अर्द्धनारीश्वर पाठ का लेखक परिचय

अर्द्धनारीश्वर  के लेखक – रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म – 23 सितम्बर 1908

रामधारी सिंह दिनकर का निधन- 24 अप्रैल 1974

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म स्थान – सिमरिया, बेगूसराय (बिहार)

रामधारी सिंह दिनकर के माता – मनरूप देवी  पिता – रवि सिंह

शिक्षा- आरंभिक शिक्षा गाँव में , 1928 में मोकामा घाट रेल्वे हाई स्कूल से मैट्रिक 1932 में पटना कॉलेज से बी.ए. ( इतिहास )

अर्द्धनारीश्वर पाठ के सारांश लिखिए

प्रस्तुत निबंध अर्धनारीश्वर की रचना राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने की है । ऐसा माना जाता है कि अर्धनारीश्वर भारत का मिथकीय प्रतीक है जिसमे दिनकर जी ने अपना मनचीता आदर्श निरूपित किया है | मूलत : अर्धनारीश्वर भगवान शंकर और पार्वती का कल्पित रूप होता है जिसका आधा अंग पुरुष का और आधा अंग नारी का होता है| अर्धनारीश्वर इस बात का प्रतीक है कि स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं है तथा एक का गुण दूसरे का दोष नहीं हो सकता अर्थात अगर पुरुषों में नारियों का गुण आ जाए तो इससे उसकी मर्यादा कम नहीं होगी बल्कि उनके गुणों में अभिवृद्धि होगी | लेकिन कृषि के विकास के बाद नारी की पराधीनता आरंभ हो गई | जिंदगी दो भागों में बंट गई | नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगे | दोनों अपने कर्तव्यों से विचलित हो गए | नर कर्कश और कठोर हो गया युद्धों में रक्त बहाते समय उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि रक्त के पीछे जिनका सिंदूर बह रहा है उनका क्या होगा और न ही उन सिंदूरवालियों को ही फिक्र है | दिनकर जी कहते है कि अगर कौरवों की सभा में सन्धि वार्ता कृष्ण और दुर्योधन के बीच न होकर कुंती और गांधारी के बीच हुई होती तो शायद आज महाभारत का युद्ध नहीं होता |

रामधारी सिंह दिनकर ने इस निबंध में स्त्रियों के सम्मान को बढ़ाने पर बल दिया है | उन्होने गांधी और मार्क्स के विचारों की वकालत की है जिन्होने नारी जाती के सम्मान की बात कही है | उन्होने गांधी जी की पोती द्वारा लिखित पुस्तक   “ बापू मेरी माँ ” की भी चर्चा की है जिसमे पुरुषों में उपस्थित नारियों के गुण जैसे दया , क्षमा , इत्यादि को बतलाया गया है |

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