1857 का आन्दोलन

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Class 12 History Chapter 11 Subjective Questions in Hindi

1. 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था ? 
उत्तर-  यह अफवाह फैल रही थी कि बाजार में ऐसा आटा एवं शक्कर मिल रहे हैं जिसमें सुअर व गाय की हड्डियों एवं खून का चूरा मिलाया गया है। इससे सर्वत्र असंतोष व्याप्त था एवं हिन्दू व मुस्लिमों को लग रहा था कि अंग्रेज प्रत्येक प्रकार से हमारा धर्म भ्रष्ट करने पर तुले हुये हैं। इसी बीच चर्बी वाले कारतूस 1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण बने। 1856 ई. में ब्रिटिश सरकार ने लोहे की पुरानी बन्दूकब्राउन बैस के स्थान पर नवीन एनफील्ड रायफल  सैनिकों को प्रयोगार्थं दीं। इसके कारतूस पर चिकना कागज लगा था। इस कारतूस को बन्दूक में प्रयोग करने से पहले इस कागज को दांतों से काटकर खोलना पड़ता था। जनवरी 1857 ई. में बंगाल सेना में यह अफवाह फैल गयी कि इन कारतूसों के मुँह पर गाय व सुअर की चर्बी लगाई गई है। कालान्तर में यह पता चला कि बुलिच शस्त्रागार में गाय एवं सुअर की चर्बी उपयोग की जाती है। इससे हिन्दू-मुस्लिम सैनिकों में आक्रोश उत्पन्न हुआ। 23 जनवरी, 1857 ई. को कलकत्ता के पास दमदम में सेना ने कारतूसों का खुलकर विरोध किया। इस प्रकार चर्बी वाले कारतूस ही 1857 के विद्रोह का आरम्भ होने के तात्कालिक कारण बने ।

2. ब्रिटिश चित्रकारों ने 1857 के विद्रोह को किस रूप में देखा ?

उत्तर- ब्रिटिशों द्वारा निर्मित चित्रों में अंग्रेजों को विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेजी नायकों के रूप में चित्रित किया गया है। 1859 में टॉमस जीन्स बार्कर द्वारा बनाया गया चित्र ‘रिलीफ ऑफ लखनऊ’ इसी श्रेणी का उदाहरण है। चित्रों में ईसाईयत की रक्षा के संघर्ष के भी चित्र बनाये गये हैं जिसमें | कुछ बाइबिल प्रदर्शित है। विद्रोह के विषय में प्रकाशित चित्रों में बदले की भावना के उफान में विद्रोहियों की निर्मम हत्या का प्रदर्शन है। 1857 के विद्रोह को एक राष्ट्रवादी दृश्य के रूप में अंकित किया गया। इस संग्राम में कला और साहित्य को बनाये रखा गया। कलाओं में झाँसी की रानी को घोड़े पर सवार एक हाथ में तलवार और दूसरे में घोड़े की रास थामे प्रदर्शित किया गया है। वह साम्राज्यवादियों का सामना करने हेतु रणभूमि की ओर जा रही हैं।

 3. 1857 के विद्रोह के राजनीतिक कारणों का उल्लेख करें।

उत्तर- वेलेजली (1798-1805 ई.) की सहायक संधियों से भारत में राजनीतिक असंतोष व्याप्त था। रही कसर लार्ड डलहौजी (1848-1856 ई.) की हड़प नीति ने पूर्ण कर दी। ली वार्नर ने लिखा है- “डलहौजी कोई भी ऐसी परिस्थिति को छोड़ना नहीं चाहता था जो कि उसे किसी राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने का अवसर देता हो।” डलहौजी ने अपनी हड़प नीति के तहत सतारा, नागपुर, झाँसी, अवध, सम्भलपुर एवं जौनपुर आदि रियासतों को हड़प लिया। अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के वंशजों को लाल किला खाली करने का हुक्मनामा सुना दिया। कानपुर में पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहब की पेंशन बंद कर दी। इससे अधिकांश राज्य असंतुष्ट हो गये।
4. 1857 के विद्रोह की असफलता के कारणों का उल्लेख करें।

 उत्तर 1857 की क्रान्ति की असफलता के कारण निम्न थे- (1) योग्य नेतृत्व का अभाव- हैवलाक, कैम्पवेल एवं आउट्रम अत्यन्त योग्य सेनापति थे जबकि भारत में अखिल भारतीय स्तर पर एक योग्य नेता का अभाव था। (2) समय से पूर्व – विद्रोह की तिथि 31 मई, 1857 तय की गई थी। मगर विद्रोह समय से पूर्व 10 मई को ही आरम्भ हो गया। (3) देशी राजाओं का अंग्रेजों को सहयोग – राजस्थान, मैसूर, महाराष्ट्र, पूर्वी बंगाल, हैदराबाद, गुजरात आदि में शासकों ने विद्रोह को फैलने नहीं दिया। हैदराबाद, ग्वालियर, पटियाला, जींद एवं नेपाल आदि ने तो व्रिदोह के दमन में अंग्रेजों का साथ दिया। (4) विद्रोह के क्षेत्र का सीमित होना- विद्रोह भारत के कुछ भागों तक ही सीमित रहा। (5) गोरखा व सिक्खों द्वारा अंग्रेजों को मदद-इन लोगों ने अंग्रेजों की मदद की। (6) अनेक वर्गों की उदासीनता – कुछ वर्ग इस विद्रोह के प्रति उदासीन रहे । (7) सीमित संसाधन – विद्रोहियों के पास संसाधनों का अभाव था । (8) अंग्रेजों की अनुकूल परिस्थितियाँ- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियाँ अंग्रेजों के अनुकूल थीं। (9) कैनिंग की उदारता- राबर्टसन ने लिखा है कि कैनिंग की उदारता ने विद्रोह को जल्दी समाप्त करने में मदद की। उसने घोषणा की कि बिना जाँच के किसी को दण्ड नहीं दिया जायेगा। (10) वैचारिक एकता का अभाव – विद्रोह के नेताओं के बीच वैचारिक स्तर पर एकता का अभाव था।

 5. 1857 ई. की क्रान्ति के प्रभाव पर प्रकाश डालिए। ‘अथवा ‘  1857 की क्रान्ति के क्या परिणाम हुए?

उत्तर – भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन का अन्त हो गया। अब भारत का शासन इंग्लैण्ड के ताज ने ग्रहण कर लिया। 1858 ई. में महारानी विक्टोरिया की घोषणा के अनुसार क्षेत्रों के सीमा विस्तार की नीति समाप्त कर दी गई। अब प्रादेशिक विस्तार के स्थान पर आर्थिक शोषण का युग आरम्भ हुआ। अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता तोड़ने के लिये ‘फूट डालो एवं राज्य करो’ की नीति अपनाई। 1858 से 1872 तक अंग्रेजों ने हिन्दू समर्थक एवं मुस्लिम विरोधी नीति अपनायी। 1872 ई. के पश्चात् इन्होंने मुस्लिम समर्थक एवं हिन्दू विरोधी नीति अपनाई ।
6. सहायक सन्धि क्या है?

उत्तर- सहायक संधि लार्ड वेलेजली द्वारा 1798 में तैयार की गई एक व्यवस्था थी। अंग्रेजों के साथ यह संधि करने वालों को कुछ शर्तें माननी पड़ती थीं जो निम्न प्रकार हैं- 1. अंग्रेज अपने सहयोगी की बाहरी और आंतरिक चुनौतियों से रक्षा करेंगे। 2. सहयोगी पक्ष के भू-क्षेत्र में एक ब्रिटिश टुकड़ी तैनात रहेगी। 3. सहयोगी पक्ष को इस टुकड़ी के रख-रखाव की व्यवस्था करनी होगी।4. सहयोगी पक्ष न तो किसी और शासक के साथ संधि कर सकेगा और न ही अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी युद्ध में हिस्सा लेगा।

 7. वीर कुँवर सिंह का एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर- बाबू कुँवर सिंह का जन्म बिहार के आरा जिले के जगदीशपुर में 1882 में हुआ था। वे राज परिवार से सम्बन्धित थे। बाबू कुँवर सिंह शहजादा सिंह के पुत्र थे। 1826 ई. में पिता की मृत्यु के बाद वे जगदीशपुर की गद्दी पर बैठे। पटना में 1857 की क्रान्ति का नेतृत्व पीर अली ने किया। लखनऊ निवासी पीर अली पटना में पुस्तक विक्रेता का काम करते थे। पीर अली को अंग्रेजों ने फाँसी दे दी। पीर अली ने फाँसी से पूर्व कहा था कि, ‘यदि मैं मरूंगा तो मेरे खून से हजारों वीर पैदा होंगे’ और ऐसा ही हुआ। उनकी फाँसी का समाचार पाते ही 25 जुलाई को दानापुर की तीन देशी पलटनों (7वीं, 8वीं एवं 40वीं) ने 25 जुलाई, 1857 को क्रान्ति का शंखनाद कर दिया। इन्होंने जगदीशपुर पहुँचकर बाबू कुँवर सिंह से नेतृत्व संभालने की गुजारिश की। बाबू कुँवर सिंह की आयु उस समय 80 वर्ष की थी। उन्होंने इन क्रान्तिकारियों का अनुरोध स्वीकार कर लिया। बहादुरी से संघर्ष करते हुए अंततः वीरगति को प्राप्त हुए ।

8. रानी लक्ष्मीबाई का जीवन वृत्त लिखें।

उत्तर- रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर, 1835 ई. को काशी में हुआ था। इनका नाम मणिकर्णिका था। प्यार से लोग उन्हें मनु कहकर बुलाते थे। उनके पिता का नाम मोरोपन्त एवं माता का नाम भागीरथी बाई था। मनु का रंग गोरा था, वह दुबली-पतली और ऊँचे कद की थी। चेहरा लम्बा, सीधी नाक, ऊँचा ललाट और आँखें कमल की तरह विशाल थीं। पिता ही नहीं सभी लोग उसे बहुत चाहते थे । इसीलिये उसका नाम छबीली रख दिया गया। मोरोपन्त ताम्बे ने अपनी बेटी मनु का विवाह गंगाधर राव के साथ झाँसी में गणेश मन्दिर में वैशाख सुदी 10 संवत् 1899 गुरुवार को गोधूलि बेला में सम्पन्न किया। अर्थात् मई 1842 ई. में यह विवाह हुआ। इस हिसाब से मनु का विवाह 6 वर्ष 6 माह की आयु में हुआ, मगर विष्णु भट्ट ने लिखा है कि मोरोपन्त की बेटी ग्यारह वर्ष की हो चुकी थी। उसे अपनी बेटी के विवाह की चिन्ता थी। अत: निश्चित रूप से छबीली का विवाह 11-12 वर्ष की आयु में हुआ होगा । इस हिसाब से उसका जन्म 1829-30 ई. में हुआ होगा न कि 1835 ई. में। 21 नवम्बर, 1853 को गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। चूँकि दामोदर राव लक्ष्मीबाई का गोद लिया पुत्र था, अत: डलहौजी ने झाँसी को हड़प लिया । झाँसी में 4 जून को 1957 की क्रान्ति आरम्भ हुई। 8 जून को झोकन बाग हत्याकाण्ड हुआ। 11 जून को विद्रोही दिल्ली चले गये। अब झाँसी का शासन रानी लक्ष्मीबाई ने संभाल लिया। रानी जानती थी अंग्रेजी सेनाएँ अब झाँसी पर आक्रमण करेंगी। अतः उसने सामरिक तैयारियाँ आरम्भ कर दीं। 3 फरवरी, 1858 को सागर पर अधिकार करने के पश्चात् ललितपुर होता हुआ ह्यूरोज 22 मार्च को झाँसी आ गया। रानी घिर चुकी थी। मुख्य तोपची गुलाम गौस खाँ मारा गया। एक गद्दार दूल्हाजू ने ओरछा दरवाजे का द्वार खोल दिया और अंग्रेज सेना नगर में प्रविष्ट हो गई। कत्लेआम मच गया। 3 अप्रैल को झाँसी पर ह्यूरोज का अधिकार हो गया। रानी लक्ष्मीबाई अपने पुत्र दामोदर राव को पीछे बाँधकर गणेश दरवाजे से निकल गई। वह कालपी पहुँची। कालपी से ताँत्या टोपे एवं नाना साहब के भतीजे राव साहब के साथ ग्वालियर पहुँची और ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। ग्वालियर में अंग्रेजों के साथ भीषण संघर्ष हुआ और अन्तत: 8 जून, 1858 को रानी लक्ष्मीबाई की एक अंग्रेज की तलवार के वार से घायल होकर ग्वालियर में ही मौत हो गई।

9. 1857 की क्रान्ति के स्वरूप की विवेचना करें।

उत्तर – क्रान्ति / विद्रोह के स्वरूप के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। इसके स्वरूप के सम्बन्ध में निम्न विचार सामने आये हैं- (1) यह एक सैनिक विद्रोह था – अधिकांश ब्रिटिश लेखकों एवं कतिपय भारतीय लेखकों ने इसे सैनिक विद्रोह कहा है। जॉन लारेन्स ने इसे सैनिक विद्रोह एवं उसका कारण चर्बी वाला कारतूस बताया है। इतिहासकार सीले ने लिखा है कि यह विद्रोह एक पूर्णत: देश-भक्ति रहित और स्वार्थी सैनिक विद्रोह था । यह सैनिक विद्रोह मात्र था, इस कथन को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि – इसमें भारत की पूरी सेना ने भाग नहीं लिया। सैनिकों का साथ जनता ने भी दिया। अवध की जनता, कृषक एवं ताल्लुकेदार एवं दस्तकार आदि सभी ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। अत: इसे मात्र सैनिक विद्रोह नहीं माना गया। (2) मुस्लिम सत्ता की पुनः स्थापना का षड्यन्त्र – सर जेम्स आउट्रम एवं डब्ल्यू. टेलर ने इस विद्रोह को हिन्दू-मुस्लिम षड्यन्त्र का परिणाम बताया है। मुस्लिम लोग इस षड्यन्त्र द्वारा हिन्दुओं का सहयोग प्राप्त कर अपनी सत्ता की पुनस्थापना करना चाहते थे। चूँकि आउट्रम लखनऊ में था एवं लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व बेगम हजरत महल एवं मौलवी अहमद उल्ला शाह ने संभाला। दिल्ली में भी बहादुरशाह जफर को सम्राट बनाया गया। अतः आउट्रम ने इसे मुगल साम्राज्य की पुनस्थापना के रूप में देखा परन्तु यह सच नहीं था  विद्रोहियों में हिन्दुओं की संख्या अधिक थी। (3) सभ्यता एवं बर्बरता के मध्य संघर्ष – टी. आर. होम्स महोदय ने इसे सभ्यता एवं बर्बरता के मध्य संघर्ष बताया है। वे अंग्रेजों को सभ्य एवं भारतीयों को बर्बर मानते हैं। इसके लिये उन्होंने उन कत्लेआमों का जिक्र किया है जो भारतीयों ने क्रान्ति के दौरान किये थे। मगर होम्स महोदय उस बर्बरता को क्यों भूल गये जिसका सहारा तथाकथित सभ्य अंग्रेजों ने क्रान्ति के दौरान लिया था। (4) धार्मिक संघर्ष – एल. ई. आर. रीज  महोदय ने 1857 के विद्रोह को ‘धर्मान्धों का ईसाइयों के विरुद्ध संघर्ष’ कहा है। उनके अनुसार भारत के हिन्दू एवं मुस्लिम लोग ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार से असन्तुष्ट थे । वे इसे उनकी धर्म एवं संस्कृति पर प्रहार के रूप में देख रहे थे। अतः हिन्दू एवं मुस्लिमों ने अपने धर्म की रक्षा के लिये संघर्ष किया। परन्तु इस विद्रोह के स्वरूप को सत्य नहीं माना जा सकता।(5) प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम- इंग्लैण्ड के कंजरवेटिव दल के नेता बेंजामिन डिजरैली ने इस विद्रोह को राष्ट्रीय विद्रोह बताया जिसमें सैनिक उपकरण मात्र थे । वी.डी. सावरकर महोदय ने इसे भारत की स्वतन्त्रता के लिये सुनियोजित संग्राम कहा।
निष्कर्षतः 100 वर्ष की दासता के बाद भारतीयों ने अपनी-अपनी परेशानियों से उबरने के लिये 1857 में स्वतन्त्रता हेतु जमकर संघर्ष किया, अत: इसे प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिये। 1857 के विद्रोह को क्रान्ति कहा जाना भी उचित प्रतीत होता है।

10. 1857 के विद्रोह के कारणों की विवेचना करें।’अथवा ‘ 1857 के विद्रोह के मुख्य कारण क्या थे?

उत्तर- 1857 ई. की क्रांति के कारणों को हम पिछले 100 वर्षों के कम्पनी राज्य की निरंकुश नीतियों में स्पष्टतः देख सकते हैं। ये निम्नांकित थे -(1) राजनीतिक कारण- वेलेजली (1798-1805 ई.) की सहायक संधियों से भारत में राजनीतिक असंतोष व्याप्त था। इसके अलावा डलहौजी ने अपनी हड़प नीति के तहत सतारा, नागपुर, झाँसी, अवध, सम्भलपुर एवं जौनपुर आदि रियासतों को हड़प लिया। अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के वंशजों को लाल किला खाली करने का हुक्मनामा सुना दिया। कानपुर में पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहब की पेंशन बंद कर दी। इससे अधिकांश राज्य असंतुष्ट हो गये ।(2) आर्थिक कारण- 1750 ई. के पश्चात् ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति सम्पन्न हुई। उस समय अपने कपड़ा उद्योग की उन्नति के लिये जो नीतियाँ अपनाईं – इससे एक तो भारतीय हथकरघा उद्योग नष्ट हुआ, दूसरी ओर कृषक अपनी परम्परागत फसल गेहूँ, चना, ज्वार, बाजरा आदि के स्थान पर कपास की खेती करने को बाध्य हुये। कई कृषकों ने तो खेती करना ही छोड़ दिया। इस प्रकार भारतीय हस्तशिल्प एवं कृषि का विनाश भारत की एक ऐसी क्षति थी जिसे भारतीय भुला न सके। ऊपर से ब्रिटिश कम्पनी की भू-राजस्व नीतियों ने भी भारतीय कृषकों की कमर तोड़ दी। (3) सामाजिक कारण – लार्ड विलियम बैंटिक (1833-1835 ई.) एवं डलहौजी ने भारत में कई सामाजिक सुधार किये। हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे – सती प्रथा, कन्या वध एवं बाल विवाह निरोधक कानून बनाये गये। विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित किया गया। यद्यपि ये समाज सुधार भारतीय समाज के हित में थे मगर रूढ़िवादी भारतीयों ने इसे अंग्रेजों द्वारा सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप माना । (4) धार्मिक कारण-1813 ई. के चार्टर एक्ट ने ईसाई पादरियों को भारत आने की अनुमति प्रदान की । इन्होंने भारतीयों को ईसाई बनाने की मुहिम सी चला दी। 1850 में एक अधिनियम पारित किया गया जिसके अनुसार धर्म परिवर्तन करने वालों को उनकी पैतृक सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जायेगा। इससे भारतीयों को पक्का विश्वास हो गया कि अंग्रेज सुनियोजित तरीके से भारतीयों को ईसाई बनाने की तैयारी कर रहे हैं।(5) सैनिक कारण- भारतीय सैनिक जो समुद्र पार जाने का मतलब धर्म भ्रष्ट हो जाना मानते थे, उन्हें जबरन समुद्र पार जाने को बाध्य किया गया। दाढ़ी काटने के आदेश से मुस्लिम सैनिकों में असंतोष व्याप्त था । चमड़े की टोपी पहनने का कुलीन ब्राह्मण सैनिकों ने विरोध किया । उच्च पद केवल अंग्रेज सैनिकों को ही मिलते थे। अंग्रेजों को भारतीय सैनिकों से अधिक वेतन व भत्ते मिलते थे। ब्रिटिश सैनिक अधिकारी भारतीय सैनिकों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। सन् 1854 ई. में डाक अधिनियम पारित हुआ, इसके तहत सैनिकों की निःशुल्क डाक सुविधाएँ समाप्त कर दी गईं।
(6) तात्कालिक कारण – यह अफवाह फैल रही थी कि बाजार में ऐसा आटा एवं शक्कर मिल रहे हैं जिसमें सुअर व गाय की हड्डियों एवं खून का चूरा मिलाया गया है। इससे सर्वत्र असंतोष व्याप्त था । इसी बीच चर्बी वाले कारतूस 1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण बने । 1856 ई. में ब्रिटिश सरकार ने लोहे की पुरानी बन्दुकब्राउन बैस (Brown Bess) के स्थान पर नवीन एनफील्ड रायफल (New Enfield Rifle) सैनिकों को प्रयोगार्थं दीं। इसके कारतूस पर चिकना कागज लगा था। इस कारतूस को बन्दूक में प्रयोग करने से पहले इस कागज को दाँतों से काटकर खोलना पड़ता था। जनवरी 1857 ई. में बंगाल सेना में यह अफवाह फैल गयी कि इन कारतूसों के मुँह पर गाय व सुअर की चर्बी लगाई गई है। 23 जनवरी, 1857 ई. को कलकत्ता के पास दमदम में सेना ने कारतूसों का खुलकर विरोध किया। लोगों ने कहना आरम्भ कर दिया कि ईस्ट इण्डियाकम्पनी औरंगजेब की भूमिका में है, अतः अब हमें शिवाजी बनना ही होगा। इस प्रकार चर्बी वाले कारतूस ही 1857 के विद्रोह का आरम्भ होने के तात्कालिक कारण बने ।

11. 1857 की क्रान्ति की असफलता के क्या कारण थे ?’अथवा ‘1857 के विद्रोह की विफलता के कारणों का उल्लेख करें ।

उत्तर- 1857 की क्रान्ति की असफलता के कारण- 1857 की क्रान्ति की असफलता के एक नहीं अनेक कारण थे, जो कि निम्नवत् हैं- (1) योग्य नेतृत्व का अभाव- क्रान्ति के नेता बहादुरशाह जफर अत्यन्त वृद्ध थे। नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, बख्तवली, बेगम हजरत महल आदि क्षेत्रीय नेता थे। ताँत्या टोपे ने सभी नेताओं को संगठित करने का प्रयास तो किया मगर तब तक देर हो चुकी थी। दूसरी ओर हैवलाक, कैम्पवेल एवं आउट्रम अत्यन्त योग्य सेनापति थे । भारत में अखिल भारतीय स्तर पर एक योग्य नेता का अभाव था। (2) समय से पूर्व – विद्रोह की तिथि 31 मई, 1857 तय की गई थी। मगर विद्रोह समय से पूर्व 10 मई को ही आरम्भ हो गया। मेलसन ने लिखा है,“यदि विद्रोह निर्धारित योजनानुसार सभी स्थानों पर एक साथ होता तो अंग्रेजों के सामने विकट समस्या आ सकती थी।” (3) देशी राजाओं का अंग्रेजों को सहयोग – राजस्थान, मैसूर, महाराष्ट्र, पूर्वी बंगाल, हैदराबाद, गुजरात आदि में शासकों ने विद्रोह को फैलने नहीं दिया। हैदराबाद, ग्वालियर, पटियाला, जींद एवं नेपाल आदि ने तो व्रिदोह के दमन में अंग्रेजों का साथ दिया। (4) विद्रोह के क्षेत्र का सीमित होना- विद्रोह भारत के कुछ भागों तक ही सीमित रहा। (5) गोरखा व सिक्खों द्वारा अंग्रेजों को मदद – इन लोगों ने अंग्रेजों की मदद की। (6) अनेक वर्गों की उदासीनता – कुछ वर्ग इस विद्रोह के प्रति उदासीन रहे। कुछ शिक्षित वर्ग के लोग अंग्रेज शासन को भारत के लिये हितकर मानते थे। (7) सीमित संसाधन – विद्रोहियों के पास संसाधनों का अभाव था। (8) अंग्रेजों की अनुकूल परिस्थितियाँ- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियाँ अंग्रेजों के अनुकूल थीं। (9) कैनिंग की उदारता – राबर्टसन ने लिखा है कि कैनिंग की उदारता ने विद्रोह को जल्दी समाप्त करने में मदद की। उसने घोषणा की कि बिना जाँच के किसी को दण्ड नहीं दिया जायेगा। अंग्रेजों ने यद्यपि उस पर व्यंग्य कार्टून बनाये एवं उसे ‘दयावान कैनिंग’ की उपाधि तक दी। (10) वैचारिक एकता का अभाव-विद्रोह के नेताओं के बीच वैचारिक स्तर पर एकता का अभाव था।

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