Hindi Class 12 Chapter 3 Subjective

12th Hindi Chapter 2 Subjective : Here you can find class 12th hindi 100 marks Subjective questions for board exam 2024. तुलसीदास के पद subjective questions is very important for bihar board exam 2024. 

तुलसीदास के पद

1. ‘कबहुँके अंब अवसर पाई’। यहाँ ‘अंब’ सम्बोधन किसके लिये है? इस सम्बोधन का मर्म स्पष्ट करें।
उत्तर –यह पद विनयपत्रिका का है जिसमें तुलसी ने श्रीराम को एक पत्रिका लिखी है और उनसे कष्टहरण, भक्ति दान की याचना की है। बड़े दरबार में ये सिफारिश भी करायी जाती है। तुलसी माता सीता से ही प्रार्थना करते हैं कि हे अम्बा ! मेरी माता, कभी आपको अवसर प्राप्त हो सके तो प्रभु श्रीराम को मेरी याद दिला देना। भला इतने बड़े राज्य के संरक्षक को मेरी याद कैसे आ सकती है। पर माता यह भी प्रार्थना है कि मेरी दीन-हीन अवस्था का भी चित्रण कर देना ताकि उनके मन में दया उत्पन्न हो सके। भला माता से बढ़कर बालक पर किसको दया आ सकती है। यही कारण रहा कि तुलसी ने अपनी सिफारिश माता सीता से करायी है।

2. प्रथम पद में तुलसी ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है? लिखिए।
उत्तर –तुलसी अपने को सब प्रकार दीन मलीन बताते हैं, क्षीण भी हैं और महापापी भी है। राम का नाम लेकर ही पेट भरते हैं और फिर भी अपने को श्रीराम का दास कहते हैं, भला वे ऐसा कौन-सा काम करते हैं कि उन्हें राम का दास माना जाये। वे यही चाहते हैं कि उनकी दीन दशा का बखान किसी प्रकार राम तक पहुँचे ।

3. अर्थ स्पष्ट करें- नाम लै भरै उदर एक प्रभु दासी दास कहाई ।

उत्तर- सन्दर्भ-प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसी कृत विनयपत्रिका की पंक्तियाँ हैं। तुलसी ने अपने प्रभु को एक पत्रिका लिखी, अपनी दशा का चित्रण किया, उन्होंने माता जानकी से याचना की कि वे थोड़ी-सी सिफारिश कर दें।व्याख्या- तुलसी कहते हैं यद्यपि वे महापापी हैं अधम से भी अधिक अधम हैं। दीन-हीन भी हैं। साधनहीन भी हैं, क्षीण और मलीन भी हैं फिर भी बाज नहीं आते, परमात्मा का नाम ले-लेकर ही अपना पेट भरता हूँ- यह अनीति भी मैं कर रहा हूँ। पर माता तो उदार होती है बालक की सारी अनीति को भी क्षमा कर देती है। आप भी मेरे अनीति जन्य व्यवहार को क्षमा करते हुए मेरी सिफारिश राम जी से करने की कृपा करियेगा। यह सत्य है कि मैं अपना पेट उन्हीं का नाम लेकर भरता हूँ अपने को प्रभु का दास भी कहता हूँ, जबकि मैं इस योग्य नहीं हूँ। फिर भी माता तुम्हारी कृपा की आकांक्षा करता हूँ।

4. अर्थ स्पष्ट करें- काली कराल दुकाल दारुन, सब कुभाँति कुसाजु ।
नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ।।

सन्दर्भ-प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास की विनयपत्रिका से उद्धृत हैं। यहाँ तुलसी अपनी यथार्थ स्थ की व्यंजना कर रहे हैं। वे भगवान राम के द्वार पर भोर से ही पड़े हैं और रिरिया-रिरियाकर रट रहे हैं, उन्हें कुछ नहीं चाहिये मात्र एक कौर भी मिल जायेगा तो उनका जीवन सफल हो जायेगा। वे अपनी हालत का बयान कर रहे हैं।
व्याख्या–हे नाथ यह कलयुग का काल है। महामारी अकाल चारों तरफ व्याप्त है यह दुकाल है उत्तम काल नहीं है, संसार भीषण दुखों से ग्रस्त है। यहाँ इस काल में उत्तम साधन रूपी काल का अकाल पड़ गया है फलत: जो भी उद्यम हैं और उपाय हैं,साधन हैं, सभी बुरे ही हैं। यह ऐसा कष्टदायक समय है यहाँ कार्य भी सहज नहीं पूरे होते हैं अतः भीख माँगना ही उचित है वही मैं आपसे माँग रहा हूँ। कलयुग की करतूत सतत् नीच ही है वे रात-दिन विषयों हित पाप में ही लिप्त रहते हैं। मन अवश्य ऊँचा है सच्चा सुख भी चाहता है पर सच्चा सुख तो मोक्ष ही है वह तुम्हारी कृपा के अभाव में असम्भव है, यह कोढ़ में खाज बन गया है (कोढ़ खुजाते समय सुख अनुभव होता है पर घाव बढ़ जाते हैं और मवाद निकलने लगता है, जलन भी काफी होती है) यही स्थिति विषयलोलुप इन्द्रियों की भी है वे जब विषयभोग करती हैं बड़ा सुख अनुभव करती हैं, पर परिणाम महादु:ख ही होता है । कवि कलिकाल के प्रभाव से पर्याप्त दुखी है, उसने अन्यत्र दूसरा वर्णन भी किया है- खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि, बनिक को बनिज न चाकर को चाकरी ।

5. अर्थ स्पष्ट करें- पेट भरि तुलसिहि जैवाइय भगति सुधा सुनाजु |

सन्दर्भ-प्रसंग – प्रस्तुत पंक्ति तुलसी कृत विनय-पत्रिका से उद्धृत है। व्याख्या – इस पंक्ति में रामभक्त तुलसी अपने प्रभु से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु राम ! आप मुझे भक्ति रूपी अमृत पिलाकर मेरी ज्ञान रूपी भूख को शान्त करें।

6. तुलसी सीता से कैसी सहायता माँगते हैं? 

उत्तर – तुलसी मात्र यही चाहते हैं कि सीता माता थोड़ी उनकी सिफारिश कर दें। पर यह ध्यान रहे कि आप मेरी सिफारिश तभी करें, जब अवसर अनुकूल हो, प्रभु श्रीराम प्रसन्नचित्त हों और प्रायः अकेले हों। वे यह भी पूछेंगे कि यह कौन है तो यह बता देना कि मैं दीन हीन हूँ और उन्हीं का नाम लेकर उदर भरता हूँ।

7. तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते हैं?
उत्तर-तुलसी सीधी बात राम से नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें डर है कि उनके पापी आचरण पर प्रभु कुपित हो सकते हैं।माता बड़ी सहृदय होती हैं, वह पुत्र के अनेक अवगुन सह लेती हैं, उसकी ममता विलक्षण होती है। उसके मन में वात्सल्यमयी दयाभी समायी रहती है अतः वे माता सीता का सहारा लेते हैं।साथ ही पति को पत्नी प्यारी होती है उसकी सिफारिश पर उसे गौर करना ही पड़ता है। उसकी बात सहसा टालना सहज सम्भव नहीं है। पत्नी की बात बड़े ध्यान से सुनी जाती है, उसका पालन भी यथासम्भव और यथाशीघ्र होता है। यही कारण है कि तुलसी ने अपनी प्रार्थना पहुँचाने का माध्यम माता जानकी जी को चुना है।

7.राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे का कारण क्या है?

उत्तर- तुलसी की दशा बड़ी करुण है, वे दीन हैं, अंगहीन हैं, क्षीण भी हैं, मलीन भी हैं, महापापी भी हैं। वे उनका नाम लेकर ही पेट भर रहे हैं। दूसरा भगवान बड़े कृपालु हैं और उनकी कृपा सब पर सुलभ है, पर वे दीन-हीन पर कुछ अधिक कृपा ही करते हैं, उन पर भी अवश्य कृपा होगी यही इस विश्वास का आधार है। उनकी तो आदत ही कृपा करने की है। वह अपनी आदत नहीं छोड़ सकते हैं, वरना उनकी बदनामी हो जायेगी।

9.दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय किस तरह दिया है? लिखिए।

उत्तर – यहाँ तुलसी एक भिखारी के रूप में सामने आते हैं। भिखारी के समान ही वे श्रीराम के दरवाजे पर सवेरे से ही पड़े हुए हैं। उनकी रट लगा रहे हैं। तुलसी (भिखारी) कहते हैं कि उन्हें कुछ भी नहीं चाहिए बस एक कौर से ही मेरा कल्याण हो जायेगा अर्थात् हे प्रभु! आपकी तनिक सी कृपा दृष्टि ही मेरे लिये पर्याप्त है। अत: हे नाथ मुझ पर थोड़ी-सी कृपा दृष्टि कर दीजिये बस मेरा पूर्ण काम हो जाएगा। आप यह भी कह सकते हैं कि कोई काम क्यों नहीं करता तो एक कारण यह है कि उस भयंकर कलयुग में उत्तम साधन वाले उद्यम का दारुण दुर्भिक्ष पड़ गया है। अब जितने भी साधन हैं सब बुरे हैं प्रतिकूल ही हैं। अतः मेरे पास एक उपाय है भीख माँगना, वह भी आपसे । यहाँ तुलसी उद्यमहीनता हेतु स्वयं को दोषी नहीं मानकर मात्र कलिकाल को ही दोषी मानते हैं। वे यह भी कहते हैं मैंने सन्त समाज से यह पूछा कि उस उद्यमहीन व्यक्ति को भी कोई शरण में लेगा, उत्तर मिला एक कौशलपति महाराज श्रीरामचन्द्रजी ही ऐसे व्यक्ति को रख सकते हैं। वे यह भी कहते हैं कि वे जन्म से मूर्ख हैं, महा गरीब हैं, साथ ही भिखारी भी हैं। हे नाथ! अब तो भक्ति रूपी अमृत के समान सुन्दर भोजन का भरपेट निवाला दीजिये ।

10.दोनों पदों में किस रस की व्यंजना हुई है?

उत्तर- शान्तमिश्रित करुणरस ।

11.तुलसी के हृदय में किसका डर है?
उत्तर- उनके मन में अपनी उद्यमहीनता का डर है।

12.राम स्वभाव से कैसे हैं? पठित पदों के आधार पर बताइए।
उत्तर-राम का स्वभाव अति कृपालु है। यह तुलसी द्वारा प्रमाणित भी हो रहा है। जब तुलसी ने भयभीत होकर सन्त समाज से पूछा कि ऐसा कौन है, जो मुझ जैसे उद्यमहीन को भी शरण दे सकेगा, तो सन्तों ने यही उत्तर दिया कि एक कौशलपति महाराज श्रीरामचन्द्र जी हैं जो ऐसे उद्यमहीन व्यक्तियों को भी शरण दे सकते हैं। राम का स्वभाव ही है पतितों पर दया करना और यह सन्तों के कथन से प्रमाणित भी हो उठता है।

13.तुलसी को किस वस्तु की भूख है?

उत्तर- तुलसी की भूख बड़ी प्रबल है वह है भक्ति-रूपी अमृत के समान उत्तम भोजन की, अत: तुलसी यही प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! अपने चरणों में स्थान देकर मुझे प्रबल शक्ति प्रदान करने की कृपा करें ताकि कलिकाल के प्रभाव से रक्षा हो सके।

14.पठित पदों के आधार पर तुलसी की भक्ति भावना का परिचय दीजिये ।

उत्तर – तुलसी की भक्ति भावना दास्य भाव की है जिसमें अपने आराध्य पर अपार विश्वास है, रक्षा की कामना भी है। दास भक्त की दशा करुण ही होती है क्योंकि आराध्य करुणा के सागर दया के निधान हैं। इस भक्ति में भक्त अपने को सब प्रकार मलीन मानता है और परमात्मा को सब प्रकार सक्षम मानता है।

15.’रटत रिरिहा आरि और न, कौर ही तें काजु ।’ यहाँ ‘ और’ का क्या अर्थ है ?

उत्तर – यहाँ ‘ और ‘ का अर्थ है, मात्र इतना हो, इससे ज्यादा कुछ नहीं। वे रो-रो करके रट रहे हैं, गिड़गिड़ाकर माँग रहे हैं, बस मुझे कुछ और नहीं चाहिए, बस एक कौर ‘टुकड़ा से ही काम चल जायेगा’।

17.दूसरे पद में तुलसी ने ‘दीनता’ और ‘दारिद्रता’ दोनों का प्रयोग क्यों किया है?
उत्तर-तुलसी का काल दुकाल था। चारों और दारिद्रय, उद्यमहीनता, असहायता पसरी हुई थी और तुलसी उद्यम खोज नहीं पा रहे थे। यही कारण था कि उन्होंने परमात्मा से कहा आपके अतिरिक्त इस दीनता और दरिद्रता से कौन दूर ले जा सकता है। दीनता-दरिद्रता समानार्थी भी हैं और इनका अलग-अलग अर्थ भी है- गरीबी और नाना कष्ट युक्त दीनता। अतः यहाँ यह सब कुछ है इसी से आपकी दया चाहिए।

18.प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिये ।

उत्तर- पद का सारांश देखिये ।

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