एक साम्राज्य की राजधानी
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Class 12 History Chapter 7 Subjective Questions in Hindi
1. आयंगर व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर- आयंगर व्यवस्था-समस्त राज्य प्रान्तों में विभक्त था । प्रान्त मण्डल में विभाजित था। मण्डल जिले (वलनाडू) में विभक्त था। वलनाडू नाडू में विभक्त था। नाडू गाँव की बड़ी राजनीतिक इकाई थी। आयंगर व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक ग्राम को एक स्वतन्त्र इकाई के रूप में संगठित किया जाता था। इस पर बारह व्यक्ति मिलकर शासन करते थे जिन्हें सामूहिक रूप से आयंगर कहा जाता था। इनके पद आनुवांशिक होते थे। इन्हें वेतन के बदले करमुक्त भूमि दी जाती थी ।
2. विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला की महत्वपूर्ण विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) विजयनगर में दुर्गों की किलेबन्दी अत्यन्त महत्वपूर्ण थी। इन किलेबन्दियों द्वारा शहर, कृषि क्षेत्र एवं जंगलों को भी घेरा गया है। सबसे बाहरी दीवार विजयनगर के चारों ओर की पहाड़ियों को जोड़कर निर्मित की गई है। (ii) विजयनगर दुर्ग में प्रवेश के लिए सुरक्षित प्रवेश द्वार है। इस प्रवेश द्वार से शहर तक सड़कें बनायी गयी हैं। इनमें मेहराब व गुम्बदों का प्रयोग किया गया है । इनके निर्माण में इंडो-इस्लामिक शैली का प्रयोग किया गया है। विजयनगर में सड़कों का जाल बिछा हुआ था। यह सड़कें प्रवेश द्वार से निकलती थीं। सड़कों के दोनों ओर बाजार थे। (iii) विजयनगर साम्राज्य की मन्दिर स्थापत्य कला भी अद्भुत है। विजयनगर के शासकों ने तंजावूर के वृहदेश्वर मन्दिर तथा वैलूर के यन्न केशव मन्दिर को संरक्षण प्रदान किया। विजयनगर साम्राज्य का विट्ठल मन्दिर पर इस्लामी भवन निर्माण कला का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। (iv) विजयनगर साम्राज्य का राजभवन भी हम्पी की स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इनमें एक राजा का दरबार हॉल और दूसरा सिंहासन मंच प्रमुख है। सिंहासन मंच को विजयभवन के नाम से भी जाना जाता है। कृष्णदेव राय द्वारा यह भवन उड़ीसा विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया था। राजभवन की दीवारों पर फूल, पत्ती एवं मनुष्य की प्रतिमाएँ निर्मित की गयी हैं। (v) शहर और साम्राज्य में जल आपूर्ति की व्यवस्था के लिए शासकों एवं वास्तुविदों द्वारा विशेष ध्यान दिया गया है। इसके लिए विशाल कुण्डों, जलाशयों, हौजों एवं नहरों आदि की व्यवस्था की गई है।
3. आपके विचार में महानवमी के डिब्बा से सम्बन्धित अनुष्ठानों का क्या महत्व है?
उत्तर – महानवमी डिब्बा से सम्बद्ध अनुष्ठानों का अत्यधिक महत्व है। इसकी महत्ता के अनेक साक्ष्य इस विशाल भवन में देखे जा सकते हैं। विदेशी यात्री ‘डेमिन्गौस पेइज’ ने अपने उद्धरणों में महानवमी डिब्बा को ‘विजय का भवन’ कहा है। यह महानवमी डिब्बा शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित एक विशालकाय मंच है। इसकी ऊँचाई 40 फीट एवं क्षेत्रफल लगभग 11,000 वर्ग फीट है। अनेक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि इस पर (महानवमी डिब्बा) एक लकड़ी की संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णित चित्रों से पटा पड़ा है। सम्भवतः महानवमी पर्व के दौरान इस मंच पर अनुष्ठान सम्पन्न किये जाते रहे होंगे। इसी कारण इसका नाम महानवमी डिब्बा पड़ा होगा। इस प्रकार के अनुष्ठान प्रायः सितम्बर तथा अक्टूबर के शीत माह में मनाए जाने वाले दस दिन के हिन्दू त्यौहारों में मनाए जाते थे। इन अनुष्ठानों द्वारा विजयनगर के शासक अपने रुतबे व ताकत का प्रदर्शन करते रहे होंगे। इन अनुष्ठानों में मूर्ति पूजा, अश्व पूजा एवं भैंस आदि की बलि सम्मिलित थीं। नृत्य, कुश्ती प्रतिस्पर्धा तथा अतिथियों और राजाओं को दिये गए भेंट इस अवसर के प्रमुख आकर्षण थे। इन उत्सवों के गहन सांकेतिक अर्थ थे। त्यौहार के अन्तिम दिन राजा अपनी सेना का खुले मैदान में निरीक्षण आदि करता था। इस महानवमी डिब्बा में एक के ऊपर एक दो मंच भी निर्मित हैं।
4. विजयनगर की जल आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था ?
उत्तर- विजयनगर की जल आपूर्ति का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत तुंगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुण्ड था। विजयनगर चारों ओर से ग्रेनाइट की चट्टानों से घिरा हुआ है। इन चट्टानों से कई जलधाराएँ फूटकर तुंगभद्रा नदी में मिलती तथा इसी के उपरान्त वह प्राकृतिक कुण्ड बनता है। इन सभी धाराओं को बाँधकर पानी के हौज बनाये जाते थे। प्रायद्वीप के शुष्क क्षेत्र के कारण पानी का संचयन एवं उसे शहर तक ले जाने का प्रबन्ध किया जाता था। इन हौजों में से ही एक हौज का नाम ‘कमलपुरम् जलाशय’ था। इससे एक नहर भी निकाली गयी। इसके अतिरिक्त तुंगभद्रा बाँध से एक और अन्य नहर ‘हिरिया नहर’ भी निकाली गयी थी। इसी नहर का जल ‘धार्मिक केन्द्र’ से ‘शहरी केन्द्र’ को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था। संभवत: इसका निर्माण संगमवंशीय राजाओं द्वारा किया गया था।
5. कृष्णदेव राय की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- कृष्णदेव राय की उपलब्धियाँ-ये निम्न हैं- (i) कृष्णदेव राय विजयनगर का महानतम शासक था। 1513 ई. में उसने उड़ीसा के शासक गणपति प्रतापरुद्र को पराजित किया। (ii) कृष्णदेव राय बीजापुर और गोलकुण्डा के शासकों को भी पराजित करने में सफल रहा। (iii) उसने रायचूर दोआब पर भी विजय प्राप्त की एवं अपनी सेनाओं को विजयनगर के अन्दर भी प्रवेश कराया। (iv) वह महान विद्वान तथा कला व विद्या का पोषक था। तेलगू राजनीति पर उसने अमुक्त माल्याद ग्रन्थ लिखा। उसने संस्कृत नाटक ‘जावबंती कल्याणम’ का भी सृजन किया। इसके दरबार में आठ विद्वानों को ‘अष्टदिग्गद’ कहा जाता है।
(v) जनकल्याण हेतु उसने कृषि की उन्नति के लिए अनेक तालाब व नहरों का निर्माण कराया। उसने विवाह कर जैसे अलोकप्रिय करों को समाप्त किया(vi) कृष्णदेव राय ने स्थापत्य कला को भी प्रोत्साहन दिया। उसने अपनी माँ नागला देवी के नाम पर नागलपुर नामक नगर की स्थापना की। हजारा मन्दिर एवं पम्पा देवी मन्दिर का भी निर्माण कराया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार विट्ठल मन्दिर का निर्माण देवराय द्वितीय ने कराया था। कृष्णदेव राय ने कई महत्वपूर्ण मन्दिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ा।
6. विजयनगर कालीन सिंचाई व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
उत्तर- विजयनगर के रायों ने सिंचाई व्यवस्था पर पर्याप्त ध्यान दिया। विजयनगर चारों ओर से ग्रेनाइट की चट्टानों से घिरा है। इन चट्टानों से कई जलधाराएँ फूटकर तुंगभद्रा नदी में मिलती हैं। इससे एक प्राकृतिक कुण्ड का निर्माण हुआ था। इन सभी धाराओं को बाँधकर पानी के हौज बनाये गये थे। इन्हीं में से एक हौज का नाम ‘कमलपुरम् जलाशय’ था। इससे आस-पास के खेतों की सिंचाई की जाती थी। इससे एक नहर भी निकाली गयी थी। तुंगभद्रा बाँध से एक हिरिया नहर भी निकाली गयी थी। राजा कृष्णदेव राय द्वारा बनवाये जा रहे एक जलाशय का आँखों देखा वर्णन विदेशी यात्री डेमिन्गौस पेइज ने इस प्रकार किया है- “राजा ने एक जलाशय का निर्माण कराया। दो पहाड़ियों के मुहाने पर जल उसमें एकत्रित होता था। . जलाशय में तीन विशाल स्तम्भ बने हैं, जिन पर खूबसूरती से चित्र उकेरे गये हैं। ये स्तम्भ ऊपरी भाग पर कुछ पाइपों से जुड़े ये हैं जिनसे ये बगीचों तथा धान के खेतों की सिंचाई हेतु पानी लाते हैं। इस जलाशय के निर्माण में मैंने लगभग 15 से 20 हजार लोगों को कार्य करते देखा।
7. विरुपाक्ष मन्दिर की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर – अभिलेखों से पता चलता है कि विरुपाक्ष मन्दिर का निर्माण नवीं या दसवीं शताब्दी में किया गया था। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बाद उसे बड़ा करवाया गया। मुख्य मन्दिर के सामने जो मण्डप बना है, उसका निर्माण कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में कराया। पूर्वी गोपुरम (प्रवेश द्वार) भी उसी ने बनवाया था। यह मन्दिर नगर के केन्द्र में स्थित है। मन्दिर की दीवारों पर शिकार करने, नाच व युद्धों की जीत के जश्न मनाने के सुन्दर दृश्य दिखाये गये हैं।
8. विजयनगर साम्राज्य की सांस्कृतिक उपलब्धियों की समीक्षा कीजिए।’ अथवा ‘ विजयनगर साम्राज्य की उपलब्धियों की जानकारी दें। ‘अथवा ‘ विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- कृष्णदेव राय के काल में विजयनगर साम्राज्य का अत्यधिक विकास हुआ। इसी काल में तुंगभद्रा एवं कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र ( रायचूर दोआब ) हासिल किया गया (1512) उड़ीसा के शासकों का दमन किया गया (1514) तथा बीजापुर के सुल्तान को बुरी तरह पराजित किया गया था 1520)। विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने स्थापत्य कला को अत्यधिक प्रोत्साहित किया। हम्पी (विजयनगर) का स्थापत्य आज भी लोगों को आश्चर्यचकित करता है। विजयनगरमें दुर्गों की किलेबन्दी अत्यन्त महत्वपूर्ण थी। इन किलेबन्दियों द्वारा शहर, कृषि – क्षेत्र एवं जंगलों को भी घेरा गया है। सबसे बाहरी दीवार विजयनगर के चारों ओर की पहाड़ियों को जोड़कर निर्मित की गई है। विजयनगर दुर्ग में प्रवेश के लिए सुरक्षित प्रवेश द्वार है। इस प्रवेश द्वार से शहर तक सड़कें बनायी गयी हैं। इनमें मेहराब व गुम्बदों का प्रयोग किया गया है। इनके निर्माण में इंडो-इस्लामिक शैली का प्रयोग किया गया है। विजयनगर में सड़कों का जाल बिछा हुआ था। यह सड़कें प्रवेश द्वार से निकलती थीं। सड़कों के दोनों ओर बाजार थे। विजय नगर के सम्राटों ने अपनी राजधानी कृष्णा-तुंगभद्रा (रायचूर) दोआब के समीप बनवायी थी जिससे वे अपनी राजधानी को अपने अधिकार क्षेत्र के समीप ही रख सकें। ये परम्परा महाजनपद काल से ही चली आ रही थी। विजयनगर साम्राज्य की मन्दिर स्थापत्य कला भी अद्भुत है। विजयनगर के शासकों ने तंजावूर के वृहदेश्वर मन्दिर तथा वैलूर के यन्न केशव मन्दिर को संरक्षण प्रदान किया। विजयनगर साम्राज्य का विट्ठल मन्दिर पर इस्लामी भवन निर्माण कला का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। अभिलेखों से ज्ञात होता है कि विरुपाक्ष मन्दिर को भी विजयनगर की स्थापना के बाद यहाँ के शासकों ने बड़ा कराया। इन विशाल मन्दिरों की भव्यता का उल्लेख कई विदेशी यात्रियों जैसे- निकोलो दे कोन्ती, अब्दुल रज्जाक, अफानासी निकितन, इतालवी, दुआर्ते बारबोसा आदि ने किया है। डेमिंगोस पेइज ने जिस प्रकार विट्ठल मन्दिर का वर्णन किया है उसे सुनकर कोई भी इस मन्दिर को देखने हेतु आकृष्ट हो उठे, उनके अनुसार- “मन्दिर की बाहरी दीवारों पर नीचे से लेकर छत तक ताँबे के पत्र चढ़े हुए हैं। छत के ऊपर बड़े-बड़े जानवरों की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। जब मन्दिर के अन्दर प्रवेश करते हैं तो उसके अन्दर स्तम्भों पर तेल से जलने वाले दीपक रखे दिखते हैं। ये दीपक 2,500 से 3,000 तक हैं जो रात्रि में जलाये जाते हैं।” मन्दिर के बाहर एक आँगन में सूर्य देवता के लिए ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित रथ बने हैं। इन पत्थर के रथों के पहिए आज भी घुमाए जा सकते हैं। विजयनगर साम्राज्य का राजभवन भी हम्पी की स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इनमें एक राजा का दरबार हॉल और दूसरा सिंहासन मंच प्रमुख है। सिंहासन मंच को विजयभवन के नाम से भी जाना जाता है। कृष्णदेव राय द्वारा यह भवन उड़ीसा विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया था।
9. विजयनगर राज्य के चरमोत्कर्ष एवं पतन पर एक निबन्ध लिखिए
उत्तर- विजयनगर साम्राज्य का चरमोत्कर्ष – राजनीति में सत्ता के दावेदारों में शासकीय वंश के सदस्य तथा सैनिक कमाण्डर शामिल थे। पहले राजवंश जो संगम वंश के नाम से जाना जाता था, ने 1485 ई. तक नियन्त्रण रखा। उन्हें सुलुवों द्वारा हटाया गया, जो सैनिक कमाण्डर थे एवं 1503 ई. तक सत्ता में रहे। इसके उपरान्त तुलुवों ने उनका स्थान ग्रहण किया। कृष्णदेव राय तुलुव वंश से ही माने जाते हैं। कृष्णदेव राय के शासन काल में विजयनगर साम्राज्य की उपलब्धियाँ – कुछ बेहतरीन मन्दिरों के निर्माण तथा कई महत्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मन्दिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ने का श्रेय कृष्णदेव को ही जाता है। उसने अपनी माँ के नाम पर विजयनगर के समीप ही नगलपुरम् नामक उपनगर की स्थापना भी की थी। विजयनगर साम्राज्य का पतन – विजयनगर साम्राज्य 1336 ई. में स्थापित हुआ तथा लगभग 300 वर्षों तक निरन्तर राजनीतिक सत्ता का केन्द्र बना रहा। परन्तु कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात् 1529 ई. में राजकीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न होने लगा। उसके उत्तराधिकारियों को विद्रोही नायकों या सेनापतियों से चुनौती का सामना करना पड़ा। अब विजयनगर के शासक कुशल राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ नहीं रह गये थे। उनकी जनता भी भोग-विलास में लिप्त हो चुकी थी। उनमें राज्य की सुरक्षा की भावना समाप्त हो गयी थी। विजयनगर साम्राज्य में मुस्लिम राज्यों से संघर्ष के कारण भी जन-धन की काफी हानि हो गयी थी।विजयनगर साम्राज्य के पतन का प्रमुख कारण उनका तालीकोट के युद्ध में पराजित होना था। विजयनगर साम्राज्य में संगठित सेना का अभाव था। सेना में योग्य सैनिकों एवं तोपखानों का भी अभाव था। यही कारण था कि 1565 ई. में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी तांगड़ी (जिसे तालीकोट के नाम से भी जाना जाता है) के युद्ध में उतरी जहाँ उसे बीजापुर, अहमदनगर और गोलकुण्डा की संयुक्त सेनाओं द्वारा करारी शिकस्त मिली। विजयी सेनाओं ने विजयनगर शहर पर धावा बोलकर उसे लूटा। कुछ ही वर्षों के भीतर यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया।
11. विजयनगर के संक्षिप्त इतिहास का वर्णन कीजिए।
उत्तर- विजयनगर का संक्षिप्त इतिहास- 1336 ई. में हरिहर एवं बुक्का ने दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। यह साम्राज्य रायचूर दोआब के दक्षिण भाग में स्थित था। रायचूर दोआब के उत्तर भाग बहमनी साम्राज्य की स्थापना 1347 ई. में अलाउद्दीन बहमनशाह ने की। विजयनगर साम्राज्य यदि हिन्दू साम्राज्य था तो बहमनी साम्राज्य एक मुस्लिम साम्राज्य था । इस समय उत्तर भारत में तुगलक सुल्तान मुहम्मद-बिन-तुगलक (1325-51 ई.) का शासन था। विजयनगर साम्राज्य में क्रमश: चार वंशों ने शासन किया- (अ) संगम वंश (1336 ई. – 1485 ई.) – इस वंश के प्रमुख राजा थे- 1. हरिहर (1336-1354 ई.) ।
2. बुक्का (1354-1378 ई.) – यह हरिहर का भाई था ।- 3. हरिहर द्वितीय ( 1378-1406 ई.) – इसने रायचूर दोआब पर अधिकार करने के लिए बहमनी राज्य पर आक्रमण किया मगर फिरोज शाह बहमनी ने इसे परास्त किया। 4. देवराय प्रथम (1406-1422 ई.) – इसके काल में इटली के यात्री निकोली कोण्टी ने विजयनगर की यात्रा की। 5. देवराय द्वितीय (1422-1446 ई.) – ईरान का यात्री अब्दुल रज्जाक ने इसके काल में विजयनगर की यात्रा की। 6. मल्लिकार्जुन एवं वीरुपाक्ष (1446 1485 ई.) । (ब) सालुव वंश (1486-1505 ई.) – इस वंश का संस्थापक नरसिंह सालुव था। (स) तुलुव वंश (1505-1570 ई.) – 1. वीर नरसिंह (1505-1509 ई.) – तुलुव वंश का संस्थापक था। 2. कृष्णदेव राय – (1509-1529 ई.) – कृष्णदेव राय विजयनगर का महानतम शासक था। इसके शासन काल को विजयनगर साम्राज्य का चरमोत्कर्ष काल भी कहा जा सकता है। इसके शासन काल में राज्य हमेशा सामरिक रूप से तैयार रहता था, लेकिन फिर भी यह अतुलनीय शान्ति और समृद्धि की स्थितियों में फला-फूला। 3. अच्युतदेव राय (1530-1542 ई.) – पुर्तगाली नाविक फर्नाओ नूनीज इसके काल में भारत आया। डेमिन्गौस पेइज एवं फर्नाओ नूनीज के यात्रा वृत्तान्तों के आधार पर ही सीवेल ने अपनी पुस्तक फारगोटन एम्पायर लिखी है।
4. सदाशिव (1542-1570 ई.) – यह नाममात्र का शासक था। राज्य की वास्तविक शक्ति इसके प्रधानमन्त्री रामराय के हाथ में केन्द्रित रही रामराय ने बहमनी राज्यों में फूट डालो और राज्य करो की नीति अपनायी। इस समय बहमनी साम्राज्य 5 भागों में विभाजित था- (i) बीजापुर का आदिलशाही- संस्थापक युसुफ आदिलशाह (1489)।