यात्रियों के नजरिये समाज के बारे में उनकी समझ

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Class 12 History Chapter 5 Subjective Questions in Hindi

1. अलबरूनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर- अलबरूनी मध्य एशिया के ख्वारिज्म का निवासी था । उसका जन्म आधुनिक उजबेकिस्तान में ख्वारिज्म के पास बेरु नामक स्थान पर 4 दिसम्बर, 973 ई. को हुआ था। ख्वारित्म शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। अतः अलबरूनी ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की और एक विद्वान के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। वह कई भाषाओं का ज्ञाता था जिसमें सीरियासी, फारसी, हिब्रू तथा संस्कृति आदि भी थी। गजनी के शासक सुल्तान महमूद ने 1017 ई. में ख्वारिज्म पर आक्रमण किया एवं वहाँ से कई विद्वानों को अपने साथ राजधानी गजनी ले आया। इसके बाद 70 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु सितम्बर 1048 ई. तक अलबरूनी गजनी में ही रहा। महमूद गजनी के भारत पर आक्रमण के समय ही अलबरूनी भारत आया। उसने भारत में जो कुछ भी देखा उसका वर्णन उसनेअपने वृत्तान्तों में किया। अलबरूनी ने भारत पर अरबी भाषा में लगभग 20 पुस्तकें लिखीं लेकिन इन सबमें ‘ किताब-उल-हिन्द’ अथवा ‘तहकीक-ए-हिन्द’ एक बेजोड़ ग्रन्थ है। उसने इस पुस्तक का सृजन 30 अप्रैल, 1030 ई. से 29 दिसम्बर, 1031 ई. के बीच किया।

 2. किताब-उल-हिन्द पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। 

उत्तर – लेखक एवं भाषा शैली – अरबी भाषा में लिखी गयी यह पुस्तक प्रसिद्ध यात्री, विद्वान और इतिहासकार ‘अलबरूनी’ द्वारा लिखी गयी है। इस पुस्तक में विद्वान यात्री ने भारतीय जीवन के अनेक पहलुओं, सांस्कृतिक कलाकृतियों, , जीवन, भाषा आदि का विवरण दिया है। यह पुस्तक कुल 80 अध्यायों में विभक्त है। सर्वप्रथम उसने अपनी भूमिका लिखी है। विषय सामग्री – जैसा कि यह स्पष्ट हो चुका है कि यह एक विशाल ग्रंथ है जो कि 80 अध्यायों में विभक्त है जिसमें भारतीय धर्म, दर्शन, त्योहारों, खगोल विद्या, रीति-रिवाज एवं परम्पराएँ, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन, माल-तौल की विधियाँ, मूर्तिकला, कानून, प्रान्तों की सीमाओं, नदियों आदि की जानकारी मिलती है। इसके अधिकांश अध्याय नक्षत्र विद्या विषय की विषय-वस्तु पर आधारित हैं। इसके 47 वें अध्याय में वासुदेव एवं महाभारत की कथा तक दी गई है। जहाँ तक भारतीय समाज के वर्णन का सम्बन्ध है इसके 9वें अध्याय में जाति प्रथा एवं वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डाला है। 63 वें अध्याय में ब्राह्मणों के जीवन का उल्लेख है। 64वें अध्याय में जातियों के अनुष्ठान एवं रीति-रिवाजों का वर्णन है। 69 वें अध्याय में भारतीय स्त्रियों की स्थिति का वर्णन है।

3. रेहला पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर – मोरक्को का एक प्रसिद्ध यात्री इब्नबतूता खानाबदोश जाति का होने के कारण बहुत घुमक्कड़ था। उसने अपने 73 वर्ष के जीवन में लगभग 77,640 मील की यात्रा तय की। 1333 ई. से 1342 ई. के बीच उसने भारत के विभिन्न भागों की यात्रा की। 1354 ई. में मोरक्को लौटने के बाद इब्नबतूता ने अपनी इस यात्रा का वृत्तान्त अरबी भाषा में लिखा जिसे ‘रेहला’ कहा जाता है। इब्नबतूता ने इस पुस्तक में नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के विषय में अपने अभिमत को बड़ी ही सावधानी एवं कुशलतापूर्वक दर्ज किया है। रेहला से खिलजी एवं तुगलक कालीन भारत की न्यायिक, आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति, डाक, सड़क तथा गुप्तचर व्यवस्था, कला एवं स्थापत्य, कूटनीति तथा दरबारी षड्यन्त्रों एवं तत्युगीन लोगों के आचार-विचार की तथ्यपरक् व निष्पक्ष जानकारी मिलती है।

4. इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के सम्बन्ध में दिये गये साक्ष्यों पर प्रकाश डालिये। 
उत्तर – इब्नबतूता के विवरणों में भारत में प्रचलित दास प्रथा का सांगोपांग विवरण मिलता है। वह बताता है कि सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत एवं गायन में निपुण थीं। स्वयं इब्नबतूता ने सुल्तान की बहिन के विवाह के अवसर पर इनके गायन का आनन्द लिया था। यही नहीं सुल्तान ने कुछ दासियाँ अपने अमीरों पर नजर रखने के लिये भी नियुक्त कर रखी थीं। वह इस तारतम्य में बताता है- “यह सम्राट की आदत है…… हर बड़े या छोटे अमीर के साथ अपने दासों में से एक को रखने की जो उसके अमीरों की मुखबिरी करता है। वह महिला सफाई कर्मचारियों को भी नियुक्त करता है जो बिना बताये घर में दाखिल हो जाती हैं और दासियों के पास जो भी जानकारी होती है, वे उन्हेंदे देती हैं। अधिकांश दासियों को हमलों और अभियानों के दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता है। ” इब्नबतूता बताता है कि दासों का उपयोग बहुधा पुरुष एवं महिलाओं को पालकी में ले जाने में होता था। घरेलू कामों में भी इनका उपयोग होता था। घरेलू श्रम में उपयोग की जाने वाली दासियों की कीमत बहुत कम होती थी। जो परिवार इन्हें रख पाने में समर्थ थे वे कम-से-कम एक को तो रखते ही थे ।

5.अलबरूनी के वर्णव्यवस्था सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर- भारतीय जाति व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुये अलबरूनी बताता है कि हिन्दू पुस्तकों के अनुसार ब्रह्मा के सिर से ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति हुई है। बाहुओं से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य एवं पैरों से शूद्र वर्ण की उत्पत्ति हुई है। शूद्रों के पश्चात् अन्त्यज लोग हैं जो नाना प्रकार के सेवा कार्य करते हैं, जिनकी आठ जातियाँ हैं। ये आठ जातियाँ – धुनिये, मोची, मदारी, टोकरी और ढाल बनाने वाले, नाविक, मछली पकड़ने वाले, आखेट करने वाले एवं जुलाहे हैं। चण्डालों की गणना किसी वर्ण एवं जाति में नहीं होती। उनका व्यवसाय गाँव की सफाई, प्रभूति मैले कर्म करना है। उनका जन्म शूद्र पिता और ब्राह्मण माता के व्यभिचार से हुआ है अतः वे पतित, निष्काषित एवं अपवित्र हैं।

6. अलबरूनी द्वारा वर्णित भारत की सामाजिक स्थिति का वर्णन करें।

उत्तर- अलबरूनी ने लिखा कि प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों की मान्यता थी – घुड़सवार और शासक वर्ग; भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक; खगोलशास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक और अन्त में कृषक और शिल्पकार । दूसरे शब्दों में वह यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे। उसने यह भी दर्शाया कि इस्लाम में सभी लोगों को समान माना जाता था। जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानने के बावजूद अलबरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया। उसने लिखा कि हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता। उसके अनुसार जाति व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।अलबरूनी वर्ण व्यवस्था का निम्न प्रकार उल्लेख करता है- सबसे ऊँची ब्राह्मणों की है जिनके विषय में हिन्दुओं के ग्रंथ हमें बताते हैं कि वे ब्रह्मा के सिर से उत्पन्न हुए थे और ब्रह्म, प्रकृति नामक शक्ति का ही दूसरा नाम है और सिर शरीर का सबसे ऊपरी भाग है, इसलिए ब्राह्मण पूरी प्रजाति के सबसे चुनिन्दा भाग हैं। इसी कारण से हिन्दू उन्हें मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।अगली जाति क्षत्रियों की है जिनका सृजन ब्रह्मा के कंधों और हाथों से हुआ था। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है। उनके पश्चात् वैश्य आते हैं जिनका उद्भव ब्रह्मा की जंघाओं से हुआ था। शूद्र जिनका सृजन उनके चरणों से हुआ था। अंतिम दो वर्णों के बीच अधिक अंतर नहीं है। लेकिन इन वर्गों के बीच भिन्नता होने पर भी ये एक साथ एक ही शहरों और गाँवों में रहते हैं, समान घरों और आवासों में मिलजुलकर ।

7. बर्नियर भारतीय नगरों को किस रूप में देखता है?

उत्तर – सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग 15% भाग नगरों में रहता था। यह औसतन उस समय पश्चिम यूरोप की नगरीय जनसंख्या अनुपात से अधिक था । इतने पर भी बर्नियर मुगलकालीन शहरों को ‘शिविर नगर’ कहता है जिससे उसका आशय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे। उसका मानना था कि ये राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आये थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे। उसने यह भी सुझाव दिया कि इनकी सामाजिक और आर्थिक नींव व्यवहार्य नहीं होती थी और ये राजकीय प्रश्रय पर आश्रित रहते थे। वास्तव में सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे, उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र, तीर्थ स्थान आदि। इनका अस्तित्व खुशहाल व्यापारिक समुदायों तथा व्यावसायिक वर्गों के अस्तित्व का सूचक है। व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के सम्बन्धों से आबद्ध होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन के नाम से जाना जाता था। इनके प्रमुख को सेठ कहा जाता था।अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे- चिकित्सक, अध्यापक, अधिवक्ता, चित्रकार, वास्तुविद्, संगीतकार, सुलेखकार आदि सम्मिलित थे।

 8. भारत में सती प्रथा के सम्बन्ध में बर्नियर के विचारों पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर- बर्नियर सहित प्रायः सभी यात्रियों ने भारत में महिलाओं की स्थिति पर विशेष ध्यान दिया । वस्तुतः पश्चिम की महिलाओं की स्थिति एवं पूर्व की महिलाओं की स्थिति में भिन्नता दर्शाने का एक महत्वपूर्ण बिन्दु था। सती प्रथा भारतीय समाज की एक ऐसी बुराई थी जो अन्य देशों में प्रचलित नहीं थी। बर्नियर बताता है कि भारत में कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से सती होती थीं एवं कुछ महिलाओं को सती होने के लिये बाध्य किया जाता था। बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तान्त में सती प्रथा का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। इसके वर्णन द्वारा वह एक बार फिर यूरोपीय श्रेष्ठता एवं भारत में व्याप्त बुराई को प्रमाणित करना चाहता था। वह बताता है- “लाहौर में मैंने एक बहुत ही सुन्दर अल्पवयस्क विधवा जिसकी आयु मेरे विचार में बारह वर्ष से अधिक नहीं थी, की बलि होते हुये देखी। उस भयानक नर्क की ओर जाते हुये वह असहाय छोटी बच्ची जीवित से अधिक मृत प्रतीत हो रही थी, उसके मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता। वह काँपते हुये बुरी तरह रो रही थी लेकिन तीन या चार ब्राह्मण, एक बूढ़ी औरत जिसने उसे अपनी आस्तीन के नीचे दबाया हुआ था, की सहायता से उस अनिच्छुक पीड़िता को जबरन घातक स्थल की ओर ले गये, उसे लकड़ियों पर बैठाया, उसके हाथ और पैर बाँध दिये ताकि वह भाग न जाये और इस स्थिति में उस मासूम प्राणी को जिन्दा जला दिया गया। मैं अपनी भावनाओं को दबाने में और उनके कोलाहल तथा व्यर्थ के क्रोध को बाहर आने से रोकने में असमर्थ था……?” यहाँ हम देखते हैं कि इब्नबतूता ने स्वेच्छा से सती होने वाली महिलाओं वर्णन किया है जबकि बर्नियर ने जबरदस्ती से सती की जाने वाली अबोध बालिका का वर्णन किया है। यह मध्यकालीन भारत की एक भीषण कुप्रथा के अस्तित्व का चित्रण है। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि महिलाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। मध्यकाल में हम कुछ ऐसी महिलाओं को भी देखते हैं जो कृषि एवं व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न थीं। इससे यह पता चलता है कि महिलाएँ मात्र घरेलू जीवन तक ही सीमित नहीं थीं।

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