Hindi Class 12 Chapter 11 Subjective

12th Hindi Chapter 11 Subjective : Here you can find class 12th hindi 100 marks Subjective questions for board exam 2024. हँसते हुए मेरा अकेलापन subjective questions is very important for bihar board exam 2024. 

हँसते हुए मेरा अकेलापन

1. मलयज किस दौर के कवि हैं? .

उत्तर- नई कविता के अन्तिम दौर के।

2. मलयज मन का कूड़ा किसे कहते हैं?

उत्तर- डायरी को।

 

3. मलयज किस कर्म के बिना मानवीयता को अधूरी मानते हैं?

उत्तर- रचनात्मक कर्म।

4. हँसते हुए मेरा अकेलापन’ किसकी कृति है?

उत्तर- मलयज की।

5. मलयज का मूल नाम क्या था?

उत्तर-भरत जी श्रीवास्तव।

6. “मैं संयत हूँ….पानी ठंडा’ किसके लिए कहा है?

उत्तर-लेखक ने स्वयं अपने लिए।

7.डायरी क्या है?

उत्तर- डायरी किसी साहित्यकार या व्यक्ति द्वारा लिखित उसके महत्वपूर्ण दैनिक अनुभवों का ब्योरा है जिसे वह बड़ी ही सच्चाई के साथ लिखता है। डायरी से जहाँ हमें लेखक के समय की उथल-पुथल का पता चलता है तो वहीं उसके निजी जीवन की कठिनाइयों का भी पता चलता है।

8. डायरी का लिखा जाना क्यों मुश्किल है?

उत्तर- डायरी जीवन का दर्पण है। डायरी में शब्दों और अर्थों के बीच तटस्थता कम रहती है। डायरी में व्यक्ति अपने मन की बातों को कागज पर उतारता है। वह अपने यथार्थ को अपने ढंग से अपने समझने योग्य शब्दों में लिखता है। डायरी खुद के लिए लिखी जाती है, दूसरों के लिए नहीं। डायरी लिखने में अपने भाव के अनुसार शब्द नहीं मिल पाते हैं। यदि शब्दों का भंडार है भी तो उन शब्दों के लायक के भाव ही न होते हैं। डायरी में मुक्ताकाश भी होता है, तो सूक्ष्मता भी। शब्दार्थ और भावार्थ के आशिक मेल के कारण डायरी का लिखा जाना मुश्किल है।

9. किस तारीख की डायरी आपको सबसे प्रभावी लगी और क्यों?

उत्तर- 10 मई 1978 ई. की डायरी अतुलनीय है। यह डायरी मुझे बड़ी प्रभावी नजर आती है। इस डायरी में लेखक ने अपने यथार्थ के बारे में लिखा है। उन्होंने जीवन की सच्चाइयों से अपने को रूबरू बखूबी करवाया है। उन्होंने इस डायरी में स्पष्टतः यह दिखलाया है कि मनुष्य यथार्थ को जीता भी है, और इसका रचयिता भी वह स्वयं ही है। इसमें उन्होंने यह भी बताया है कि रचा हुआ यथार्थ भोगे हुए यथार्थ से बिल्कुल भिन्न है। हालांकि दोनों में एक तारतम्य भी है। इसमें उन्होंने संसार को यथार्थ के लेन-देन का एक नाम दिया है। वे संसार से जुड़ाव को रचनात्मक कर्म कहते हैं, जिसके ना होने पर मानवीयता ही अधूरी है। इस डायरी की एक मूल बात जो बड़ी गहराइयों को छूती है वह है रचे हुए यथार्थों का स्वतंत्र हो जाना।

10. डायरी के इन अंशों में मलयज की गहरी संवेदना घुली हुई है। इसे प्रमाणित करें।

उत्तर- मलयज एक बेहद ही संवेनदनशील लेखक हैं। उनकी हर रचना चाहे कविता हो, आलोचमा हो या फिर डायरी उनकी संवेदनशीलता का परिचायक है। डायरी के इन अंशों में मलयज अपनी संवेदनशीलता का बखूबी परिचय देते हैं। इन डायरी के अंशों में उनकी संवेदनशीलता जगह-जगह जाहिर हुई है। खेत की मेड़ पर बैठी कौवों की कतार को देखना हो या फिर अकेलापन। नेगी परिवार की मेहमानबाजी की बात हो या फिर स्कूल के दो अध्यापकों से परिचय। अपने द्वारा रचे गए यथार्थ हो या फिर भोगे गए दिन। डायरी में लिखने के लिए चयनित शब्द हों या फिर सुरक्षा की भावना उनकी संवेदनशीलता का परिचय देती है। सेब बेचनेवाली लड़की की आतुरता और उसकी ललक मलयज की संवेदनशील निगाहें ही देख पाती है। आम जीवन में होनेवाले डर और दुनिया में जिजीविषा मलयज की गहरी संवेदना की छाप छोड़ती है।

11. व्याख्या करें-आदमी यथार्थ को जीता ही नहीं, यथार्थ को रचता भी है।

उत्तर-  प्रस्तुत पंक्ति मलयज लिखित ‘हँसते हुए मेरा अकेलापन’ शीर्षक डायरी से ली गई है। प्रस्तत पंक्तियों में समर्थ लेखक मलयज के 10 मई 1978 की डायरी की है। जीवमात्र को जीने के लिए हमेशा संघर्ष करना पड़ता है। वह इन संघर्षों को जीता है। यदि संघर्ष ना रहे तो जीवन का कोई मोल ही न हो। मनुष्य इन यथार्थों के सहारे जीवन जीता है। वह इन यथार्थ का भोग भी करता है और भोग करने के दौरान इनकी सर्जना भी कर देता है। संघर्ष संघर्ष को जन्म देती है। कहा गया है गति ही जीवन है और जड़ता मृत्यु। इस प्रकार आदमी यथार्थ को जीता है। भोगा हुआ यथार्थ दिया हुआ यथार्थ है। हर एक अपने यथार्थ की सर्जना करता है और उसका एक हिस्सा दूसरे को दे देता है। इस तरह यह क्रम चलता रहता है। इसलिए यथार्थ की रचना सामाजिक सत्य की सृष्टि के लिए एक नैतिक कर्म है।।
12. इस संसार से संपृक्ति एक रचनात्मक कर्म है इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति मलयज लिखित ‘हँसते हुए मेरा अकेलापन’ शीर्षक डायरी से ली गई है। प्रस्तुत पंक्ति के समर्थ लेखक मलयज के अनुसार मानव का संसार से जुड़ा होना निहायत जरूरी है। मानव संसार के अमानों का उपभोग करता है और उसकी सर्जना भी करता है। मानव अपने संसार का निर्माता स्वयं है। वह ही अपने संसार को जीता है और भोगता है। संसार में संक्ति ना होने पर कोई कर्म ही ना करे। कर्म करना जीवमात्र के अस्तित्व के लिए बहुत ही आवश्यक है। उसके होने की शर्त संसार को भोगने की प्रवृति ही है। भोगने की इच्छा कर्म का प्रधान कारक है। इस तरह संसार से संपृक्ति होने पर जीवमात्र रचनातमक कर्म की ओर उत्सुक होता है। इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है क्योंकि इसके बिना उसका अस्तित्व ही संशयपूर्ण है। 

13.‘धरती का क्षण’ से क्या आशय है?

उत्तर- लेखक कविता के मूड में जब डायरी लिखते हैं तो शब्द और अर्थ के मध्य की दूरी अनिर्धारित हो जाती है। शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में बदलते चले जाते हैं, एक दूसरे को पकड़ते-छोड़ते हुए। शब्द और अर्थ का जब साथ नहीं होता तो वह आकाश होता है जिसमें रचनाएँ बिजली के फूल की तरह खिल उठती हैं किन्तु जब इनका साथ होता है तो वह धरती का क्षण होता है और उसमें रचनाएँ जड़ पा लेती हैं प्रस्फुटन का आदिप्रोत पा जाती हैं। अतः यह कहना उचित है कि शब्द और अर्थ दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

14. रचे हुए यथार्थ और भोगे हुए यथार्थ में क्या संबंध है?

उत्तर- भोगा हुआ यथार्थ एक दिया हुआ यथार्थ है। हर आदमी अपना-अपना यथार्थ रचता है और उस रचे हुए यथार्थ का एक हिस्सा दूसरों को दे देता है। हर आदमी उस संसार को रचता है जिसमें वह जीता है और भोगता है। रचने और भोगने का रिश्ता एक द्वन्द्वात्मक रिश्ता है। एक के होने से ही दूसरे का होना है। दोनों की जड़ें एक-दूसरे में हैं और वहीं से वे अपना पोषण रस खींचते हैं। दोनों एक-दूसरे को बनाते तथा मिटाते हैं।

15.लेखक के अनुसार सुरक्षा कहाँ है? वह डायरी को किस रूप में देखना चाहता है?

उत्तर- लेखक मलयज डायरी लेखन को सुरक्षित नहीं मानता है। लेखक इस बात से सहमत नहीं कि हम यथार्थ से बचने के लिए डायरी लिखें और अपने कर्तव्य का इतिश्री समझें। यह तो वास्तविकता से मुँह मोड़ना हुआ। यह पलायन है, कायरता है। हम यह नहीं कह सकते कि हम अपनी गलतियों, अपनी पराजय को डायरी लिखकर छिपा सकते हैं। यह एक छद्म आवरण की भाँति होगा, जिसे रोशनी की एक लकीर भी तोड़ सकता है।  लेखक के अनुसार सुरक्षा इन चुनौतियों को जीने में है। जीवन के खट्टे स्वादों से बचने के लिए हम अपनी जीभ काट लें यह कहाँ की चतुरता है, इससे तो हम मोटे स्वाद से भी वंचित हो जाएँगे। सुरक्षा कठिनाइयों का डटकर मुकाबला करने में है, अपने को बचाने में नहीं। लेखक डायरी को मुसीबतों से बिना लड़े पलायन किए जाने के रूप में देखता है।

16. डायरी के इन अंशों से लेखक के जिस ‘मूड’ का अनुभव आपको होता है, उसका परिचय अपने शब्दों में दीजिए

उत्तर- प्रस्तुत डायरी हँसते हुए मेरा अकेलापन शीर्षक डायरी में लेखक के कई मूड हमें परिलक्षित होते दिखाई देते हैं। लेखक ने स्वयं डायरी लिखने के पूर्व कहा है-“डायरी लेखन मेरे लिये एक दहकता हुआ जंगल है, एक तटस्थ घोंसला नहीं…….। डायरी मेरे कर्म की साक्षी हो, मेरे संघर्ष की प्रवक्ता हो यही मेरी सुरक्षा है।  मलयज प्रकृति के प्रति अपनी भावना (मूड) डायरी के प्रथम अंश में ही प्रस्तुत करता है। पेड़ों की हरियाली के बीच अधसुखे पेड़ों का कटना बाहर निकलने पर सफेद रंग के कुहासे का सामना करना, ये सारी बातें स्पष्ट करती हैं कि एक कलाकार के लिये यह निहायत जरूरी है कि उसमें आग हो ‘और खुद………ठंढा’ हो। मलयज कभी-कभी चित्रकार के मूड में दिखाई देते हैं। खेत और फसल की चर्चा करते हुए उन्होंने मानव जीवन के कई पहलुओं-बचपन, युवावस्था, बुढ़ापा का अकेलापन किया है जिस प्रकार फसल उगते बढ़ते हैं, फलते और पकते तथा बाद में उनकी कटाई की जाती है यही स्थिति. मनुष्य की भी है। लेखक यहाँ कवि हृदय के मूड में दिखाई देते हैं। लेखक का मूड जीवन की यथार्थ अनुभूति का भी अनुभव करने से नहीं चूकता। उनका कहना है-रचा हुआ यथार्थ, भोगे हुए यथार्थ से अलग है। शीघ्र ही उनका मूड बदलता है और वे लिखते हैं, कि संसार में जुड़ाव एक रचनात्मक कर्म है। रचना और भोग को वे एक-दूसरे को पूरक मानते हैं। उनके अनुसार मन का डर बड़ा ही खतरनाक है। डरा व्यक्ति अपने कर्तव्य पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता। अतः निर्भय होना ही मनुष्य की प्रगति का कारण बनता है। इस प्रकार लेखक ने अपने कई मूडों का प्रदर्शन इस डायरी के अंश में किया है, जिसका अनुभव पाठकों को सहज ही होता है।

17. अर्थ स्पष्ट करें-एक कलाकार के लिये निहायत जरूरी है कि उसमें ‘आग’ हो-और खुद ठंढा हो।

उत्तर- लेखक मलयज ने अपनी डायरी में एक कलाकार की मनोदशा का चित्रण प्रस्तुत पंक्ति में की है। लेखक का कहना है कि एक कलाकार के लिए जरूरी है उसके दिल में आग हो। उसमें कुछ कर गुजरने की क्षमता हो। साथ ही, एक कलाकार दिमाग से शांत प्रकृति का होता है। एक कलाकार के लिए ठंढे दिमाग का व्यक्ति होना अनिवार्य है। एक कलाकार का सही चित्रण लेखक ने यहाँ किया है।

18.चित्रकारी की किताब में लेखक ने कौन सा रंग सिद्धान्त पढ़ा था?

उत्तर- चित्रकारी की किताब में लेखक ने यह रंग सिद्धांत पढ़ा था कि शोख और भड़कीले रंग संवेदनाओं को बड़ी तेजी से उभारते हैं, उन्हें बड़ी तेजी से चरम बिन्दु की ओर ले जाते हैं और उतनी ही तेजी से उन्हें ढाल की ओर खींचते हैं।

19. 11 जून 78 की डायरी से शब्द और अर्थ के संबंध पर क्या प्रकाश पड़ता है? अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर- शब्द और उसके अर्थ किसी भी रचना के मापदण्ड हैं। यदि शब्द-अलग हों उनके भाव कुछ और तो यह लेखक का पांडित्य को दर्शाता है, परन्तु सामान्य पाठक लेखक की बात को नहीं समझ पाता है। डायरी में चूँकि लेखक अपने यथार्थ की बात लिखता है, इसलिए शब्दों और अर्थों में तटस्थता कम रहती है, इस कारण डायरी लिखना कठिन भी है। यदि अर्थ शब्द के साथ चलते हैं तब रचना सामान्य जन की होती है हालांकि उसका विस्तार सीमित होता है जो रचना की उत्पत्ति का आदि स्रोत है। यदि अर्थ और शब्द साथ-साथ नहीं चलते हैं तो रचना एक उन्मुक्त आकाश की भाँति हो जाती हैं, जिसमें पाठक उसे अपनी परिकल्पनाओं के अनुसार समझता है।

20. रचना और दस्तावेज में क्या फर्क है? लेखक दस्तावेज को रचना के लिए कैसे जरूरी बताता है?

उत्तर- दस्तावेज रचना के लिए जरूरी कच्चा माल है। दस्तावेज वे तथ्य हैं जिनके आधार पर किसी रचना का जन्म होता है। वे सारी घटनाएँ, परिस्थितियों, हमारे जीवन का भोग-अनुभव दस्तावेज के घटक हैं और रचना के कारक, बिना दस्तावेज के रचना का हमारे जीवन से कोई सरोकार ही नहीं है, इसलिए रचना का कोई मोल नहीं है। इस तरह रचना के लिए दस्तावेज बहुत जरूरी है। रचना हमारी सोच की एक क्षितिज प्रदान करती हैं। ये एक माध्यम हैं, उन परिस्थितियों से जूझने का। दस्तावेज परिस्थितियों, घटनाएँ या अनुभव होती हैं, इसलिए इन्हें केवल परिष्कृत दिमाग ही पहचान पाता है लेकिन जब यही रचना का रूप ले लेता है, तब यह जन के लिए हो जाता है।

21. लेखक अपने किस डर की बात करता है? इस डर की खासियत क्या है? अपने शब्दों में लायरी में दो तरह के डर का प्रयजनों को खोने का

उत्तर- लेखक डायरी में दो तरह के डर की बात करता है–पहला डर है आर्थिक और दूसरा डर है सामाजिक प्रतीक्षा का डर। लेखक अपने प्रियजनों को खोने का डर आर्थिक तंगी की वजह से बताने के लिए बड़ी चतुराई से बीमारियों का सहारा लिया है। वह कहता है कि मने अपने प्रियजनों के बीमार हो जाने की बात सोचकर भय से काँप उठता है। इलाज की व्यवस्था का डर उसे भयानक तनाव में ला देता है। दूसरे डर में लेखक ने चतुरतापूर्वक समाज में बढ़ते अपराधों का जिक्र किया है। वह कहता है कि यदि कोई प्रियजन संभावित घड़ी तक नहीं हैं, तो मन अनजानी, अप्रिय आशंकाओं से घिर उठता है। इस डर की खासियत यह है कि मन की कमजोरी इस डर का कारक है। मन की कमजोरी ही सामाजिक और आर्थिक अपराधों की जड़ है।

Leave a Reply