विभाजन को समझना

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Class 12 History Chapter 14 Subjective Questions in Hindi

1. क्रिप्स मिशन भारत क्यों आया? उसने क्या सुझाव दिये ?

उत्तर- द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की स्थिति बिगड़ती जा रही थी तब ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने भारतीयों से सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से एक सद्भावना मंडल भारत भेजा जिसके अध्यक्ष सर स्टेफर्ड क्रिप्स थे। 22 मार्च, 1942 को ‘क्रिप्स मिशन’ भारत पहुँचा। चूँकि इस आयोग के अध्यक्ष सर स्टेफर्ड क्रिप्स थे अत: यह क्रिप्स मिशन के नाम से जाना जाता है। इस मिशन की प्रमुख बातें थीं-
1. ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के अन्तर्गत भारत को पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज्य दिया जाए।
2. संविधान सभा और ब्रिटिश सरकार में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हेतु एक संधि की जायेगी ।
3. जब तक संविधान सभा का निर्माण न हो, अंग्रेज ही भारत की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी होंगे।4. भारतीय शासन के अन्य विभाग भारतीयों को सौंप दिए जायेंगे। इसमें सभी राजनीतिक दलों के सदस्य होंगे।
5. इन सभी सुधारों के बदले भारतीय जनता युद्ध में सरकार की मदद करेगी।

2. विभाजन के खिलाफ महात्मा गाँधी की दलील क्या थी?

उत्तर- महात्मा गाँधी एक अत्यन्त ही दूरदर्शी व्यक्ति थे । वे अच्छी तरह से विभाजन के दुष्परिणामों को जानते थे। इसीलिये उन्होंने विभाजन को रोकने के लिए अनेक दलीलें प्रस्तुत कीं। उन्होंने जिन्ना को एवं मुस्लिम लीग को समझाने का हर सम्भव प्रयास किया। वह समस्त भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव की भावना जगाना चाहते थे। इसके लिए 77 वर्षीय बुजुर्ग गाँधी जी ने अहिंसा के अपने जीवनपर्यन्त सिद्धान्त को एक बार फिर आजमाया और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर विभाजन को रोकने का प्रयत्न किया। उनका फैसला इस यकीन पर आधारित था कि लोगों का हृदय परिवर्तन किया जा सकता है जिसके लिए वे बंगाल के नोआखली (वर्तमान बांग्लादेश) से बिहार के गाँवों में और उसके बाद कलकत्ता व दिल्ली के दंगों में झुलसी झोंपड़-पट्टियों की यात्रा पर निकल पड़े ताकि हिन्दू-मुसलमान एक-दूसरे को न मारें और विभाजन का मुद्दा अधिक न उठे। वह यह मानते थे कि उनकी अहिंसा, शांति, साम्प्रदायिक भाईचारा के विचारों को हिन्दू और मुसलमान दोनों ही मानते हैं अत: उन्होंने सभी से शांति बनाये रखने एवं परस्पर प्रेम बनाये रखने के लिए कहा। मार्च, 1947 में विभाजन के लिये हिन्दू-मुस्लिमों के बीच जो मार-काट मची उससे त्रस्त निरपराध लोग अंग्रेज अधिकारियों के पास रक्षार्थ गये । अंग्रेज अफसरों ने उनसे कहा कि आप महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, नेहरू एवं जिन्ना की शरण में जाइये ।

3. 1940 के प्रस्ताव के जरिये मुस्लिम लीग ने क्या माँग की ? ‘अथवा ‘ मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग क्यों की गई ? 
उत्तर— 23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में मुहम्मद अली जिन्ना ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग करते हुए प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का जिक्र नहीं था। बल्कि, इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता सिकन्दर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेम्बली को सम्बोधित करते हुए ऐलान किया था कि वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें “यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जगह हिन्दू राज होगा। अगर पाकिस्तान का मतलब यह है कि पंजाब में खालिस मुस्लिम राज कायम होने वाला है तो मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है।” उन्होंने संघीय इकाइयों के लिए उल्लेखनीय स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढाले (संयुक्त) महासंघ के समर्थन में अपने विचारों को फिर दोहराया। इसके विपरीत मुहम्मद अली जिन्ना का कहना था कि एक अलग पाकिस्तान राष्ट्र के अलावा उन्हें कुछ स्वीकार्य नहीं होगा। मुहम्मद अली जिन्ना ने कहा, “हिन्दू और मुसलमान पृथक् राष्ट्र हैं। उनके धार्मिक दर्शन, सामाजिक रीति-रिवाज और साहित्य पृथक्-पृथक् हैं। वे आपस में विवाह नहीं करते, भोजन नहीं करते और वास्तव में ऐसी पृथक्-पृथक् सभ्यताओं से सम्बन्ध रखते हैं जिनका आधार एक-दूसरे की विरोधी विचारधारा है।” अधिवेशन में मुहम्मद अली जिन्ना ने कहा, “किसी भी दृष्टि से देखा जाये मुसलमान एक अलग राष्ट्रीयता है और उनका अपना अलग स्वतन्त्र देश, क्षेत्र तथा राज्य होना चाहिए।

 4. भारत छोड़ो आन्दोलन की व्याख्या करें।

उत्तर- भारत छोड़ो आन्दोलन सन् 1942 में महात्मा गाँधी द्वारा प्रारम्भ किया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण आवश्यक वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही थीं। इन बढ़ती कीमतों के कारण जनता बहुत त्रस्त थी। इसी समय भारतीयों की मदद के उद्देश्य से क्रिप्स मिशन भारत आया किन्तु इसका वास्तविक उद्देश्य था भारत में अंग्रेजों द्वारा स्वशासन स्थापित करना। इसे गाँधीजी व अन्य लोगों द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया तथा यह बात स्पष्ट हो गई कि सरकार कोई भी कार्य भारतीयों के पक्ष में नहीं कर सकती। महात्मा गाँधी ने इस समय ऐसे आन्दोलन की आवश्यकता का अनुभव किया जो तीव्र हो । परिणामस्वरूप भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया गया। इस आन्दोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव हिलाकर रख दी। वकीलों, अध्यापकों सहित विभिन्न सरकारी लोगों ने इस आन्दोलन में हिस्सेदारी की।

5. शिमला कान्फ्रेंस के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – शिमला कान्फ्रेंस-काँग्रेसी नेताओं के जेल में होने के कारण भारतीय जनता का क्रोध दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। उधर बंगाल, उड़ीसा और दक्षिण के कुछ भागों में 1943-44 में भयंकर अकाल में लाखों लोग भूख से मर गये। युद्ध लगभग समाप्त ही हो चुका था परन्तु मित्र देशों के सैनिक अधिकारियों का यह विचार था कि जापान के विरुद्ध अभी भी एक-दो वर्ष तक लड़ना पड़ेगा। अत: मित्र देशों के राजनीतिज्ञ भी ब्रिटिश सरकार पर भारत के राजनैतिक डैडलॉक को समाप्त करने के लिए दबाव डाल रहे थे। इन दिनों भारत का वायसराय लॉर्ड बेवेल था जो एक महान सेपापति भी था । वह भारतीय राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करने के पक्ष में था। मई, 1945 में इंग्लैण्ड में अनुदार दल की सरकार को हराकर मजदूर दल सत्तारूढ़ हो चुका था । अतः लॉर्ड बेवेल स्वयं गया और वहाँ भारतीय राजनीतिक समस्याओं के विषय में पूर्ण विस्तार से बातचीत की।

6. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दो कारण लिखें।

उत्तर- महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय जनता ने ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ प्रारम्भ किया। आन्दोलन का आरम्भ करते हुये 12 मार्च, 1930 ई. को गाँधी जी अपने 78 कार्यकर्ताओं के साथ साबरमती आश्रम से समुद्र तट पर स्थित दांडी की ओर गये। 6 अप्रैल को गाँधी जी ने नमक कानून तोड़ा और जनता के समक्ष यह कार्यक्रम प्रस्तुत किया-
1. हर गाँव में नमक कानून तोड़ा जाये।
2. शराब, अफीम, विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना दिया जाये।
3. सरकारी संस्थाओं का त्याग करना ।
4. सरकार को कर नहीं दिये जायें।
5. विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाये।
इस तरह 4 मई, 1930 को गाँधीजी गिरफ्तार कर लिये गये। सारे देश में विदेशी कपड़ों की होली जली, स्त्रियों ने शराब व नशीले पदार्थों की दुकानों पर धरना दिया।

7. क्या भारत का विभाजन अनिवार्य था ? स्पष्ट करें।

उत्तर- कई नेताओं के न चाहने पर भी भारत विभाजन को रोका नहीं जा सका क्योंकि जहाँ सन् 1909 के कानून में मुसलमानों के लिए निर्वाचन का अधिकार देकर अंग्रेजों ने उन्हें हिन्दुओं से अलग करने का प्रयास किया वहीं ‘फूटडालो और शासन करो’ की नीति से मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की माँग भी और तेजी से बढ़ती गई। इसके अतिरिक्त कांग्रेस की कमजोर नीति ने भी देश के विभाजन को अनिवार्य बना दिया था। कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ सदा समझौता करने की नीति अपनाई ।1916 ई. में कांग्रेस ने पृथक् मुस्लिम प्रतिनिधित्व को स्वीकार करके पाकिस्तान की नींव डाल दी थी। इससे मुस्लिम लीग को यह पूरा विश्वास हो गया कि यदि वह अपनी माँग पर डटी रही, तो एक न एक दिन पाकिस्तान की माँग मान ली जाएगी। मुस्लिम लीग ने काँग्रेस की दुर्बलता का लाभ उठाकर व्यापक पैमाने पर दंगे कराये जिनमें लाखों व्यक्ति मारे गये। अतः कांग्रेस ने भी इन दंगों को रोकने का यही उपाय समझा कि बँटवारा स्वीकार कर लिया जाये। विभाजन स्वीकार करने में कांग्रेस का मुख्य तर्क यह था कि ऐसा न करने पर “विशाल नरसंहार और अनेक पाकिस्तान” प्राप्त होंगे। अत: कांग्रेस की दृष्टि में विभाजन अनिवार्य था। अनेक विद्वान इन तर्कों को स्वीकार करते हुए विभाजन को अनिवार्य मानते हैं। राममनोहर लोहिया का मानना है कि कांग्रेसी नेताओं की स्वार्थलोलुपता और बुढ़ापे की स्वाभाविक निराशा के कारण विभाजन हुआ। मौलाना आजाद का मानना था कि आजादी को कुछ वर्षों के लिए स्थगित किया जा सकता था । वस्तुतः विभाजन अनिवार्य नहीं था अगर कांग्रेस ने लीग से भी उसी तरह संघर्ष किया होता जिस प्रकार उसने अंग्रेजों से किया था।

8. भारत छोड़ो आन्दोलन के कारणों और परिणामों का मूल्यांकन करें।

उत्तर- भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण- क्रिप्स मिशन की असफलता से यह बात स्पष्ट हो गयी थी कि सरकार कोई भी कार्य भारतीयों के पक्ष में नहीं कर सकती। महात्मा गाँधी इस बात का अनुभव कर रहे थे कि तीव्र आन्दोलन की आवश्यकता है। युद्ध के कारण बढ़ती कीमतों व जरूरी वस्तुओं की कमी से जनता बहुत दुखी थी। भारत छोड़ो आन्दोलन की व्याख्या करते हुए कहा गया कि “भारत छोड़ो का अर्थ यह नहीं कि सभी अंग्रेजों को भारत से उठाकर बाहर फेंक दिया जाये । इसका अर्थ केवल सत्ता का हस्तान्तरण है।” 8 अगस्त, 1942 ई. को बम्बई अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का प्रस्ताव पास किया। मौलाना आजाद ने चर्चा करते हुए कहा, “हमारे प्रस्ताव का उद्देश्य अंग्रेजों को धमकी देना नहीं है बल्कि उनको निमंत्रित करना है तथा अपनी बात की व्याख्या करना है और अंग्रेजों को सहयोग देना है। यह बात भी स्पष्ट है कि यदि वे हमारी बात नहीं मानेंगे तो यह आवश्यक है कि कोई न कोई घटनाएँ अवश्य होंगी।”
भारत छोड़ो आन्दोलन के परिणाम – भारत छोड़ो आन्दोलन या अगस्त क्रांति भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की अंतिम महान लड़ाई थी जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया। महात्मा गाँधी ने कहा, “मैं आपको एक मंत्र देता हूँ ‘करो या मरो’ (Do or Die) जिसका अर्थ था – भारत की जनता देश की आजादी के लिए हर ढंग का प्रयत्न करे, बस इस बात का ध्यान रखे कि आन्दोलन गुप्त एवं हिंसात्मक न हो।” महात्मा गाँधी के भाषण पर पट्टाभिसीतारमैया ने कहा, “वास्तव में गाँधीजी उस दिन अवतार और पैगम्बर की प्रेरक शक्ति से प्रेरित होकर भाषण दे रहे थे।” आंदोलन प्रारम्भ के दूसरे दिन ही कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेताओं को Operation Zero Hour के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। नेतृत्वविहीनता के बाद भी यह आन्दोलन चलता रहा। गिरफ्तारी के समाचार से जनता ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। वकीलों, अध्यापकों सहित सभी सरकारी लोगों ने भाग लिया। दिन-प्रतिदिन इसका वेग बढ़ता ही जा रहा था।
निश्चित रूप से इतना कहा जा सकता है कि भले ही भारत छोड़ो आन्दोलन समाप्त हो गया हो परन्तु इसके परिणाम दूरगामी रहे। इतिहास की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण रहा। डॉ. ए.सी. बैनर्जी के शब्दों में, “इस आन्दोलन केपरिणामस्वरूप अधिराज्य की पुरानी माँग सर्वथा समाप्त हो गई और इसका स्थान पूर्ण स्वतंत्रता की माँग ने ले लिया

9.भारतीय स्वतन्त्रता की प्राप्ति में सहायक तत्वों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- निम्न तत्वों ने भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति में सहायता की थी-
1. राष्ट्रीय चेतना का चरमोत्कर्ष – द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना का विस्तार तीव्रता से हुआ। गाँधीजी का सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन आदि ने भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष को तेज कर दिया। ‘करो या मरो’ का नारा दिया।
2. इंग्लैण्ड की दुर्बल स्थिति-द्वितीय विश्वयुद्ध से इंग्लैण्ड की स्थिति अत्यन्त खराब हो गयी थी। जीत होने पर भी इंग्लैण्ड की हालत पराजित राष्ट्र के समान थी। आर्थिक शक्ति ही किसी भी राष्ट्र की मुख्य शक्ति होती है और इंग्लैण्ड आर्थिक रूप से कमजोर हो गया।
3. एशिया में स्वतन्त्रता आन्दोलन-द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अधिकांश एशियाई देशों में स्वतन्त्रता आन्दोलन चल रहे थे और यह बात साफ थी कि पश्चिमी राष्ट्र अब उनको गुलाम नहीं रख सकते।
4. भारत के पक्ष में ब्रिटिश जनमत-इंग्लैण्ड के संकट काल में भारत ने अरबों रुपये का सामान तथा युद्ध सामग्री उसे दी थी। इन सब बातों का ब्रिटिश जनमत पर बहुत प्रभाव पड़ा। 1945 के चुनाव में मजदूर दल की विजय सेनिश्चित हो गया कि अब भारत को जल्द स्वतन्त्रता प्रदान की जायेगी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने सत्ता सम्भालते ही भारतीय स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी।
5. ब्रिटेन पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव-युद्ध काल में ब्रिटेन पर अमेरिका और चीन का दबाव था कि भारतीय समस्या को सुलझाया जाये। अनेक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्ति भी भारत की स्वतन्त्रता का समर्थन कर रहे थे। इनमें प्रमुख लुई फिशर, पर्ल बक, लिग मूतांग, नार्मन टामस जे. जे. सिंह आदि थे।
6. ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली का योगदान- 1945 में एटली ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने। पहले उन्होंने कैबिनेट मिशन भारत भेजा जब वह असफल हो गया तो लार्ड माउण्टबेटन को भारत भेजा। इस तरह भारत की स्वतन्त्रता में एटली की भूमिका एक महत्वपूर्ण तत्व था ।
7. ब्रिटिश अजेयता का मिथक समाप्त होना- ब्रिटिश शक्ति स्वयं को सबसे अधिक बलशाली व अजेय समझती थी, परन्तु उनका यह घमण्ड उस समय चकनाचूर हो गया जब द्वितीय विश्व युद्ध में जापानियों के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा।
8. साम्यवाद का भय – भारत में साम्यवाद का प्रसार चौथे दशक में होने लगा। श्रमिकों तथा कृषकों पर कुछ स्थानों में प्रभाव था। ब्रिटेन को भय था कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, विशेष रूप से सोवियत रूस की बढ़ती हुई शक्ति के कारण, भारत में साम्यवादी प्रसार की आशंका थी। उन्हें यह भी भय था कि अगर सत्ता हस्तान्तरण में विलम्ब किया गया तो भारत में साम्यवादी शक्तिशाली हो सकते थे। दिसम्बर 1946 में लार्ड माउण्टबेटन ने एक भाषण में इस खतरे का उल्लेख किया था।

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