Eps Class 12 Chapter 18 Subjective in Hindi

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उत्पादन प्रबंध एवं किस्म नियन्त्रण

1. वितरण – माध्यम क्या है? 

उत्तर- मात्र वस्तुओं का उत्पादन करना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उन्हें अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाना भी अनिवार्य है । वस्तुओं को अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए उत्पादक अथवा निर्माता जिन विभिन्न प्रकार के मध्यस्थों, जैसे—थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी, अभिकर्ता आदि की सेवाएँ लेता है, उन्हें वितरण के माध्यम कहा जाता है। 

2. विपणन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – सामान्यत: व्यावसायिक प्रबन्ध का वह भाग जो ‘विक्रय’ से सम्बन्धित हो ‘विपणन’ के अन्तर्गत आता है । इस प्रकार ‘विपणन ‘ एवं विक्रय-प्रबन्ध (Sales Management) एक-दूसरे के पर्यायवाची कहे जा सकते हैं। ‘विपणन ‘ (Marketing) शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है। संकुचित दृष्टि से विपणन के अन्तर्गत उन समस्त क्रियाओं का समावेश किया जाता है जो वस्तुओं के उत्पादन केन्द्रों से उठाकर उन्हें उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए की जाती हैं। इस दृष्टि से विपणन के क्षेत्र में केवल क्रय, विज्ञापन, संग्रह, परिवहन, श्रेणियन आदि क्रियाएँ ही आती हैं। किन्तु व्यापक दृष्टि से विपणन की विषय सामग्री के अन्तर्गत विक्रय नीतियाँ, विक्रय-प्रबन्ध व संगठन, मूल्य निर्धारण, वस्तु का विकास, व्यावसायिक जोखिमों को कम करने के साधन तथा विपणि अनुसन्धान आदि सभी क्रियाओं का समावेश किया जाता है। आधुनिक समय में विपणन का यह व्यापक अर्थ ही अधिक प्रचलित है। इस अर्थ में विपणन कार्य वस्तुओं का उत्पादन आरम्भ करने से पहले ही प्रारम्भ हो जाता है तथा विक्रय होने के बाद भी निरन्तर चलता है। 

3. उत्पाद के पैकेजिंग के क्या उद्देश्य हैं? 

उत्तर – पैकेजिंग के बहुत से उद्देश्य हैं जिनमें निम्न प्रमुख हैं-

(1) सुरक्षा (Protection) – पैकेजिंग का प्रमुख कार्य उत्पाद को धूल, पानी, नमी, कीड़े, -मकोड़ों व मिलावट से बचाना है। 

(2) सुविधा (Convenience) – वे वस्तुएँ जो अच्छे प्रकार से पैक होती हैं उनको लाने और ले जाने में सुविधा रहती है। इस प्रकार पैकेजिंग उपभोक्ता – एवं मध्यस्थों की सुविधा देने का कार्य करता है। 

(3) परिचय (Identification) – जब प्रतियोगी निर्माताओं की उत्पादों में कोई खास अन्तर नहीं होता है तो ऐसी स्थिति में उत्पादों को पहचानने के लिए भी उनका पैकेजिंग कर दिया जाता है। 

(4) भण्डार (Storage) – उत्पादों को उचित रूप भण्डार करने के लिए पैकेजिंग किया जाता है जिससे भण्डार गृह में उनको उचित रूप से रखा जा सके और वे खराब न हों। 

4. विपणन की उत्पाद विचारधारा का क्या अर्थ है? 

उत्तर- विपणन की उत्पाद विचारधारा इस बात को प्रस्तावित करती है कि व्यवसाय के उद्देश्य की प्राप्ति उन उत्पादों को बनाने में है जो उच्च गुणवत्ता के हों अर्थात् ग्राहक उच्च गुण वाले उत्पादों को पसन्द करते हैं। 

5. विक्रय संवर्द्धन की दो विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर – विक्रय संवर्द्धन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (i) विक्रय-संवर्द्धन विक्रय वृद्धि में सहायक होता है। (ii) विक्रय-संवर्द्धन में बिक्री बढ़ाने वाले समस्त उपकरण जैसे – विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय, विपणन पद्धति में नवीनता आदि को शामिल किया जाता है।  

6. विपणन बाजार में किसी व्यवसाय को स्थान स्थापित करने में किस प्रकार सहायता करता है ? 

उत्तर- व्यवसाय को स्थापित करने में विपणन प्रक्रिया उपभोक्ता सन्तुष्टि के लिए उपभोक्ता अनुसन्धान के माध्यम से पता लगाती है कि उपभोक्ता की रुचि क्या है? वह कितनी मात्रा में व किस मूल्य पर वस्तु को चाहते हैं एवं उपभोक्ता वस्तु का वितरण किस प्रकार चाहते हैं? क्योंकि विपणन क्रियाओं का केन्द्र बिन्दु उपभोक्ता सन्तुष्टि है, अत: उपभोक्ता की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं के अनुरूप किया जाता है। 

7. विपणन के ‘विनिमय कार्यों’ में से विक्रय एक है। विक्रय में सन्निहित कोई चार कार्य बताइए | 

उत्तर- (i) आपूर्तिकर्त्ताओं की खोज करना
(ii) उत्पादन की योजना बनाना तथा विक्रय सम्बन्धी समझौते करना
(iii) विक्रय पद्धतियों को अपनाना
(iv) गुणवत्ता में सुधार बनाये रखना । 

8. प्रसारण विज्ञापन क्या होता है? 

उत्तर – रेडियो एवं दूरदर्शन पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों के बीच-बीच में दिए जाने वाले विज्ञापन को प्रसारण विज्ञापन कहते हैं। 

9. क्या विज्ञापन लागतें ऊँची कीमतों के रूप में उपभोक्ताओं को हस्तान्तरित कर दी जाती हैं ? 

उत्तर – हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ क्योंकि विज्ञापन करने के लिए संस्था को बहुत धन खर्च करना पड़ता है। इस खर्च को पूरा करने के लिए वस्तु की कीमतों में वृद्धि करनी पड़ती है। 

10. पैकेजिंग से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर – आधुनिक युग में पैकेजिंग का महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। पैकेजिंग  एक ओर तो उत्पाद को सुरक्षा प्रदान करता है और दूसरी ओर उसके आकर्षण में वृद्धि करता है। सामान्य अर्थ में, पैकेजिंग से आशय किसी उत्पाद को किसी अन्य वस्तु में सुरक्षा के साथ रखा जाना है अथवा लपेटा जाना है तथा उसके बाहरी आवरण पर उत्पाद का नाम एवं ब्राण्ड आदि चित किया जाता है। 

11. किसी उत्पाद के लिए वितरण माध्यम का चुनाव करते समय जिन उत्पाद सम्बन्धी घटकों को ध्यान में रखना चाहिए उनमें से किसी तीन की गणना कीजिए।

उत्तर- निर्माताओं अथवा उत्पादकों को अपनी वस्तुओं को अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए वितरण के किसी उपयुक्त माध्यम का चुनाव करना पड़ता है। उपयुक्त माध्यम वह है जो मितव्ययी हो तथा अधिकतम लाभप्रद हो । वितरण के उपयुक्त माध्यम को निर्धारित करने वाले घटक निम्नलिखित हैं-

(i) सम्भावित ग्राहकों की संख्या – यदि किसी वस्तु का सम्भावित बाजार विस्तृत (जैसे- कपड़ा, अनाज, साइकिल आदि) है तो मध्यस्थों की सेवाओं का सहारा लेना होगा। इसके विपरीत यदि वस्तु का बाजार सीमित है तो उत्पादक अथवा निर्माता स्वयं कर सकता है।

(ii) बाजार का भौगोलिक केन्द्रीकरण – यदि वस्तु के ग्राहक किसी विशेष निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित हैं तो उत्पादक अथवा निर्माता प्रत्यय विक्रय का अनुसरण कर सकते हैं।

(iii) ग्राहकों की क्रय करने सम्बन्धी आदतें – यह भी वितरण के माध्यम को प्रभावित करती हैं, जैसे- उधार क्रय करने की इच्छा क्रय के उपरान्त की सेवा, व्यय करने की आदत आदि । 

12. विपणन प्रबन्ध की विशेषताएँ बताइये।

उत्तर – विपणन प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
(i) विपणन प्रबन्ध वस्तुओं एवं सेवाओं का वितरण है।

(ii) विपणन प्रबन्ध उपयोगिताओं का सृजन करता है।

(iii) विपणन प्रबन्ध एक व्यावसायिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा उत्पादों को बाजार के अनुरूप बनाया जाता है और स्वामित्व हस्तान्तरण किये जाते हैं।

13. उत्पाद मिश्रण क्या है? 

उत्तर – उत्पाद मिश्रण (Product Mix) – यह विपणन मिश्रण का प्रमुख तत्व / अंग/चल है। इसके अन्तर्गत उत्पाद के रंग, रूप, आकार, डिजाइन, रेखा (पंक्ति), समूह आदि के बारे में निर्णय लिये जाते हैं । इन्हीं को उत्पाद मिश्रण कहते हैं। ये निर्णय मुख्यतः उत्पाद के आयामों के बारे में होते हैं जिनका उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है।  

14. विपणन की उत्पा अवधारणा का क्या आशय है?

उत्तर – उत्पाद से आशय किसी भौतिक वस्तु अथवा सेवा से है जिससे क्रेता की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है। यह विपणन व्यूह-रचना है जिसमें उत्पाद के अंगों का विवेचन एवं निर्णयन होता है। फिलिप कोटलर के अनुसार ” उत्पाद क्रेता को सन्तुष्टियाँ अथवा लाभ प्रदान करने की क्षमता वाले भौतिक सेवा एवं चिन्हात्मक विवरणों का पुलन्दा है।” 

15. पैकेजिंग के चार महत्व बताइए ।

उत्तर- (i) उत्पाद सुरक्षा महत्व, (ii) उत्पाद की मूल्य वृद्धि महत्व, (iii) उत्पाद का विज्ञापन महत्व, (iv) ध्यान आकर्षण महत्व । 

16. वितरण माध्यम क्या है? 

उत्तर – मात्र वस्तुओं का उत्पादन करना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उन्हें अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाना भी अनिवार्य है । वस्तुओं को अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए उत्पादक अथवा निर्माता विभिन्न प्रकार के मध्यस्थों जैसे- थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी वितरण का माध्यम कहा जाता है। अतः वितरण के माध्यम से आशय उन मध्यस्थ अथवा मध्यस्थों से है जिनकी सेवाएँ निर्माता/विक्रेता से वस्तुओं को अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए ली जाती हैं। 

17. मूल्य मिश्रण शब्द से क्या आशय है? 

उत्तर – मूल्य मिश्रण – मूल्य मिश्रण से आशय उन सभी निर्णयों से है जो किसी उत्पाद अथवा उसके मूल्य के सम्बन्ध में लिये जाते हैं। मूल्य मिश्रण में मुख्यत: निम्नलिखित निर्णय सम्मिलित होते हैं-
(i) मूल्य निर्धारण की विधि।

(ii) मूल्य नीति ।

(iii) मूल्य के सम्बन्ध में रणनीति ।

(iv) मूल्य में परिवर्तन सम्बन्धी निर्णय । 

18. विज्ञापन के तीन उद्देश्यों को बताइये ।

उत्तर- (i) जनसाधारण को वस्तु के विषय में अवगत कराना ।

(ii) वस्तु की बिक्री में वृद्धि कराना ।

(iii) वस्तु के उपयोग करने के तरीके जन साधारण को बताना । 

19. ब्राण्ड के क्या उद्देश्य हैं? 

उत्तर- (i) ब्राण्ड एक व्यापक शब्द है जिसका उपयोग किसी उत्पाद की पहचान के लिए किया जाता है। 

20. विपणन मिश्रण की परिभाषा दीजिए।अथवा (Or) विपणन मिश्रण क्या है? 

उत्तर-  विपणन मिश्रण शब्द का प्रयोग मूल रूप से हार्वर्ड बिजिनस स्कूल के प्रोफेसर नील बोर्डन ने किया था। ऐसे समस्त विपणन निर्णय जो कि विक्रय को प्रोत्साहित या प्रेरित करते हैं, विपणन मिश्रण कहलाते हैं। विपणन मिश्रण व्यवसाय के प्रत्येक क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण होता है चाहे वह कीमत क्षेत्र हो या संवर्द्धन क्षेत्र, वितरण क्षेत्र हो या उत्पादन क्षेत्र | आर. एस. डावर के अनुसार, ” निर्माताओं द्वारा बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाने वाली नीतियाँ विपणन मिश्रण का निर्माण करती हैं। ‘ 

21. विपणन मिश्रण के तत्वों को बताइए ।

उत्तर- (1) उत्पाद मिश्रण – यह विपणन मिश्रण का एक मुख्य तत्व है। इसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उत्पादके सम्बन्ध में अनेक निर्णय लिए जाते हैं। उन्हीं निर्णयों को उत्पाद मिश्रण कहते हैं।

(2) संवर्द्धन मिश्रण– संवर्द्धन का अभिप्राय उपभोक्ताओं को कम्पनी के उत्पाद के बारे में सूचित करना एवं उन्हें कम्पनी की ओर आकर्षित करना है।

(i) विज्ञापन – विज्ञापन द्वारा विक्रेता उपभोक्ता को अपनी वस्तु के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध करवाता है। 

(ii) व्यक्तिगत विक्रय – विज्ञापन के अन्तर्गत विक्रेता अपनी बात को कहता है लेकिन उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया को नहीं सुन सकता। इस कमी को व्यक्तिगत विक्रय द्वारा दूर किया जाता है। 

(iii) विक्रय संवर्द्धन – विक्रय संवर्द्धन के लिए विज्ञापन, लोक प्रसिद्धि एवं व्यक्तिगत विक्रय को छोड़कर जितने भी प्रयास किये जाते हैं, वे सभी विक्रय संवर्द्धन के अन्तर्गत आते हैं।  

22. विपणन प्रबन्ध की परिभाषा दीजिए।अथवा (Or) विपणन प्रबन्ध क्या है? 

उत्तर – विपणन प्रबन्ध का अभिप्राय विपणन के सम्बन्ध में सभी प्रबन्धकीय क्रियाओं को पूरा करना है। विपणन के अन्तर्गत उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं का पता लगाने से लेकर उन्हें संतुष्ट करने तक की सभी क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं। दूसरी ओर प्रबन्ध के अन्तर्गत नियोजन, संगठन, नियुक्तियाँ, निर्देशन एवं नियन्त्रण को सम्मिलित किया जाता है। सभी प्रबन्धकीय क्रियाओं को विपणन के संदर्भ में करना ही विपणन प्रबन्ध कहलाता है। डॉ. रुस्तम एस. डावर (Dr. Rustam S. Davar) ने विपणन प्रबन्ध का भारतीय सन्दर्भ में परिभाषित किया है। उनके अनुसार, “विपणन प्रबन्ध से आशय उपभोक्ता आवश्यकताओं का पता लगाने, उन्हें उत्पाद या सेवाओं में परिवर्तन करने और तत्पश्चात् उत्पाद या सेवा को अन्तिम उपभोक्ता या ग्राहक तक पहुँचाने की प्रक्रिया से है जिससे एक विशिष्ट ग्राहक समूह या समूहों की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को सन्तुष्ट किया जा सके और संगठन को उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करते हुए लाभ कमाया जा सके।”

23. विपणन का अर्थ बताइए ।

उत्तर- कुछ लोग विपणन तथा विक्रय को एक ही मानते हैं परन्तु यह सही नहीं है। विपणन तथा विक्रय अलग-अलग चीजें हैं। संकुचित अवधारणा के अनुसार विपणन से अर्थ वस्तुओं तथा सेवाओं को ग्राहकों को उपलब्ध कराने से है परन्तु आधुनिक विचारधारा के अनुसार विपणन की परिभाषा पुरानी परिभाषा से कहीं अधिक व्यापक है। इसके अन्तर्गत विपणन का कार्य न केवल वस्तुओं तथा सेवाओं को ग्राहकों को उपलब्ध कराना है बल्कि विक्रय के बाद की गतिविधियाँ भी इसमें सम्मिलित की जाती हैं। विपणन एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत ग्राहकों को संतुष्ट करने की क्रियाएँ सम्मिलित हैं। 

24. किन्हीं दो विपणन मध्यस्थों के नाम बताइए ।

उत्तर- (1) एजेण्ट (2) थोक व्यापारी

25. विक्रय संवर्द्धन की परिभाषा दें।

उत्तर – विक्रय संवर्द्धन की परिभाषा – एच. आर. डिलेन्स के अनुसार “विक्रय संवर्द्धन से आशय उन कदमों से है जो विक्रय करने अथवा बढ़ाने के लिए उठाये जाते हैं। 

26. एक उद्यमी को अपने उत्पादों के विपणन हेतु क्यों उचित ध्यान देना चाहिए? 

उत्तर- आज के व्यावसायिक जगत् में विपणन का महत्वपूर्ण स्थान है। वास्तव में सम्पूर्ण उत्पादन का अन्तिम उद्देश्य विक्रय होता है। विक्रय एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विभिन्न आवश्यक एवं महत्वपूर्ण वस्तुएँ उपभोक्ताओं तक पहुँचाई जाती हैं और दूसरी ओर व्यावसायिक संस्था अपनी वस्तुएँ उपभोक्ताओं में वितरण करने का कार्य सम्पन्न करती है। एक उद्यमी को अपने उत्पादों के विपणन हेतु उचित ध्यान इसलिए देना चाहिए क्योंकि आज किसी भी व्यापारी की अन्तिम सफलता उनकी विक्रय योग्यता पर निर्भर करती है। दोषपूर्ण विक्रय प्रबन्धन की दशा में विक्रय कार्य असफल एवं निष्प्राण हो जाता है जबकि विक्रय विभाग के सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित होने पर आंशिक रूप से दोषयुक्त उत्पादों को भी बेचने में सफलता प्राप्त हो सकती है। वर्तमान प्रतियोगी युग में विक्रय प्रबन्ध उच्च कोटि का होना आवश्यक है। पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार- विपणन व्यवसाय का एक विशेष एवं अनूठा कार्य है। व्यवसाय को अन्य मानवीय संगठनों से अलग करने वाला तथ्य यह है कि वह वस्तु एवं सेवाओं का विपणन करता है, जबकि सेना, स्कूल, राज्य कोई भी ऐसा नहीं करता । व्यवसाय ही एक ऐसा संगठन है जो वस्तुओं और सेवाओं के विपणन से सम्बन्ध रखता है। यदि किसी व्यवसाय में विपणन नहीं है अथवा संयोगिक है तब वह व्यवसाय नहीं कहलाएगा।  

27. विज्ञापन तथा व्यक्तिगत विक्रय में क्या अन्तर है? 

उत्तर- विज्ञापन तथा व्यक्तिगत विक्रय में अन्तर 

विज्ञापन (Advertising) :- 

(i) विज्ञापन अव्यक्तिगत होता है।

(ii) विज्ञापन का क्षेत्र व्यापक होता है।

(iii) इसमें सन्देश तीव्रगति से ग्राहकों तक पहुँचता है।

(iv) विज्ञापन में शंकाओं का तुरन्त समाधान सम्भव नहीं है

(v) विज्ञापन में लोच का अभाव होता है।

(vi) विज्ञापन अपेक्षाकृत सस्ता है।

(vii) विज्ञापन में तुरन्त विक्रय का अभाव होता है।

व्यक्तिगत विक्रय (Personal Selling) :-

(i) व्यक्तिगत विक्रय व्यक्तिगत होता है ।

(ii) व्यक्तिगत विक्रय का क्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित होता है ।

(iii) इसमें सन्देश पहुँचने की गति अत्यन्त धीमी होती है।

(iv) व्यक्तिगत विक्रय में शंकाओं का तुरन्त समाधान होता है।

(v) व्यक्तिगत विक्रय पूर्णत: लोचदार होता है।

(vi) व्यक्तिगत विक्रय महँगा होता है।

(vii) व्यक्तिगत विक्रय में तुरन्त विक्रय होता है। 

28. विज्ञापन व विक्रय सम्बर्द्धन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- विज्ञापन तथा विक्रय संवर्द्धन में अन्तर 

विज्ञापन (Advertising) :-  

(i) विज्ञापन उत्पाद की माँग का निर्माण तथा उसे बनाये रखने में सहायता प्रदान करता है।

(ii) इसका उद्देश्य उत्पादक तथा उत्पाद की अनुकूल छवि निर्मित करना है।

(iii) विज्ञापन उपभोक्ता को प्रभावित करता है ।

(iv)विज्ञापन ग्राहकोन्मुखी होता है ।

(v) विज्ञापन क्रेता को उत्पाद की ओर ले जाता है ।

(vi) इसका प्रभाव लम्बे समय में सामने आता है।

(vii) विज्ञापन का क्षेत्र व्यापक है।

विक्रय संवर्द्धन (Sales Promotion) :- 

(i) विक्रय संवर्द्धन उपभोक्ता को अधिक से अधिक उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित करता है।

(ii) इसका उद्देश्य विक्रय में वृद्धि करना है।

(iii) विक्रय संवर्द्धन वितरण माध्यम को प्रभावित करता है।

(iv) विक्रय संवर्द्धन उत्पादोन्मुखी होता है।

(v) विक्रय संवर्द्धन उत्पाद को क्रेता की ओर ले जाता है।

(vi) इसका प्रभाव एक सीमित अवधि में जबकि विक्रय संवर्द्धन अभियान चल रहा हो, सामने आता है।

(vii) विज्ञापन की तुलना में विक्रय संवर्द्धन का क्षेत्र सीमित है।

29. एक अच्छे पैकेजिंग में कौन-कौन सी विशेषतायें होनी चाहिए? 

उत्तर-,एक अच्छे पैकेज के लक्षण या विशेषताएँ अथवा गुण (Characteristics or Qualities of a Good Packaging)— पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि पैकेजिंग अनेक उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होता है परन्तु यह उल्लेखनीय है कि पैकेज वांछित उद्देश्यों को पूरा करने में तभी सक्षम हो सकेगा जबकि उसमें कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ समाविष्ट हों। एक अच्छे पैकेज में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए-

(1) ध्यानाकर्षण – पैकेज ऐसा हो जो लोगों का ध्यान आकर्षित करे । आधुनिक प्रतिस्पर्द्धात्मक समय में पैकेज की यह विशेषताएँ विशेष महत्वपूर्ण है । एक ग्राहक प्रारम्भ में ही वस्तु को नहीं देखता । वह पैकेज से प्रभावित होकर ही वस्तु को देखने की इच्छा प्रकट करता है। 

(2) पहचान-पैकेज ऐसा हो जिसे आसानी से पहचाना जा सके अर्थात् एक बार देखने के पश्चात् ग्राहक उसे तत्काल पहचान सके।

(3) रुचि उत्पन्न करना – जो ग्राहक के मन में उत्पाद के प्रति रुचि पैदा कर सके और उसे बनाए रखे।

(4) इच्छा जाग्रत करना – पैकेज ऐसा हो जिसे देखकर ग्राहक के मन में उत्पाद को प्राप्त करने की इच्छा जाग्रत हो ।

(5) क्रय बाध्यता – ग्राहक को उत्पाद क्रय करने के लिए बाध्य करे।

(6) सुरक्षा – उत्पाद की पूर्ण सुरक्षा कर सके ।

(7) उत्पाद छवि – उत्पाद छवि (Product Image) में सुधार करे। 

(8) उपयोगी – उत्पाद के उपयोग के पश्चात् भी उपयोगी सिद्ध हो, जैसे—‘डालडा’ या ‘रथ’ घी के डिब्बे उपयोग के पश्चात् अन्य घरेलू वस्तुओं को रखने के काम में लाए जा सकते हैं।

(9) स्मरण कराते रहना – पैकेज ऐसा हो जो उत्पाद विक्रय के उपरान्त भी स्मरण कराता रहे ताकि पुनः विक्रय किया जा सके। 

(10) सुविधा – पैकेज ऐसा हो जिससे उत्पाद को लाने-ले-जाने में सुविधा हो ।

30. पैकेजिंग क्या है? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।

उत्तर – पैकेजिंग का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Defini- tions of Packaging) — आधुनिक युग में पैकेजिंग का महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। पैकेजिंग एक ओर तो उत्पाद को सुरक्षा प्रदान करता है और दूसरी और उसके आकर्षण में वृद्धि करता है। सामान्य अर्थ में, पैकेजिंग से आशय किसी उत्पाद को किसी अन्य वस्तु में सुरक्षा के साथ रखा जाना है अथवा लपेटा जाना है तथा उसके बाहरी आवरण पर उत्पाद का नाम एवं ब्राण्ड आदि चित किया जाना है।

(1) विलियम जे. स्टेण्टन (William J. Stanton) के अनुसार, “पैकेजिंग को वस्तु-नियोजन की उन सामान्य क्रियाओं के समूह की तरह परिभाषित किया जा सकता है जिसमें किसी वस्तु के लपेटने या आधानपात्र (Container) का उत्पादन करने और उनका डिजाइन बनाने से सम्बन्धित है।”

पैकेजिंग की विशेषताएँ अथवा लक्षण (Characteristics of Packaging) — पैकेजिंग की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) पैकेजिंग एक कला और विज्ञान दोनों है।

(2) पैकेजिंग उत्पाद नियोजन की उन क्रियाओं का समूह होता है जो पैकिंग सामग्री अर्थात् कण्टेनर्स एवं रेपर्स के निर्माण अथवा डिजाइनिंग और वस्तुओं के पैकिंग से सम्बन्धित होती है।

(3) पैकेजिंग एवं पैकिंग में अन्तर होता है। पैकिंग वस्तुतः वस्तुओं को कण्टेनर्स एवं रेपर्स में बन्द करना होता है जबकि पैकेजिंग में कण्टेनर्स एवं रेपर्स का निर्माण तथा उपयोग सम्मिलित होता है।

(4) पैकेजिंग में लेबलिंग एवं ब्राण्डिंग की क्रियाएँ स्वत: ही सम्मिलित हो जाती हैं क्योंकि लेबल पैकेज पर लगाया जाता है तथा ब्राण्ड प्राय: लेबल पर लगी होती है।

(5) पैकेजिंग का प्रमुख उद्देश्य वितरण की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान वस्तु को सुरक्षित पहुँचाना और ग्राहकों को उपयोग – सुविधाएँ एवं संरक्षण – आश्वासन प्रदान करना होता है। 

31. व्यवसाय में अक्सर विज्ञापन का विरोध क्यों किया जाता है?

उत्तर – विज्ञापन का आशय संभावित ग्राहक को अपने उत्पाद अथवा सेवा की जानकारी देना तथा क्रय के लिए प्रेरित करना है। यह उपभोक्ताओं तथा उत्पादों के बीच समन्वय करने का प्रयास करता है। विज्ञापन के कई फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं। अक्सर विज्ञापन का विरोध निम्न कारणों से किया जाता है-
(1) यह उत्पादन तथा वितरण की लागत में वृद्धि करता है।

(2) यह ऐसी ही वस्तु के क्रय के लिए प्रेरित करता है जिसकी आवश्यकता नहीं है।

(3) यह अनावश्यक इच्छाओं का विस्तार करता है और सीमित कोषों या साधनों पर अतिरिक्त भार का निर्माण करता है।

(4) यह वांछित आपूर्ति तथा एकाधिकार की प्रवृत्ति को विकसित करता है।

(5) यह पुरानी वस्तुओं को बेकार और अप्रचलित कर देता है और नई वस्तुओं के प्रति आकर्षण बढ़ाता है।

(6) यह गलत संवाद देता है और उपभोक्ताओं को दिग्भ्रमित करता है।

(7) यह अनावश्यक चमक-दमक, आदत, आचरण, विलासिता को प्रोत्साहित करता है। 

32. एक उद्यमी को अपने उत्पादों के विपणन हेतु क्यों उचित ध्यान देना चाहिए? अथवा (Or) विपणन का महत्व समझाइए । ​

उत्तर – आधुनिक व्यावसायिक जगत् में विपणन का विशिष्ट स्थान है। वास्तव में सम्पूर्ण उत्पादन का अन्तिम ध्येय विक्रय होता है। विक्रय एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विभिन्न आवश्यक एवं महत्वपूर्ण वस्तुएँ उपभोक्ताओं तक पहुँचाई जाती हैं और दूसरी ओर व्यावसायिक संस्था अपनी वस्तुएँ उपभोक्ताओं में वितरण करने का कार्य सम्पन्न करती है । एक उद्यमी को अपने उत्पादों के विपणन हेतु उचित ध्यान इसलिए देना चाहिए क्योंकि आज किसी भी व्यापारी की अन्तिम सफलता उनकी विक्रय योग्यता पर निर्भर करती है। दोषपूर्ण विक्रय प्रबन्धन की दशा में विक्रय कार्य असफल एवं निष्प्राण हो जाता है जबकि विक्रय विभाग के सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित होने पर आंशिक रूप से दोषयुक्त उत्पादों को भी बेचने में सफलता प्राप्त हो सकती है। वर्तमान प्रतियोगी युग में विक्रय प्रबन्ध उच्च कोटि का होना आवश्यक है। विपणन के महत्व को रेखांकित करते हुए पीटर एफ. ड्रकर लिखते हैं—“विपणन व्यवसाय का एक विशेष एवं अनूठा कार्य है। व्यवसाय को अन्य मानवीय संगठनों से अलग करने वाला तथ्य यह है कि वह वस्तु एवं सेवाओं का विपणन करता है, जबकि सेना, स्कूल, राज्य कोई भी ऐसा नहीं कर सकता । व्यवसाय ही एक ऐसा संगठन है जो वस्तुओं और सेवाओं के विपणन से अपने को पूर्ण बनाता है। यदि किसी व्यवसाय में विपणन नहीं है अथवा संयोगिक है तब वह व्यवसाय नहीं कहलायेगा।” 

33. व्यवसाय में विज्ञापन के महत्व को बताइये।

उत्तर – आधुनिक युग विज्ञापन का युग है । बाट्सन डून के अनुसार, “जहाँ कहीं हम हैं, विज्ञापन हमारे साथ है।” (Where ever we are, advertising is with us.) इसकी उपयोगिता किसी एक वर्ग अथवा क्षेत्र विशेष के लिए न होकर समूचे समाज के लिए है।

अध्ययन में सुविधा की दृष्टि से विज्ञापन के लाभों को निम्नलिखित चार
भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) उत्पादकों अथवा निर्माताओं को लाभ (Advantages to Producers or Manufacturers)

(i) नवनिर्मित वस्तुओं की माँग उत्पन्न करना एवं उसमें वृद्धि करना- विज्ञापन में वह चुम्बकीय शक्ति होती है जिसके फलस्वरूप उपभोक्ताओं की रुचि में परिवर्तन हो जाता है, वे पुरानी वस्तु को छोड़कर नवनिर्मित एवं विज्ञापित वस्तुओं का उपयोग करने लगते हैं।

(ii) अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विनाश – सामूहिक विज्ञापन द्वारा अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विनाश किया जा सकता है तथा पर्याप्त बचत की जा सकती है। उदाहरणार्थ, वनस्पति घी तथा सीमेण्ट के विज्ञापन को लीजिए। इसमें उत्पादक लोग आपस में मिलकर उस वस्तु का विज्ञापन करते हैं जिसे वे सभी निर्मित करते हैं, जैसे- ए. सी. सी. सीमेण्ट का विज्ञापन ।

(iii) उत्पादन में वृद्धि एवं गति — विज्ञापन द्वारा वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है और इस प्रकार वे बड़ी मात्रा में बिकने लगती हैं। इस विक्रय वृद्धि के कारण उत्पादन अधिकाधिक गति से होने लगता है और उत्पादकों अथवा निर्माताओं का लाभ बढ़ जाता है।

(iv) व्यवसाय की ख्याति में वृद्धि – विज्ञापन द्वारा ‘प्रसिद्धि’ होती है जिसके परिणामस्वरूप व्यवसाय की ख्याति निःसन्देह बढ़ती है। इससे व्यापारी को भारी आर्थिक लाभ होते हैं ।

(v) लाभों में वृद्धि — विक्रय में वृद्धि तथा उत्पादन व्यय अथवा वितरण व्यय में कमी होने से उत्पादकों के लाभों मैं वृद्धि होती है। सर विन्सटन चर्चिल (Sir Winston Churchill ) के अनुसार, “विज्ञापन के बिना टकसाल के अतिरिक्त कोई भी धन की उत्पत्ति नहीं कर सकता है।”

(2) उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to Consumers)- 

(i) शिक्षाप्रद एवं ज्ञानवर्द्धक — विज्ञापन द्वारा उपभोक्ताओं को नयी-नयी वस्तुओं के बारे में ज्ञान होता है । उदाहरणार्थ, डालडा का विज्ञापन देखिए जिसमें डालडा के उपयोग से विभिन्न वस्तुएँ किस प्रकार स्वादिष्ट बनायी जा सकती हैं, इस बात का विज्ञापन होता है। 

(ii) उपभोक्ताओं के समय में बचत — विज्ञापन की सहायता से उपभोक्ताओं के समय की बचत होती है क्योंकि उनको वस्तु के ढूँढ़ने में अधिक समय व्यर्थ में नहीं खोना पड़ता है। इसके द्वारा उनको यह मालूम हो जाता है कि किस प्रकार की वस्तु कहाँ से तथा किस मूल्य पर प्राप्त की जा सकती है।

(iii) रहन-सहन के स्तर में सुधार – विज्ञापन से उपभोक्ताओं को नयी-नयी वस्तुओं की जानकारी होती है जिसके कारण उपभोग में वृद्धि होती है और इस प्रकार उनके जीवन-स्तर में सुधार होने लगता है। सर विन्सटन चर्चिल के अनुसार, “विज्ञापन अच्छे जीवन-स्तर के लिए माँग उत्पन्न करता है। “

(iv) मूल्यों की जानकारी — विज्ञापन द्वारा उपभोक्ताओं को वस्तुओं के मूल्यों के सम्बन्ध में जानकारी हो जाती है। इसका कारण यह है कि विज्ञापनदाता प्राय: विज्ञापित वस्तु के मूल्य के सम्बन्ध में भी सूचित कर देते हैं, अत: उनके ठगे जाने का भय नहीं रहता ।

(v) क्रय में सुविधा (Convenience in Purchasing ) – अमेरिकन विज्ञापन विशेषज्ञों के अनुसार, “विज्ञापन ग्राहकों को बुद्धिमत्तापूर्ण क्रय करने में सहायता प्रदान करता है ।” इसके द्वारा ग्राहक सही समय पर, सही स्थान से, सही वस्तु का चयन करने में समर्थ होते हैं।

(3) मध्यस्थों को लाभ (Advantages to Middlemen) :-उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के बीच में सम्पर्क स्थापित कराने वाले अनेक मध्यस्थ होते हैं जिन्हें विज्ञापन से निम्नलिखित लाभ हैं-

(i) जीविका का स्थायी साधन — विज्ञापन से वस्तुओं की माँग में वृद्धि होने के बाद उसमें स्थायित्व आ जाता है। परिणामस्वरूप उनकी जीविका के साधन भी स्थायी हो जाते हैं।

(ii) मूल्यों में स्थायित्व – विज्ञापन के कारण वस्तुओं के मूल्यों में स्थायित्व-सा आ जाता है । प्रायः सारे बाजार में मूल्य एकसमान हो जाते हैं, अतः मध्यस्थों को ग्राहकों से मूल्यों के बारे में माथापच्ची करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

(iii) निर्माताओं अथवा उत्पादकों से सम्पर्क — विज्ञापन के माध्यम से मध्यस्थ निर्माताओं अथवा उत्पादकों के सम्पर्क में आ जाते हैं।

(iv) विक्रेता को प्रोत्साहन एवं समर्थन – विज्ञापन विक्रेता के लिए पृष्ठभूमि तैयार करता है। जब विक्रेता अपने ग्राहक से मिलता है तो उसे वस्तु के बारे में प्रारम्भिक जानकारी नहीं देनी पड़ती क्योंकि विज्ञापन के होने से ग्राहक को स्वतः विज्ञापित वस्तु के बारे में पहले से ही जानकारी हो जाती है। अत: विक्रेता के पास तो केवल ग्राहक से आदेश प्राप्त करने का ही कार्य रह जाता है जिसे वह सफलता के साथ आसानी से निभा सकता है।

(4) समाज एवं देश को लाभ (Advantages to Society and the Country)- 

(i) अनेक व्यक्तियों को आजीविका मिलना – विज्ञापन हेतु कलाकारों, लेखकों तथा विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ती है। इन लोगों की जीविका का एकमात्र साधन विज्ञापन ही है । यही कारण है कि आजकल यह एक स्वतन्त्र व्यवसाय हो गया है।

(ii) स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विकास — विज्ञापन से स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विकास होता है जिससे व्यवसाय का विकास होता है।

(iii) रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठना – विज्ञापन द्वारा वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है। विभिन्न वस्तुओं के उपभोग को प्रोत्साहन मिलता है। इसके परिणामस्वरूप समाज का जीवन स्तर ऊँचा उठने लगता है।

(iv) देश का आर्थिक विकास – विज्ञापन किसी देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। अमेरिका के लूथर एच. हाजेज के अनुसार, “विज्ञापन के बिना हम सबसे सम्पन्न राष्ट्र के निवासी नहीं बन सकते हैं। “

(v) समाज का दर्पण – विज्ञापन का आधार जनसाधारण की रुचि, जन-जीवन का स्तर तथा सामाजिक प्रथाएँ होती हैं। इनको विज्ञापन में सम्मिलित किया जाता है जिससे विज्ञापन में समाज के जीवन की झलक मिलती है।

34. एक अच्छे विज्ञापन के प्रमुख गुण क्या हैं? विज्ञापन के लाभों को स्पष्ट करें।

उत्तर – विज्ञापन के प्रमुख गुण या लाभ निम्नलिखित हैं-

(i) तत्काल प्रदर्शन – समाचार पत्र प्रातः कालीन तथा संध्याकालीन होते हैं। उनमें दिया गया विज्ञापन बहुत ही कम समय में अधिक-से-अधिक लोगों के पास पहुँच जाता है क्योंकि इसका प्रचलन बहुत ही तीव्र गति से होता है।

(ii) विस्तृत क्षेत्र – समाचार पत्र सभी पढ़े-लिखे और जाग्रत लोगों के दैनिक जीवन का आवश्यक अंग हो गया है। इसमें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, देश-विदेश आदि सभी से सम्बन्धित नवीनतम सूचनाएँ रहती हैं। इसका मूल्य भी कम होता है, इसलिए साधारण स्तर के लोग भी सरलतापूर्वक इसका क्रय कर सकते हैं। इनमें दिए गए विज्ञापनों का क्षेत्र सर्वाधिक व्यापक है।

(iii) लोच का होना – परिवर्तन में सरलता जनता की रुचि को ध्यान में रखते हुए समाचार पत्रों में दिये गए विज्ञापनों में सुविधापूर्वक सरलता से परिवर्तन किया जाता है। इस प्रकार इसमें पर्याप्त लोच रहती है।

(iv) प्रकाशन की बारम्बारता – यदि किसी वस्तु का बार-बार विज्ञापन किया जाये तो वह वस्तु धीरे-धीरे मनुष्य की स्मृति का अंग बन जाती है। समाचार पत्रीय विज्ञापन जनसामान्य के पास रोज प्रात: ही पहुँच जाता है जो पाठक के मन में धीरे-धीरे स्थान बना लेता है।

(v) पाठकों की रुचि – समाचार पत्रों द्वारा पाठकों की रुचि के अनुकूल विज्ञापन देना सम्भव होता है । रुचि अनुकूल विज्ञापन देने से जनसाधारण उक्त वस्तु को क्रय करने हेतु तत्पर हो जाता है।

(vi) विविध उपयोग – समाचार पत्रों का उपयोग व्यावसायिक विज्ञापनों के अतिरिक्त अन्य प्रकार के विज्ञापनों के लिए भी होता है जैसे- नौकरी, विवाह, शिक्षा आदि ।

(vii) मितव्ययिता – समाचार पत्रों का प्रचलन अत्यधिक होने के कारण इनकी प्रतियाँ हजारों की संख्या में छपती हैं, अतः इकाई विज्ञापन की लागत न्यूनतम आती है। फलस्वरूप विज्ञापन के इस साधन में भारी मितव्ययिता रहती है। 

35. मूल्य नीति को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।

उत्तर – कीमतों को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं-
(i) उत्पाद विशेषताएँ – उत्पाद विशेषताओं से तात्पर्य अनेक ऐसे कारणों से है जो उत्पाद के जीवन चक्र से सम्बद्ध हैं। विपणन व्यूह-रचना बनाते समय, निर्णय लेने वाले को लागत का अनुकूलीकरण करना चाहिए जिसकी सहायता से उचित कीमतों को निर्धारित किया जाता है जिससे कि प्रयुक्त पूँजी पर सर्वाधिक प्रत्याय प्राप्त हो तथा ग्राहकों की क्षमता के अनुरूप भी हो। इसके लिए निर्णय लेने वालों को लागत के विभिन्न विकल्पों जैसे- स्थिर लागत, परिवर्तनशील लागतों एवं लाभोन्त (Incremental) लागतों का अध्ययन द्वारा सम्भव है। 

(ii) फर्म के उद्देश्य – फर्म द्वारा निर्धारित उद्देश्य भी वस्तु की कीमत को प्रभावित करता है । उदाहरणार्थ, यदि फर्म का उद्देश्य ऊँचा है तो उसकी कीमतें भी ऊँची रखी जायेंगी। इसके विपरीत, फर्म का उद्देश्य बाजार में पैर जमाना है तो उसे कम कीमतें रखनी चाहिए। 

(iii) प्रतिस्पर्धी स्थिति – बाजार में प्रतिस्पर्धा की स्थिति भी कीमतों को प्रभावित करती है। यदि विपणन प्रबन्धक समझता है कि प्रतिस्पर्धा का आकार अधिक है तो कम कीमत रखी जाएगी। इसके विपरीत, कम स्पर्धी स्थिति में कीमतें अनुकूल बाजार वातावरण के कारण अधिक होंगी। एक ही प्रकार की वस्तुएँ जिनकी एक जैसी किस्म है, विपणनकर्ता को वैकल्पिक उत्पादों की कीमतें देखनी चाहिए, ताकि प्रतिस्पर्धी उत्पाद की कीमत तय की जा सके।

(iv) उत्पाद की माँग – कीमत निर्णयों में सर्वाधिक विचारणीय कारक सम्बन्धित उत्पाद की बाजार में उपलब्ध माँग है। माँग के नियम के अनुसार, उत्पाद की माँग अधिक होने पर कीमत भी अधिक होगी एवं प्रतिरूप भी उल्टा । इसके अतिरिक्त, ऋतुकालिक माँग कीमत निर्णयन में विचारणीय होती है अर्थात् सामयिक माँग से भी मूल्य निर्णयन प्रभावित होता है। 

(v) ग्राहकों का व्यवहार – बाजार में कीमत निर्णयों में ग्राहकों का व्यवहार भी सम्बद्ध कारक है। इन दिनों व्यावहारिक विशेषताओं ने व्यावहारिकता पर अधिक बल दिया है। विज्ञापनकर्ता यह महसूस करते हैं कि ग्राहकों के व्यवहार का अध्ययन उत्पाद के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं को पहचानने में सहायक होगा। उनके अध्ययन में ग्राहकों के विभिन्न विखण्डीय व्यवहार का भी अध्ययन करना चाहिए। उदाहरणार्थ, यदि प्रबन्धक किसी औद्योगिक उपभोक्ता से व्यवहार कर रहा है तो इसका कीमत निर्णय भिन्न होगा। इसके विपरीत, यदि वह साधारण उपभोक्ता से व्यवहार कर रहा है तो कीमत निर्णय अलग होगा । 

(vi) राजकीय नियम – कीमत सम्बन्धी निर्णय लेते समय विपणनकर्ता समय-समय पर लगाये गये राजकीय नियमनों को कम महत्व नहीं दे सकता जिससे कि देश में व्यावसायिक क्रिया को नियन्त्रित किया जाता है। अतः समुचित ध्यान ऐसे नियमनों यथा—MRTP कानून, अनिवार्य वस्तु अधिनियम, औद्योगिक विकास एवं नियमन अधिनियम एवं भारत सुरक्षा अधिनियम आदि कानून पर देना चाहिए। इन सभी नियमनों का प्रमुख उद्देश्य ग्राहकों तक माल का सही वितरण करना है । उदाहरणतः सरकारी नियमनों के रहते उत्पाद की कीमतों में वृद्धि, इन समस्त प्रयासों का उपहास होगा। 

36. विज्ञापन से क्या आशय है ? विज्ञापन के विरुद्ध प्रमुख आक्षेपों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर – विज्ञापन के अर्थ के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 14 का अध्ययन करें।

विज्ञापन के विरुद्ध आक्षेप / दोष / आलोचनाएँ (Objections/ Demerits/Criticisms of Advertising ) — विज्ञापन पर धन का व्यय करना अनावश्यक है (Money spent on advertisement is waste- ful). इस विचार के समर्थक अपने उत्तर की पुष्टि के लिए निम्न तर्क देते हैं —
विज्ञापन जहाँ एक ओर समाज के विभिन्न वर्गों के लिए लाभप्रद है, वहाँ दूसरी ओर समाज के लोगों द्वारा ही इसकी कटु शब्दों में आलोचनाएँ की जाती हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गेलब्रेथ तथा प्रमुख दार्शनिक एवं इतिहासकार अर्नोल्ड टॉयनबी ने विज्ञापन की कड़े शब्दों में आलोचनाएँ की हैं। उनके अनुसार, “यह मानव जाति के नैतिक मूल्यों को कम कर देता है तथा मानव की आवश्यकताओं में वृद्धि कर आध्यात्मिक दृष्टि से उसे असन्तुष्ट बना देता है।” विज्ञापन के विरुद्ध आक्षेप / दोष / आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) चंचलता-विज्ञापन उपभोक्ताओं के मन को चलायमान कर देता है क्योंकि वह विज्ञापन की चमक-दमक से बहुत प्रभावित हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह उस वस्तु को नहीं खरीद पाता जिसको कि वह वास्तव में खरीदना चाहता है बल्कि उस वस्तु को खरीदता है जिसने उसके मन को मोह लिया है, जैसे- सिंगर कपड़ा सिलने की मशीन के स्थान पर ऊषा मशीन खरीदना ।

(2) धन का अपव्यय – बहुत से उपभोक्ता उन वस्तुओं को खरीदने के लिए लालायित हो उठते हैं जो कि उनके लिए निरर्थक होती हैं अथवा विलास की वस्तुएँ होती हैं, जैसे—शराब की बोतल । इस प्रकार से उनका सीमित धन अनावश्यक वस्तुओं पर खर्च हो जाता है।

(3) मिथ्या प्रचार – विज्ञापन एक ठग विद्या बन गई है क्योंकि इसके द्वारा बहुत-सी मिथ्या बातों का प्रचार किया जाता है। ऐसे विज्ञापन का उदाहरण निम्न प्रकार है- मिथ्या विज्ञापन के सम्बन्ध में एक और बात बड़ी मशहूर है। एक बार एक व्यक्ति ने अखबार में यह विज्ञापन दिया कि 1 (एक) के डाक टिकट भेजिये, आपको हजारों रुपये कमाने की सरल विधि बताई जायेगी। हजारों व्यक्तियों ने एक रुपये की टिकटें भेजीं। कुछ दिनों के उपरान्त प्रत्येक के पास एक-एक पोस्टकार्ड आया जिसमें लिखा था “हजारों रुपया कमाने की वही विधि अपनाइये जो मैंने आपसे एक-एक रुपया वसूल करके अपनाई है।”

(4) अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को जन्म – विज्ञापन द्वारा अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को जन्म मिलता है जिससे वस्तुओं के मूल्य में अनायास कमी करनी पड़ती है। वस्तुओं के मूल्य में यह कमी उसकी क्वालिटी को गिराकर की जाती है। 

(5) सामाजिक बुराइयाँ – विज्ञापन अधिकतर आरामदायक एवं विलासिता सम्बन्धी वस्तुओं के विक्रय के लिए किया जाता है। इसके कई सामाजिक दुष्परिणाम निकलते हैं। किन्हीं व्यक्तियों को जब किसी एक चीज के उपभोग करने की बुरी आदत पड़ जाती है तो उसका छूटना बहुत कठिन होता है, जैसे – सिगरेट पीना । आजकल विज्ञापन विभिन्न आकर्षक तरीकों से किया जाता है, जैसे- ” Smoking adds to personality”, ” Wine is symbol of friendship.” इन विज्ञापनों से प्रभावित होकर बहुत से व्यक्ति सिगरेट पीना आरम्भ कर देते हैं, बाद में यह आदत छूटती नहीं है।

(6) एकाधिकार को प्रोत्साहन – जिन वस्तुओं का चिन्हित विज्ञापन होता है, वे प्राय: बाजार में अपना अधिकार स्थापित कर लेती हैं और इस प्रकार फिर उत्पादक अथवा व्यापारी धीरे-धीरे इच्छानुसार वस्तुओं का मूल्य परिवर्तन करते रहते हैं।

(7) नगर स्वच्छता में कमी – यत्र-तत्र किया हुआ विज्ञापन नगर की प्राकृतिक शोभा को कम कर देता है। इस प्रकार मकानों की दीवारें एवं सड़कें आदि गन्दी दिखाई देने लगती हैं।

(8) अश्लील विज्ञापन – अश्लील विज्ञापन से जनता का नैतिक पतन होता है । आजकल नग्न अथवा अर्द्ध नग्न स्त्रियों के चित्र प्रदर्शित करना तो एक आम बात हो गयी है, जैसे- दिल्ली में दिखायी जाने वाली एक अंग्रेजी फिल्म ‘Night of the Quarter Moon’ के पोस्टर का जनता द्वारा जो विरोध किया गया था, वह इस बात का ज्वलन्त उदाहरण है कि ऐसा विज्ञापन जन-समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाता है। 

37. विज्ञापन के प्रमुख माध्यमों का वर्णन कीजिए।

उत्तर – विज्ञापन के साधन (Medias of Advertising) – विज्ञापन के दो माध्यम हैं- 

(1) घरेलू विज्ञापन साधन (Indoor Advertising Media) – यह उन संदेशवाहकों से सम्बन्धित हैं जिनके द्वारा विज्ञापनकर्ता लक्ष्य समूहों के घरों तक संदेश पहुँचाते हैं। ये साधन निम्नलिखित हैं- 

(i) समाचार पत्र विज्ञापन         

(ii) पत्रिकाएँ विज्ञापन                                 

(iii) रेडियो विज्ञापन    

(iv) टेलीविजन विज्ञापन                                 

(v) फिल्म विज्ञापन ।                                       

(2) बाह्य विज्ञापन माध्यम (Outdoor Advertising Media) – ये उन तकनीकों से सम्बद्ध हैं जो ग्राहकों से तब सम्पर्क करता है जब वे घर के बाहर होते हैं। ऐसे माध्यम निम्न हैं-

(i) पोस्टर विज्ञापन

(ii) प्रिण्ट निरूपण विज्ञापन

(iii) विद्युत् चिन्ह विज्ञापन

(iv) यात्रा निरूपण विज्ञापन

(v) आकाश लेखन विज्ञापन ।

38. विज्ञापन को करने के क्या उद्देश्य हैं? विस्तार से बतायें ।

उत्तर – विज्ञापन के उद्देश्य (Objectives of Advertising ) – सामान्य व्यक्ति की दृष्टि से विज्ञापन का मूलभूत उद्देश्य विक्रय वृद्धि करना है किन्तु व्यावसायिक दृष्टिकोण से विज्ञापन का उद्देश्य यहीं तक सीमित नहीं है। वस्तुओं का विज्ञापन कई उद्देश्यों से किया जाता है। कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) नवनिर्मित वस्तुओं अथवा सेवाओं की जानकारी देना (To In- troduce New Products or Services) – लोगों को किसी नवनिर्मित वस्तु अथवा सेवा की बाजार में विद्यमानता की जानकारी देना एवं उन्हें आकर्षित करके माँग उत्पन्न करना विज्ञापन का एक प्रमुख उद्देश्य है।

(ii) विक्रय वृद्धि करना (To Increase Sales) – विज्ञापन का एक – अन्य प्रमुख उद्देश्य विक्रय वृद्धि करना है। व्यापारी सदैव विक्रय वृद्धि करना चाहता है अत: इसी उद्देश्य से वह अपनी वस्तुओं का विज्ञापन करता है।

(iii) नये-नये बाजारों का सृजन एवं विकास करना (To Create and Development of New Markets) – विज्ञापन का एक उद्देश्य नये-नये बाजारों का सृजन करना एवं उनका विकास करना भी है। विज्ञापन द्वारा नये बाजारों में प्रवेश करना एवं उनका विकास करना सरल होता है।

(iv) उत्पन्न माँग का पोषण करना (To Maintain the Created Demand) – विज्ञापन का उद्देश्य न केवल माँग उत्पन्न करना है अपितु उत्पन्न माँग का पोषण करना भी है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही विज्ञापन बार-बार किया जाता है।

(v) उपभोक्ता को शिक्षित करना (To Educate the Consu- mer)—विज्ञापन का उद्देश्य उपभोक्ता को शिक्षित करना भी है। विज्ञापन द्वारा उपभोक्ताओं को विज्ञापित वस्तु की उपलब्धता, पहचान तथा उसके प्रयोग के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान की जाती है।

(vi) विक्रेता को विक्रय में सहायता देना (To Supplement Sales- man)—विज्ञापन भावी ग्राहकों को अभिप्रेरित करके विक्रेताओं के पास पहुँचाता है और इस प्रकार विक्रेताओं के बिक्री प्रयत्न को सुगम एवं सहज बनाता है।

(vii) प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना एवं विजय प्राप्त करना (To Face and Accomplish Success in Competition) – विज्ञापन का एक उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना एवं उसमें विजय प्राप्त करना है । प्रतिस्पर्द्धा करने वाली वस्तुओं की तुलना में अपनी वस्तुओं की श्रेष्ठता का ज्ञान विज्ञापन द्वारा ही कराया जा सकता है।

(viii) संशय एवं भ्रामक विचारों को दूर करना (To Remove Doubts and Confusion)— विज्ञापन का एक उद्देश्य विज्ञापित वस्तुओं की बिक्री के मार्ग में उत्पन्न होने वाले गलत एवं भ्रामक विचारों को दूर करना है। यह विज्ञापित वस्तु की लोकप्रियता बनाने के लिए परम आवश्यक है।

(ix) सावधान करना (To Make Cautious) – विज्ञापन का एक उद्देश्य जन-साधारण एवं व्यापारियों को नकली तथा स्थानापन्न वस्तुओं के प्रति सावधान करना है । 

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