये रखने के लिए पृथकीकरण का विरोध करना, (v) कुटीर उद्योग-धन्धे, (vi) देश में बनी वस्तुओं के प्रयोग पर बल, (vii) लक्ष्य और माध्यम की श्रेष्ठता पर बल देना आदि। इन जनकल्याणकारी विचारधाराओं के माध्यम से गाँधीजी ने समाज में क्रान्ति ला दी ।(3) समाज के आधारभूत वर्ग का सहयोग– भारत में समाज के आधारभूत वर्ग किसान एवं मजदूर हुआ करते थे। गाँधीजी ने किसानों, मजदूरों एवं गरीब तबके के लोगों को सरकार, जमींदार, साहूकार एवं ताल्लुकदार आदि द्वारा किये गये शोषण से बचाया। गाँधी जी ने इस वर्ग का सहयोग करने के लिए बिहार के चम्पारण में नील की खेती करने वाले किसानों के सहयोग हेतु “चम्पारण सत्याग्रह” किया।(4) हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल – गाँधी जी हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रवर्तक थे। उन्होंने खिलाफत आन्दोलन में मुसलमानों का पूर्णत: सहयोग किया क्योंकि उनके अनुसार ये हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए सीमेण्ट का कार्य करने वाला आन्दोलन था। गाँधीजी के अनुसार हिन्दू तथा मुस्लिम उनकी दार्यों तथा बायीं आँख के समान थे।(5) महिलाओं का विशेष स्थान- गाँधी जी के अनुसार नारी समाज की विशेष कड़ी थी जिसका सशक्तिकरण अत्यन्त आवश्यक था। गाँधी जी स्त्री एवं पुरुषों को समान दृष्टि से देखते थे।(6) दलित वर्ग के लिए विशेष भावना-गाँधी जी ने अस्पृश्यता का घोर विरोध किया। उन्होंने समाज के दलित वर्ग को न्याय दिलाने के लिए उन्हें ‘हरिजन’ नाम दिया। उन्होंने हरिजन नाम से एक पत्रिका भी निकाली। गाँधी जी ने छुआछूत एवं अस्पृश्यता को मानवता एवं ईश्वर के विरुद्ध किये जाने वाले कार्य की संज्ञा दी।

9. असहयोग आन्दोलन की प्रकृति एवं परिणामों का वर्णन करें। ‘अथवा’  असहयोग आन्दोलन के कारणों पर प्रकाश डालिए। ‘अथवा ‘ असहयोग आन्दोलन के महत्व और प्रभावों की विवेचना कीजिए।

उत्तर- महात्मा गाँधी अंग्रेजों के अत्याचारों से सहयोगी से असहयोगी बन गये थे। रौलट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड और फिर खिलाफत आन्दोलन से ब्रिटिश सरकार से महात्मा गाँधी का भरोसा उठ गया था। सितम्बर, 1920 में असहयोग आन्दोलन के कार्य पर विचार-विमर्श करते हेतु कलकत्ता में विशेष अधिवेशन हुआ जिसके अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे। इस अधिवेशन में गाँधीजी ने प्रस्ताव पेश किया जो दिसम्बर, 1920 ई. के नागपुर अधिवेशन में स्वीकृत हो गया- असहयोग आन्दोलन की प्रकृति-महात्मा गाँधी का यह प्रथम जन आन्दोलन था। गाँधीजी जन-जन के नेता बन गये थे। असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम निम्नांकित था-असहयोग आन्दोलन की प्रकृति- महात्मा गाँधी का यह प्रथम जन आन्दोलन था। गाँधीजी जन-जन के नेता बन गये थे। असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम निम्नांकित था- 1. सरकार से प्राप्त उपाधियाँ, वैतनिक या अवैतनिक पदों को त्यागना । 2. सरकारी स्कूलों या सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों का बहिष्कार । 3. 1919 ई. के सुधार एक्ट के अन्तर्गत होने वाले चुनावों का बहिष्कार करना । 4. सरकार के सभी न्यायालयों का बहिष्कार करना । 5. विदेशी माल का बहिष्कार करना । 6. सभी सरकारी या अर्द्ध-सरकारी समारोहों का बहिष्कार करना । 7. मेसोपोटामिया में सैनिक क्लर्क या मजदूर के रूप में काम करने से , इंकार करना । 8. मद्यपान का निषेध करना । 9. सरकार के करों को न देना। 10. सैनिक कर्मचारियों द्वारा विदेशों में नौकरी करने से इंकार करना । इस आन्दोलन में रचनात्मक पक्ष पर भी ध्यान दिया गया। असहयोग आन्दोलन के परिणाम- इस आन्दोलन के परिणाम अत्यन्त दूरगामी सिद्ध हुए- 1. यह एक जन-आन्दोलन था। इसमें बड़े से बड़े और छोटे से छोटे व्यक्ति ने भाग लिया।2. स्वदेशी आन्दोलन विशेष रूप से खादी चरखे से आत्म-विश्वास की भावना का विकास हुआ। 3. इस आन्दोलन में सभी पक्षों पर जिनमें शिक्षा, आर्थिक व सामाजिक सभी पर समान जोर दिया गया था। 4. ब्रिटिश सरकार का भय अब जनता के मन से निकल गया। 5. पहली बार महिलाओं ने जोरदार ढंग से राष्ट्रीय आन्दोलन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस आन्दोलन का महत्व व परिणाम जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में इस प्रकार है- “गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन ने आत्म-निर्भरता तथा शक्ति संचय का पाठ पढ़ाया। सरकार भारतीयों के ऐच्छिक अथवा अनैच्छिक सहयोग पर निर्भर करती है और यह सहयोग नहीं दिया गया तो सरकार का सम्पूर्ण ढाँचा कम-से-कम सिद्धान्त लड़खड़ा जायेगा। सरकार पर दबाव डालने का यही प्रभावशाली ढंग है। यही कारण था कि असहयोग का कार्यक्रम और गाँधीजी की असाधारण प्रतिभा ने देशवासियों को अपनी ओर आकर्षित किया और उनमें आशा का संचार किया।

 11. भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में महात्मा गाँधी के योगदान का वर्णन कीजिए। ‘अथवा’  भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में महात्मा गाँधी के योगदान किस प्रकार महत्वपूर्ण थे ?

उत्तर- आधुनिक भारत के इतिहास में महात्मा गाँधी को सबसे आदरणीय स्थान प्राप्त है। यह उनके आगमन का ही परिणाम था कि भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन को स्वतन्त्रता की ओर ले जाने वाला एक सही और सीधा मार्ग प्राप्त हुआ। उन्होंने अहिंसा और सत्यागृह के द्वारा शक्तिशाली अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ली और अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी द्वारा किया गया एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट का विरोध उनका ऐसा पहला आन्दोलन था जो अहिंसा के सिद्धान्तों पर चलाया गया और जिसकी वजह से दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार भारतीयों के समक्ष झुकने को बाध्य हुई। 1917 ई. में चम्पारन के कृषकों को उन्होंने नील उत्पादक गोरों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। 1917 ई. में ही अहमदाबाद के मिल मालिकों – तथा श्रमिकों के मध्य उत्पन्न प्लेग बोनस के विवाद को हल करने में उन्होंने अपना योगदान किया। 1918 ई. में खेड़ा के किसान फसल खराब होने के कारण मुसीबत में थे। गाँधीजी ने उनकी मालगुजारी की समस्या हल करायी ।1919 ई. में रौलेट एक्ट के लागू होने से गाँधी जी को बड़ी ठेस पहुँची और उन्होंने शीघ्र ही अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निश्चय कर लिया। इस आन्दोलन में धनी, निर्धन शिक्षित, अशिक्षित, कृषक, श्रमिक, मध्यम वर्ग, स्त्रियों और विद्यार्थियों सभी ने भाग लिया। परन्तु हिंसक घटनाएँ हो जाने के कारण गाँधीजी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा। 1930 ई. में गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ किया क्योंकि सरकार स्वतन्त्रता के प्रश्न पर उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण अपनाये हुए थी। उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान डांडी यात्रा की और नमक कानून को भंग किया। गाँधीजी ने अपना अन्तिम आन्दोलन ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन चलाया क्योंकि अब तक उन्हें स्पष्ट हो गया था कि अंग्रेज किसी-न-किसी प्रकार से भारत पर अपना शिकंजा बनाये रखना चाहते थे। भारत के लाखों नर-नारी गाँधीजी के साथ हो गये। यह आन्दोलन यद्यपि असफल रहा था लेकिन यह भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की चरम सीमा था। यह हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी के द्वारा किये गये उल्लेखनीय योगदानों का ही परिणाम था कि 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत स्वतन्त्र हुआ।

 12. सविनय अवज्ञा आन्दोलन पर टिप्पणी लिखें।

उत्तर – महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय जनता ने ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ प्रारम्भ किया। आन्दोलन का आरम्भ करते हुए 12 मार्च, 1930 ई. को गाँधी जी अपने 79 कार्यकर्त्ताओं के साथ साबरमती आश्रम से समुद्र तट पर स्थित दांडी की ओर गये। 241 मील की यात्रा समाप्ति में 24 दिन का समय लगा। यह एक ऐतिहासिक यात्रा थी। सुभाषचन्द्र बोस ने इसकी तुलना नेपोलियन के एल्बा से लौटने पर पेरिस यात्रा से की। बॉम्बे क्रानिकल समाचार पत्र ने लिखा । “मनुष्य जाति के हृदय में राष्ट्रभक्ति की लहर ने इतने जोर से कभी हिलोर नहीं ली थी जो इस अवसर पर ली। भारत के राष्ट्रीय स्वाधीनता के इतिहास में इसे महान आन्दोलन का आरम्भ कहा जायेगा।” 6 अप्रैल को गाँधी जी ने नमक कानून तोड़ा और जनता के समक्ष यह कार्यक्रम प्रस्तुत किया- 1. हर गाँव में नमक कानून तोड़ा जाये । 2. शराब, अफीम, विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना दिया जाये । 3. सरकारी संस्थाओं का त्याग करना । 4. सरकार को कर नहीं दिये जायें। 5. विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाये। इस तरह 4 मई, 1930 को गाँधीजी गिरफ्तार कर लिये गये। सारे देश में विदेशी कपड़ों की होली जली, स्त्रियों ने शराब व नशीले पदार्थों की दुकानों पर धरना दिया। सरकारी संस्थानों का बहिष्कार किया गया। सरकारी दमनकारी काफी तीव्र था परन्तु सरकार के दमनचक्र के बावजूद आन्दोलन पूरे जोश के साथ चलता रहा ।

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