Eps Class 12 Chapter 2 Subjective in Hindi

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पर्यावरण अथवा वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन

1. सूक्ष्म वातावरण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- सूक्ष्म वातावरण – सूक्ष्म वातावरण में उन शक्तियों का वर्णन होता है जिनसे कम्पनी के ग्राहकों को प्रभावित किया जाता है। ये शक्तियाँ बाह्य होती हैं परन्तु कम्पनी की बाजार व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। इन शक्तियों में माल की पूर्ति देने वाले मध्यस्थ, प्रतियोगी ग्राहक तथा जनता आती है। साधारणतया इन घटकों को नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है। ये घटक सूक्ष्म (Macro ) शक्तियों की अपेक्षा अधिक प्रभावी होते हैं।

2. पर्यावरण के सूक्ष्म परीक्षण के किन्हीं तीन उद्देश्यों कोबतायें।

उत्तर- पर्यावरण के सूक्ष्म परीक्षण के तीन उद्देश्य निम्नवत् हैं- 1. वातावरणीय विश्लेषण एक अन्तर्ज्ञानयुक्त एवं विदोहक प्रक्रिया है। जहाँ इसके द्वारा वर्तमान वातावरणीय दशाओं का ज्ञान होता है, वहीं इसके द्वारा भावी सम्भावनाओं एवं छुपे हुए अवसरों का ज्ञान होता है। 2. यह एक सतत् जारी रहने वाली प्रक्रिया है, न कि यदा-कदा सूक्ष्म परीक्षण व्यवस्था है। रडार की तरह वातावरण में हो रहे परिवर्तनों पर सतत् नजर रखती है। आवधिक विश्लेषण वातावरणीय घटकों की पूर्ण एवं सही जानकारी प्रदान नहीं कर सकते हैं। 3. वातावरणीय विश्लेषण एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें समग्र रूप में वातावरण का अध्ययन एवं विश्लेषण सम्मिलित है, न कि कुछ वातावरणीय घटकों या उनकी प्रवृत्तियों का विश्लेषण ।

3. पर्यावरण को प्रभावित करने में राजनीतिक घटक की क्या भूमिका है?

उत्तर – पर्यावरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख राजनीतिक घटक निम्न हैं-  (1) राजनीतिक दर्शन-विभिन्न राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी विचारधारणाएँ होती हैं। पूँजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था आदि विभिन्न आर्थिक प्रणालियाँ होती हैं जिनके तहत् उन्हें अपनी विचारधारणाओं को स्पष्ट करना होता है। उन्हें देश के विकास हेतु आर्थिक कार्यक्रम तैयार करना होता है। आर्थिक कार्यक्रम ही आर्थिक विकास की तकनीक एवं प्राथमिकताएँ निर्धारित करता है। इस प्रकार विभिन्न राजनीतिक विचारधारणाएँ साहसिक क्रियाओं का प्रारूप निर्धारित करती हैं। (2) राजनीतिक वातावरण- देश के आर्थिक विकास हेतु अनुकूल राजनीतिक वातावरण का होना आवश्यक होता है। राजनीतिक अस्थिरता अनिश्चितता का वातावरण उत्पन्न करती है, जबकि साहसिक क्रिया के लिए स्पष्ट एवं स्थिर सरकारी नीति का होना आवश्यक होता है। राजनीतिक अस्थिरता, जनता- आंदोलन आदि से देश में राजनीतिक विवाद उत्पन्न होता है। ऐसी परिस्थिति में उद्यमी व्यवसाय सम्बन्धी निर्णय लेने में भयभीत होता है। वे साफ-सुथरी सरकारी नीति की अपेक्षा करते हैं। राजनीतिक अस्थिरता से जोखिम की मात्रा बढ़ जाती है।

4. पर्यावरणीय अध्ययन की आवश्यकता के कोई दो कारण बताइये | अथवा पर्यावरण अध्ययन के कोई तीन उद्देश्य बताइये। अथवा उद्यमिता में पर्यावरणीय मूल्यांकन का क्या महत्व है?

उत्तर- 1. अवसर की खोज – चूँकि अवसर पर्यावरण के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है अत: पर्यावरण का अध्ययन साहसी की पहली आवश्यकता है। नये साहसियों के लिये तो यह वरदान है। 2. अस्तित्व बनाये रखने में (In maintaining the Existence) – आज की नित्य बदलती हुई परिस्थिति में साहसी को अपना अस्तित्व बनाये रखना भी एक कठिन कार्य है। अतः उसे पर्यावरण की हर नब्ज पर ध्यान रखना होगा ताकि वह इसके अनुरूप कार्य कर सके| 3. सफलता प्राप्त करने में (In getting Success ) – एक साहसी को अपना अस्तित्व बचाते हुए सफलता के आयाम (लक्ष्य) भी प्राप्त करना होता है। यह तभी सम्भव है जब साहसी पर्यावरण की गतिविधि पर बारीकी बनाये रखे और इस बदलाव के अनुसार अपने को समायोजित करे।

5. पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कोई दो आर्थिक घटक बताइये

उत्तर- (1) आर्थिक नीतियाँ – सरकार की आर्थिक नीति के अन्तर्गत औद्योगिक नीति, राजकोषीय नीति, मौद्रिक नीति, व्यापार नीति आदि आते हैं। इन नीतियों से कुछ व्यापार पर अनुकूल तो कुछ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो कुछ पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ता ।(ii) बाजार की स्थिति (Market Situation ) – बाजार में वस्तुओं की माँग के अनुसार ही साहसी उत्पादन करता है। यदि माँग अधिक है तो साहसी अवसर का लाभ उठाने के लिये अधिक उत्पादन का प्रयास करता है। माँग घटने पर अपना उत्पादन स्तर कम कर देता है।

6. पर्यावरण के मुख्यत: कितने प्रकार हैं?

उत्तर- पर्यावरण के प्रकार – पर्यावरण मुख्यत: दो तरह का होता है- 1. आन्तरिक पर्यावरण – आन्तरिक पर्यावरण के अन्तर्गत वे घटक आते हैं जिन पर साहसी का नियंत्रण होता है; जैसे- भूमि, उत्पादन, पूँजी, श्रम, भवन, संगठनात्मक ढाँचा आदि । 2. बाहरी पर्यावरण – इसके अन्तर्गत वे घटक आते हैं जिन पर साहसी का कोई नियन्त्रण नहीं होता; जैसे- आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, तकनीकी, प्रतियोगी, ग्राहक, आपूर्तिकर्ता, बाजार आदि । ये घटक साहसी के कार्यकलाप एवं निर्णय को प्रभावित करते हैं।

7. वातावरण से आप क्या समझते हैं? अथवा पर्यावरण क्या है?

उत्तर- वातावरण अनेक घटकों का समूह है जिन पर संस्था का कोई नियन्त्रण नहीं होता तथा वातावरण संस्था की कार्य प्रणाली को भी प्रभावित करता है। यह विभिन्न आर्थिक, सामाजिक, प्रौद्योगिक, वैधानिक दशाओं का योग है जिसके अन्तर्गत व्यवसाय कार्य करता है

8. सामाजिक घटक क्या है?

उत्तर- व्यावसायिक पर्यावरण को सामाजिक घटक भी काफी हद तक प्रभावित करते हैं। समाज में शिक्षा का स्तर, जनसंख्या का आकार, लिंग अनुपात, रीति-रिवाज, परम्पराएँ, लोगों की रुचि, आदत, फैशन, शहरीकरण, जीवन-यापन के तौर-तरीके, लोगों की आय का स्तर आदि ऐसे घटक हैं जिनसे पर्यावरण प्रभावित होता रहता है। इनकी अनदेखी साहसी नहीं कर सकता अन्यथा उसे भयंकर परिणाम झेलने होंगे। अतः साहसी को अपनी रणनीति (Strategy) इन घटकों को ध्यान में रखकर ही तय करनी चाहिये।

9. क्या उद्यमी पर पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है?

उत्तर- उद्यमी पर आन्तरिक एवं बाहरी पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। 1. आन्तरिक पर्यावरण – आन्तरिक पर्यावरण के अन्तर्गत वे घटक आते हैं जिन पर साहसी का नियंत्रण होता है; जैसे- भूमि, उत्पादन, पूँजी, श्रम, भवन, संगठनात्मक ढाँचा आदि । 2. बाहरी पर्यावरण – इसके अन्तर्गत वे घटक आते हैं जिन पर साहसी का कोई नियन्त्रण नहीं होता; जैसे- आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, तकनीकी, प्रतियोगी, ग्राहक, आपूर्तिकर्ता, बाजार आदि । ये घटक साहसी के कार्यकलाप एवं निर्णय को प्रभावित करते हैं।

10. विपणन के क्षेत्र का वर्णन कीजिए

उत्तर- विपणन के क्षेत्र निम्नलिखित हैं –(1) उत्पाद नियोजन, (11) वितरण माध्यम का निर्धारण, (111) उपभोक्ता अनुसंधान, (iv) मूल्य निर्धारण, (v) विक्रय के बाद सेवा, (vi) विक्रय संवर्द्धन रणनीति एवं विपणन संचार ।

11. उद्यमशील वातावरण की प्रकृति पर एक लेख लिखें।

उत्तर- उद्यमशील वातावरण की प्रकृति- उद्यमिता तथा वातावरण के बीच एक विशिष्ट सम्बन्ध पाया जाता है जिसके प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं- (1) आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण- प्रत्येक उद्यमी का अपना आन्तरिक एवं बाह्य दोनों ही प्रकार का वातावरण होता है। उद्यमी अपने आन्तरिक वातावरण पर प्राय: नियन्त्रण कर लेता है। अतः वह उसे बहुत अधिक प्रभावित नहीं करता है किन्तु बाह्य वातावरण पर उद्यमी का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। अतः उसे बाह्य वातावरण के अनुरूप अपने आपको ढालना ही पड़ता है। (2) गतिशील वातावरण प्रत्येक उद्यमिता या उद्यमशील क्रिया का एक गतिशील वातावरण होता है। एक उद्यमी को अपने इसी वातावरण में कार्य करना पड़ता है। (3) भौगोलिक सीमा- प्रत्येक उद्यमशील कार्य के बाह्य वातावरण की एक भौगोलिक सीमा होती है। यह सीमा प्रत्येक उद्यमी के कार्य क्षेत्र के अनुसार विस्तृत एवं संकुचित हो सकती है। (4) गतिशील घटक – प्रत्येक उद्यमशील कार्य का वातावरण गतिशील घटकों से बनता है। ये घटक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, तकनीकी आदि प्रकृति के होते हैं। ये घटक निरन्तर परिवर्तनशील या गतिशील होते हैं, न कि स्थिर या चिरस्थायी। (5) संसाधनों का विनिमय प्रत्येक उद्यमी अपने संसाधन बाह्य वातावरण से प्राप्त करता है। श्रम, पूँजी, यंत्र, उपकरण, कच्चा माल आदि सभी संसाधन व्यवसाय को अपने वातावरण से ही प्राप्त होते हैं। इन संसाधनों का उपयोग करके ही वह वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन करके अपने व्यावसायिक कार्यों को पूरा करता है। (6) विस्तृत या ग्लोबल बाजार उद्यमी का वातावरण ही उसका विस्तृत या ग्लोबल बाजार है। प्रत्येक उद्यमी अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं को अपने वातावरण में उपलब्ध करता है। यह वातावरण जब उन्हें स्वीकार करता है तो उद्यम का निरन्तर संचालन होता रहता है। (7) चुनौतियाँ एवं बाधाएँ प्रत्येक उद्यमी को अपने वातावरण में कार्य करने तथा उसकी अपेक्षाओं को संतुष्ट करने में अनेक चुनौतियाँ एवं बाधाओं का सामना करना पड़ता है जो उद्यमी इन चुनौतियों एवं बाधाओं के बीच उपयुक्त अवसरों की खोज कर लेता है, वह सफल हो जाता है। ऐसा नहीं कर पाने पर उस उद्यमी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। (8) सभी घटकों के प्रति उत्तरदायी उद्यमी वातावरण के सभी घटकों के प्रति उत्तरदायी है। यह नागरिक समुदाय, उपभोक्ताओं, कर्मचारियों, विनियोजकों, प्रतिस्पद्ध संस्थाओं, राजनीतिक या सरकारी व्यवस्था, अर्थव्यवस्था (राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय) आदि सभी वातावरण के घटकों के प्रति उत्तरदायी है। दूसरे शब्दों मैं, सभी उद्यमशील क्रियाओं के निर्णयों में इनके हितों को ध्यान में रखना जरूरी होता है।

12. वातावरणीय मूल्यांकन एवं विश्लेषण से आप क्या समझते हैं? इसकी सीमाएँ क्या हैं?

उत्तर- गुलिक के अनुसार, “वातावरणीय मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यूहरचनात्मक नियोजक  (यानि उद्यमी) अपने उपक्रम के लिए अवसरों एवं चुनौतियों को निर्धारित करने हेतु आर्थिक, सामाजिक, राजकीय, पूर्तिकर्ता, टेक्नोलॉजीकल तथा बाजार दशाओं का मूल्यांकन करते हैं।” वातावरणीय विश्लेषण में वातावरणीय तत्वों / मुद्दों के प्रति प्रतिक्रिया, उपेक्षा या अनुमान का निर्णय सम्मिलित है। कोटलर ने बाह्य वातावरणीय विश्लेषण को ‘अवसर एवं धमकी विश्लेषण’ की संज्ञा दी है। उद्यमिता के लिए वातावरणीय विश्लेषण ‘ रडार’ की भाँति महत्वपूर्ण है जिसके द्वारा एक उद्यमी को खतरों एवं चुनौतियों को समय पर एवं सतत् जानकारी मिलती रहती है। इसी के अनुरूप वह अपनी व्यूहरचनाओं तथा उद्देश्यों का समायोजन कर सकता है। वातावरणीय विश्लेषण की मुख्य सीमाएँ निम्नलिखित हैं- 1. उपक्रमों की प्रभावशीलता की गारन्टी नहीं है- वातावरणीय विश्लेषण अपने आप में किसी संस्था की प्रभावशीलता की गारन्टी नहीं है। यह तो मात्र व्यूह रचना है जो विकास के परीक्षण में सहायक होती है। 2. व्यावहारिकता की कठिनाई वातावरणीय विश्लेषण को कार्य रूप देना वस्तुतः एक जटिल काम है। यह कभी-कभी अल्प अवधि के लिए प्रतिबिम्बित होता है। कभी-कभी प्रबन्धकों को आँकड़ों के प्रति अविश्वास होने लगता है। वै आँकड़ों की जाँच कर यह ज्ञात नहीं कर पाते कि आँकड़े गलत हैं या नहीं। 3.अनिश्चित भविष्य- वातावरणीय विश्लेषण भविष्य की अनिश्चितता के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं बताता है। व्यवसाय में नित्य प्रतिदिन नयी-नयी समस्याएँ उत्पन्न होती रहती हैं चाहे कितनी भी सावधानी क्यों नहीं रखी जाये।

13. पर्यावरणीय सूक्ष्म जाँच को प्रभावित करने वाले विभिन्न घटकों की संक्षिप्त व्याख्या करें।

उत्तर- पर्यावरणीय सूक्ष्म जाँच को प्रभावित करने वाले घटक- पर्यावरणीय सूक्ष्म जाँच को प्रभावित करने वाले दो घटक हैं- (1) समष्टि वातावरण आशय उस वृहत् या ग्लोबल वातावरण से होता है जिसके भीतर एक उद्यमी कार्य करता है। मूलतः इसमें संस्कृति, राजनैतिक प्रणाली, आर्थिक प्रणाली, टेक्नोलॉजी, चातुर्य मिश्रण एवं उपभोक्ता समूहों को सम्मिलित किया जाता है। ये सब घटक उद्यमी के नियन्त्रण से परे होते हैं और एक उद्यमी को अपने क्रिया-कलापों का समायोजन एवं संचालन इन्हीं घटकों के मद्देनजर करना होता है। (ii) व्यष्टि वातावरण-आशय उस आन्तरिक वातावरण से है जिसमें एक उद्यमी कार्य करता है तथा जिस पर उसका प्रत्यक्ष नियन्त्रण होता है। इसमें संगठन के लक्ष्य एवं कार्य प्रणाली, संगठन संरचना, सत्ता, संगठन में सत्ता एवं राजनीति आदि को सम्मिलित किया जाता है। एक उद्यमी को अपने बाह्य वातावरण के साथ आन्तरिक वातावरण से भी सन्तुलन एवं तालमेल बनाये रखना होता है। पर्यावरण की सूक्ष्म जाँच करने से पहले उद्यमी को निम्न घटकों पर ध्यान रखना होगा जो पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। इन घटकों को निम्न प्रकार विश्लेषित किया जा सकता है- (A) आर्थिक घटक-व्यवसाय के आर्थिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले मुख्य आर्थिक घटक इस प्रकार हैं- 1. आर्थिक विकास का स्तर 2.आर्थिक नीतियाँ 3. ब्याज दर एवं आयकर दर 4. बाजार की स्थिति (B) सामाजिक घटक-व्यावसायिक पर्यावरण को सामाजिक घटक भी काफी हद तक प्रभावित करते हैं। समाज में शिक्षा का स्तर, जनसंख्या का आकार, लिंग अनुपात, रीति-रिवाज, परम्पराएँ, लोगों की रुचि, आदत, फैशन, शहरीकरण, जीवन-यापन के तौर-तरीके, लोगों की आय का स्तर आदि ऐसे घटक हैं जिनसे पर्यावरण प्रभावित होता रहता है। इनकी अनदेखी साहसी नहीं कर सकता अन्यथा उसे भयंकर परिणाम झेलने होंगे। अतः साहसी को अपनी रणनीति (Strategy) इन घटकों को ध्यान में रखकर ही तय करनी चाहिये। (C) राजनीतिक घटक-राजनीतिक उठापटक के चलते भी पर्यावरण प्रभावित होता रहता है। यदि देश में स्थायी सरकार है तो व्यावसायिक गतिविधियों को प्रसारित होने का अवसर मिलता है क्योंकि यह शांति और सुरक्षा का माहौल दे पाती है। अन्तर्राष्ट्रीय शांति भी बनी रहती है। विकास की गाड़ी आगे बढ़ती रहती है। इसके विपरीत अस्थिर सरकार के होने से, राजनीतिक उठापटक के चलते माहौल अस्थिर बना रहता है। (D) तकनीकी घटक- तकनीक का अर्थ उत्पादन के ढंग, विधि या तरीके से है। तकनीक में परिवर्तन उत्पादन, वितरण तथा सेवाओं को प्रभावित करता है। उदाहरणतः नये-नये उपकरण, विचार और प्रक्रिया ने बाजार में हलचल पैदा कर रखी है। मशीनों एवं उपकरणों का संचालन आज कम्प्यूटर एवं रोबोट द्वारा हो रहा है। अतः तकनीकी परिवर्तन की अवहेलना नहीं की जा सकती। यदि इस दौड़ में साहसी हमकदम नहीं हो सका तो वह बाजार में नहीं टिक सकता। (E) प्रतियोगी घटक- प्रतियोगी घटक भी पर्यावरण को प्रभावित करते. हैं। एक प्रतियोगी दूसरे को पछाड़ने (Defeat) तथा आगे बढ़ने की होड़ में नये-नये उत्पाद, प्रक्रिया, विचार उत्पन्न करता रहता है जिसके चलते व्यावसायिक पर्यावरण प्रभावित होता रहता है। फिर प्रतियोगिता सिर्फ साहसियों के बीच ही नहीं होती बल्कि यह उपभोक्ता उपभोक्ता के बीच चलती है। जैसे- उपभोक्ता को यदि एक टी.वी. खरीदना है तो पहले वह सोचता है कि बड़ा लिया जाये या छोटा, फिर ब्लैक एण्ड ह्वाइट लिया जाये या रंगीन, फिर किस कम्पनी का लिया जाये ? उसके इस अन्तर्द्वन्द्व का प्रभाव भी पर्यावरण पर पड़ता है। (F) ग्राहक घटक-ग्राहक बाजार का राजा है जिसकी संतुष्टि या असंतुष्टि पर उद्योग व्यापार का अस्तित्व टिका होता है। व्यापार के ‘विकास’ या ‘विनाश’ की कुंजी (Key) इसी के हाथ में होती है। अतः ग्राहक ही व्यावसायिक पर्यावरण की दशा एवं दिशा निर्धारित करते हैं। अतः उद्यमी को उपर्युक्त सभी घटकों का सूक्ष्म परीक्षण करते रहना चाहिए ताकि आने वाले किसी भी पर्यावरणीय झोंके का सामना वह आसानी से कर सके

14. एक साहसी के लिए पर्यावरण का अध्ययन करना क्यों आवश्यक है?

उत्तर- विभिन्न अध्ययनों के माध्यम से यह प्रमाणित किया जा चुका है कि जिन संस्थानों ने वातावरण का विश्लेषण किया है, वे अधिकतम लाभार्जन में सफल हुई हैं। यदि वातावरण का विश्लेषण नहीं किया जाए तो संस्था को अपनी व्यूह रचना बार-बार बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है तथा संस्था को वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है। निम्नलिखित कारणों से वातावरण का गहन विश्लेषण आवश्यक समझा जाता है- (i) संसाधनों का प्रभावशाली प्रयोग-संसाधनों का प्रभावशाली प्रयोग किसी संस्था की सफलता की कुंजी है। संस्था की सफलता अथवा असफलता का वातावरण के खतरे एवं अवसरों के माध्यम से विश्लेषण करना चाहिए अन्यथा संस्था को हानि हो सकती है। (ii) व्यूह-रचना के निर्माण में सहायक वातावरण विश्लेषण के माध्यम से विविधीकरण तथा विकास एवं व्यवसाय में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का हल सम्भव हो पाता है। उदाहरणतः रिलायन्स तथा हिन्दुस्तान यूनोलीवर लिमिटेड ने विविधीकरण की नीति का अनुसरण कर अच्छी ख्याति प्राप्त की है। इसी प्रकार USA में APPLE COMPUTER काफी लोकप्रिय है। इसके विपरीत कोलगेट दन्त मंजन को जापान में पसन्द नहीं किया जाता है। अतः साहसी को तत्परता से यह देखना चाहिए कि उसके उत्पाद की बाजार में क्या स्थिति है और इसी के आधार पर व्यापक विपणन व्यूह रचना तैयार की जानी चाहिए। (iii) खतरों और अवसरों की पहचान वातावरण विश्लेषण के माध्यम से साहसी को व्यवसाय के सम्बन्ध में उत्पन्न होने वाले खतरे एवं सुनहरे अवसरों का ज्ञान प्राप्त होता रहता है। यदि जाँच-पड़ताल के बाद कोई खतरे का संकेत मिलता है तो उचित व्यूह-रचना तैयार कर खतरों का हल पूर्व में ही निकाल लेना चाहिए। (iv) प्रबन्धकों के लिए सहायक वातावरण विश्लेषण प्रबन्धकों के लिए काफी सहायक सिद्ध हुआ है। जिन व्यवसायों में वातावरण विश्लेषण किया गया, उनकी कार्यक्षमता उन व्यवसायों की तुलना में बहुत अधिक रही जिनमें वातावरण विश्लेषण नहीं किया गया।

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