Sociology Class 12 Book 1 Chapter 1 Subjective

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भारतीय समाज - एक परिचय

  1. उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर शक्तिशाली एवं उन्नत देशों द्वारा कमजोर और पिछड़े हुए देशों पर अपना अधिकार स्थापित कर लेना उपनिवेशवाद है ।

  1. नव उपनिवेशवाद क्या है ?

उत्तर नए स्वतंत्र हुए देशों पर विकसित देशों द्वारा शोषण विशेषकर आर्थिक शोषण और वर्चस्व स्थापित करने की प्रक्रिया को ‘ नव – उपनिवेशवाद ‘ का नाम दिया जाता है ।

  1. सामाजिक वर्ग से क्या आशय है ?

उत्तर जब जन्म के अतिरिक्त समाज किसी भी आधार पर विभिन्न समूहों में बंट जाता है सो इस प्रकार के समूहों को सामाजिक वर्ग कहते हैं ।

  1. सामाजिक वर्ग की परिभाषा दीजिए

उत्तर “ सामाजिक वर्ग एक समुदाय का कोई भाग है जो सामाजिक स्थिति के आधार पर शेष भाग से पृथक् किया जा सके । ” – मैकाइवर एवं पेज । ” सामाजिक वर्ग उन व्यक्तिों के समुदाय को कहते हैं , जिनकी किसी समाज में सामाजिक स्थिति आवश्यक रूप से एक समान होती है । ” – ऑगबर्न तथा तिमकॉफ ।

  1. समुदाय से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर एक समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह है , जिसमें कुछ अंशों में ‘ हम की भावना ‘ we feeling ) पाई जाती है तथा जो एक निश्चित भू – क्षेत्र में रहता है ।

  1. मानव समाज में वर्ग की स्थिति क्या है ?

उत्तर मानव समाज में कभी भी सभी व्यक्तियों की स्थिति या वर्ग एक समान नहीं रहे हैं । इनमें किसी – न – किसी आधार पर सदैव असमानता पाई जाती रही है ।

  1. वर्तमान भारतीय समाज में वर्ग की क्या दशा है ?

उत्तर वर्ग के आधार पर भारत में सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया अभी अपेक्षाकृत नवीन है । आज भारतीय समाज में पश्चिमी देशों के समान ही वर्ग – व्यवस्था पनप रही है ; आज का भारतवासी किसी – न – किसी वर्ग जैसे डॉक्टर वर्ग , इंजीनियर वर्ग , लेखक वर्ग , अध्यापक वर्ग आदि का सक्रिय सदस्य है ।

  1. राष्ट्रवादका प्रयोग क्यों किया गया ?

उत्तर राष्ट्रवाद का प्रयोग राष्ट्र की राजनैतिक स्वतंत्रता की रक्षा या प्राप्ति के हेतु संगठित नाड़ाई के लिए किया गया ।

  1. भारत में राष्ट्रवाद कब जागृत हुआ ?

उत्तर भारत में राष्ट्रवाद 19 वीं सदी के मध्य में जागृत हुआ ।

  1. भारत में राष्ट्रवाद को बढ़ावा किस प्रकार मिला ?

उत्तर भारत में राष्ट्रवाद को दिशा देने में अनेक राजनीतिक दलों व समूहों की सहभागिता रही है और इनके मिले – जुले प्रयासों से ही 15 अगस्त , 1947 को भारत आजाद हो सका ।

  1. उन देशों के नाम लिखो जिन्होंने 16 वीं और 18 वीं सदी के मध्य विश्व में

उत्तर ऐसे देशों में पुर्तगाल , स्पेन , हॉलैंड , इंग्लैंड और फ्रांस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । उत्तर – सामाजिक संरचना अमूर्त होती है , सामाजिक प्रक्रियाएँ सामाजिक संरचना का सामाग्यवादी नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया ।

  1. समुदाय के आवश्यक तत्व कौनसे हैं ?

उत्तर समुदाय के आवश्यक तत्व हैं

( i ) व्यक्तियों का समूह , ( ii ) निश्चित भू – भाग , ( iii ) सामुदायिक भावना

  1. राष्ट्रवाद क्या है ? राष्ट्र की परिभाषा दीजिए

उत्तर जॉन एच रैण्डल ( John H. Randall ) का मत है कि राष्ट्रवाद संभवतः एक ऐसे विचार का सिद्धांत है जिसके लिए आज भी मानव समुदाय अपने प्राण न्योछावर करने को सिद्ध करता है । राष्ट्रवाद के अतिरिक्त अन्य कोई सिद्धांत या शक्ति किसी एक देश के निवासियों को रोमांचित नहीं कर पाती और राष्ट्रीय भावना या चेतना को छोड़कर दूसरा कोई विचार एक देश के निवासियों को प्रेरणा एवं जीवनदान प्रदान नहीं कर पाता । राष्ट्र को अनेक विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है वर्गस के अनुसार ” वह जनसमूह जिसमें जातीय एकता हो और जो भौगोलिक एकता वाले प्रदेश में बसा हुआ ही , राष्ट्र कहलाता है । ” लीकॉक के अनुसार , ” राष्ट्र से अभिप्राय एक जाति अथवा वंशगत विशेषताओं वाला पानव संगठन है । “

  1. वर्ग का अर्थ और परिभाषा लिखिए

उत्तर जब जन्म के अतिरिक्त समाज किसी भी आधार पर विभिन्न समूहों में बंट जाता है तो इस प्रकार के समूहों को सामाजिक वर्ग कहा जाता है । इस प्रकार का विभाजन प्रत्येक समाज में पाया जाता है । कुछ भी हो , विभिन्न विचारकों की परिभाषाओं से वर्ग की धारणा पर्याप्त स्पष्ट हो जाएगी । ( 1 ) मैकाइवर और पेज ( MacIver and Page ) : “ सामाजिक वर्ग एक समुदाय का कोई भाग है जो सामाजिक स्थिति के आधार पर शेष भाग से पृथक् किया जा सके । ” ( 2 ) ऑगबर्न तथा निमकॉफ ( Ogburn and Nimkoff ) : “ सामाजिक वर्ग उन व्यक्तियों के समुदाय को कहते हैं , जिनकी किसी समाज में सामाजिक स्थिति आवश्यक रूप से एक समान होती है । ” उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सामाजिक वर्ग जन्म के अतिरिक्त किसी भी आधार पर बना हुआ व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो सामाजिक स्थिति में अन्य समूहों से भिन्न है । उदाहरणार्थ डॉक्टर वर्ग , धनी वर्ग , निर्धन वर्ग , शिक्षक वर्ग , श्रमिक वर्ग आदि ।

  1. वर्ग व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर सामाजिक वर्ग सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रकार है जो कि सबसे अधिक औद्योगिक भाजों में देखने को मिलता है । सामाजिक वर्ग सामान्यत : ऐसे लोगा का समूह है जो घन , आय , व्यवसाय और शिक्षा जैसे कारकों के आधार पर संबंधित होते हैं । वर्ग स्तरीकरण की वह व्यवस्था है जिसमें एक व्यकिा की सामाजिक परिस्थिति उसके धन के अर्जन पर निर्भर करती है । यह व्यक्तियों को अपना विकास करने की स्वतंत्रता देता है और इससे अपनी स्थिति को बदल सकता है । वर्ग व्यवसाय को चुनने के लिए बढ़ावा देता है । वर्ग की सदस्यता जाति की सदस्यता की भाँति वंशानुगत नहीं होती । विभिन्न वर्गों के मध्य अन्तरवर्गीय विवाह पर कोई प्रतिबंध नहीं होता । एक सामाजिक वर्ग एक सांस्कृतिक समूह भी होता है जो एक विशिष्ट जीवन शैली को अपनाता है ।

  1. ग्रामीण भारत में वर्ग व्यवस्था पर प्रकाश डालिए

उत्तर आधुनिक भारत में सामाजिक वर्ग भारतीय सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण अंश है । इसकी जड़ें अंग्रेजी शासन के दिनों में पड़ी थीं । अंग्रेजी शासन के दौरान भारत में एक ग्रामीण वर्ग था जो कृषि पर निर्भर करता था । ग्रामीण समुदाय एक आत्मनिर्भर इकाई था । वे केवल अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का ही उत्पादन कर पाते थे । उनके पास बचत नहीं थी । अत : संपूर्ण समाज निर्धन बना रहता था । व्यापारियों , कारीगरों और अन्य लोगों का एक अलग वर्ग था । अंग्रेजी औपनिवेशिक शासन ने ग्रामीण व्यवस्था को छिन्न – भिन्न कर दिया । पू – राजस्व की नई प्रणाली ने एक नए वर्ग जमींदार वर्ग को जन्म दिया , जो बाद में बड़े – बड़े भू – खंडों के वंशानुगत स्वामी बन गए । जमींदार सरकार को एक निश्चित राशि जमा कराते थे और किसान से जबरदस्ती लगान वसूल करते थे । महाजनों का एक नया वर्ग उभरकर सामने आया जो किसानों को उधार देते थे । अतः उसकी आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई । इस अंग्रेजी व्यवस्था में सबसे अधिक प्रभावित हुए शिल्पकार । अंग्रेजों ने स्वदेशी ग्रामीण उद्योगों को नष्ट कर दिया । अनेक शिल्पकार श्रमिक बन गए ।

  1. भारत के नगरों में वर्ग व्यवस्था को समझाइये

उत्तर अंग्रेजी शासन काल से पूर्व भारत अपने कुटीर उद्योगों और हस्त कौशल के लिए विख्यात था । यहाँ की बनी हुई वस्तुएँ सारे संसार में निर्यात की जाती थीं । यूनान , मिस्र और रोम तक भारत के सूती – रेशमी कपड़े , हीरे – जवाहरात के आभूषण और अन्य कला – कारीगरी की वस्तुएँ निर्यात की जाती थीं , लेकिन अंग्रेजी शासन काल में भारतीय कुटीर उद्योगों का पतन हो गया । इंग्लैंड की बनी सस्ती वस्तुओं से भारतीय उद्योग प्रतियोगिता नहीं कर सके । अंग्रेजों ने भारतीय कच्चे माल और श्रमिकों की सहायता से पूँजी निवेश किया । श्रमिकों का शोषण किया जाने लगा । प्रारंभ में निवेशकर्ता अंग्रेज थे किन्तु बाद में भारतीय व्यापारियों ने भी जूट , चीनी और सूती वस्त्र उद्योगों में निवेश करना आरंभ कर दिया । इस प्रकार एक नए पूँजी वाले वर्ग का उदय हुआ । नगरीय क्षेत्रों में दो वर्ग और थे । छोटे व्यापारियों और दुकानदारों का एक वर्ग था । शिक्षा और प्रशासन से जुड़े लोगों , वकील , डॉक्टर , इंजीनियर , तकनीकविद , प्रोफेसर , क्लर्क और अन्य पेशेवर लोगों का दूसरा वर्ग था । श्रमिक वर्ग भी दो उपवों में बंटे थे । पहले वे जो संगठित उद्योगों में कार्य करते थे और दूसरे वे जो गैर – संगठित उद्योगों में कार्य करते थे । स्वतंत्रत भारत में नगरों में मध्यम वर्ग गांव के समद्ध लोगों को अपने में सम्मिलित करता जा रहा है । श्रमिकों में उतनी चेतना नहीं है जितनी स्वतंत्रता पूर्व थी । कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि नगरों में धनी वर्ग , श्रमिक वर्ग , मध्यम वर्ग में समाज बँटा हुआ है ।

  1. समुदाय से क्या आशय है ? समुदाय की परिभाषा आवश्यक तत्व लिखिए

उत्तर समुदाय का अंग्रेजी रूपांतर या शब्द ‘ कम्युनिटी ‘ Community दो लैटिन शब्दों से बना है । ‘ Com ‘ शब्द का अर्थ है – ‘ एक साथ में ‘ ( Together ) और munis का अर्थ है ‘ सेवा करना ‘ ( Serving ) मैकाइवर एवं पेज के अनुसार , ” जब किसी छोटे या बड़े समूह के सदस्य साथ – साथ इस प्रकार रहते हैं कि वे किसी विशेष हित में भागीदार न होकर सामान्य जीवन की मूलभूत दशाओं या स्थितियों में भाग लेते हों , तो ऐसे समूह को समुदाय कहा जाता है । ” समुदाय के आवश्यक तत्व ( Elements of Community ) समुदाय के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं

( i ) व्यक्तियों का समूह   ( ii ) निश्चित भू – भाग   ( iii ) सामुदायिक भावना

  1. सामाजिक जनांकिकी से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट करें

उत्तर सामाजिक जनांकिकी एक बहुआयामी अवधारणा है जो वैज्ञानिक दृष्टि से जनांकिकी संरचना , जनांकिकीय प्रक्रियाएँ तथा इसके सामाजिक पक्षों का अध्ययन है । यह इस बात अध्ययन करती है कि जनसंख्या – संबंधी विशेषताएँ किस तरह सामाजिक , सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करती है तथा उससे प्रभावित होती है ।

  1. भारत में लैंगिक विषमता के प्रमुख आधारों का उल्लेख करें

उत्तर लिंग – भेद सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है । लिंग – भेद पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण के कारण नारीवाद से संबंधित कई दृष्टिकोण प्रस्तुत किये गये हैं । जैसे – आमूल परिवर्तनवादी , नारीवाद , समाजवादी , नारीवाद तथा उदारवादी नारीवाद । कुछ अन्य सिद्धांतों के आधार पर भी लिंग – भेद विश्लेषण किया जाता है । भारतवर्ष में पितृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था इसका मुख्य कारण रहा है ।

  1. राष्ट्रवाद की अवधारणा को स्पष्ट करें

उत्तर राष्ट्रवाद का अर्थ होता है राष्ट्र के लोगों में राष्ट्र प्रेम , राष्ट्र सम्मान एवं राष्ट्रीयता की भावना को जगाना । दरअसल एक राष्ट्र में विभिन्न जाति , धर्म , सम्प्रदाय के लोग होते हैं । इन विभिन्न नृजातीय समूहों के बीच एक भावात्मक सूत्र को लाना ताकि वे उसके बंध- कर एक राष्ट्र के हो जाएं और क्षेत्रीय प्रांतीय उद्देश्यों के ऊपर उद्देश्यों और हितों को महत्त्व दें । साफ शब्दों में कहें तो राष्ट्रवाद का अर्थ है , एक झंडे के नीचे आना और राष्ट्रीयता की भावना से ओत – प्रोत होना ।

  1. राष्ट्रवाद के विकास में मुस्लिम सुधार आंदोलन की व्याख्या करें

उत्तर भारतवर्ष में मुस्लिम समुदाय के सुधार आंदोलन तथा राष्ट्रवाद निर्माण की प्रक्रिया में सैय्यद अहमद आदि कुछ महापुरुषों का योगदान उल्लेखनीय है । बंगाल के नवाब लतीफ ने 1863 ई ० में मोहम्डन लिटरेरी सोसाइटी की स्थापना की । 1899 ई ० में मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया आंदोलन शुरू किया । इसी प्रकार बदरूद्दीन तैयबजी ने भी सामाजिक सुधार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।

  1. लैंगिक असमानता के प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालें

उत्तर लैंगिक असमानता का अभिप्राय किसी समाज में लिंग के आधार पर स्त्री और पुरुषों में भेदभाव किए जाने से संबंधित है । विस्तृत अर्थों में लैंगिक असमानता का तात्पर्य उन सामाजिक मूल्यों और मानदंडों से है । जो सांस्कृतिक आधार पर स्त्रियों व पुरुषों में से किसी एक को दूसरे की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हुए उन्हें वैवाहिक , पारिवारिक , सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में अधिक अधिकार देते हैं ।

  1. भारत में उपनिवेशवाद की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें

उत्तर कालक्रम में पश्चिमी दुनिया और खासकर यूरोप औद्योगिक क्रांति एवं वैज्ञानिक तरक्की के बल पर काफी विकसित हुए तथा अफ्रीका एवं एशिया के देश काफी पीछे रह गये । अपने श्रेष्ठ सैन्यबल के आधार पर यूरोप के देश , जैसे – इंग्लैंड , जर्मनी , फ्रांस एवं पुर्तगाल आदि अफ्रीका एवं एशिया के देशों पर अपना शासन कायम करने में सफल रहे । उस विस्तारवादी प्रवृत्ति को ही उपनिवेशवाद की संज्ञा दी गयी ।

  1. सामाजिक वर्ग की विशेषताएँ लिखिए

उत्तर सामाजिक वर्ग की विशिषताएँ ( Characteristics of a Social Class ) सामाजिक वर्ग को भली – भांति समझ लेने के उपरांत इसकी विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है :

( 1 ) उतारचढ़ाव का क्रम ( Hierarchical gradation ) – प्रत्येक समाज में विभिन्न स्थिति रखने वाले वर्ग पाए जाते हैं । स्थितियों के उतार – चढ़ाव का क्रम चलता रहता है और इसी आधार पर विभिन्न वर्गों का निर्माण होता है ।

( 2 ) ऊंचनीच की भावना ( Feeling of Low and Highness ) – एक वर्ग के व्यक्ति अपने को दूसरे वर्ग के व्यक्तियों से श्रेष्ठ अथवा हीन समझते हैं । उदाहरण के लिए पूँजीपति वर्ग को ही ले लीजिए – यह वर्ग अपने को दूसरे से उच्च अथवा श्रेष्ठ समझता है ।

( 3 ) परस्पर निर्भरता ( Mutually Dependent ) – समाज में सभी वर्ग आपस में संबंधित होते हैं और एक – दूसरे पर निर्भर करते हैं । ये पूर्णतया स्वतंत्र नहीं होते ; वरन् सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए विभिन्न वर्ग आपस में सहयोग करते हैं ।

( 4 ) वर्ग चेतना ( Class Consciousness ) – यह वर्ग का आधारभूत अथवा मौलिक तत्व है । वर्ग चेतना से अभिप्राय यह है कि प्रत्येक वर्ग इस बात के संबंध में सचेत होता है कि उसके वर्ग की सामाजिक प्रतिष्ठा दूसरे वर्गों की तुलना में कैसी है । यही भावना वर्ग के सदस्यों का व्यवहार निश्चित करती है । उदाहरण के लिए , जब चपरासी वर्ग का व्यक्ति , अपने अधिकारी से बातचीत करता है तो उसका बातचीत का ढंग आदर , सत्कार , नम्रता आदि से ओत – प्रोत होता है । इसी प्रकार अधिकारी वर्ग का व्यक्ति अपने ही समान अधिकारी से बातचीत करते हुए अपने वर्ग की चेतनता के अनुरूप बराबरी का व्यवहार करता है और बातचीत का ढंग औपचारिक न होकर अनौपचारिक होता है । कुछ भी हो , वर्ग चेतना प्रत्येक वर्ग में मौजूद रहती है और सदस्यों के आधार को निश्चित करती है ।

( 5 ) सीमित सामाजिक संबंध ( Limited Social Relation ) – एक वर्ग के व्यक्ति अपने वर्ग के व्यक्तियों के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं परन्तु अन्य वर्गों से सीमित संबंध रखते हैं अथवा निश्चित सामाजिक दूरी ( Social distance ) बनाए रखते हैं । अत : यह कहा जा सकता है कि भिन्न – भिन्न वर्ग एक – दूसरे से सामाजिक दूरी अथवा सीमित सामाजिक संबंधों के आधार पर अलग – अलग रहते हैं ।

( 6 ) जन्म पर आधारित नहीं ( No based on birth ) – वर्ग का आधार जन्म नहीं है वरन् व्यक्ति की योग्यता , धन , आयु , धर्म , लिंग – भेद , शिक्षा , व्यवसाय आदि बातों पर आधारित रहता है । यह बात विभिन्न समाजशास्त्रियों की परिभाषाओं से स्पष्ट है । व्यक्ति प्रयास करने पर अपने वर्ग में परिवर्तन ला सकता है ।

( 7 ) खुली व्यवसाय ( Open System ) – प्रत्येक वर्ग के द्वारा सबके लिए खुले रहते हैं , यदि व्यक्ति प्रयास करे तो उच्च वर्ग में आ सकता है और जन्म उस मार्ग में बाधक नहीं है । स्वतंत्रता – प्राप्ति के बाद निम्न जातियों के व्यक्ति भी वैयक्तिक प्रयास व सामाजिक परिस्थितियों के कारण श्रेष्ठ पदों पर पहुँच सके हैं । इस प्रकार वर्गों की सदस्यता सबके खुली रहती है – बी . ‘ ए . प्रथम वर्ष में कोई भी विद्यार्थी समाजशास्त्र विषय ले सकता है यदि उसने अपने स्वयं के प्रयास से इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण कर ली हो । यह सब क्या है ? वर्ग की खुली व्यवस्था का परिचायक है ।

( 8 ) उपवर्ग ( Sub – classes ) – प्रत्येक वर्ग में अनेक उपवर्ग होते हैं – उदाहरणार्थ , अध्यापक वर्ग को ले लीजिए , इसमें विश्वविद्यालय के अध्यापक , डिग्री कॉलेजों के अध्यापक ,

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