Eps Class 12 Chapter 3 Subjective in Hindi

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विपणन / बाजार मूल्यांकन

1. एक अच्छी पूर्वानुमान पद्धति की क्या कसौटी है?

उत्तर- एक अच्छी पूर्वानुमान पद्धति की निम्न कसौटी है- 1. मितव्ययिता, 2. सामयिक अनुरक्षण, 3. शुद्धता, 4. उपलब्धता, 5. सरलता एवं धारणा की सुगमता ।

2. विपणन अनुसन्धान क्या है?

उत्तर- विपणन अनुसन्धान के अन्तर्गत सभी विपणन क्रियाओं का गहन अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत प्रायः यह जानने का प्रयास किया जाता है कि उपभोक्ता क्या चाहता है? उसे किस मूल्य पर व कितनी मात्रा में वस्तु की आवश्यकता होगी? उसे वस्तु की कब व कितनी मात्रा में आवश्यकता होगी ? इसके अतिरिक्त किस तरह का विज्ञापन एवं वितरण व्यवस्था पसन्द करेगा ?

3. माँग पूर्वानुमान की साख्यिकीय विधि क्या होती है?

उत्तर- माँग पूर्वानुमान की गणना सांख्यिकीय विधि के द्वारा भी की जा सकती है। सांख्यिकीय विधि के अन्तर्गत काल श्रेणी, प्रतिगमन आन्तरगणन एवं बाह्यगणन इत्यादि को शामिल किया जाता है।

4. माँग पूर्वानुमान से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- माँग पूर्वानुमान क्या है, जानने के पूर्व हमें यह जान लेना होगा कि माँग क्या है ? सरल शब्दों में, ग्राहकों में किसी वस्तु अथवा सेवाओं को खरीदने की इच्छा एवं क्षमता को हम माँग कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जब कोई ग्राहक किसी वस्तु अथवा सेवा को खरीदने के लिए इच्छुक हो एवं खरीदने हेतु सक्षम एवं तत्पर हो तो हम कहेंगे कि उस वस्तु की माँग है। जब हम इस परिभाषा को ध्यान में रखते हैं तो सभी भावी ग्राहक जिनमें किसी उत्पाद अथवा सेवा को खरीदने की इच्छा एवं क्षमता दोनों हो तो इसे कुल बाजार कहते हैं। यह मानते हुए कि एक उपक्रम का अपना कार्य-क्षेत्र होता है, माँग को परिभाषित किया जा सकता है। यदि हम उपरोक्त परिभाषा का अनुकरण करें तो उत्पाद, कुल मात्रा, क्रय ग्राहक समूह, भौगोलिक क्षेत्र, समय अवधि एवं विपणन वातावरण आठ चर जो कि बाजार के चर हैं, बाजार माँग का निर्धारण करते समय इनका समुचित अध्ययन आवश्यक है और इसे ही हम माँग पूर्वानुमान कहते हैं।

5. बाजार अवलोकन क्या है? यह उद्यमी के लिए क्यों जरूरी है?

उत्तर- बाजार अवलोकन के अन्तर्गत माँग का विश्लेषण किया जाता है तथा बाजार के प्रतिस्पर्द्धा एवं वर्तमान व्यापार की रीतियों को जाना जाता है। साहसी द्वारा बाजार अवलोकन के निम्न तीन अंग होते हैं- (1) माँग विश्लेषण (Demand analysis), (ii) बाजार के प्रतिस्पर्द्धा को जानना (To know market competition) एवं (iii) वर्तमान व्यापारिक रीतियाँ (To know existing trade practices) I उद्यमी का सबसे बड़ा काम है लक्षित बाजार को पहचानना कौन व्यक्ति या व्यक्तियों को समूह उसकी सेवाओं और माल खरीदने के लिए इच्छुक हैं। यदि कोई उद्यमी ऐसा माल बना रहा है जिसका माल काफी अधिक है तो उसे कम या मध्यम आय के लोगों को ग्राहक नहीं मिल पायगा। उसे उपभोक्ता की संख्या और मनोविज्ञान समझने की आवश्यकता है उसे ग्राहक की रूप रेखा पहचाननी चाहिए। इसका आशय है कि व्यक्ति विशेष अथवा कम्पनी की विशेषता समझनी चाहिए जो कि सम्भावित ग्राहक हो सकता है और उसके द्वारा दी जाने वाली वस्तु और सेवा का उपभोक्ता हो सकता है।

6. नये उत्पादों के लिए माँग पूर्वानुमान पर एक लेख लिखें।

उत्तर- जोयल डिन ने नये उत्पादों के लिए माँग पूर्वानुमान के लिए अनेक सम्भावित विचार दिए हैं, जो निम्नांकित हैं- (1) विद्यमान पुराने उत्पाद के विकसित रूप में नये उत्पाद की माँग का अनुमान लगाना। (ii) विद्यमान उत्पाद एवं सेवा के वैकल्पिक उत्पाद के रूप में नये उत्पाद का विश्लेषण करना। (iii) स्थापित उत्पाद की विकास प्रवृत्ति के आधार पर नये उत्पाद की विकास दर एवं माँग के स्तर का अनुमान लगाना। (iv) नमूना अथवा बिक्री के आधार पर क्रेताओं से प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त कर अनुमान लगाना।

7. विपणन की अवधारणा पर एक लेख लिखें

उत्तर- आमतौर पर बौल-चाल की भाषा में विपणन से आशय वस्तुओं के क्रय-विक्रय करने से है जिसमें स्वामित्व के हस्तान्तरण एवं वस्तुओं के | मूल्य मुद्रा में तय करने से लिया जाता है लेकिन विपणन का अर्थ व्यापक है जो किसी वस्तु के उत्पादन के लिए कल्पना मात्र से ही शुरू हो जाता है और विक्रय के बाद भी चलता रहता है और कभी समाप्त नहीं होता जिसमें वस्तु के उत्पादन के पहले शोध कार्य करना, उत्पाद नियोजन करना, मूल्य का निर्धारण करना, , विपणन संचार एवं वितरण माध्यम का चुनाव करना तथा विक्रय के बाद सेवा प्रदान करना तथा सूचनाओं को एकत्रित करना इत्यादि क्रियाएँ विपणन में सम्मिलित की जाती हैं। इस प्रकार विपणन क्रियाएँ सदैव गतिशील रहती हैं और सदैव एक-दूसरे का चक्कर लगाती रहती हैं। विपणन की अवधारणाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है- (1) परम्परागत या संकुचित विचारधारा एवं (2) विपणन की आधुनिक विचारधारा

8. उद्यमिता के लिये बाजार मूल्यांकन क्यों आवश्यक है?

उत्तर- बाजार मूल्यांकन वस्तु और सेवाओं की सही प्रवृत्ति दर्शाती है ताकि इन्हें लाभ पर बेचा जा सके। बाजार मूल्यांकन में निम्नलिखित का अध्ययन शामिल है- (1) माँग का आकार एवं प्रकार, उपभोक्ताओं की इच्छा एवं चयन (2) प्रतिस्पर्धा की स्थिति, प्रकार, दूसरी वस्तुओं की पूर्ति की विद्यमानता, भविष्य में बाजार की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों की सम्भावनाएँ । (3) उत्पादन का अनुमानित लागत लाभ की मात्रा, विक्रय मूल्य, इसी प्रकार के उत्पादों का मूल्य तथा लागत कम करने के अवसर ।

9. बाजार मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? अथवा बाजार मूल्यांकन को परिभाषित कीजिए अथवा बाजार निर्धारण क्या है?

उत्तर- वस्तुतः बाजार में उन वस्तुओं को प्रस्तुत किया जाता है जिनकी माँग ग्राहक करते हैं। किन्तु यह निर्धारित करना कि ग्राहक क्या चाहते हैं, एक जटिल काम है। बाजार में विविध प्रकार के ग्राहक होते हैं। उनकी पृष्ठभूमि, शिक्षा, आय, चाहत, पसन्द आदि के सम्बन्ध में अलग-अलग होती हैं। ये विजातीय ग्राहक उपक्रम के निकट एवं दूरस्थ स्थानों में होते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनकी माँगें भी भिन्न-भिन्न होती हैं। किसी भी उत्पादक के लिए असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है कि इन विविध प्रकार के ग्राहकों के लिए विविध कोटि की वस्तुओं का उत्पादन करें। अतः एक उद्यमी को यह तय कर लेना चाहिए कि किस कोटि के ग्राहकों के लिए वह वस्तुओं का उत्पादन करना चाहता है। इस बात का निर्धारण कर लेने के बाद सम्बन्धित समूह के ग्राहकों की माँग का अनुमान लगाया जा सकता है। इस सम्बन्ध में माँग- पूर्वानुमान से उद्यमियों को काफी मदद मिलती है।

10. बाजार वातावरण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- वस्तुतः विपणन के कार्य एक निश्चित वातावरण में सम्पादित किये जाते हैं विपणन क्रियाओं को करते समय विपणन बाजार की भली-भाँति पहचान कर लेनी चाहिए। विपणन मिश्रण भी एक निश्चित वातावरण में हो किया जाता है। विपणन वातावरण के सभी घटक भी विपणन प्रबन्ध को नियन्त्रित नहीं कर सकते हैं।

11. विपणन की आधुनिक विचारधारा की कोई दो विशेषताएँ बतायें।

उत्तर- (1) विपणन की आधुनिक विचारधारा में ग्राहकों की सन्तुष्टि पर अधिक ध्यान दिया जाता है, इस विचारधारा का मानना है कि बिना ग्राहक सन्तुष्टि के लाभ नहीं कमाया जा सकता और न ही व्यवसाय को अधिक दिनों तक जिन्दा हो रखा जा सकता है। (2) विपणन की आधुनिक विचारधारा में उपभोक्ता की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।

12. एक उद्यमी को बाजार मूल्यांकन की क्या आवश्यकता होती है ? किन्हीं चार बिन्दुओं की सहायता से समझाइये।

उत्तर- उत्पाद और सेवाओं का चयन माँग और पूर्ति के घटकों के अतिरिक्त अन्य अनेक घटकों पर भी निर्भर करता है; जैसे- उत्पाद की गुणवत्ता (Qual- ity of product) पूर्ति के स्रोत (Source of supply) तथा वितरण के तंत्र (Tools of distribution) बाजार मूल्यांकन करते समय एक साहसी को निम्न रूपरेखा बना लेनी चाहिए- (1) माँग- माँग का अनुमान उत्पाद की पहचान (Product identifi- (cation) हो जाने के बाद लगा लेना चाहिए। माँग का अनुमान लगाते समय । बाजार के आकार व उस क्षेत्र का ध्यान रखना चाहिए जिसमें वस्तुएँ तथा सेवाएँ बेचनी हैं। जैसे- वस्तुओं को स्थानीय बाजार में बेचना, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बेचना। यही नहीं, यहाँ इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि लक्षित (Targeted) उपभोक्ता कौन हैं, उनकी पसंद कैसी है, रुचि कैसी है तथा अन्य सहायक चर (variable) का भी अध्ययन करना चाहिए। (2) पूर्ति और प्रतियोगिता बाजार मूल्यांकन करते समय, उद्यमी द्वारा पूर्ति सम्बन्धी अध्ययन भी करना चाहिए। पूर्ति से अर्थ है सभी स्रोतों से निर्मित वस्तुओं की पूर्ति यहाँ आगे आने वाले पूर्ति के स्रोतों पर भी ध्यान रखना चाहिए। जब किसी उत्पाद की माँग किसी मौसम से सम्बन्धित होती है तो उसका उत्पादन भी अनियमित ही करना चाहिए। माँग और पूर्ति के परिवर्तनों को ध्यान में रखना चाहिए। सभी वस्तुओं की पूर्ति करने वालों में आपसी प्रतियोगिता भी होती है, एक साहसी को उनकी सामान बनाने की क्षमता, पूर्ति बढ़ाने की क्षमता तथा वित्तीय स्थिति का ज्ञान तथा उनकी ख्याति को भली-भाँति जान लेना चाहिए।  (3) उत्पाद की लागत और कीमत- जैसा पहले स्पष्ट किया जा चुका है, उत्पाद की पहचान में उसकी लागत का काफी महत्व होता है। लागत के आधार पर ही बिक्री मूल्य निर्धारित होते हैं और इन्हें बाजार मूल्यों से तुलनात्मकता भी रखनी चाहिए। (4) परियोजना का नवीनीकरण तथा परिवर्तन- बाजार आकलन के लिए नवीन परिवर्तनों का अध्ययन करना भी आवश्यक है, ऐसा प्रायः वर्तमान साहसी स्वयं ही करते रहते हैं। तकनीकी लाभों को भली-भाँति समझ लेना चाहिए क्योंकि इनका प्रभाव वस्तु की गुणवत्ता, लागत तथा बिक्री मूल्य पर पड़ सकता है।

13. बाजार मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? बाजार मूल्यांकन पर प्रभाव डालने वाले घटक कौन-कौन से हैं?

उत्तर- बाजार मूल्यांकन- उत्पाद और सेवाओं का चयन माँग और पूर्ति के घटकों के अतिरिक्त अन्य अनेक घटकों पर भी निर्भर करता है, जैसे- उत्पादः की गुणवत्ता पूर्ति के स्रोत एवं वितरण के तंत्र बाजार मूल्यांकन करते समय एक साहसी को निम्न रूपरेखा बना लेनी चाहिए – (i) माँग, (ii) पूर्ति और प्रतियोगिता, (iii) उत्पादन की लागत और कीमत एवं (IV) परियोजना का नवीनीकरण तथा परिवर्तन। बाजार मूल्यांकन पर प्रभाव डालने वाले घटक- किसी कम्पनी बाह्य वातावरण को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है – (1) सूक्ष्म वातावरण सूक्ष्म वातावरण में उन शक्तियों का वर्णन होता है जिनसे कम्पनी के ग्राहकों को प्रभावित किया जाता है। ये शक्तियाँ बाह्य होती हैं परन्तु कम्पनी की बाजार व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। इन शक्तियों में माल की पूर्ति देने वाले मध्यस्थ, प्रतियोगी, ग्राहक तथा जनता आती है। साधारणतया इन घटकों को नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है ये घटक सूक्ष्म शक्तियों की अपेक्षा अधिक प्रभावी होते हैं। (2) पूर्ति करने वाले उत्पाद और सेवाओं को बनाने और देने में किसी कम्पनी को बहुत से चरों को देखना होता है। वस्तुओं / सेवाओं की पूर्ति देने वालों को ही सुपुर्दगीदाता कहा जाता है। इनका कम्पनी की सफलता व असफलता से सीधा सम्बन्ध होता है। विपणन कर्मचारियों का वस्तु की पूर्ति देने वालों से कोई सम्बन्ध नहीं होता। हालाँकि जब माल की कमी होती है, तब इन्हें भी परेशानी होती है। विपणन की सफलता के लिए पर्याप्त मात्रा, अच्छी किस्म का सामान हर समय उपलब्ध होना चाहिए। जितने अधिक पूर्तिकर्ता, उतनी ही अधिक निर्भरता होगी। अतः पूर्तिकर्ता विपणन को प्रभावित कर सकता है। विपणन प्रबंधकों को सामान की नियमित पूर्ति पर ध्यान देना चाहिए। माल की कमी तथा देरी बिक्री को प्रभावित करती है। ऐसा होने से कम्पनी की ख्याति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। विपणन प्रबंधकों को पूर्ति देने वालों से मूल्यों के सम्बन्ध में निगरानी रखनी चाहिए। सबसे अच्छी पूर्ति देने वालों को ध्यान में रखना चाहिए।  (3) विपणन मध्यस्थ – विपणन मध्यस्थ वे स्वतन्त्र व्यक्ति अथवा फर्म हैं जो कम्पनी को प्रत्यक्ष सेवाएँ देकर उसकी बिक्री बढ़ाने में सहायता करती हैं तथा उत्पादों को शीघ्र से शीघ्र अंतिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं। मध्यस्थ दौ प्रकार के होते हैं— (i) थोक व्यापारी एवं (11) फुटकर व्यापारी। ये दोनों मध्यस्थ कम्पनी की बिक्री बढ़ाने में, नये ग्राहक ढूँढने में सहायता करते हैं। इन्हें कभी-कभी पुनः विक्रेता भी कहा जाता है।  (4) प्रतियोगी- विपणन के सही अर्थ में एक सफल कम्पनी को ग्राहक- मुखी होना चाहिए। उसको इस बात का प्रयत्न करना चाहिए कि अपने ग्राहकों की इच्छा और आवश्यकताओं का ध्यान अपने प्रतियोगी फर्म से अधिक अच्छा हो किसी संस्था के विपणन निर्णय केवल ग्राहकों को ही प्रभावित नहीं करते वरन् उस कम्पनी के प्रतियोगी की विपणन व्यूह-रचना पर प्रभाव डालते हैं। परिणामस्वरूप विपणनकर्ताओं को बाजार की प्रतियोगिता, उत्पादों की गुणवत्ता, विपणन माध्यम तथा मूल्यों पर ध्यान रखते हुए विक्रय सम्बर्द्धन करना चाहिए।

(5) ग्राहक- प्रत्येक कम्पनी को अपने ग्राहकों को पाँच प्रकार के वर्ग में रखना होता है-

(i) उपभोक्ता बाजार इस श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जो अपने लिए ही सामान खरीदते हैं।

(ii) औद्योगिक बाजार इस श्रेणी में वे संस्थाएँ आती हैं जो वस्तुओं और सेवाओं का क्रय केवल भविष्य में उत्पादन क्रिया में उपयोग के लिए करती हैं आज के लिए नहीं।

 (iii) सरकारी बाजार – इस श्रेणी में सरकारी कार्यालय अथवा अन्य एजेन्सी जो वस्तुओं और सेवाओं का क्रय करके उन्हें बेचते हैं जिन्हें उनकी आवश्यकता होती है।

(iv) पुनः बिक्री बाजार इस श्रेणी में वे व्यक्ति अथवा संस्थाएँ आती हैं जो वस्तुओं और सेवाओं को खरीदकर दूसरों को बेचकर लाभ कमाती हैं ये फुटकर व्यापारी अथवा थोक व्यापारी हो सकते हैं।

(v) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार-व्यक्ति/ संगठन भी ग्राहक हो सकते हैं. यहाँ क्रेता दूसरे देशों के होते हैं। इसमें उपभोक्ता उत्पादक, पुनः विक्रेता तथा सरकार भी क्रेता हो सकती है। (6) जनता-जनता से हमारा अभिप्राय ऐसे व्यक्ति के समुदाय से है जिसका वर्तमान तथा भविष्य कम्पनी की स्थिरता से जुड़ा हो और कम्पनी के उत्पादों को खरीदकर कम्पनी के उद्देश्यों को पूरा करने में सहयोग दें।

14. विपणन का स्वभाव एवं क्षेत्र क्या है?

उत्तर- विपणन के स्वभाव एवं क्षेत्र में एक निर्माता के द्वारा जो भी व्यापारिक क्रियाएँ उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक की जाती हैं, वे सभी क्रियाएं विपणन के स्वभाव एवं क्षेत्र के अन्तर्गत आती है। वस्तु का निर्माण करने से पहले एक निर्माता यह पता लगाता है कि उपभोक्ता किस तरह की वस्तु चाहता है; किस रूप, रंग, आकार और कितने मूल्य की. कितने वजन में किस तरह के पैक में चाहता है। इसके बाद उत्पाद का निर्माण होता है। उसका मूल्य निर्धारण किया जाता है। अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचाने के लिए वितरण माध्यम का चुनाव व उपभोक्ता को वस्तु से परिचित कराने के लिए विज्ञापन एवं विक्रय संबर्द्धन का सहारा लिया जाता है और जब वस्तु का विक्रय हो जाता है तो सेवा कार्य किया जाता है। इस प्रकार विपणन का कार्य कभी समाप्त नहीं होता। विपणन का स्वभाव एवं क्षेत्र निम्नलिखित है- 1. उत्पाद नियोजन (Product Planning) – उत्पाद नियोजन में निर्माता वस्तु के बारे में वस्तु का रूप, रंग, आकार, प्रकार, डिजाइन, पैकेजिंग, मूल्य, वस्तु के उत्पादन की व्यावहारिकता, लेबिल, ट्रेडमार्क, ब्राण्ड आदि बातों को तय करता है। 2. वितरण माध्यम का निर्धारण निर्माता अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार वितरण माध्यम का चुनाव करता है तथा वस्तु का स्वभाव भी वितरण माध्यम को प्रभावित करता है। इसमें निर्माता द्वारा थोक विक्रेता, फुटकर विक्रेता एकमात्र वितरक प्रतिनिधि, यात्री विक्रयकर्ता आदि की नियुक्ति तथा उनके पारिश्रमिक तथा सुविधाओं के बारे में निर्णय लेना है। 3. उपभोक्ता अनुसन्धान ( Consumer Research) – उपभोक्ता, अनुसन्धान में निर्माता उपभोक्ता की इच्छा, काँच, स्वभाव, क्रय क्षमता, क्रय आदतें, उनके रहन-सहन का स्तर, शिक्षा, लिंग, उपभोक्ता की आयु, भौगोलिक परिवेश इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। फिर उसी के अनुरूप वस्तुओं का निर्माण कर उपभोक्ता को बेचा जाता है। 4. मूल्य निर्धारण (Price Determination ) – मूल्य निर्धारण में निर्माता उपभोक्ता को क्रय क्षमता के अनुसार वस्तु का मूल्य तय करता है तथा यह प्रयास किया जाता है कि वस्तु का मूल्य प्रतियोगी वस्तु के मूल्य से कम हो तथा बाजारू परिस्थितियों के अनुकूल हो जिससे वस्तु बाजार में सरलतापूर्वक टिक सके। इस प्रकार का उचित मूल्य का निर्धारण होना चाहिए। 5. विक्रय के बाद सेवा (After Sale Services) – उपभोक्ता को सन्तुष्ट रखने के लिए वस्तु के विक्रय के बाद सेवा प्रदान की जाती है जैसे वस्तु पसन्द न आने पर बदलने की सुविधा, मुफ्त मरम्मत गारण्टी देना, मुफ्त सफाई आदि को विपणन के क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। 6. विक्रय संबर्द्धन रणनीति एवं विपणन संचार – निर्माता अपनी वस्तुओं के विक्रय के लिए उपभोक्ता को वस्तु के प्रति आकर्षित करने एवं उनको वस्तु के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए विपणन संचार के विभिन्न माध्यमों को अपनाता है तथा समय-समय पर उसमें बाजारू परिस्थितियों के अनुसार फेर-बदल करता है। इसके अन्तर्गत विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, वैयक्तिक विक्रय तथा पब्लिसिटी को सम्मिलित किया जाता है।

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