Hindi Class 12 Chapter 11 Subjective

12th Hindi Chapter 11 Subjective : Here you can find class 12th hindi 100 marks Subjective questions for board exam 2024.प्यारे नन्हें बेटे को  subjective questions is very important for bihar board exam 2024. 

प्यारे नन्हें बेटे को

1.’बिटियासे क्या सवाल किया गया है?
उत्तर- उससे कहा गया, बताओ आस-पास, कहाँ-कहाँ लोहा है।
2. ‘बिटियाकहाँ-कहाँ लोहा पहचान पाती है?
उत्तर- उसने बताया – चिमटा, करछुल, सिगड़ी, सडसी, दरवाजे की सांकल, कब्जे, खीला। इतना कहकर वह फिर बताती हैयह लोहा उस तार में भी है, जिस पर भैय्या की गीली चड्डी सूख रही है तथा सेफ्टी पिन में, साइकिल की धुरी में भी है।

3.कवि लोहे की पहचान किस रूप में कराते हैं? यही पहचान उनकी पत्नी किस रूप में कराती हैं?

उत्तर –कवि के अनुसार लोहा – फावड़ा, कुदाली, टंगिया, बसूला, खुरपी, बैलगाड़ी के चक्के का पट्टा, बैल के गले की . काँस की घंटी के भीतर, लोहे की गोलियों में है। यह पहचान कर्मठता युक्त है। ये सारे लोहे के उपकरण कर्म के प्रतीक हैं, कर्म में उपयोगी हैं उसका आधार पर ही हमारा जीवन चलता है।उसकी पत्नी भी लोहे की पहचान कराती है, उसके अनुसार- बाल्टी, कुएँ की लोहे की घिरी, छत्ते की काड़ी, डंडी, चाकू और भिलाई, बलाडिला, जहाँ जगह-जगह लोहे के टीले हैं इसमें उसके प्रयोग के उपकरण हैं।
4.लोहा क्या है? इसकी खोज क्यों की जा रही है?
उत्तर – लोहा कर्म का प्रतीक है, यही कारण है, यह वहीं है जहाँ आदमी मेहनत करता है, निर्माण करता है। गरीब मजदूर, शोषित के जीवन के आधार हैं, उसका हथियार है। यह घर-गृहस्थ की शोभा है, बाहर कर्म का प्रतीक है क्योंकि यह सर्वत्र है, क्षेत्र में है और जीवन तथा समाज से घुला मिला है। हर इसकी खोज का आधार है व्यक्ति कर्म में लगा रहे, उससे दूर भागे। शोषित भी लोहा प्रयोग करता है, शोषक भी उसका प्रयोग करता है। कुल मिलाकर हर आदमी जो मेहनतकश है वह स्वयं लोहा है और हर औरत जो दबी-सतायी है वह भी लोहा है ।

5.इस घटना से उस घटना तकयहाँ किन घटनाओं की चर्चा है?
उत्तर-इस घटना का घर गृहस्थी से तथा उस घटना का व्यवसाय से तात्पर्य है, साथ ही लोहा संघर्ष का भी प्रतीक  है

6. अर्थ स्पष्ट करें- कि हर वो आदमी जो मेहनतकश लोहा है हर वो औरत दबी सताई बोझ उठाने वाली, लोहा ।
उत्तर- प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल की कविता प्यारे नन्हें बेटे को से उद्धृत हैं। कवि यहाँ यह संकेत कर रहा है- हर वह व्यक्ति जो श्रमिक है लोहा ही है। व्याख्या – लोहा श्रम का प्रतीक है, संघर्ष का प्रतीक है। अतः जो व्यक्ति मेहनतकश है, श्रमिक है, मजदूर है, वह लोहा ही है, लोहा वह स्वयं भी है लोहे पर उसका जीवन भी आधारित है। यही स्थिति उस स्त्री की भी है जो सतायी हुई है, दबी हुई है, बोझा उठाती है। अगर वह लोहा न होती तो अत्याचार सहकर और बोझ उठाने से मर न गयी होती। विशेष 1. प्रतीक के माध्यम से एक विशिष्ट बात कहने का प्रयास किया गया है। 2. लोहे को सर्वथा नये रूप में परिभाषित किया गया है। 3. भाषा सरल व्यावहारिक है। 4. शैली प्रतीकात्मक एवं व्यंग्यात्मक है।

7.कविता में लोहे की पहचान अपने आसपास में की गई है। बिटिया, कवि और उनकी पत्नी जिन रूपों में इसकी पहचान करते हैं, ये आपके मन में क्या प्रभाव उत्पन्न करते हैं? बताइए।
उत्तर-
कवि बिटिया से पूछता है, लोहा कहाँ-कहाँ है वह बताती है घरेलू उन उपकरणों में लोहा है, जिनके माध्यम से भोजन पकता है। यहाँ लोहा परोपकार का प्रतीक है, वह तपता है, आँच की तपन सहता है और हमारे लिये भेजन बनाने का माध्यम बनता है। फिर कवि उसकी पहचान कराता है। फावड़ा, खुरपी आदि में यह लोहा है, यह कर्मठता, श्रमशीलता की बात जगाता है, साथ ही यह भी ध्वनित करता है व्यक्ति को लोहे जैसा ठोस और मजबूत भी होना चाहिए। पत्नी भी पहचान बताती है, बाल्टी, कुएँ की घिरीं, हँसिया, चाकू अर्थात् जिनके अभाव में गृहस्थी चलाना कठिन है वहाँ भी लोहा है। अर्थात् जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लोहा है उसका उपयोग है। उसके अभाव में जीवन दूभर है।

8.मेहनतकश आदमी और दबी-सतायी, बोझ उठाने वाली औरत में कवि द्वारा लोहे की खोज का क्या आशय है ?

उत्तर – लोहा मजबूत, दृढ़, उपयोगी है। यही स्थिति मेहनतकश की है, वह भी मजबूत है, दृढ़ है और उपयोगी है। यदि वह लोहे जैसा नहीं होता तो इतना अत्याचार, शोषण भोगकर मर न गया होता। सतायी, दबायी स्त्री जो बोझा उठाती है और घर का सारा कार्य भी चलाती है, फिर भी प्रताड़ित है, अगर उसका तन लोहे जैसा न होता तो क्या होता? क्या यह सारा काम वह कर पाती ?

9.यह कविता एक आत्मीय संसार की सृष्टि करती है पर वह संसार बाह्य निरपेक्ष नहीं है। इसमें दृष्टि और संवेदना, जिजीविषा और आत्मविश्वास सम्मिलित हैं। इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर – यह कविता एक पारिवारिक संवाद है जिससे पारिवारिक माहौल है। यद्यपि तीनों ही अपने-अपने विचार प्रकट करते हैं और वे अलग हैं पर उनकी दिशा एक ही हैं। यह आत्मीयता का ही परिचायक है। यह संसार आत्मीय है, व्यावहारिक है, संवेदना युक्त है। लोहा एक जिजीविषा का प्रतीक है, उसके अभाव में जीवन का चलना कठिन है, यह कर्मचेतना का प्रतीक है जो अडिग आत्मविश्वास भी जगाता है अतः यहाँ यह सारे भाव घुले-मिले हैं।

10.बिटिया को पिता सिखलाते हैं तो माँ समझाती है। ऐसा क्यों?

उत्तर यहाँ पिता का जो कथन है, उसमें पिता जो सिखलाता है वह सब अभी बिटिया के मानसिक दायरे से परे है अर्थात् उसका फावड़ा, कुदाली, टुँगिया, वसूला, खुरपी से नहीं है। यदि परिचय हो भी तो भी उनकी पूर्ण उपयोगिता उसके सामने अभी नहीं स्पष्ट हो सकी है, अत: इनका महत्व, उपयोग बिटिया को समझाना पड़ेगा कि ये सब पदार्थ श्रम के प्रतीक हैं, निर्माण के साधन हैं और लोहे से बने हैं अतः उपयोगी हैं। इनकी सामाजिक उपयोगिता है यह बात उसको समझायी जा सकती है और उनका उपयोग सिखलाया भी जा सकता है। माँ ने जिन उपकरणों की चर्चा की है उनमें से मात्र भिलाई का संदर्भ नया हो सकता है शेष बाल्टी, कुएँ की लोहे की घिरीं, घमेला, हंसिया आदि से बिटिया परिचित हो सकती है। ये सब घर गृहस्थी में काम में आने वाले उपकरण हैं अतः पत्नी मात्र उन्हें याद दिलाकर यह समझा देगी कि ये सारे पदार्थ भी लोहे के ही बने हैं जिनका उपयोग हम सब करते हैं और प्रतिदिन ही करते हैं। यही अन्तर है सिखलाना और समझाना में ।

 

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