Eps Class 12 Chapter 4 Subjective in Hindi

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उद्यमितीय / साहसिक सुअवसर की पहचान एवं व्यवहार्थता अध्ययन

1.पारिस्थितिक व्यवहार्यता क्या है?

उत्तर- पारिस्थितिक व्यवहार्यता उन परियोजनाओं के लिये आवश्यक है जिनका प्रभाव पर्यावरण पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है; जैसे- विद्युत्, सिंचाई, सीमेंट, रसायन उद्योग आदि। इनका उद्देश्य पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकना है।

2. व्यवहार्यता अध्ययन क्या है? 

उत्तर- साहसी के उत्पाद के लिए जो उपक्रम बनाया जाएगा वह कैसा होगा, कहाँ होगा, कब होगा, उपक्रम कैसे संचालित होगा, क्या लागत आएगी, विक्रय मूल्य कितना होगा, इसका असर अन्य प्रतियोगियों पर क्या होगा, कैसे पॅकिंग होगी, विज्ञापन कैसे होगा, वितरण की व्यवस्था क्या रहेगी, खर्च के लिए व उत्पादन हेतु कहाँ से कितना संसाधन प्राप्त हो सकेगा, और सबसे बड़ी बात-लाभ की क्या गुंजाइश रहेगी आदि ।

3. प्रवृत्ति का उद्यमिता पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर- उद्यमी की मनोवृत्ति उद्यमिता को प्रभावित करती है। मनोवृत्ति व्यक्ति की सोच होती है तथा किसी उद्देश्य अथवा विचार के सम्बन्ध में अनुकूल एवं प्रतिकूल मूल्यांकन होता है। यह किसी व्यक्ति की प्रवृत्ति के रूप में वर्णित की जाती है। यह अदृश्य होती है। मनोवृत्ति उद्यमी के व्यवहार की व्याख्या एवं अनुमान करने की एक उपयोगी विधि है। उद्यमी की मनोवृत्ति प्रस्तावित परियोजना की सफलता को प्रभावित करती है।

4. व्यवहार्यता अध्ययन में किसका अध्ययन किया जाता है?

उत्तर- व्यवहार्यता अध्ययन में उत्पाद के लिये जो उपक्रम बनाई जायेगी वह कैसी होगी, कहाँ होगी, कब होगी, उपक्रम कैसे संचालित होगी, क्या लागत आयेगी, विक्रय मूल्य कितना होगा, इसका असर अन्य प्रतियोगियों पर क्या होगा इत्यादि का अध्ययन आता है।

5. तकनीकी सम्भाव्यता अध्ययन आवश्यक क्यों है? समझाइये।

उत्तर- कच्चे माल के प्रति आश्वस्त हो जाने के बाद साहसी को यह देखना चाहिये कि उसके उत्पाद के लिये किस मशीन, यंत्र, उपकरण एवं तकनीक आदि की आवश्यकता होगी, यह कितने में और कहाँ से उपलब्ध हो सकेगा, इसे चलाने के लिये किस स्तर के प्रशिक्षित कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी इन कर्मचारियों का जुगाड़ आसानी से हो सकेगा या नहीं ? कहीं नया उत्पाद तकनीकीय जंजाल में उलझकर तो नहीं रह जायेगा ? अतः उत्पाद के चुनाव में तकनीकी पहलू के बारे में भी विचार कर लेना चाहिये।

6. उत्पाद के चुनाव में प्रतियोगिता की क्या भूमिका है?

उत्तर- प्रतियोगिता (Competition ) – आज के प्रतिस्पद्धात्मक युग में साहसी चारों दिशाओं में अपने अगल-बगल, बायें दायें हर और अपने आपको प्रतियोगियों से घिरा हुआ पाता है। ऐसी स्थिति में यदि उसे इन प्रतियोगियों से लोहा लेते हुए आगे बढ़ना है तो ऐसे उत्पाद का चुनाव करना होगा जो बाकी प्रतियोगियों की तुलना में बेहतर किस्म और कम दाम का हो। यदि उत्पाद बिल्कुल नई तरह का है तो इसकी प्रतिस्थापन ( Substitute) वाली दूसरी वस्तु के मूल्य और बाजार में इसकी वर्तमान स्थिति पर भी विचार करना चाहिए।

7. साहसिक सुअवसर की पहचान की आवश्यकता क्यों है?

उत्तर- उद्यमी को साहसिक सुअवसर के पहचान की आवश्यकता इसलिये पड़ती है कि उससे किसी उत्पाद या सेवा का चयन उचित समय रहते हो जाता है जिसका सबसे बड़ा लाभ उसे बाजार निर्धारण, व्यावहारिकता, उत्पादन लागत तथा विभिन्न तकनीकी पहलुओं जैसे तत्वों को बोध होता है।

8. उत्पाद के तकनीकी पहलू / व्यवहार्यता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर– उत्पाद के लिए किस मशीन, यन्त्र, उपकरण एवं तकनीक की आवश्यकता होगी और वह कितने में और कहाँ से उपलब्ध हो सकेगी एवं इसे चलाने के लिए किस स्तर के प्रशिक्षित कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी और वह कहाँ से और आवश्यकतानुसार उपलब्ध हो सकेंगे या नहीं ? कहीं नया उत्पाद तकनीकी जंजाल में उलझकर तो नहीं रह जायेगा ? अतः स्पष्ट है कि उत्पाद के चुनाव में तकनीकी पहलू के बारे में भी विचार कर लेना चाहिए।

9. बाजार व्यवहार्यता क्या है

उत्तर- उत्पाद का चुनाव करने से पूर्व उसके बाजार का निर्धारण कर लेना चाहिए कि उक्त उत्पाद का बाजार स्थानीय होगा या राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय यदि 1 वह उत्पाद पहले से बाजार में उपलब्ध है तो देखना चाहिए कि उद्यमी अब जो उत्पाद लाने जा रहा है उसका कारण क्या है, पुराने उत्पाद की तुलना में उसके नये उत्पाद के प्रति बाजार का क्या रुख रहेगा

10. उत्पाद या सेवा का चुनाव करते समय ध्यान देने योग्य बातों को बतायें।

उत्तर- व्यवसाय या सेवा का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए – (1) बाजार का निर्धारण, (2) व्यवहारिकता, (3) उत्पादन लागत, (4) प्रतियोगिता, (5) कच्चे माल की उपलब्धता, (6) तकनीकी पहलू, (7) लाभ की सम्भावना।

11. किसी वस्तु या सेवा का चुनाव करते समय साहसी को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? “अथवा” एक सम्भाव्य उत्पाद या प्रक्रिया की पहचान से पूर्व एक विचार का कुछ परिधियों के साथ-साथ परीक्षण किया जाना चाहिए जिसमें बहुत-से चरण सम्मिलित हैं। पहले चार चरणों को समझाइए

उत्तर- एक साहसी को उत्पाद का चुनाव करते समय अनेक घटकों को ध्यान में रखना चाहिए, जो इस प्रकार हैं- (i) आयात प्रतिबन्ध (Import Restrictions ) – यदि किसी उत्पाद के आयात पर प्रतिबंध है तो उसका चुनाव अवश्य करना चाहिए। (ii) भूतकाल का अनुभव (Past Experience ) – जब साहसी ने स्वयं अथवा उसके साझीदार के पास भूतकाल में उस उत्पाद को बनाने अथवा बिक्री करने का अनुभव है तो ऐसे उत्पाद का चुनाव करना आवश्यक है। जिस क्षेत्र में अनुभव नहीं है, उनका चुनाव नहीं करना चाहिए। (iii) लाभदायकता की मात्रा (Degree of Profitability) – उत्पाद चुनाव लाभदायकता की मात्रा से भी प्रभावित होता है। ऐसे उत्पादों की सूचनाएँ बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और बाजार स्रोतों से भी प्राप्त की जा सकती हैं। (iv) छूटों की सुविधा (Facility of Concession ) – सरकार भी कभी-कभी कुछ उत्पादों को विशेष छूटों की सुविधा देती है विशेषकर उन उत्पादों को जो सरकार को आयात करने पड़ते हैं। (v) उत्पाद का वर्ग (Class of Product) कुछ उत्पाद प्राथमिकता वाले उद्योगों के रूप में होते हैं, जैसे कुछ उत्पाद सरकारी आदेश के अनुसार केवल लघु क्षेत्र से ही खरीदे जायें। ऐसी स्थिति में ऐसे उत्पाद का चयन श्रेष्ठ रहेगा। (vi) उत्पाद का बाजार (Market for the Product )-उत्पाद का बाजार में महत्व भी चुनाव में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जिस उत्पाद का निर्यात करना संभव है, उसका चुनाव श्रेष्ठ होगा तथा उसका व्यवसाय की सफलता मैं काफी महत्व होगा। (vii) उत्पाद लाइसेंस (Product Licence) – जिस उत्पाद को बनाने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना हो, उसमें बड़ी कठिनाइयाँ आती हैं। अतः उत्पाद चुनाव करते समय यह अवश्य निश्चित कर लेना चाहिए कि क्या उत्पाद को बनाने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता होगी अथवा नहीं। (viii) सहायक और सेवा इकाइयों की सुविधा (Facility of Ancillary and Service Units) – जहाँ सहायक और सेवा इकाइयों की सेवाएँ बड़े उद्योगों को सुविधा देती हैं तो ऐसे उत्पादों का चयन करना चाहिए। निष्कर्ष ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य परियोजना की प्रमुख विशेषताओं को पहचानना होता है, किसी परियोजना का विचार अनेक समस्याओं से जुड़ा होता है, उन सभी का निवारण कैसे होगा? इस विषय पर गम्भीरता से सोचना चाहिए

12. व्यवहार्यता अध्ययन क्यों आवश्यक है? यह कैसे किया जाता है

उत्तर- व्यवहार्यता अध्ययन (Feasibility Study)- उत्पाद का चयन कर लेने के पश्चात् साहसी अपनी कल्पना अर्थात् सोचों को साकार रूप देने की तैयारी में लग जाता है। उसके उत्पाद के लिए जो उपक्रम बनाई जायेगी, वह कैसी होगी, कहाँ होगी, कब होगी, उपक्रम कैसे संचालित होगी, क्या लागत आयेगी, विक्रय मूल्य कितना होगा, इसका असर अन्य प्रतियोगियों पर क्या होगा, कैसे पैकिंग होगी, विज्ञापन कैसे होगा, वितरण की व्यवस्था क्या रहेगी, खर्च के लिए व उत्पादन हेतु कहाँ से कितना संसाधन प्राप्त हो सकेगा, लाभ की क्या गुंजाइश रहेगी आदि ‘नाखून से बाल’ तक की पूरी सम्भावनाओं को कागज पर लिखकर अध्ययन करना चाहिए। इस अध्ययन से ही साहसी को पता चलेगा कि उसके उत्पाद की कल्पना एवं विचार वास्तव में व्यवहार्य (Feasible) है या नहीं ? इन्हीं बातों के अध्ययन को ‘व्यवहार्यता अध्ययन’ कहा जाता है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही आगे की योजना तैयार की जाती है। व्यवहार्यता रिपोर्ट में सभी उपर्युक्त तथ्यों से सम्बन्धित बातों को प्रश्नावली (Questionnaire) के रूप में लिखकर इसका उत्तर स्वयं से पूछना चाहिए या फिर अन्य विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करके सुनिश्चित करना चाहिए कि वास्तव में साहसी अब जो कुछ करने जा रहा है उसमें व्यावहारिक सच्चाई कितनी है ? व्यवहार्यता रिपोर्ट के अध्ययन से आश्वस्त हो जाने के बाद अब जोखिमों का खिलाड़ी उपक्रम स्थापित करने की प्रक्रिया में जुट जाता है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि उपक्रम चाहे छोटा हो या बड़ा, दोनों के लिए व्यवहार्यता अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि यह नियोजन एवं प्रोजेक्ट रिपोर्ट के लिए आधार का कार्य करती है।

13. उत्पाद या सेवा का चुनाव करते समय ध्यान देने योग्य|

उत्तर—आनन-फानन (Hasty) में किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन या विक्रय को असली रूप दे देना घातक हो सकता है। अतः इसके लिए साहसी को निम्नांकित मापदण्डों (Parameters) का ध्यान रखना चाहिए- 1. बाजार का निर्धारण (Market Assessment) – उत्पाद का चुनाव करने से पूर्व उसके बाजार का निर्धारण कर लेना चाहिए कि उक्त उत्पाद का बाजार स्थानीय होगा या राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय यदि वह उत्पाद पहले से ही बाजार में मौजूद है तो देखना चाहिए कि साहसी अब जो उत्पाद लाने जा रहा है, उसका कारण क्या है, पुराने की तुलना में उसके नये उत्पाद के प्रति बाजार का क्या रुख रहेगा। हाँ, यदि साहसी कोई ऐसा उत्पाद लाने की सोच रहा है जो पहले से बाजार में बिल्कुल नहीं है तो इसके प्रति भी बाजार सर्वेक्षण कर अपने सम्भावित ग्राहकों का पता लगाना होगा। अतः बाजार का अध्ययन ही इस निर्णय का निर्धारक होगा कि उक्त उत्पाद को लाया जाए या नहीं। बाजार सर्वेक्षण के अन्तर्गत माँग, पूर्ति, वस्तु की लागत एवं मूल्य प्रतियोगिता, नये परिवर्तन की सम्भावना, इसके प्रति बाजार की संवेदनशीलता, विज्ञापन एवं प्रचार का बाजार पर प्रभाव आदि बातों का अध्ययन किया जाता है। 2. उत्पादन लागत (Cost of Production) – उत्पाद की व्यावहारिकता एवं बाजार निर्धारण सुनिश्चित करने के बाद उत्पाद की लागत प्रति इकाई (per unit) का आगणन करके देखना चाहिए कि इसकी लागत कहाँ इतनी अधिक नहीं हो रही हो कि उपभोक्ता उस उत्पाद को सिर्फ दूर से देखकर नमस्कार कर लेने में ही अपनी भलाई समझे उत्पाद चाहे कितना भी नवीनता लिए क्यों न हो, हमेशा ऐसी लागत की परिधि में होना चाहिए जो उपभोक्ता की जेब के अनुकूल हो। उदाहरणतः यदि एक साहसी ऐसा उत्पाद पाउडर के रूप में लाने की सोच रहा है जो 100 ग्राम स्कूटर की टंकी में डालने से बिना पेट्रोल के 40 किलोमीटर चल सकती है। सचमुच में उसकी सोच क्रान्तिकारी है, जो पेट्रोल की समस्या से मुक्ति दिला देगी किन्तु इसकी लागत 60 प्रति 100 ग्राम होना तो स्वाभाविक है कि कोई व्यक्ति इसे नहीं खरीदना चाहेगा अतः साहसी को यह उत्पाद तब तक बाजार में नहीं लाना होगा जब तक कि पैट्रोल इससे महँगा नहीं हो जाए। इस प्रकार उत्पादन पहचान और चुनाव में लागत तत्व का विशेष महत्व है।

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