Hindi Class 12 Chapter 5 Subjective

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कवित्त

 1. शिवाजी की तुलना भूषण ने किन-किन से की है?

उत्तर– भूषण ने शिवाजी की तुलना सर्वप्रथम इन्द्र से की है, फिर बड़वाग्नि से की है, रघुकुल राजा राम तथा पवन और शिव से भी की है। साथ ही उन्हें परशुराम के समान भी बताया गया है। दावाग्नि, चीता, मृगराज, तेज प्रकाश और कृष्ण से भी उनकी तुलना की गयी है।

2. शिवाजी की तुलना भूषण ने मृगराज से क्यों की है ?
उत्तर– मृगराज जंगल का राजा है पर उसका सामना कोई भी नहीं कर सकता । भूषण कहते हैं कि गजराज (हाथी) विशाल काय है, भारी है, शक्ति भी उसमें बहुत अधिक ही है, फिर भी वह मृगराज के हाथों मारा जाता है। मृग (पशु) समूह बनाकर रहते हैं, वह मात्र अकेला होता है, पर वह मृगों के झुण्ड पर अकेला ही काफी होता है उसकी शक्ति चुस्ती-फुर्ती, विलक्षण है। सब कुछ इतना विलक्षण है कि किसी क्षेत्र में भी उसका सामना करना कठिन होता है। वह सदा विजयी ही रहता है यही विशेषता महाराज शिवाजी की भी है वह भी महान वीर, रण कौशल निपुण, साहसी, पराक्रमी थे। पूरे इतिहास में वह ही एकमात्र अपराजित वीर हैं।

3. छत्रसाल की तलवार कैसी है? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
 छत्रसाल की तीक्ष्ण धार वाली चमचमाती तलवार जब म्यान से निकलती थी तो वह प्रलय के सूर्य की तीव्र किरण के समान प्रतीत होती है। वह शत्रुदल के हाथियों को उसी प्रकार विदीर्ण कर देती है जिस प्रकार रवि की किरणें सघन अन्धकार को विदीर्ण कर देती हैं। तीव्र गति से चलने वाली यह तलवार शत्रुओं के कण्ठ पर लपककर नागिन-सी लिपट जाती है और देखते ही देखते उनके मुण्डों को धड़ से अलग कर देती है। उनके इस सिरच्छेदन का कार्य ऐसा प्रतीत होता है मानो वह भगवान रुद्र को मुण्डमाल अर्पित करके उन्हें रिझाकर प्रसन्न करने का प्रयास कर रही हो। यही विशेषता है छत्रसाल की तलवार की।

 4. नीचे लिखे अवतरणों का अर्थ स्पष्ट करें- लागति लपकि कण्ठ बैरिन के नागिन सी, रुद्रहि रिझाव दे दे मुंडन की माल को ।उत्तर- प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ भूषण के काव्य छत्रसाल दशकसे अवतरित हैं जिनमें छत्रसाल की तीक्ष्ण तलवार की महिमा का बखान किया जा रहा है। व्याख्या – छत्रसाल की तीक्ष्ण लपलपाती तलवार की प्रशंसा करते हुए भूषण कहते हैं कि यह (छत्रसाल की तलवार) तलवार शत्रु के गले में तेज गति से नागिन के समान लिपट जाती है और देखते ही देखते उसके सिर को धड़ से अलग कर देती है। उनका यह सिरच्छेदन ऐसा प्रतीत होता है मानो यह भगवान रुद्र को मुण्डों की माला चढ़ा-चढ़ाकर रिझाने का प्रयास कर रही हो । विशेष – (1) छत्रसाल की तलवार की महत्ता और विशेषता का बखान किया गया है। (2) अलंकार – (1) अनुप्रास – लागति-लपकि‘, ‘रुद्रहि रिझावै ‘ ‘दे दे‘, ‘मुंडन की माल को ‘ (ii) उपमा- नागिन सी‘, ‘मुण्डन की माला को‘, (iii) उत्प्रेक्षा- मुंडन की माला सी

5.प्रतिभर कटक कटीले केते काटि काटि, कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को ।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ भूषण द्वारा रचित छत्रसाल दशक से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने महाराज छत्रसालशौर्य, पराक्रम, युद्ध-कौशल की व्यंजना की है। यहाँ उनकी तलवार की महत्ता व्यंजित है । व्याख्या – महाराज छत्रसाल की तलवार की धार बड़ी पैनी व तेज है। वह कटीले प्रतिपक्षी सैन्य दल के प्रत्येक योद्धा व काटती चली जा रही है और न जाने कितने वीरों को काट-काट कर धराशायी कर दिया है। है छत्रसाल ! तेरी करवाल किलक-किल कर काल को कलेऊ करा रही है, उसके आगे (काल) मुण्ड को परस रही है। विशेष- (1) छत्रसाल के शौर्य, पराक्रम, रण कौशल की बड़ी प्रभावी व्यंजना की गयी है। (2) उनकी तलवार के महत्वपूर्ण कार्यों का बखान है। (3) भाषा प्रवाहमयी ओजगुण समन्वित है। (4) अलंकार- (i) अनुप्रास – म्यान- मयूरतम-तोम लागति-लपकि रुद्राहि-रिझावें‘, ‘दै- दै‘, ‘मुण्डन की माल ‘छितिपाल छत्रसाल‘, ‘कहाँ-करवालकाँ (ii) उपमा- प्रलैभानु कैंसी‘, ‘नागिन-सी‘, ‘कालिका-सी (iii) रूपक – तम-तमि‘, ‘गयंदन का जाल (iv) उत्प्रेक्षा- कलेऊ देति काल को ।

6.भूषण रीतिकाल की किस धारा के कवि हैं? वे अन्य रीतिकालीन कवियों से कैसे विशिष्ट हैं?
उत्तर- भूषण रीतिकाल की रीति सिद्ध काव्यधारा के कवि हैं। उन्होंने आचार्यत्व को महत्व नहीं दिया, स्वच्छन्द काव्य रचनाकी। रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं- श्रृंगार वर्णन और आचार्यत्व । भूषण इन दोनों ही प्रवृत्तियों से दूर रहे, रीतिकाल काव्य में राष्ट्रीय चेतना का अभाव ही रहा है। मात्र बिहारी का एक दोहा मिलता है- स्वारथ सुकृतन न श्रम वृथा देखि बिहंग विचारि । बाज पराये पानि पर तू पच्छनि न मार ॥ यदि ही वे इसे छोड़ दें तो राष्ट्र की ओर इन कवियों का ध्यान ही नहीं गया। भूषण ने स्वयं को राष्ट्रभक्त सिद्ध कर दिखाया अतः भले रीतिकाल के हैं पर उन प्रवृत्तियों से सर्वथा मुक्त हैं।

 7. आपके अनुसार दोनों छन्दों में अधिक प्रभावी कौन है और क्यों ?
उत्तर- दोनों ही पद बड़े प्रभावी और सशक्त हैं। एक पद में महाराज शिवाजी के शौर्य, पराक्रम और रण कौशल की व्यंजना है। दूसरे में महाराज छत्रसाल की तलवार के पराक्रम की चर्चा है। दोनों वीरों का यश गान है और दोनों ही राष्ट्र नायक हैं। तुलनात्मक दृष्टि से मूल्यांकन व्यक्ति की अपनी रुचि विशेष पर अधिक निर्भर करता है। यहाँ भी यही स्थिति है। दोनों ही महावीर थे, राष्ट्रनायक थे और दोनों का वर्णन बड़ा सजीव है। प्रथम छन्द में पौराणिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण वह अधिक प्रभावशाली बन पड़ा है।

 

 

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