Eps Class 12 Chapter 15 Subjective in Hindi

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प्रौद्योगिकी का चयन

1. श्रम गहन तकनीकी की सीमाएँ क्या हैं?

उत्तर- श्रम गहन तकनीकों की सीमाएँ निम्नांकित हैं-

(i) इनसे पूँजी निर्माण का विस्तार कम होता है।

(ii) वे स्थिर एवं प्रकृति में अल्पकालिक होती हैं।

(iii) वे मानवीय चातुर्य को विकसित करने में असफल रहती हैं।

2. प्रौद्योगिकी क्या होती है? 

उत्तर- प्रौद्योगिकी से हमारा अभिप्राय संगठन द्वारा अपने साधन आगमों को उत्पत्ति में बदलने के लिए चातुर्य, यन्त्र एवं पद्धतियों से लिया जा सकता है। जे. के. गैलब्रेथ के अनुसार, “प्रौद्योगिकी को व्यावहारिक कार्यों को सम्पन्न करने हेतु उपयोग की गयी वैज्ञानिक विधियों अथवा अन्य संगठित ज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” 

3. उत्पादन तकनीकों के विभिन्न प्रकार क्या हैं? 

उत्तर- वुड वार्ड  के अनुसार उत्पादन तकनीक के निम्नांकित वर्ग हैं—

1. विस्तृत उत्पादन एवं बड़ी बैच प्रौद्योगिकी – इस प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाता है। मारुति उद्योग लि. अथवा सुजुकी मोटर कार कम्पनी द्वारा स्वचालित वाहन बनाने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।

(2). इकाई एवं अल्प बैच प्रौद्योगिकी- प्रौद्योगिकी के इस वर्ग के अन्तर्गत वस्तुएँ ग्राहक (माँग) आयामों के अनुसार उत्पादित की जाती हैं अथवा चतुर तकनीक विशेषज्ञों द्वारा अल्प मात्राओं में निर्मित की जाती हैं। ऐसी तकनीक का प्रयोग करने वाले संगठनों में हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लि. (Hindustan Aeronautics Ltd.) जो भारत सरकार के लिए हैलीकॉप्टर बनाता है तथा डीजल लोकोमोटिव वर्क्स, जो भारतीय रेलवे तथा अन्य देशों की रेल व्यवस्था हेतु डीजल इंजन बनाता है।

(3). निरन्तर प्रवाह प्रक्रिया प्रौद्योगिकी – प्रौद्योगिकी के इस वर्ग में उत्पाद एक निरन्तर रूपान्तरण प्रक्रिया में से होकर गुजरता है। यह प्रौद्योगिकी अधिक जटिल है। यह प्रक्रिया निर्माणी दवाइयों जैसे रसायन अथवा शुद्धीकरण कम्पनियों द्वारा की जाती है। 

4. तकनीक या प्रौद्योगिकी के विभिन्न प्रकार क्या है?  

उत्तर- तकनीक या प्रौद्योगिकी मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
1. श्रम – गहन तकनीक,

2. पूँजी – गहन तकनीक ।

5. पूँजी-गहन तकनीक की क्या सीमाएँ हैं? 

उत्तर- पूँजी – गहन तकनीक की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) इससे समाज दो वर्गों में विभक्त होता है-सम्पन्न एवं असम्पन्न अथवा निर्धन एवं धनी ।

(ii)इसके अन्तर्गत आर्थिक निवेश की आवश्यकता होती है जिसे विकासशील देश जुटा नहीं सकते।

(iii) यह श्रम कार्यशक्ति एवं उपभोक्ताओं का दोहन करती है।

6. प्रौद्योगिकी की आवश्यकता के क्या कारण हैं?

उत्तर- प्रौद्योगिकी निम्न कारणों से आवश्यक है-

(i) देश में आर्थिक विकास के सूचक के रूप में प्रौद्योगिकी स्तर आवश्यक है।

(ii) इसके द्वारा श्रम, पूँजी तथा उत्पादन के अन्य घटकों की उत्पादकता सुधारी जाती है।

(iii) आर्थिक विकास के एक विशिष्ट तकनीकी सुधार के स्तर के लिए प्रौद्योगिकी आवश्यक है।

7. देश में औद्योगिक वाटिकाओं की स्थापना की आवश्यकता क्यों महसूस हुई ? 

उत्तर- औद्योगिक वाटिकाएँ क्षेत्र के विकास में स्फूर्ति प्रदान कर रोजगार के अवसर एवं सहायक उद्योगों को सृजित करती हैं। औद्योगिक वाटिकाएँ लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए तब तक ऊष्मक का कार्य करती हैं जब तक कि वे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते। 

8. औद्योगिक वाटिकाएँ क्या होती हैं? 

उत्तर- औद्योगिक वाटिकाएँ अपने आप में उद्योगों के लिए समस्त बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं जैसे विकसित प्लाण्ट, ऊर्जा, दूरसंचार, जल-आपूर्ति एवं अन्य सामाजिक आधारभूत सुविधाएँ यथा – अस्पताल, नालियाँ, सीवरेज, कूड़ा निस्तारक, सुरक्षा आदि सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं। 

9. प्रौद्योगिकी के चयन में आने वाली किन्हीं दो कठिनाइयों को बतायें।

उत्तर- (i) नई प्रौद्योगिकी खर्चीली होती है जिसके लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होगी। (2) अर्द्धविकसित देशों में नयी प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना कठिन है क्योंकि आर्थिक, वैधानिक, सामाजिक एवं राजनीतिक संस्थानों में परिवर्तन लाना आसान नहीं है।

10. प्रौद्योगिकी की अवधारणा क्या होती है? 

उत्तर- प्रौद्योगिकी किसी क्रिया को सम्पन्न करने हेतु उत्पादों अथवा सेवाओं सम्बन्धी समस्याओं को हल करने की विधि है। इसका सम्बन्ध उत्पाद स्वरूप (Product design), उत्पाद तकनीक, किस्म, मानवीय साधन विकास प्रबन्ध तन्त्र आदि तत्वों से लिया जाता है। 

11. श्रम- गहन एवं पूँजी गहन तकनीक क्या होती हैं? इसकी विशेषताओं को बताएँ ।

उत्तर- श्रम – गहन तकनीक – श्रम- गहन तकनीक अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में श्रम एवं सीमित मात्रा में पूँजी का उपयोग करती है। इसमें श्रम की अधिक मात्रा का मिश्रण पूँजी की अल्प मात्रा से किया जाता है। प्रो. मिण्ट के अनुसार, ‘श्रम- गहन उत्पादन विधियाँ वे हैं जो पूँजी की एक इकाई के बदले श्रम की अधिक मात्रा की माँग करें। ” 

इनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं-  
(i) श्रम – गहन तकनीक से विकेन्द्रित उत्पादन तन्त्र का निर्माण होता है।

(ii) श्रम प्रधान तकनीक में रोजगार गहन की अधिक व्ययता होती है।

(iii) श्रम प्रधान तकनीक क्षेत्रीय असमानता को कम करती है।

(iv) श्रम प्रधान तकनीक आय एवं सामाजिक असमानता को कम करती है।

(v) श्रम प्रधान तकनीक समाज में आर्थिक समानता स्थापित करती है।

पूँजी – गहन तकनीक – पूँजी-गहन तकनीक को ऐसी तकनीक के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें अपेक्षाकृत अधिक पूँजी की मात्रा प्रयोग की जाती है जब वहाँ श्रम की सीमित मात्रा प्रयुक्त होती है। इस तकनीक के अन्तर्गत उत्पादन की प्रति इकाई पर पूँजी लागत अधिक होती है, जबकि श्रम प्रधान तकनीक में यह लागत कम होती है। अतः पूँजी गहन तकनीक उत्पादन की मशीनी प्रक्रिया पर बल देती है। इनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) पूँजी प्रधान तकनीक में उत्पादन के उच्च स्तर की प्राप्ति होती है।

(ii) इसमें नई तकनीकों का इस्तेमाल होता है।

(iii) पूँजी प्रधान तकनीक से त्वरित विकास को बढ़ावा मिलता है।

(iv) पूँजी प्रधान तकनीक से आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिलता है।

(v) पूँजी प्रधान तकनीक से क्षेत्रीय असमानता को बढ़ावा मिलता है।

(vi) पूँजी प्रधान तकनीक से सामाजिक असमानता में वृद्धि होती है।

12. एक अर्थव्यवस्था में तकनीक के चयन को प्रभावित करने वाले घटक क्या हैं? व्याख्या कीजिए।

उत्तर- (i) विद्यमान प्रौद्योगिकी स्तर— तकनीकी विकास प्रक्रिया, एक धीमी विकास गति प्रक्रिया है। तुरन्त परिवर्तन, प्रभावशाली विकास का साधन नहीं है। प्रारम्भ की अवस्था में, कम-पूँजी – गहन तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए और बाद में धीरे-धीरे अधिक पूँजी – गहन तकनीक काम में लेनी चाहिए। यदि किसी देश ने प्रौद्योगिकी का उच्च स्तर प्राप्त कर लिया है, उसे उच्चतर पूँजी – गहन तकनीक प्रयोग में लानी चाहिए। 

(ii) संस्थागत व्यवस्था —लोगों के विचार, सामाजिक परिस्थितियों, योग्यता एवं चातुर्य आदि सामाजिक एवं आर्थिक संस्थाओं द्वारा निरूपित किए जाते हैं तथा वे भी देश के प्रौद्योगिकी स्तर को प्रभावित करते हैं। सुधारों के लिए उपयुक्त परिवर्तन करना आवश्यक है। जिसके लिए देश में अनुकूल वातावरण तथा समाज की मानसिकता में परिवर्तन वांछनीय है। प्रौद्योगिकी के सुधार सामाजिक, संस्थागत एवं विकासीय सुधारों के अनुरूप ही किए जा सकते हैं।

(iii) सरकारी नीति – तकनीकों का चयन व्यापक सीमा तक सरकारी नीति द्वारा प्रभावित होता है। यदि सरकार विदेशी सहायता के पक्ष में न होकर, अपने रोजगार अवसरों को बढ़ाना चाहे तो उसे श्रम – गहन प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना चाहिये। इसके विपरीत, यदि सरकार न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करना चाहे तो उसे पूँजी-गहन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना चाहिए।
(4) प्रौद्योगिकीय योग्यता – एक विकासशील देश जैसे भारत को अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप एक उपयुक्त प्रौद्योगिकीय आधार बनाना आवश्यक है। प्रो. वकील एवं ब्रह्मानन्द ने प्रौद्योगिकीय योग्यता हेतु निम्न शर्तों की पहचान की है- 

(i) गरीब देशों के लिए ऐसी तकनीकें श्रेष्ठ हैं जो निवेश के संक्रान्ति काल (Gestation Period) को कम कर सकें।
(ii) तकनीकों को लागू करने के लिए आवश्यक है कि ऐसी तकनीकें चुनी जाएँ जिन्हें सीखने में अपेक्षाकृत कम समय लगे।
(iii) निर्धन देश ऐसी तकनीकों को श्रेष्ठ मानते हैं जिनके प्रयोग से उत्पादन के घटक; जैसे- भूमि, खनन, विद्युत् में वृद्धि दृष्टिगत हो ।
(iv) सामग्री अथवा अन्य दुर्लभ साधनों की बचत लाने की तुलना में श्रम की बचत करना, एक प्रौद्योगिकी की पहचान है। 

(5) घटक सम्पत्ति की उपलब्धि – तकनीक ऐसी होनी चाहिये जो उपलब्ध साधनों का प्रभावकारी उपयोग कर सके। तकनीक को दुर्लभ साधनों का उपयोग करना चाहिए और सुलभ साधनों का प्रयोग उत्साहित करना चाहिये । श्रम बाहुल्य अर्थव्यवस्थाओं को श्रम-गहन तकनीकों को श्रेष्ठता देनी चाहिये।

(6) उपलब्ध साधन – एक देश में उपलब्ध साधन सम्बद्ध प्रौद्योगिकी स्तर को निर्धारित करता है। यह साधन ही उपयुक्त प्रौद्योगिकी संगठन एवं उत्पादन मात्रा निर्धारित करती है। पूँजी-गहन तकनीक को श्रेष्ठ प्रौद्योगिकी माना जाता है परन्तु एक विशेष प्रौद्योगिकी स्तर के साथ-साथ, संगठन, चातुर्य एवं प्राकृतिक साधन भी आवश्यक होते हैं। अत: तकनीक चयन करते समय अर्थव्यवस्था में पूँजी की अवशोषण क्षमता (absorption ca- pacity) एवं साधनों की उपलब्धता को भी ध्यान में रखना चाहिये। 

13. विकासशील देशों द्वारा तकनीकों के चयन में आने वाली कठिनाइयों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – प्रौद्योगिकी के चयन में प्राय: निम्नांकित कठिनाइयाँ अनुभव की जाती हैं-

(i) नयी प्रौद्योगिकी खर्चीली होती है जिसके लिए अधिक पूँजी आवश्यक है। जो भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त नहीं है।

(ii) वैज्ञानिक ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में परिवर्तन तीव्र गति से होते हैं परन्तु अविकसित देशों के लिए प्रौद्योगिकी में आने वाले परिवर्तनों को निरन्तर लागू करना कठिन है।

(iii) नयी प्रौद्योगिकी का समाज द्वारा विरोध किया जाता है। परम्परागत मूल्य, रूढ़िवादिता एवं रीति-रिवाज आदि प्राय: प्रौद्योगिकी सुधारों को समाविष्ट नहीं कर सकते।

(iv) विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में शिक्षा स्तर बहुत निम्न होता है। अतः विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों जैसी प्रौद्योगिकी प्रारम्भ करना कठिन है।

(v) नयी प्रौद्योगिकी लागू करते समय, अविकसित देशों को विदेशी विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है परन्तु उनकी ऊँची फीस एवं व्ययों के कारण विशेषज्ञों की सेवाएँ प्राप्त करने में वे असमर्थ रहते हैं।

(vi) विकासशील तथा विकसित देशों की आवश्यकताएँ एवं वातावरण विपरीत होते हैं। अतः विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों जैसी प्रौद्योगिकी प्रारम्भ करना कठिन है।

(vii) आर्थिक, वैधानिक, सामाजिक एवं राजनैतिक संस्थानों में परिवर्तन लाना आसान नहीं है। अतः अविकसित देशों में नयी प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना कठिन है। 

14. विभिन्न प्रकार की उत्पादन तकनीकें समझाइए ।

उत्तर- उत्पादन तकनीकों के प्रकार– वुड वार्ड (Wood Ward) के अनुसार उत्पादन तकनीक के निम्नांकित वर्ग हैं-

(i) विस्तृत उत्पादन एवं बड़ी बैच प्रौद्योगिकी – इस प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाता है। मारुति उद्योग लि. अथवा सुजुकी मोटरकार कम्पनी द्वारा स्वचालित वाहन बनाने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।

(ii) इकाई एवं अल्प बैच प्रौद्योगिकी – प्रौद्योगिकी के इस वर्ग के अन्तर्गत वस्तुएँ ग्राहक (माँग) आयामों के अनुसार उत्पादित की जाती हैं अथवा चतुर तकनीक विशेषज्ञों द्वारा अल्प मात्राओं में निर्मित की जाती हैं। ऐसी तकनीक का प्रयोग करने वाले संगठनों में हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लि. (Hindustan Aeronautics Ltd.) जो भारत सरकार के लिए हैलीकॉप्टर बनाता है तथा डीजल लोकोमोटिव वर्क्स, जो भारतीय रेलवे तथा अन्य देशों की रेल व्यवस्था हेतु डीजल इंजन बनाता है।

(iii) निरन्तर प्रवाह प्रक्रिया प्रौद्योगिकी – प्रौद्योगिकी के इस वर्ग में उत्पाद एक निरन्तर रूपान्तरण प्रक्रिया में से होकर गुजरता है। यह प्रौद्योगिकी अधिक जटिल है। यह प्रक्रिया निर्माणी दवाइयों जैसे रसायन अथवा शुद्धीकरण कम्पनियों द्वारा की जाती है।

15. तकनीकों के चयन से क्या अभिप्राय है? तकनीकों के चयन के विभिन्न आधार क्या हैं? 

उत्तर- किसी भी उपक्रम की सफलता उसके द्वारा चुनी गई उत्पादन तकनीक एवं प्रयुक्त प्रक्रिया पर निर्भर करती है। प्रत्येक उपक्रम किसी प्रकार की प्रौद्योगिकी का प्रयोग अपने आगमों (Inputs ) को उत्पादन (Output) में रूपान्तरित करने के लिए करता है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उद्यम यन्त्रों, सामग्री, ज्ञान एवं अनुभवी व्यक्तियों को इकट्ठा कर उन्हें क्रिया संचालन के लिए किसी प्रकार के ढाँचे अथवा रूप में समाविष्ट करता है। अतः उद्यमिता के लिए तकनीक एवं प्रक्रिया का चयन एक मुख्य समस्या है। उद्यमी से अपेक्षा की जाती है कि वह वास्तविक उत्पादन प्रक्रिया के निर्णय लेने से पूर्व बाजार में विभिन्न उत्पादों के तकनीकी परिवर्तन को देखकर ही उत्पादन तकनीकों का नीति निर्धारण करे। इस प्रकार उद्यमी को उत्पादन लागत को कम करने तथा अपनी स्पर्धा शक्ति में सुधार करने में सहायता मिलेगी। उद्यम के शीघ्र विकास के दृष्टिकोण से तकनीक का चयन एक महत्वपूर्ण निर्णय है। अत: उद्यमी को तकनीक का चुनाव बड़ी सावधानी एवं सोच-समझकर लेना चाहिए। वास्तव में विकास की दर, निवेश ढाँचा, लागत संरचना एवं कीमत प्रकृति आदि तकनीकी स्वरूप द्वारा शासित होते हैं। यदि उद्यमी द्वारा तकनीकी के चयन में त्रुटि की जाती है तो उससे न केवल नियोजन असफल होगा अपितु नियोजन के प्रति अविश्वास उत्पन्न हो जायेगा। अतः आर्थिक विकास की तीव्रता एवं उद्यम की प्रगति तकनीक के चयन पर निर्भर करती है। इस सम्बन्ध में अनेक विकल्प खुले होते हैं- श्रम प्रधान एवं पूँजी प्रधान तकनीक का चयन, कृषि एवं उद्योग, हल्के एवं भारी आदि । संसाधन की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए उद्यमी इस बात का निर्णय लेता है। श्रम प्रधान देश श्रम आधारित तकनीक को ध्यान में रखकर निर्णय लेते हैं, जबकि पूँजी प्रधान देश पूँजी आधारित उद्योग का चयन करते हैं। तकनीकों के चयन के विभिन्न आधार निम्नलिखित हैं- 

(i) विद्यमान प्रौद्योगिक स्तर-तकनीकी विकास प्रक्रिया, एक धीमी विकास प्रक्रिया है। आरम्भिक अवस्था में कम पूँजी गहन तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए और बाद में धीरे-धीरे अधिक पूँजी गहन तकनीक काम में लेनी चाहिए। यदि किसी देश ने तकनीक का उच्च स्तर प्राप्त कर लिया है तो उसे उच्चतर पूँजी गहन तकनीक प्रयोग में लानी चाहिए।

(ii) संस्थागत व्यवस्था – लोगों के विचार, सामाजिक परिस्थितियाँ, योग्यता एवं कौशल आदि सामाजिक एवं आर्थिक संस्थाओं द्वारा निरूपित किए जाते हैं तथा वे भी देश के प्रौद्योगिकी स्तर को प्रभावित करते हैं। सुधारों के लिए उपयुक्त परिवर्तन करना आवश्यक है जिसके लिए देश में अनुकूल वातावरण तथा समाज की मानसिकता में परिवर्तन वांछनीय है। प्रौद्योगिकी के सुधार सामाजिक, संस्थागत एवं विकासकीय सुधार के अनुरूप ही किए जा सकते हैं।

(iii) सरकारी नीति- तकनीकों का चयन व्यापक सीमा तक सरकारी नीति द्वारा प्रभावित होता है। यदि सरकार विदेशी सहायता के पक्ष में न होकर अपने रोजगार अवसरों को बढ़ाना चाहे तो उसे श्रम गहन तकनीक का चयन करना चाहिए। इसके विपरीत, यदि सरकार न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करना चाहे तो उसे पूँजी गहन तकनीक को बढ़ावा देना चाहिए।

(iv) उपलब्ध साधन- किसी भी देश में उपलब्ध साधन सम्बद्ध तकनीकी स्तर को निर्धारित करते हैं। यह साधन ही उपयुक्त प्रौद्योगिकी संगठन एवं उत्पादन मात्रा निर्धारित करते हैं परन्तु एक विशेष प्रौद्योगिक स्तर के साथ-साथ संगठन कौशल एवं प्राकृतिक साधन भी आवश्यक होते हैं। अतः तकनीकी चयन करते समय अर्थव्यवस्था में पूँजी की अवशोषण क्षमता एवं साधनों की उपलब्धता को ध्यान में रखना चाहिए। 

 

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