शासक और इतिवृत्त मुग़ल दरबार

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Class 12 History Chapter 9 Subjective Questions in Hindi

1. मुगलकालीन केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।

उत्तर- आइन-ए-अकबरी से अकबरकालीन प्रशासन व्यवस्था का वर्णन मिलता है। तुर्क मंगोल सिद्धान्त मुगल राजत्व का सिद्धान्त था। मंगोल राजत्व का विभिन्न जातियों का सहयोग लेने सम्बन्धी सिद्धान्त अकबर ने राजपूतों का सहयोग लेकर अपनाया। हुमायूँ ने तुर्क राजत्व के सिद्धान्त का अनुसरण करते हुये बादशाह को पृथ्वी पर ईश्वर की छाया (जिल्ले इलाही) माना। अबुल फजल ने अपने इतिवृत्त ‘अकबरनामा’ में बादशाह को खुदा से निकलने वाली रोशनी (फर्द-ए- इज्दी) माना जिसे स्वयं ईश्वर ने पृथ्वी पर भेजा है। राज्य प्रमुख होने के साथ-साथ बादशाह धार्मिक प्रमुख भी था । बादशाह प्रधान सेनापति, प्रधान न्यायाधीश एवं इस्लाम का संरक्षक था। वकील – इसे बाद में वजीर कहा गया। यह केन्द्रीय सरकार के समस्त विभागों का अध्यक्ष था । अकबर ने बैरम खाँ के पश्चात् इस पद का अन्त कर दिया। दीवान या वित्तमंत्री – आर्थिक विषयों में यह बादशाह का प्रतिनिधि था । अकबर के समय मुजफ्फर खाँ एवं टोडरमल इस पद पर नियुक्त किये गये । मीर बख्शी – यह सेना सम्बन्धी सभी कार्य देखता था। यह सेना, मनसबदार एवं घोड़ों सम्बन्धी व्यवस्था देखता था । प्रधान काजी- यह प्रांत, जिला एवं नगर के काजियों की नियुक्ति करता था। फौजदारी मुकदमों को देखता था ।

2. अकबर को राष्ट्रीय शासक क्यों कहा जाता है? 

उत्तर- मध्यकालीन भारत में इस्लामी शहंशाही (एकछत्र) के संकुचित दृष्टिकोण को त्यागने वाला अकबर पहला व्यक्ति था । उसका अपना सिद्धान्त था कि राजा अपनी प्रजा को, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग अथवा धर्म का ही क्यों न हो, पिता होता है। उसके शासन काल में दास प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, वृद्ध विवाह आदि को रोकने का प्रयत्न किया गया। अकबर ने जिन उदार और नवीन सिद्धान्तों को जन्म दिया, उनमें सबसे प्रमुख हिन्दू और मुसलमानों को निकट लाने का था । उसने प्राचीन हिन्दू आदर्श का पुनरुद्धार किया और शासनएवं प्रजा के बीच पैदा हुए भेदभाव को अधिकाधिक क्रम करने की भरसक चेष्टा की। केवल राजनीतिक एकता ही उसका आदर्श नहीं था वरन् वह सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक एकता के आधार पर उसकी नींव भी दृढ़ करना चाहता था। अकबर के अलावा तत्कालीन संसार का अन्य कोई भी सम्राट इतने उच्च आदर्शों से प्रेरित नहीं था। यही कारण है कि अकबर को राष्ट्रीय शासक कहा जाता है।

 3. अकबर के नवरत्नों के नाम लिखिए।

उत्तर- अकबर के नवरत्न- पढ़ा-लिखा न होने के बावजूद भी अकबर कला एवं साहित्य का संरक्षक था। उसके दरबार में विभिन्न विधाओं के विशेषज्ञ थे जिन्हें अकबर के दरबार के नौरत्न कहा जाता था।
(1) अब्दुल रहीम खान-ए-खाना – ये बैरम खाँ के पुत्र थे। फारसी, तुर्की तथा हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान थे। बाबरनामा का इन्होंने तुर्की से फारसी में अनुवाद किया था। (2) हकीम हुमाम- ये सम्राट की पाठशाला के प्रधान थे। (3) मुल्ला दो प्याजा – ये वाक्पटुता के लिये अत्यधिक प्रसिद्ध थे । प्याज के अत्यधिक शौकीन थे। (4) अबुल फजल – अकबरनामा के लेखक एवं अकबर के मित्र थे । (5) फैजी – अबुल फजल के भाई एवं शेख मुबारक के पुत्र थे। गणित के लीलावती ग्रन्थ का फारसी में अनुवाद किया। (6) तानसेन (1535-1592 ई.) – ये अकबर के दरबार के प्रख्यात – गायक थे।(7) राजा मानसिंह- ये अकबर के प्रख्यात सेनापति थे ।(8) राजा टोडरमल-अकबर ने वित्तमंत्री नियुक्त किया। अकबर के काल में भूमि सुधार हेतु इन्हें जाना जाता है। (9) बीरबल – बीरबल अत्यधिक हाजिरजवाब एवं वाकपटु थे। अकबर ने इन्हें कविराज की उपाधि प्रदान की थी।

4. मुगलकालीन चित्रकला की क्या विशेषताएँ थीं ?

उत्तर- मुगल सम्राट बाबर, हुमायूँ, अकबर एवं जहाँगीर को चित्रकला में विशेष रुचि थी। जहाँगीर के काल में तो चित्रकला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयी। हुमायूँ फारस से अपने साथ दो चित्रकार मीर सैयद अली एवं ख्वाजा अब्दुसमद को लाया था। अकबर ने काबुल में चित्रकला सीखी जहाँगीर ने हिराती चित्रकार अकारिजा के नेतृत्व में एक चित्रशाला आगरा में आरम्भ की। अकबर मात्र अपने चित्र बनवाता था मगर जहाँगीर ने अपने चित्रों के अलावा शाही परिवार के सदस्यों एवं उच्चाधिकारियों के छवि चित्र भी बनवाये । विशनदास, मुराद, मंसूर, मनोहर एवं गोवर्धन आदि जहाँगीरकालीन प्रमुख चित्रकार थे । उस्ताद मंसूर ने पशु-पक्षियों एवं फूलों के चित्र बनाये। जहाँगीर चित्रकला का इतना बड़ा पारखी था कि वह चित्र देखकर बता सकता था कि इस चित्र में कौन-सा भाग किस चित्रकार द्वारा बनाया गया है? शाहजहाँ के काल में चित्र निर्माण में चमकदार रंगों का प्रयोग होने लगा, परिणामस्वरूप चित्रों की सजीवता में कमी आयी। इसके समय मीर हाशिम, अनूप प्रमुख चित्रकार था । औरंगजेब के समय में चित्रकला का पतन हो गया।

5. अकबरनामा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

उत्तर- अकबरनामा – अबुल फजल ने अकबर की आकांक्षा की प्रत्येक कसौटी पर खरा उतरने के उद्देश्य से अकबरनामा का सृजन किया। इसका तृतीय खण्ड ‘आइन-ए-अकबरी ‘सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसमें अकबरकालीन छोटी-से-छोटी सूचना दी गई है।अकबरनामा का अंग्रेजी अनुवाद श्रीमती हेनरी बेबरीज ने किया। आइन-ए- अकबरी का अंग्रेजी अनुवाद ब्लाकमैन एवं जैरेट ने किया है। अबुल फजल ने ‘अकबरनामा’ में अकबर के पूर्व का बाबर एवं हुमायूँकालीन इतिहास लिखने के लिये गुलबदन बेगम के हुमायूँनामा का भी उपयोग किया। राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं कि अबुल फजल में बुद्धि एवं तर्क का अद्भुत संयोग था। राहुल जी ने अबुल फजल की तुलना कौटिल्य से की है तथा उनके ग्रन्थ ‘आइन-ए-अकबरी’ को वे अर्थशास्त्र के समान महत्वपूर्ण बताते हैं। राहुल सांकृत्यायन बताते हैं कि आइन-ए-अकबरी में प्रत्येक सूबे, सरकार, परगने का विस्तृत विवरण एवं आँकड़े दिये हैं। उनका क्षेत्रफल, उनका इतिहास, पैदावार, आमदनी, खर्च, प्रसिद्ध स्थान, नदियाँ, नहरें, नाले-चश्मे आदि सभी का इसमें उल्लेख है। जिस गजेटियर की महत्ता 19वीं सदी में अंग्रेजों ने समझी, उस अकबरकालीन गजेटियर को आइन-ए-अकबरी में अबुल फजल ने साढ़े तीन सौ वर्ष पहले लिख डाला।

6. मुगलकालीन अभिजात वर्ग पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर- मुगल दरबार का एक प्रमुख स्तम्भ अधिकारियों का वर्ग था । इतिहासकारों ने उसे मुगल अभिजात वर्ग की संज्ञा दी है। मुगल अभिजात वर्ग का वर्णन एक ऐसे गुलदस्ते के रूप में किया जाता है जो बादशाह के वफादार होते थे। इस गुलदस्ते रूपी अभिजात वर्ग में प्रायः सभी धर्मों के लोग होते थे जो बादशाह के प्रति वफादार होते थे। साम्राज्य के निर्माण के आरम्भिक चरण में ही अभिजात वर्ग का आगमन मुगल शासन की ओर होने लगा था। शाहजहाँ के शासनकाल में चन्द्रभान ब्राह्मण ने अपनी पुस्तक चार चमन (चार बाग) में मुगल अभिजात वर्ग का विस्तृत वर्णन किया है। इस अभिजात वर्ग में अरब, ईरानी, तुर्की, ततार, रूसी, अबिसीनियायी, राजपूत एवं भारतीय मुस्लिम आदि सभी सम्मिलित थे। अभिजात वर्ग बादशाह के सम्मुख लोगों को मनसबदार बनाने की संस्तुति भी करता था । तजवीज वह याचिका होती थी, जिसके तहत अभिजात किसी उम्मीदवार को मनसबदार नियुक्त करने की सिफारिश करता था। ‘तैनात-ए-रकाब’ दरबार में नियुक्त अभिजातों का एक सुरक्षित दल था। इसे आवश्यकतानुसार किसी भी प्रान्त में अथवा सैन्य अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था ।

7. विश्व के सात आश्चर्यों के नाम लिखिए।

उत्तर- विश्व के सात आश्चर्य निम्नवत् हैं-
1. ताजमहल, आगरा, भारत (1632-1648 ई.) ।
2. चिचेन इन्त्जा पिरामिड, मैक्सिको (सन् 800 ई. पू.) ।
3. क्राइस्ट रिडीमर, ब्राजील (1931 ई.) ।
4. चीन की महादीवार (220 ई. पू.) । 5. माचू पिच्चू, पेरु ( 1460-1470 ई.)।
6. पेट्रा, जार्डन (9 ई. से 40 ई.) ।
7. कोलोसियम, इटली (70-82 ई.)

8. मुगल दरबार में अभिवादन के कौन-से तरीके थे?

उत्तर- दिल्ली सल्तनत के शासक बलबन (1265-1287 ई.) ने फारसी परम्परा का अनुकरण करते हुये दरबार में सिजदा (घुटने पर बैठकर सिर झुकाना) एवं पायबोस (सुल्तान के चरणों को चूमना) प्रथाएँ लागू कीं तथा धूमधाम के साथ फारसी नववर्ष का त्यौहार नवरोज मनाना भी आरम्भ किया था। सिजदा प्रथा मुगल दरबार में भी लागू थी। इसके तहत दण्डवत् भी लेटा जाता था। शाहजहाँ इस प्रथा को इस्लामिक धर्म के अनुकूल नहीं समझता था ।उसने सिजदा के स्थान पर जमीबोस प्रथा आरम्भ की। इसका अर्थ जमीन चूमना था। कुछ समय बाद इसे भी बन्द कर उसने चार तसलीम प्रथा आरम्भ की। कोर्निश – कोर्निश भी अभिवादन का एक तरीका था। इसमें दरबारी दायें हाथ की तलहटी को सिर पर रखकर आगे की ओर सिर झुकाते थे ।

 9. मुगल काल में निर्मित चार स्थापत्य कलाकृतियों के नाम लिखिए।

उत्तर- शाहजहाँ का काल मुगलकालीन स्थापत्य कला का स्वर्ण युग माना जाता है। आगरा के किले में 1628 ई. में ‘ दीवाने आम’, 1637 ई. में ‘दीवाने खास’ एवं 1654 में ‘मोती मस्जिद’ का निर्माण कराया गया। शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने आगरा में जामा मस्जिद का निर्माण कराया। 1638 ई. में शाहजहाँ ने दिल्ली में यमुना नदी के तट पर नवीन राजधानी शाहजहाँनावाद का निर्माण कराया। 1648 में मुगल राजधानी यहीं स्थानान्तरित कर दी गयी । यहीं पर लाल किले का निर्माण कराया गया। इसका शिल्पकार एवं अनुवाद कार्य कराया गया। इस क्रम में हेनरी बेबरीज ने अकबरनामा एवं हुमायूँनामा का अनुवाद कर दिया। बादशाहनामा के मात्र कुछ अंशों का ही अनुवाद अभी तक हो पाया है। हमने मुगलकाल की अधिकांश जानकारी इन अनुवादों द्वारा ही प्राप्त की।

10. अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना कीजिए ।

 उत्तर- अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनायी। 1562 ई. में अकबर ने युद्ध बन्दियों को दास बनाने की प्रथा पर रोक लगायी। 1563 ई. में अकबर ने तीर्थ यात्रा कर बन्द कर दिया। दार्शनिक व धार्मिक प्रश्नों पर वाद-विवाद करने के लिये अकबर ने फतेहपुर सीकरी में 1575 ई. में इबादतखाना का निर्माण कराया। यहाँ शेख अब्दुल नवीं एवं अब्दुल्ला सुल्तानपुरी के मध्य होने वाले अशोभनीय झगड़ों को देखकर 1579 ई. में अकबर ने महजर की घोषणा की। इसके द्वारा किसी भी विवाद पर अकबर की राय ही अन्तिम राय होगी। अकबर ने अपना ज्ञान बढ़ाने के लिये विभिन्न धर्मों के विद्वानों से उनके धर्म की जानकारी ली।

11. मुगल शासक अकबर की उपलब्धियों का वर्णन करें।

उत्तर- अकबर का जन्म 15 अक्टूबर, 1542 ई. को सिन्ध में अमरकोट के राजा वीरसाल के महल में हुमायूँ की पत्नी हमीदा बानो बेगम से हुआ था । अकबर के जन्म के समय हुमायूँ की दशा दयनीय थी। 24 जनवरी, 1556 ई. में पुस्तकालय की सीढ़ी से गिरने के कारण हुमायूँ की मृत्यु का समाचार अकबर को प्राप्त हुआ। 14 फरवरी, 1556 ई. को अकबर को बादशाह घोषित कर दिया गया। इस समय अकबर की आयु मात्र 14 वर्ष थी, अतः बैरम खाँ ने उसके संरक्षक के रूप में शासन किया। 1562 ई. में अकबर ने स्वतन्त्र रूप से शासन करना आरम्भ किया।अकबर की उपलब्धियाँ (1) गोंडवाना, मालवा एवं जौनपुर विजय- अकबर ने 1564 ई. में गोंडवाना (म. प्र.) पर विजय प्राप्त की। गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने कड़ा संघर्ष किया और अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुईं। 1561 ई. में मालवा में संगीत प्रेमी बाजबहादुर को हराया। जौनपुर को भी जीता । (2) राजपूताना पर विजय – अकबर ने राजपूतों की शक्ति को पहचान कर उन्हें अपनी अधीनता में लाने का प्रयास किया। कुछ से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कियेतो कुछ ने स्वत: ही समर्पण कर दिया, कुछ राजपूत शासकों ने संघर्ष भी किया। सर्वप्रथम आमेर (जयपुर) के कछवाहा राजपूत राजा भारमल की पुत्री हर्काबाई से अकबर ने विवाह किया। भारमल के पुत्र भगवानदास एवं मानसिंह को अकबर ने शाही सेना में लिया। 1570 ई. में मारवाड़, बीकानेर एवं जैसलमेर ने मुगल अधीनता स्वीकार कर ली। हल्दीघाटी का युद्ध (1576 ई.) – मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर 1568 ई. में मुगलों ने अधिकार कर लिया। 1572 ई. में राजा उदय सिंह की मृत्यु के बाद राणा प्रताप ने चित्तौड़ पर पुन: अधिकार कर लिया। 1576 ई. में हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप को परास्त होना पड़ा। 1597 ई. में राणा प्रताप की मृत्यु हो गई। (3) गुजरात विजय – 1572 ई. में अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त की और समुद्र के प्रथम बार दर्शन किये। गुजरात विजय के उपलक्ष्य में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में बुलन्द दरवाजे का निर्माण कराया। (4) काबुल एवं कन्धार विजय – 1581 ई. में अकबर ने काबुल पर एवं 1595 ई. में कन्धार पर विजय प्राप्त की। 1586 ई. में अकबर ने कश्मीर पर भी विजय प्राप्त कर ली थी। (5) अहमदनगर पर विजय – अहमदनगर के अल्पवयस्क शासक की संरक्षक चाँदबीबी के प्रबल प्रतिरोध का सामना मुगलों को करना पड़ा। 1600 ई. में अन्तत: अहमदनगर पर अधिकार कर लिया गया। इसके बाद अकबर ने असीरगढ़ (खानदेश) की विजय 1601 ई. में की। खानदेश का नाम अकबर ने धन देशा रखा। इस प्रकार अकबर हिन्दूकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सफल रहा।

 12. अकबर की मनसबदारी व्यवस्था की विवेचना कीजिए ।’अथवा ‘ मनसबदारी व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।

उत्तर – चंगेज खाँ ने अपनी सेना का गठन दशमलव पद्धति पर किया था। उसकी सेना की सबसे छोटी इकाई 10 एवं बड़ी इकाई 10,000 थी। भारत में मुगल सम्राट अकबर ने भी मनसबदारी प्रथा में इसी दशमलव पद्धति को अपनाया । अकबर ने 1573-74 ई. में मनसबदारी प्रणाली का आरम्भ किया । जात एवं सवार – मनसबदार को दो पद जात एवं सवार प्रदान किये जाते थे। ब्लाकमैन के अनुसार एक मनसबदार को अपने पास जितने सैनिक रखने पड़ते थे, वह ‘जात’ का सूचक था। वह जितने घुड़सवार रखता था वह ‘सवार’ का सूचक था। 1611 ई. में जहाँगीर ने खुर्रम (शाहजहाँ) को 10,000/ 5,000 का मनसब दिया था । अर्थात् उसके पास 10,000 सैनिक एवं 5,000 घुड़सवार रहते थे। श्रेणियाँ – अबुल फजल ने अपने ग्रन्थ ‘आइन-ए-अकबरी’ में 66 मनसबों का उल्लेख किया है । परन्तु वह मात्र 33 श्रेणियों का उल्लेख करता है। मनसब में 3 श्रेणियाँ थीं- प्रथम श्रेणी – यदि जात मनसब 5,000 एवं सवार मनसब भी 5,000 है तो यह प्रथम श्रेणी का मनसबदार होता था । द्वितीय श्रेणी- इसमें जात मनसब 5,000 एवं सवार मनसब 2.500 से अधिक होता था। तृतीय श्रेणी – इसमें जात मनसब 5,000 एवं सवार मनसब 2,500 से कम होता था ।मनसबदारों की नियुक्ति, पदोन्नति, पदच्युति सम्राट द्वारा ही की जाती थी। 10 से 500 तक का मनसबदार ‘मनसबदार’ कहलाता था। 500 से 2.500 तक का मनसबदार ‘अमीर’ कहलाता था। 2.500 से अधिक का मनसबदार ‘अमीर-ए-उम्दा’ कहलाता था।
जहाँगीर के काल में दु-अस्पा एवं सि अस्पा प्रणाली लागू हुई। इसके तहत सवार पद में वृद्धि होती थी। दु-अस्पा का मतलब सवार के पद के दुगुने घोड़े से था । सि अस्पा का आशय सवार के पद के तीन गुने घोड़े से था । एक अस्पा को सवार के पद के बराबर घोड़े रखने होते थे। मनसबदारों को वेतन में नकद रकम मिलती थी। कभी-कभी वेतन में जागीर भी दी जाती थी। इस प्रकार मनसबदारी व्यवस्था मुगल सेना का प्रमुख आधार बन गयी।

13. अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना करें। ‘अथवा ‘ दीन-ए-इलाही से आप क्या समझते हैं?’अथवा’ दीन-ए-इलाही पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

 उत्तर – अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनायी। 1562 ई. में अकबर ने युद्ध बन्दियों को दास बनाने की प्रथा पर रोक लगायी। 1563 ई. में अकबर ने तीर्थ यात्रा कर बन्द कर दिया। दार्शनिक व धार्मिक प्रश्नों पर वाद-विवाद करने के लिये अकबर ने फतेहपुर सीकरी में 1575 ई. में इबादतखाना का निर्माण कराया। यहाँ शेख अब्दुल नवी एवं अब्दुल्ला सुल्तानपुरी के मध्य होनेवाले अशोभनीय झगड़ों को देखकर 1579 ई. में अकबर ने महजर की घोषणा की। इसके द्वारा किसी भी विवाद पर अकबर की राय ही अन्तिम राय होगी । अकबर ने अपना ज्ञान बढ़ाने के लिये विभिन्न धर्मों के विद्वानों से उनके धर्म की जानकारी ली- (1) हिन्दू धर्म – पुरुषोत्तम एवं देवी से हिन्दू धर्म की जानकारी प्राप्त की । हिन्दू धर्म से प्रभावित होकर वह माथे पर तिलक लगाने लगा। (2) पारसी धर्म – दस्तूर मेहर जी राणा से पारसी धर्म की जानकारी ली। इससे प्रभावित होकर उसने सूर्य की उपासना आरम्भ की। दरबार में हर समय अग्नि जलाने की आज्ञा दी। (3) जैन धर्म की शिक्षा आचार्य शांतिचन्द एवं हीर विजय सूरी से ली। (4) सिख धर्म से प्रभावित होकर पंजाब का एक वर्ष का कर माफ किया। (5) ईसाई धर्म – ईसाई धर्म से प्रभावित होकर आगरा एवं लौहार में गिरजाघर का निर्माण कराया।
19 फरवरी, 1580 ई. में प्रथम जेसुइट मिशन फतेहपुर सीकरी आया । इसमें फादर एक्वैविवा एवं एण्टोनी मानसटेर थे। दूसरा जेसुइट मिशन 1591 ई. में लाहौर आया। तृतीय मिशन भी लाहौर में 1595 ई. में आया। सत्य की खोज करते-करते उसने पाया कि सभी धर्मों में अच्छाइयाँ हैं मगर कोई भी धर्म सम्पूर्ण नहीं है। अतः उसने 1581 ई. में स्वयं का एक धर्म दीन-ए-इलाही चलाया। आर्शीवादी लाल श्रीवास्तव ने लिखा है कि इस धर्म के द्वारा वह हिन्दू व मुस्लिम धर्म को मिलाकर साम्राज्य में राजनीतिक एकता कायम करना चाहता था। उस धर्म को स्वीकार करने वाला एकमात्र हिन्दू बीरबल था । 1564 ई. में अकबर ने जजिया कर बन्द कर दिया था। यह समस्त भारत की गैर-मुस्लिम जनता से वसूला जाता था।

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