Hindi Class 12 Chapter 4 Subjective

12th Hindi Chapter 4 Subjective : Here you can find class 12th hindi 100 marks Subjective questions for board exam 2024.छप्पय subjective questions is very important for bihar board exam 2024. 

छप्पय

1.नाभादास ने छप्पय में कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है? उनकी क्रम से सूची बनाइए । 

उत्तर – नाभादास जी ने कहा है भक्ति विहीन व्यक्ति अधर्म पर चल पड़ता है। योग, वृत, दान, भजन, हित की भाषा उसको नहीं सुहाती, वह उसको तुच्छ समझता है। कबीर की मान्यता है, मनुष्य को हितकारी एवं पक्षपातरहित भाषा को ही बोलना चाहिए। यहाँ की स्थिति बड़ी विचित्र है व्यक्ति प्रत्यक्ष पर नहीं, सुनी सुनायी बातों पर ही विश्वास करता है।

2. मुख देखी नाहीं भनीका क्या अर्थ है? कबीर पर यह कैसे लागू होता है?

उत्तर – कबीर ने मुख देखकर कुछ भी नहीं कहा है, जो उचित समझा है वही कहा हैं, अर्थात् कोई बात न तो पक्षपातपूर्ण कही है और न ही भयादि के कारण कुछ कहा है, निर्भीकता द्वारा अपना अनुभूत सत्य ही कहा है।

3. सूर के काव्य की किन विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है?

उत्तर- नाभादास जी ने सूर काव्य के चमत्कार, अनुप्रास के साथ उनकी भाषागत रमणीयता का भी उल्लेख किया है। साथ ही सूर काव्य का प्रेमतत्व, अनुभूत तुकान्त शैली, गम्भीर अर्थ प्रकट करती भाषा, दिव्य दृष्टि के माध्यम से हरि लीला का गान किया है। उन्होंने कृष्ण के जन्म, कर्म और रूपादि का प्रकाशन करके बुद्धि को निर्मल बनाया है, जिससे श्रवण पवित्र हो जाते हैं और बुद्धि भी निर्मल हो जाती है।

4. अर्थ स्पष्ट करें -सूर कवित्त सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालत करै ।

उत्तर- स्पष्टीकरण प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित सूर काव्य की विशेषता से उद्धृत हैं, जहाँ उन्होंने सूर के वचनों की महत्ता पर प्रकाश डाला है।सूर का काव्य इतना महान है, इतना रसात्मक है जिसके समक्ष ऐसा कौन कवि होगा जो उनके सामने अपना मस्तक न झुका दे। अर्थात् सूर का काव्य सभी के लिये आदरणीय है, महान् है।

5.भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गए।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित कबीर बाणीकी विशेषता पर प्रकाश डाल रही हैं। नाभादास जी कहते हैं धर्म-विमुख व्यक्ति और भक्ति-विमुख व्यक्ति बाह्याचारी में फँस जाता है, वह कर्मकाण्ड, धर्माडम्बर में ही फँसा रहता है । पाखण्ड उस पर हावी रहता है। उसके पास श्रेष्ठता बोध नहीं आता, वह धार्मिक संकीर्णता में फँसकर हिंसा का मार्ग भी अपना लेता है। ऐसा व्यक्ति धर्म मार्ग का परित्याग कर अधर्म के पथ पर चलता दिखाई देता है। उसके भीतर जड़ता समा जाती हैं। आश्चर्य तो यह है कि वे अपने इन कर्मकाण्डों को ही धर्म की संज्ञा प्रदान करते हैं। उनमें परमात्मा के प्रति लगाव, समर्पण, दया, निश्छलता, आदर्श का भाव नहीं रहता है, इसके विपरीत जड़ता, घमण्ड और प्रदर्शन प्रियता आ जाती है। धर्म का सही अर्थ तो वे जानते नहीं हैं। मात्र अधर्म को ही धर्म कहकर उस पर दौड़ते रहते हैं।  

6. ‘पक्षपात नहिं वचन सबहि के हित की भाषी । इस पंक्ति में कबीर के किस गुण का परिचय दिया गया है?

उत्तर – यह पंक्ति कबीर की मूल प्रवृत्ति की ओर संकेत करती है। उनकी पहली खूबी है, सद्यानुभूति का कथन अर्थात् कागद लेखा नहीं, मात्र आंखिन देखी- प्रत्यक्ष अनुभूति । दूसरी प्रवृत्ति है स्पष्ट कथन, निर्भीक कथन, पक्षपात रहित कथन । उन्होंने जहाँ हिन्दुओं को खरी-खरी सुनायी। पाहन पूजे हरि मिलै तो मैं पूजू पहार। वही मुसलमानों को भी नहीं छोड़ा। यही था उनका निष्पक्ष कथन, पक्षपातपूर्ण नहीं, पक्षपात रहित कथन ।

7. कविता में तुक का क्या महत्व है? इन छप्पयों के सन्दर्भ में स्पष्ट करें।

उत्तर – तुक से तात्पर्य होता है समान वर्ण अथवा समान ध्वनि का अन्त में प्रयोग। यथा- कबीर पद में गाएऔर दिखाए तथा साखी   -भाषीएवं भनी दर्शनी। ये तुक काव्य में सरसता समाहित कर देता है, गीति तत्व को उभार देता है। लयात्मकता भी प्रखर हो जाती है और काव्य सुनने में या पढ़ने में आनन्द देता है। कबीर के पदों में तुकों की महत्ता हम दिखा ही चुके हैं। सूर के पद में भी यह   विशेषता पायी जाती हैभारी धारीदोनों तुक ही हैं। उसी प्रकार अन्तिम दो पंक्तियों में धरै सरैभी तुक ही है जिनके प्रभाव से काव्य में सरसता समाहित हो गयी है|

8.कबीर कानि राखी नहींसे क्या तात्पर्य है?

उत्तर – कवि का तात्पर्य है मर्यादा, परम्परा । कबीर ने मर्यादा और परम्परा का निर्वाह कभी नहीं किया। वह कहता है- लीक लीक गाड़ी चलै लीकहि लीक कपूत । लीक छाँहि तीन्यों चलै सायर सिंह सपूत । न उसने वर्णाश्रम को माना, न ही जाति पांति को माना और न उसने दर्शन को स्वीकार किया। वह तो कहता है- तू कहता है कागद लेखी हाँ कहता हूँ आंखिन देखी।

9.कबीर ने भक्ति को कितना महत्व दिया है?

उत्तर – यद्यपि कबीर निर्गुण सन्त था पर भक्ति और प्रेम का पुजारी था। उसने भक्ति को सर्वोपरि माना है। वह कहता है जो व्यक्ति भक्ति विमुख है, उसका सारा धर्म अधर्म ही है, भक्ति-विमुख व्यक्ति धर्म का आचरण कर ही नहीं सकता। उसकी मान्यता है, संसार के अनेक साधन हैं। योग है, व्रतादि हैं, दान है पर सभी भक्ति के बिना तुच्छ ही हैं, व्यर्थ ही हैं, सर्वोपरि और सर्वसुलभ भक्ति ही है, वही महत्वपूर्ण है, ईश्वर प्राप्ति का सर्वसुलभ साधन है।

 

 

Leave a Reply