Hindi Class 12 Chapter 7 Subjective

12th Hindi Chapter 7 Subjective : Here you can find class 12th hindi 100 marks Subjective questions for board exam 2024.पुत्र वियोग subjective questions is very important for bihar board exam 2024. 

पुत्र वियोग

1.कवयित्री का खिलौनाक्या है?
उत्तर – कवयित्री का खिलौना उसका लाल ही है, जो खो गया है, अब वह नहीं मिल सकता ।

2.कवयित्री स्वयं को असहाय और विवश क्यों कहती है?

उत्तर – पुत्र माता का सहारा होता है, उसका आश्रय स्थल होता है, बुढ़ापे की लाठी होता है। असमय वह चला गया। कवयित्री एकदम असहाय हो गयी और वह उस दुःख पीड़ा को सहने हेतु विवश ही है। जब तक उसका पुत्र उसके साथ था, वह उसमें हर क्षण खोयी रहती थी, मग्न रहती थी जिस प्रकार बच्चा खिलौने में डूबा रहता है, मग्न रहता है। वह उसका हर प्रकार का ध्यान रखती थी, कहीं उसको ठण्ड न लग जाय, कहीं उसको कोई कष्ट न हो जाय, पर आज वह क्या करे, पता नहीं वह कहाँ होगा। उस पर क्या बीत रही होगी। वह कुछ भी नहीं करने की स्थिति में है, अतः पूरी तरह विवश ही है उसका कुछ भी उसके वश में नहीं है।

3.पुत्र के लिये माँ क्या क्या करती है?

उत्तर- वह उसके लिए क्या नहीं करती है? सब कुछ करती है। कविता के अनुसार वह परम सचेत रहती है। उस पर शीत का प्रकोप न हो जाय, वह कभी अपने अंक से उसको नहीं उतारती, उसकी एक आवाज़ पर सारे गृहकार्य छोड़कर उसके पास दौड़ी-दौड़ी चली आती है। उसको थपकियाँ दे देकर सुलाती है, उसके लिये लोरियाँ भी गाती है, यदि उसको जरा-सा भी कोई कष्ट होता है, वह सारी रात जागकर ही व्यतीत करती है। वह अपना निजी व्यक्तित्व सुख-चैन सब उसके लिये परित्याग कर देती है। पाहन को भी देव बनाकर उसकी (पुत्र) कुशलता हेतु पूजा करती है। वह उस पाहन – देव पर कभी नारियल चढ़ाकर, पुत्र की कुशलता हेतु भीख माँगती है, तो कभी दूध, बताशे चढ़ाती है और बड़े श्रद्धा भाव से उस देवता के श्री चरणों में शीश नवाती है।

4.अर्थ स्पष्ट करें- आज दिशाएँ भी हँसती हैं, हैं उल्लास विश्व पर छाया । मेरा खोया हुआ खिलौना, अब तक मेरे पास न आया ॥

सन्दर्भ व प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र-वियोगसे उद्धृत हैं। एक माता के अन्तर की व्यथा फूट पड़ी है जिसका लाल उससे छिन गया है, यह पीड़ा व दु:ख इतना गहरा है कि सर्वथा असहनीय है, परम वेदनाकारकभी है। व्याख्या – वह कहती है आज विश्व में हर्ष उल्लास, आनन्द का वातावरण छाया है। समस्त दिशाएँ उसी आनन्द में मग्न हैं। चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ हैं पर यदि कोई इस समस्त उल्लासमयी वातावरण में दुःखी है तो वह है एक अभागी माता जिसका लाल छिन गया था। वह उसका खिलौना था। खिलौना बच्चे में आनन्द, उल्लास का आधार होता है, वह उसको अत्यधिक प्रिय भी होता है। ठीक उसी प्रकार पुत्र भी एक माता के लिये उसके जीवन का आधार होता है, उसके उल्लास का आधार होता है, उसके अभाव में तड़पना ही रह जाता है। वह भी व्यथित है, व्याकुल है, तड़प रही हैं। विशेष – (1) ये पंक्तियाँ एक माता के हृदय की पीड़ापरक स्थिति का यथार्थ चित्र उतार रही हैं। (2) नारी मनोविज्ञान की बड़ी गहरी परख सुभद्रा जी को है। (3) ‘खिलौनाशब्द का प्रयोग बड़ा सटीकप्रयोग है, जिसके माध्यम से आन्तरिक व्यथा की व्यंजना बड़ी सरलता से हो उठी है। (4) अलंकार – (1) अनुप्रास – खोया – खिलौना‘, (ii) प्रतीकात्मकता – खिलौनामें, (111) पुनरुक्तिप्रकाश – खिलौनामें।

5.माँ के लिए अपना मन समझाना कब कठिन है और क्यों ?
उत्तर- माता का हृदय बड़ा कोमल होता है और पुत्र उसकी अनुपम निधि माना जाता है। उसकी प्राप्ति हेतु वह नाना प्रकार की मनौतियाँ मनाती है। उसको पाकर वह निहाल हो जाती है मानो सम्पूर्ण विश्व का सुख उसकी झोली में समा गया हो, साक्षात् नन्दन कानन ही उसके आँगन में उतर आया हो, वह उसका खिलौना होता है, हर समय उसका मन उसमें समाया रहता है और अपार आनन्द के सागर में गोते लगाता रहता है। आज उसका यह खिलौना खो रहा है। वह पुत्रहीन हो गयी है और न तो वह कुछ कर सकी और न ही कोई दूसरा व्यक्ति कुछ कर सका। अब वह निराश, हताश, असहाय और विवश है उसके व्याकुल प्राण तड़प रहे हैं, उसमें एक पल को भी शान्ति नहीं है, वह अब अपना खोया धन कभी भी नहीं पा सकेगी ऐसी स्थिति में मन को समझाना सर्वथा कठिन है जटिल है। वह मानता ही नहीं मचलता तड़पता ही रहता है। वह क्या करे? उसके भाई-बहन उसको भूल सकते हैं, पर माँ कैसे भूल सकती है। किन्तु रात-दिन की साथिन माँ, कैसे अपना मन समझाये ।

6.पुत्र को छौनाकहने में क्या भाव छुपा है ? उसे उद्घाटित करें।

उत्तर- छौना हिरण शावक होता है, वह कोमल, सुन्दर और चंचल होता है। माताएँ अत्यधिक प्यार में अपने पुत्र को भी छौनाकहती हैं। हिरण के शत्रु अत्यधिक होते हैं-वन पशु, शिकारी आदि। अत: हिरण अपने छौनाको हर क्षण उनसे बचाने का प्रयास करता रहता है। इस कारण उसकी सारी चेतना छौनापर ही केन्द्रित रहती है। ठीक उसी प्रकार प्रत्येक माता का सम्पूर्ण ध्यान का केन्द्र भी उसका पुत्र ही होता है। उसको सर्दी न लग जाय, वह उसको गोद से भी नहीं उतारती । उसने जरा पुकारा माँ‘, वहाँ वह सारे गृहकार्य त्यागकर उसकी ओर दौड़ पड़ती है अतः ममता, वात्सल्य और जीवन का आधार छौना ही है अर्थात् उसका पुत्र । अतः छौना शब्द का प्रयोग बड़ा सार्थक है।  7. मर्म उद्घाटित करें- भाई बहिन भूल सकते हैं, पिता भले ही तुम्हें भुलावे । किन्तु रात-दिन की साथिन माँ, कैसे अपना मन समझावे ॥
उत्तर- ये पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोगसे उद्धृत हैं। किसी माता का पुत्र जब चला जाता है तो उसकी व्यथा उसके भीतर कितनी सालती है यह यहाँ व्यंजित है। मृत पुत्र को माता कभी नहीं भूल सकती। कारण स्पष्ट है पुत्र हर क्षण, हर समय, रात-दिन माता के पास ही रहता है। अतः माता का उससे अपार स्नेह होता ही है, दुगुना भी होता है। पहले स्नेह का आधार वह माता है और पुत्र से माता का अपार स्नेह होना बड़ा स्वाभाविक है। दूसरा आधार है सानिध्य का हर क्षण सानिध्य का यह भी एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि साहचर्य और सानिध्य प्रेम की प्रगाढ़ता का आधार होता है। भाई-बहन और माता के हृदय में भारी अन्तर होता है। माता ने उसको अपने गर्भ में धारण किया, पाला और वह उसके साथ हर क्षण रहा है अत: वह उसको कैसे भुला सकती है। हो सकता है भाई-बहन उसको भुला दें, पिता भी भुला सकता है, पर माता कदापि नहीं, कभी नहीं क्योंकि उसका बन्धन भी ऐसा ही है। जिसके साथ पुत्र रात-दिन रहा वह उसके वियोग में अपना मन कैसे समझा सकती है, यह कार्य अत्यन्त दुष्कर है।

7.कविता का भावार्थ संक्षेप में लिखिये ।\

उत्तर सारांश अंश देखिये ।

8.इस कविता को पढ़ने पर आपके मन पर क्या प्रभाव पड़ा ? उसे लिखिए।

उत्तर- माता व पुत्र का सम्बन्ध बड़ा प्रगाढ़ होता है, गहरा होता है। माता-पुत्र को गर्भ में धारण करती है, पालती है, असमर्थ से समर्थ बनाती है, वह उसके जीवन का एकमात्र आधार होता है, उसका वियोग उसके लिये असह्य पीड़ा होती है। पर आज का पुत्र उसके सारे उपकारों को भूल जाता है, सारी व्यथाएँ भुला देता है और जिस माँ की अँगुली पकड़कर वह चलना सीखा बीबी का हाथ पकड़ते ही उसे घर से निकाल देता है, यह कितना अमानवीय है। जब वह छोटा था, बीबी नहीं आयी थी, माता बड़ी भली थी, उसके सारे गुण पुत्र को दिखायी देते थे और पत्नी के आते ही वह गुणहीन हो गयी, तिरस्कार योग्य हो गयी, प्रताणना की वस्तु बन गयी। यह आज का चलन। यह कविता मुझे झकझोर गयी और इन सारी स्थितियों पर विचार करने से मेरी चेतना मचल उठी

9. मर्म उद्घाटित करें- भाई बहिन भूल सकते हैं, पिता भले ही तुम्हें भुलावे । किन्तु रात-दिन की साथिन माँ, कैसे अपना मन समझावे ॥
उत्तर- ये पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता ‘पुत्र वियोग’ से उद्धृत हैं। किसी माता का पुत्र जब चला जाता है तो उसकी व्यथा उसके भीतर कितनी सालती है यह यहाँ व्यंजित है। मृत पुत्र को माता ‘कभी नहीं भूल सकती’। कारण स्पष्ट है पुत्र हर क्षण, हर समय, रात-दिन माता के पास ही रहता है। अतः माता का उससे अपार स्नेह होता ही है, दुगुना भी होता है। पहले स्नेह का आधार वह माता है और पुत्र से माता का अपार स्नेह होना बड़ा स्वाभाविक है। दूसरा आधार है सानिध्य का हर क्षण सानिध्य का यह भी एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि साहचर्य और सानिध्य प्रेम की प्रगाढ़ता का आधार होता है। भाई-बहन और माता के हृदय में भारी अन्तर होता है। माता ने उसको अपने गर्भ में धारण किया, पाला और वह उसके साथ हर क्षण रहा है अत: वह उसको कैसे भुला सकती है। हो सकता है भाई-बहन उसको भुला दें, पिता भी भुला सकता है, पर माता कदापि नहीं, कभी नहीं क्योंकि उसका बन्धन भी ऐसा ही है। जिसके साथ पुत्र रात-दिन रहा वह उसके वियोग में अपना मन कैसे समझा सकती है, यह कार्य अत्यन्त दुष्कर है।

 

 

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