Hindi Class 12 Chapter 13 Subjective

12th Hindi Chapter 13 Subjective : Here you can find class 12th hindi 100 marks Subjective questions for board exam 2024.गाँव का घर subjective questions is very important for bihar board exam 2024. 

गाँव का घर

1.कवि की स्मृति में घर का चौखटइतना जीवित क्यों है ?

उत्तर – कवि जहाँ पला है, वहाँ से उसको लगाव है, साथ ही वह वातावरण उसकी चेतना में समाया हुआ है और वह घर उसकी जन्मभूमि का एक महत्वपूर्ण अंग है। यही कारण है कि यह चौखट इतना जीवित है। बचपन भोला होता है, उसके साथ जुड़ी स्मृतियाँ भी बावरी होती हैं पर यह उन्हें ही सताती हैं जिनका एक हिस्सा अपने अतीत से जुड़ा रहता है। जमाने की चहल-पहल, वैभव-विलास का पल्ला पकड़कर जो अपनी बाँह स्मृतियाँ से छुड़ा लेते हैं, उनको कुछ भी याद नहीं आता, कुछ भी नहीं सालता । कवि बीतरागी नहीं है। वह सामाजिकता का निर्वाह करता है, उसका पक्षधर है। यही कारण है उसकी चौखट पर टिकुली साटने हेतु सहजन के पेड़ से छुड़ाई गोंद चिपकी है। ग्वाला दादा, बुजुर्ग का खड़ाऊ खटकाता एक अदृश्य पर्दे की दीवार से पुकारता किसी का वह बिना नाम लिये कितना कोमल एहसास है? क्या यह भुलाया जा सकता है। यही नहीं और भी ढेर सारी कोमल स्मृतियाँ उसकी स्मृति से उलझ गयी हैं, कारण उसका लगाव ही है, वह आज भी जीवित है, शहर की चकाचौंध उसका रंग फीका नहीं कर पायी है।

2.पंच परमेश्वरके खो जाने को लेकर कवि चिन्तित क्यों है?

उत्तर – पूँजी बढ़ी, रोशनी आयी, चकाचौंध फैली, टी. वी. आया और गाँव की संस्कृति जो मूल्य आधारित थी, उस चकाचौंध में खो गयी। पंच में परमेश्वर का वास माना जाता था, उसका न्याय ईश्वरीय न्याय होता था पर अब युग मूल्यों का नहीं रहा- साम, दाम, दण्ड, भेद की संस्कृति उग आयी है। न्याय नहीं अन्याय महत्वपूर्ण हो गया है, मान्यताएँ, परम्पराएँ नहीं स्वार्थ ग आये हैं, जिनके आलोक से जीवन मूल्य घुट रहे हैं, फिर पंच परमेश्वर कहाँ रहा ? वह तो भ्रष्टाचारी बन गया, बिक गया, बदल गया, डर गया। भला परमेश्वर किसी से डरता है। अब क्या होगा हमारी अस्मिता का, मूल्यों का? नैतिकता की कौन रक्षा करेगा, जब पंच परमेश्वर ही कहीं नहीं रह गया है।

3.कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक, न आवाज की रोशनी न रोशनी की आवाजयह आवाज क्यों नहीं आती?

उत्तर – इस प्रश्न के दो खण्ड हैं- पहला यह कि चकाचौंध रोशनी में मदमस्त आर्केस्ट्रा बज रहा है, पर कहीं भी हमारे लोकगीत चैता, होली, बिरहा, आल्हा नहीं सुनायी देते वे गूंगेहो गये हैं। यह बदलाव सांस्कृतिक ह्रास का द्योतक हैं, जीवन की – आस्थाओं पर चोट का प्रतीक है, मानसिक भ्रम की स्थिति है जो चकाचौंध से आँखें चुंधिया रही हैं और वास्तविक जीवन का रस चुकता हुआ, किसी को नहीं दिखायी देता। दूसरा खण्ड है- यह बदलाव उन्नति का प्रतीक है या ह्रास का वैभव, उल्लास चकाचौंध है, पर अन्तर की पवित्रता, गाँव से लगाव मूल्यों की आस्था बेहिसाब भोगों में दब गयी है। क्या किसी का इस और ध्यान है ? क्या इसके बदलाव हेतु कोई आवाज सुनायी दे रही है? यह चिन्ता होना स्वाभाविक है, हाँ उस व्यक्ति के लिए जिसने अपने आपको मूल से पूरी तरह काट नहीं फेंका है।

4.आवाज की रोशनी या रोशनी की आवाज का क्या अर्थ है ?

उत्तर – आवाज में विलक्षण शक्ति होती है, यदि वह सात्विक अन्त:करण से फूटती है तो प्रकाश फैलाती है, रोशनी बाँटती है, बदलाव लाती है, अंधकार से उजाले की ओर ले जाती है। रोशनी की आवाज का तात्पर्य है, अंधकार मिटाने, अन्याय मिटाने, अत्याचार ढहाने वाली रोशनी जो सस्वर चीखती है- भगाओ अंधकार को मिटाओ मिथ्या अहम् को और इस अराजकता को ।
5. कविता में किस शोक गीत की चर्चा है?
उत्तर 
गीत गाया जाता है पर यह शोक गीत अनगाया अनसुना है क्योंकि अब न होरी गायी जाती है, चैता, बिरहा, आल्हा भी गूंगे हो गये हैं, यह जन्मभूमि लोकगीतों की है, पर यहाँ अब भटकता है एक मौन शोक गीत अर्थात् उनके साथ जो ताजगी, उल्लास, उन्माद और मस्ती थी, वह अब सब कहाँ, चारों ओर एक अनचाही उदासी, अब यहाँ गम पसरा हुआ है। मानो कोई शोक गीत गा रहा है, पर वह मौन गीत है।
6. सर्कस का प्रकाश- बुलौआ किन कारणों से मरा होगा ?
उत्तर- सर्कस से एक सर्चलाइट फेंकी जाती है, जो दूर तक दिखायी देती है। यह एक प्रकार का बुलबुला है, आमंत्रण है, सूचना है कि सर्कस यहाँ है, आओ देखो, मौज उड़ाओ। अब सर्कस बीती बात हो गया, उसकी रसात्मकता अब भी मौजूद है, पर उसके स्थान पर अब आधुनिक मनोरंजन के अनेक साधन उभर आये हैं, सिनेमा है, टी. वी. है, मदमस्त आर्केस्ट्रा है अत: सर्कस का प्रकाश जो बुलावा भेजता था, आज भी भेजता है, पर वह अब इन साधनों के सामने प्रभावहीन हो गया है। कवि के अनुसार यह प्रकाश बुलौवा तो कबका मर चुका हैं|

7. गाँव के घर की रीढ़ क्यों झुरझुराती है? इस झुरझुराहट का क्या कारण है?
उत्तर- गाँव स्वर्ग माने जाते थे, वहाँ का जीवन पवित्र, सौम्य, सांस्कृतिक परिवेश से युक्त और मूल्याधारित था। पंच
परमेश्वर था, अब सब बदल गया, चकाचौंध के आलोक में गाँवखो गया, अब ढूँढ़े से भी नहीं मिलता। उसका नाममात्र रह गया है घर-घर नहीं रहे, चौखट – चौखट नहीं रही, अब वहाँ कहाँ टिकुली का ढाकने का गोद मिलता है आल्हा, होरी, बिरहा गुम हो गये। पंच खो गया, अदालत उग आयी, झगड़े बढ़े, दांवपेंच बढ़े और अस्पताल आबाद हो गये। तो भी गाँव के घर की रीढ़ नहीं झुरझुरायेगी ? सब कुछ बदल गया, जो नया आया, वह कुत्सित,
और वीभत्स त्रासक ही है, न वहाँ सौम्यता है, न शांति, न आस्था, न विश्वास, न समन्वय, न समर्पण, न ही सामंजस्य । यही कारण है कि गाँव के घर की रीढ़ झुरझुरा रही है।

8.मर्म स्पष्ट करें- कि जैसे गिर गया हो गजदंती को गँवा कर कोई हाथी ।
उत्तर –हाथी की शोभा का आधार उसके गज दन्त ही होते हैं। दंत विहीन हाथी शोभाविहीन और ऐश्वर्यविहीन होता है। उसका रूप ही बिगड़ जाता है, यही स्थिति आज गाँवों की हो गयी है, वहाँ की परम्पराएँ, सांस्कृतिक चेतनाएँ, लोकगीत, लोक गाथा के स्वर अब नहीं सुनायी देते। वहाँ न शालीनता है, न सहजता है, न कहीं ग्रामांचल जैसा शांत प्रेममयी वातावरण रहा है, वहाँ रूखापन है, टी. वी. है, चमक-दमक है, आर्केस्ट्रा है। बिजली है, लालटेन अब कहाँ ? पर वह मधुरता, सुघड़ता अब नहीं रही। गाँव वैभव तो बटोर रहे हैं पर सांस्कृतिक वैभव शोभा से विहीन हो गये हैं और ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो कोई ऐसा हाथी हो जिसने अपने गजदन्त गँवा दिये हों। वहाँ आन्तरिक शोभा नहीं है, प्रेम और सौहार्द्र नहीं है।
 9. कविता में कवि की कई स्मृतियाँ दर्ज हैं। स्मृतियों का हमारे लिए क्या महत्व होता है? इस विषय पर अपने विचार विस्तार से लिखें।
उत्तर- स्मृतियाँ बड़ी महत्वपूर्ण हैं, जिनका हमारे अतीत से गहरा सम्बन्ध है। ये बड़ी मधुर होती हैं। मुंशी प्रेमचन्द ने कहा था- अतीत का जीवन चाहे जितना भी दुखद क्यों न हो उसकी स्मृतियाँ मधुर होती हैं। व्यक्ति जहाँ जन्म लेता है, खेलता है, पढ़ता है, बड़ा होता है उसका बचपन वहाँ बीतता है। नाना प्रकार के क्रियाकलाप उसके जीवन में रहते हैं, उसका विकास होता है, वह किशोरावस्था को प्राप्त करता है। उसके सखा- साथी होते हैं, उनके साथ उसके नाना प्रकार से सम्बन्ध होते हैं, उनकी स्मृतियाँ जब सताती हैं बड़ा व्यथित बना देती हैं। ये जब आती हैं, व्यक्ति व्यथित हो उठता है। पुरानी बातों का ताजा होना ही स्मृतियाँ जगा देता है और स्मृतियाँ व्यथित बना देती हैं।
व्यक्ति गाँव में जन्म लेता है, कवि ने भी वहीं जन्म लिया था पर जब उसने गाँव छोड़ा उससे पहले वहाँ काफी बदलाव आ गया था। विकास आया, नव-पूँजीवाद आया, सुविधाएँ आय, वैभव आया और आदमी अपनी पंचायत छोड़कर कोर्ट-कचहरी की गलियों में खो गया। उसके गाँव का पंच परमेश्वर खो गया, उसका पंच तो बचा रहा पर परमेश्वर मर गया। नाते चुक गये, मूल्य बिखर गये, गाँव ऐसा हो गया जैसे दन्तविहीन हाथी, द्वार पर टिकुली साटने का गोंद अब नहीं रहता, बुजुर्ग अब खड़ाऊ नहीं खटकाते, गेरू लिपी भीत पर दूधे-डूबे अंगूठे की छाप भी उसे याद है। लालटेन हैं, आले में विराजमान हैं। होरी, चेता, आल्हा अब कहाँ ? जंगल भी जा रहे हैं, यह सारी तथा अन्य बहुत-सी स्मृतियाँ उसकी चेतना में समायी हैं। ये उसको अतीत से जोड़े रहती हैं उस अतीत से जहाँ की सांस्कृतिक चेतना, आस्था-विश्वास आज भी कवि को सताता है।

10.चौखट, भीत, सर्कस, घर, गाँव और साथ ही बचपन के लिए कवि की चिंता को आप कितना सही मानते हैं ? अपने विचार लिखें।
उत्तरचौखट महत्वपूर्ण है। कवि का बचपन चौखट के भीतर गुजरा, तनिक सयाना हुआ तो उस चौखट के बाहर उसका बचपन आकर संसार को देखता है और फिर यौवन का आगमन भी होता है पर चौखट जिस पर टिकुली साटने के लिए सहजन का गोंद चिपका रहता है, गेरू लिपी भीत पर दूध डूबे अंगूठे की छाप, बूढ़े ग्वाला दादा । यह उसके मोह के कारण हैं, पर उसका मोह भंग हो चुका है। वह सब बदल गया जो आज भी उसकी स्मृतियों में रचा बसा है। कवि चिन्तित है-उसके गाँव का पंचायत राज खो गया। पंच परमेश्वर होता है पर अब मात्र पंच रह गया, उसका परमेश्वर कहीं खो गया है। लोकगीत आल्हा होरी अब कहाँ जिनमें हमारी परम्परा और संस्कृति बसती है, सर्कस का आकर्षण अब कहाँ अब टी. वी. आ गया, आर्केस्ट्रा आ गया, यह बदलाव कवि की चेतना को नहीं भाता जिसने उसके रसपूर्ण जीवन को नीरस बना दिया, गाँव ऐसा हो गया है, जैसे दंतविहीन हाथी ।
यह चिन्ता प्रत्येक व्यक्ति का विषय है, मात्र कवि का ही क्यों ? गाँव कहीं खो गया, उसके स्थान पर उग आया है एक रसहीन माहौल। यह वास्तव में ही चिंता का विषय है।

11.जिन चीजों का विलोप हो चुकाहै,जिनके लिए शोक है, उनकी एक सूची बनाएँ ।
उत्तर- वर्तमान समय में अनेकों प्राचीन परम्पराओ तथा वस्तुओं का लोप हो गया है। इनमें से हम कुछ चीजों के लिए शोक मनाते हैं। जिन चीजों का लोप हो गया है और उनके लिए हम शोक मनाते हैं उनमें निम्नांकित वस्तुएँ मुख्य हैं- (i) गाँव का पुराना घर, (ii) गेरू से रंगी दीवार पर दूध से सने अंगूठे की छाप, (iii) अंत:पुर की चौखट, (iv) पंच परमेश्वर, (v) बुजुर्गों की खड़ाऊँ, (vi) होली – चैती, बिरहा – आल्हा आदि लोकगीत, (vii) बचपन में कवि के माथे पर दूध का तिलक, (viii) सर्कस का प्रकाश- बुलौआ इत्यादि । जिन वस्तुओं के लिए शोक है, उनमें निम्नांकित प्रमुख हैं- (i) कवि का बचपन, (ii) अदालतों तथा अस्पतालों द्वारा निरीह ग्रामवासियों का शोषण तथा धोखाधड़ी, (iii) होली-चैती बिरहा – आल्हा आदि लोकगीतों की विलुप्त होती स्थिति, (iv) बिजली की अनियमित आपूर्ति, (v) पंच परमेश्वर के स्थान पर भ्रष्ट पंचायती राज व्यवस्था ।

 

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